UPSC सिविल सेवा मुख्य परीक्षा 2018 निबंध प्रश्न पत्र

सिविल सेवा मुख्य परीक्षा 2018, निबंध प्रश्न-पत्र का इस आलेख में सटीक दृष्टिकोण बताया जा रहा हैं। किसी निबंध के मॉडल उत्तर में किन-किन पक्षों को शामिल किया जाना चाहिए तथा सम्बन्धित विषय पर क्या संतुलित दृष्टिकोण होना चाहिए, इन सबको आप इस आलेख में देख सकते हैं। इसी तरह की हमारी पहल को गत वर्ष भी काफी सराहा गया था।
खंड I
  1. जलवायु परिवर्तन के प्रति सुनम्य भारत हेतु वैकल्पिक तकनीकियां (Alternative Technologies for a Climate Change resilient india)
  2. एक अच्छा जीवन प्रेम से प्रेरित तथा ज्ञान से संचालित होता है (A good life is one inspired by love and guided by knowledge)
  3. कही पर भी गरीबी हर जगह की समृद्धि के लिए खतरा है (Poverty anywhere is a threat to prosperity everywhere)
  4. भारत के सीमा विवादों का प्रबंधन - एक जटिल कार्य (Management of Indian border disputes - a complex task)
      खंड II
      1. रूढ़िगत नैतिकता आधुनिक जीवन का मार्गदर्शक नहीं हो सकती है। (Customary morality can not be a guide to modern life)
      2. अतीत मानवीय चेतना तथा मूल्यों का एक स्थायी आयाम है। (The past is a permanent dimension of human consciousness and values)
      3. जो समाज अपने सिधान्तो के ऊपर अपने विशेषाधिकारों को महत्व देता है, वह दोनों से हाथ धो बैठता है। (A people that values its privileges above its principles, loses both is defeated by both of them.)
      4. यथार्थ आदर्श के अनुरूप नहीं होता है , बल्कि उसकी पुष्टि करता है। (Reality Does not conform to the ideal, but confirms it.)

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          खंड I के निबंधों से संबंधित सही दृष्टिकोण

          1.1.जलवायु परिवर्तन के प्रति सुनम्य भारत हेतु वैकल्पिक तकनीकियां।
          (Alternative Technologies for a Climate Change resilient india)

          जलवायु परिवर्तन के नुकसान देशों को भारी जान माल की क्षति कर रहे है। वैश्विक स्तर पर सभी देशो द्वारा इन नुकसानों का न्यूनीकरण करने पर ध्यान दिया जा रहा है। यह मुद्दा कई अंतर्राष्ट्रीय मंचो के एजेंडा का हिस्सा रहा है। सेंडाइ फ्रेमवर्क हो या फिर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन से संबंधित क्षेत्रीय आयोजन हो। सभी में इस पर लक्ष्यबद्ध तैयारी को प्राथमिकता देने की बात कही गई है। भारत ने भी इन प्लेटफार्म की सदस्यता ली है और इनके लक्ष्यों का अंगीकरण भी किया है ताकि जलवायु परिवर्तन संबंधित जोखिमो को निम्नीकृत किया जा सके। 
          • इन तकनीकियों को अपनाने की क्यों जरुरत है -  Explain india's Vulnerability
          • इस सिलसिले में परम्परागत तरीको को अनुकूलित किए जाने की आवश्यकता है वही उनके जलवायु निम्नीकरण स्वभाव को न्यूनीकृत भी किया जाना चाहिए। इसके लिए निम्न तकनीकि उपयोगी हो सकती है -  Explain INDC and other technologies
          • लेकिन ये तकनीकियां मानस पटल पर ही रहेगी अगर हम इन्हे जमीं पर उतारने में काबिल नहीं हो सके तो , इसके लिए हमे इनके लिए तकनिकी और वित्त संबंधित जरुरतो की पूर्ति पर ध्यान देना होगा। अब इनके समाधान के लिए हम प्रयासरत तो है ही लेकिन सीमाओं को देखते हुए अधिक व्यवहार्य समाधानों पर विचार करने की जरुरत है। - Affordable and accessible solution
          • वैकल्पिक तकनीकियों के निम्न फायदे हो सकते है - ये निवेश का जरिया बनेगी, लोगो के लिए रोजगार के अवसर उत्पन्न होंगे और हरित अर्थव्यवस्था का आधार निर्मित होगा। अन्य फायदे तकनीकी के नवाचार से जुड़े हो सकते है।  
          • वैकल्पिक तकनीकियों के निम्न नुकसान हो सकते है- महँगी होगी , परम्परागत ज्ञान की उपेक्षा होगी या फिर उसके लाभ से वे वंचित रह सकते है। 
          निष्कर्ष : में कहा जा सकता है कि अत भारत को इन तकनीकियों को अपनाने पर ध्यान तो देना ही चाहिए , लेकिन इससे जुड़े सकारत्मक और नकारत्मक मुद्दों पर भी ध्यान दे लेना चाहिए। 

