Fulfillment of 'New Woman' in India is a Myth

नए युग की महिला की अवधारणा आत्मनिर्भरता और स्वतंत्रता पर आधारित है। ये परम्परागत रूप से चली आ रही त्याग और बलिदान की भूमिका को स्वीकार नही करती है तथा कानूनी और यौन समानता में विश्वास करती है। इनका मानना है कि विवाह करने के कारण ऐसी समानता नही रह पाती इसलिए एकल रहने में भी यकीन करती है। 'ओल्ड वुमन' की तुलना में ये कामुकता के बारे में अधिक खुले विचार रखती है, अच्छी तरह से शिक्षित है, नॉकरी भी करती है, एथलेटिक्स और अन्य शारीरिक गतिविधियों में भी जोरदार है, परम्परागत वस्त्रो की जगह आरामदायक कपड़ो (कभी-कभी पुरुष पोशाक) पसंद करती है। इस तरह 'न्यू वुमन' एक बैचलर गर्ल से ज्यादा है जो परंपरागत नियंत्रण का प्रतिरोध करती है और दुनिया मे पूर्ण भूमिका निभाना चाहती है।

अगर 'न्यू वुमन' की अवधारणा का भारतीय परिदृश्य में मूल्यांकन करे तो हम पाते है कि भारत मे संविधान में ही उन्हें समानता के अवसर प्रदान कर दिए। आगे समय-समय पर विभिन्न कानूनों के माध्यम से उनके खिलाफ भेदभाव, हिंसा और उत्पीड़न को रोकने के उपाय किये गए। न केवल सार्वजनिक स्थानों को महिलाओं के अनुकूल बनाने के लिए प्रयास किये गए बल्कि घरेलू स्तर पर भी महिलाओ के लिए गरिमामय जीवन जीने को सुनिश्चित किया गया। सामाजिक स्तर पर भी महिलाओं को आगे लाने के लिए प्रेरित किया गया।

सरकारी द्वारा प्रदान किये गए अवसरों से महिलाओं को लाभ मिला और उन्होंने शिक्षा प्राप्त करके विभिन्न कार्यक्षेत्रों में अग्रणी भूमिका प्राप्त की। कई प्रवेश परीक्षाओं और प्रतियोगी परीक्षाओं में लड़कियों ने शीर्ष स्थान ग्रहण करके पुरुषो को पीछे छोड़ दिया है, उन्होंने अपनी काबिलियत से दिखा दिया है कि वे पुरुषों से कम नही है, सेनाओ तक मे भागीदारी इसका सबूत है। सार्वजनिक जीवन मे योगदान करने में महिला आगे आती जा रही है, वही अपनी आत्मनिर्भर प्रकृति के कारण पारिवारिक फैसलो में भी भूमिका निभाने लगी है। महिलाओं का कैरियर शिक्षा आधारित ही नही है, वे खेलो, फिल्मो, राजनीति आदि में भी बेहतर प्रदर्शन कर रही है। नए अवसरों का प्रयोग करके वे आत्मनिर्भर हुई है जिससे अपने पुरूष सम्बन्धियो पर निर्भरता कम हुई है, इस कारण वे हर मामले में उनके प्रति जवाबदेह नही रह गयी है जिनमे सेक्सुअल च्वॉइस भी शामिल है। यही वजह है कि लिव-इन-रिलेशनशिप और देरी से शादियों का प्रचलन बढ़ा है।

लेकिन 'न्यू वुमन' की अवधारणा का भारत मे क्रियान्वयन आसान नही है। जब भारत महिला सशक्तिकरण और लैंगिक न्याय के मामलों में ही संघर्ष कर रहा हो ऐसे में अधिकारों की लड़ाई को एक कदम और आगे बढ़ा देना निश्चित तौर पर अधिक चुनोती धारण करता है। जो कि इस प्रकार है----

1. पहली चुनोती तो यह है कि महिला सशक्तिकरण के फायदे शहरी औरतों को ही मिल रहे है या फिर गांवो में आर्थिक सक्षम घरो की महिलाये ही आगे बढ़ रही है। अन्य महिलाओं को बुनियादी सुविधाएं ही नही मिल पाती है जिनमे शिक्षा और चिकित्सा शामिल है। इस तरह अवसरों के अभाव में गांवो के लिए 'नई महिला' की अवधारणा मिथक भर ही है।

2. भारतीय समाज की पितृसत्तात्मक प्रकृति है जिसमे नारी को बचपन मे पिता के, यौवन में पति के और बुढ़ापे में पुत्रो के आश्रय में देखा गया। इस व्यवस्था को भावनात्मक तौर पर इतना मजबूत बनाया गया कि खुद औरतो ने भी इससे बाहर निकलने की इच्छाशक्ति नही दर्शायी। इससे समानता की जगह अधीनस्थता का तत्व आ जाने से स्वतन्त्रता का हनन हुआ। ऐसे में नारी की भूमिका बच्चे, रसोई, साज-सज्जा और परम्पराओ के पालन तक ही सिमट कर रह गयी। इस तरह औरत की भूमिका को घर तक सीमित कर दिया गया।
वर्तमान में नए अवसरों की पहुच में आने से पितृसत्तात्मकता का शिकंजा कमजोर हुआ तो 'न्यू वुमन' का आधा अधूरा स्वरुप सामने आया। क्योंकि ऐसे परिवारों में कई असुरक्षाये मौजूद थी जैसे कि- लड़की को ज्यादा पढा दिया तो ज्यादा दहेज देना पड़ेगा, लड़की को ज्यादा पढ़ाया तो हाथ से निकल जायेगी, लड़की को पढ़ा भी लिया तो ठीक है लेकिन नॉकरी नही करने देंगे आदि। इस प्रकार पित्रसत्ता के कारण 'न्यू वुमन' के स्वप्न का पूरा होना अधूरा बना हुआ है।