          1.2.एक अच्छा जीवन प्रेम से प्रेरित तथा ज्ञान से संचालित होता है।
          (A good life is one inspired by love and guided by knowledge)

          एक अच्छे जीवन की प्रकृति पर हमेशा विमर्श चलता रहता है। कुछ लोग इसका आंकलन पहले धन के आधार पर करते थे लेकिन हम देखते है कि धन रिश्तो में प्रेम का आभाव बना देता है और जीवन नीरस  या यांत्रिक अधिक प्रतीत होता है, वही गरीब आदमी पारिवारिक प्रेम की बदौलत ख़ुशी से अपना जीवन गुजारता है। लेकिन गरीब आदमी शिक्षा जैसे संसाधनों तक सीमित पहुंच के कारण अपने जीवन की गुणवत्ता को निम्नतर ही रखता है। प्रेम खाने को थोड़ी देता है। इसके लिए तो पैसा चाहिए जो कि ज्ञानार्जन के माध्यम से किए गए कुछ आर्थिक कार्यो पर निर्भर करता है। इसलिए हम देख सकते है की अच्छा जीवन अधिक प्रेम से भी प्रेरित नहीं होता, न ही अधिक ज्ञान से संचालित होता है। इसके लिए सभी गतिविधियों का समायोजन चाहिए। एक दूसरे को समय देना आना चाहिए। धनार्जन भी जरुरी है।  
          • जीवनशैली में प्रेम का महत्व : संतुलित प्रेम और प्रेम की अधिकता बिगड़ देती है और बच्चे कॅरिअर खराब कर लेते है , उसके बाद केवल प्रेम ही अच्छे जीवन का आधार नहीं है। 
          • ज्ञान से संचालित : ज्ञान से जीवन शैली की गुणवत्ता बढ़ती है। वः सही मायने में अच्छे जीवन की तरफ जाता है , लेकिन ज्ञान तर्क पर आधारित होता है जो जीवन को नीरस बना देता है। 
          • संतुलन : अच्छे जीवन के लिए ज्ञान और प्रेम दोनों में संतुलन होना चाहिए। 
          • अच्छे जीवन की लोकप्रिय धारणा और उस पर ये दोनों मानदंड : मानव विकास सूचकांक के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और आय। ऐसे में धनार्जन पर ध्यान देना भी जरुरी है। जिसकी बदौलत सामाजिक न्याय सुनिश्चित किया जा सकता है। 
          निष्कर्ष : अच्छे जीवन का पैमाना विविधता लिए हुए है जो अलग अलग चीजों पर निर्भर करता है. ये दोनों इसका बड़ा हिस्सा है। जिन की उपलब्धता पर हमे ध्यान देना चाहिए।  
          फैक्ट : Happiness index, HDI, Social justice based life

          1.3.कही पर भी गरीबी हर जगह की समृद्धि के लिए खतरा है।
          (Poverty anywhere is a threat to prosperity everywhere)