3.  'न्यू वुमन' के किरदार की छवि का समाज मे नकारात्मक होना भी इसके समर्थन में कटौती करता है। ये महिलाएं कमाई से जुडी हुई है जो परिवार की आय में योगदान करती है, एवज में पारिवारिक फैसलो में भागीदारी चाहती है। यह बात पुरुषों की प्रधानता वाले परिवारों को रास नही आती है। वे मानते है कि कमाई करने के बावजूद भी महिला को अपनी परम्परागत भूमिका को नही भूलना चाहिए। इस तरह के रवैये से पति -पत्नी के बीच तनाव बढ़ रहे है जिसका परिणाम हिंसा, तलाक, दहेज उत्पीड़न, परिवारों का टूटना, एकल माता और पिताओ का बढ़ना आदि के रूप में सामने आ रहा है। इस प्रकार 'न्यू वुमन' का यह अवतार नए प्रकार के शोषण और भेदभावो का शिकार हो गया है। मतलब हको की लड़ाई एक कदम आगे बढ़ने के बजाय एक कदम पीछे खिसक गयी है।

4. 'न्यू वुमन' के किरदार द्वारा जिस प्रकार की स्वतंत्रता की बात की जाती है उसे भी समाज मे स्वीकृति नही है। ये महिलाएं कामुकता और देह पर अधिक खुले विचार रखती है, जबकि भारतीय परंपरा तो लाज, कौमार्य औऱ पतिव्रता नारी के आदर्श पर टिकी हुई है। ऐसे मूल्यों के साथ महिलाओं को ज्यादा उन्मुक्त होने की अनुमति कैसे दी जा सकती है, इसी वजह से लिपस्टिक अंडर माई बुर्का जैसी फिल्मों पर आपत्ति की गई। दीपिका पादुकोण की माई च्वाइस और अमिताभ बच्चन अभिनीत पिंक में महिलाओं के खुद के शरीर पर अधिकार का समर्थन किया गया। वे शरीर का कुछ भी दिखाए, किसी के साथ सम्बन्ध बनाये या ना बनाये, यह उनका निजी मामला है। लेकिन माना जाता है कि सामाजिक व्यवस्था में ऐसी गतिविधिया अश्लीलता को जन्म देती है, इसलिए उन पर नैतिकता थोपी जाती है। इस नैतिकता के द्वारा भी न्यू वुमन की फंतासियों की पूर्ण होने से रोका गया है। और जिन महिलाओं ने नैतिकता की परवाह किये बगैर इन स्वतंत्रताओ को पूरा करना चाहा उन्हें समाज मे सम्मान खोना पड़ा।

इस प्रकार हम देखते है कि न्यू वुमन की अवधारणा का कुछ पक्ष तो भारतीय परिद्रश्य में समर्थित है और कुछ पक्षो को अनैतिक तौर पर देखा जाता है, जिनको की पूर्ण करने लक्ष्य नही माना जाता और जो पक्ष स्वीकृत भी है उनको प्राप्त करने के लिए सभी महिलाओं को अवसर प्राप्त नही हो पा रहे है। इन्हें हम उदाहरण से समझ सकते है जैसे कि समानता के तत्व को स्वीकार करते हुए पारंपरिक भूमिकाओं में होने वाले भेदभावों को रोका गया है, हिंसाओं को प्रतिबंधित किया है, आत्मनिर्भर होने के लिए कार्यक्षेत्र को अनुकूल बनाया जा रहा है। दूसरी तरफ स्वतंत्रता के अधिकार को पर्याप्त मात्रा में स्वीकार नही किया गया है, इसके प्रति आशंका है कि इससे पारिवारिक और सामाजिक संस्थाओं की नींव उखड़ जाएगी। इनके अलावा स्वीकृति प्राप्त क्षेत्रो में भी सभी महिलाओं को समान अवसर प्रदान करने की चुनोती है, गांवो में लड़कियों की गुणात्मक शिक्षा और रोजगारो तक पहुँच सुनिश्चित करना जरूरी है।

अतः हम कह सकते है कि भारत मे 'न्यू वुमन' की पूर्णता भले ही कुछ कारणों से मिथक नजर आता हो लेकिन इसके कई आयामो को हम सामाजिक स्वीकृति को भी ध्यान में रखते हुए यकायक की बजाय क्रमिक रूप से प्राप्त कर रहे है। जिससे 'न्यू वुमन' का भारतीय संस्करण विकसित होगा जिसमें पाश्चात्य मॉडल के विपरीत सम्मान का तत्व भी होगा।

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