          आधुनिक सभ्य समाज में असमानता पर प्रश्न काफी दिनों से खड़ा किया जाता रहा है। जिसमे बहुआयामी गरीबी को जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी खत्म करने की बात कहि जाती है। सङ्ग में भी इस चीज के लक्ष्य निर्धारित किए गए है। जिसके लिए सभी देशो की सरकार प्रयासरत है। उसके अलावा कई निजी संस्थाए भी कार्यरत है। इस तरह के बहुआयामी प्रयासों वाले गरीबी के प्रश्न को अलगाव का विषय नहीं मानने की अवधारणा है। यह कही न कही दूसरे क्षेत्रो को भी प्रभावित करती है। 
          • गरीबी कैसे दूसरे क्षेत्रो को प्रभावित करती है - लोकतत्र कमजोर होता है, सही नीतिया नहीं बनती, जिससे शोषण या तो बढ़ता है या फिर सम्बोधित नहीं होता। अर्थव्यवस्था को भी शिथिल करती है , मांग का अभाव, उत्पादन और आगे रोजगारो को प्रेरित नहीं करता है।  सांस्कृतिक तोर पर भी विषमता उत्पन्न होती है जो देश के मूल्यों का विभाजन कर देती है , जिसकी वजह से समान रूप से लोगो का सम्बोधन रुक जाता है। समाज में भी व्यक्तिवाद जल्दी से घर कर जाता है।  संकीर्णतम विचारधाराओ को उर्वर भूमि मिल जाती है। 
          • लेकिन समृद्धि भी गरीबो के लिए मुश्किलें खड़ी करती है। जो आज के हालत में देख सकते है। धनि लोग उनके हको पर कब्जा कर रहे है और अपने नैतिक मूल्यों को ढीला कर रहे है। उन्हें विस्तापित करती है। 
          • उदाहरण जैसे नक्सलियों की गरीबी पुरे देश की सुरक्षा के लिए खतरा है, जिसके बदौलत निवेशकों की आनाकानी इस असुरक्षा को बढाती है।  
          • उठाये जाने वाले कदम- ताकि कोई क्षेत्र गरीब छूटे ही नहीं और अगर रह भी जाए तो उसे कैसे ऊपर लाये। 
          निष्कर्ष : हमारी संस्कृति लोगो को साथ में लेकर चलने की है। कोई पीछे छूट गया तो उसे साथ में लाना चाहिए। आरक्षण इसका उदारहण है। इसके अलावा आमिर लोगो को अपना न्य वर्ग बनाने की बजाय वर्गहीन समाज को बढ़ावा देना चाहिए।

          1.4.  भारत के सीमा विवादों का प्रबंधन - एक जटिल कार्य ।
          (Management of Indian border disputes - a complex task)

          भारत एक बड़ी सीमा रखा का धनी है जो भौगोलिक रूप से समुद्र, रेगिस्तान, पहाड़ ,बर्फ, नदी-नाले, कीचड़ आदि के द्वारा बनती है। इसके अलावा यह सीमा कई देशों के साथ साझा होती है ,जिसमें से अधिकतर के साथ संबंध सही नही रहे है। ऐसे में यह चुनौती और बढ़ जाती है। इस सीमा के प्रबंधन के लिए बहुत सारी सुरक्षा एजेंसी भी कार्यरत है। जिसके कारण इसमें कोर्डिनेशन भी मुद्दा बना रहता है।  अंतरराष्ट्रीय सीमा घुसपैठ, तस्करी, चरमपंथियों के आवागमन  संबंधित मुद्दों से जूझ रही है। वही सैन्य प्रबंधन के लोगो को खराब दशा में कार्य करना पड़ता है। दूसरे देशो के सैन्य दलों के साथ कई बार मुठभेड़ की घटनाए भी होती है। 
          • सीमा विवादों की प्रकृति और उसकी वजह से क्या मुद्दे खड़े होते है। 
          • सीमा विवादों के समाधान क्या हो सकते है - क्षमता निर्माण, अवसंरचना निर्माण। राजनयिक प्रयास 
          • समाधानों की सीमाए क्या है - क्यों ये प्रभावी नहीं हो पा रहे है। 
          • सीमा विवादों का सुलझना अर्थव्यवस्था के हितो में जरुरी है। इसके लिए आगे की राह कैसी होनी चाहिए - न केवल सीमा विवादों का सुलझना चाहिए , बल्कि क्षेत्रीय एकीकरण के लिए कार्यकरना चाहिए। जिसका लाभ सभी को होगा। भारत की अफगानिस्तान तक पहुंच बढ़ेगी।  रक्षा बजट में कमी आएगी। मानव विकास में इजाफा होगा। 
          निष्कर्ष : हम दोस्त बदल सकते है लेकिन पडोसी नहीं।  इसलिए हमे इन संबंधो को सुधारने की बुनियाद सीमा विवादों के समाधान पर ध्यान देना चाहिए। जिससे हम देश के किसी भी हिस्से में होने वाली अनिश्चितताओं को रोक सके। क्षेत्र को आधुनिक मूल्यों की शक्ल दे सके, कब तक औपनिवेशिक विरासत से जूझते रहेंगे। 



          खंड II के निबंधों से संबंधित सही दृष्टिकोण

          2.1.रूढ़िगत नैतिकता आधुनिक जीवन का मार्गदर्शक नहीं हो सकती है।
          (Customary morality can not be a guide to modern life)

          भारतीय समाज विकास के आसमान स्तरो पर रहा है। जिसमे कुछ लोग आधुनिक मूल्यों को जल्दी ही प्राप्त कर लिए और कुछ लोग अभी भी परम्परागत मूल्यों के चिपके हुए है। इसके कारण समाज की गतिशीलता में विसंगति देखी जाती है। आधुनिक मूल्य वालो को प्राचीन वाले बिगड़े हुए मानते है, वही प्राचीन वालो को आधुनिक मूल्य वाले लोग पिछड़े हुए मानते है। अब हमे इसी पर विचार करना है कि वर्तमान आधुनिक जीवन में कोनसे मूल्य सही है और कोनसे गलत।  

          किसी भी समाज, संस्था या देश का संचालन कुछ नियमो के माध्यम से होता है। ये नियम उस समाज के उद्देशो की पूर्ति से जुड़े होते है। हमारा व्यवहार अगर उन नियमो के अनुरूप है जो संगठन के लक्ष्यों की पूर्ति में सहायक है तो हमे नैतिक समझा जाएगा। वही हमारा व्यवहार अगर उन नियमो के अनुरूप नहीं है या संगठन के लक्ष्यों में बाधा बनता है तो हमे अनैतिक समझा जायेगा। जैसे जैसे समय बदलता है, यह नैतिकता बदलती जाती है। स्थान के अनुसार भी यह बदलती है। 
          • आधुनिक समाज की प्रगति में रुकावट बने परंरागत मूल्य :  हमारा समाज आगे बढ़ गया। लेकिन कुछ मूल्य इस समाज को आधुनिक दौड़ में शामिल नहीं करा सके, जिनमे महिलाओ की शिक्षा से संबंधित प्रमुख है।
          • आधुनिक समाज के आधुनिक मूल्यों द्वारा उत्पन्न की गई विसंगति :जैसे महिलाओ को उपभोग की वस्तु मानना। अश्लीलता का प्रचलन 
          • आधुनिक जीवन में पश्चिमी मूल्यों की आवश्यकता : सयंम आधिरत जीवन और जलवायु परिवर्तन 
          निष्कर्ष : अत: हम कह सकते है की परम्परागत मूल्यों के संवर्धन की जरुरत है की उनको नकारने की। भारतीय मूल्यों की जड़े काफी गहरी है इसलिए उन्हें बेकार बताना सही नहीं है। भारतीय मूल्य परिष्कृत होकर समाज को बेहतर दिशा देते है। 

          2.2.अतीत मानवीय चेतना तथा मूल्यों का एक स्थायी आयाम है।
          (The past is a permanent dimension of human consciousness and values)

          मानवीय मूल्य और चेतना हमेशा गतिशील होती है। मानव जिस समाज में रहता है उसके अनुकूल अपने को ढालने के लिए अपने मूल्य विकसित करता है। इन सबके लिए उसे उस क्षेत्र की समझ बहुत सहायता करती है। ऐसे में उस समाज के पास इतिहास का समृध्द अनुभव उसके मूल्यों को बहुत धनवान बना सकता है। उसमे गलती होने के अवसर खत्म हो जाते है। इस प्रकार इतिहास एक आयाम की तरह कार्य करता है। 

          लेकिन इतिहास को हमेशा याद रखना उसके लिए अनिवार्य हो जाता है, वरना पुराणी चीजे फिर से दोहराई जा सकती है। इसलिए इतिहास एक स्थायी आयाम प्रतीत होता है। लेकिन मानव की चेतना भी विकसित होती रहती है। इसलिए वह इतिहास की उपेक्षा करके नवीन रास्ते अपना लेता है। जब वह सफल हो जाता है तो इतिहास के स्थायी आयाम की बात कंडित हो जाती है। 

          निष्कर्ष :  इसलिए मानव चेतना और मूल्यों में इतिहास एक आयाम तो होता है लेकिन स्थायी जैसी कोई चीजे नहीं होती है। क्योकि मानव चेतना स्वतंत्र होती है।

          2.3.जो समाज अपने सिधान्तो के ऊपर अपने विशेषाधिकारों को महत्व देता है, वह दोनों से हाथ धो बैठता है।
          (A people that values its privileges above its principles, loses both is defeated by both of them)

          किसी समुदाय या जगह पर बाउट सारे समाजो का अधिवास होता है। उनमे से कोई समाज वर्चस्वकारी  भूमिका में होता है तो कोई अधीनस्थ की भूमिका मे। ऊपर वाला समाज अपने वर्चस्व की बदौलत कुछ विशेषाधिकारों का उपभोग करता है। इसके लिए वह कुछ सिधान्तो के द्वारा अपनी श्रेष्ठता को स्थापित करता है। लेकिन समाज गतिशील होता है उसमे स्थापित वर्ग को चुनौती मिलती है और दूसरा वर्ग स्थापित होता है। यह चक्र चलता रहता है। 

          लेकिन बात संतुलन की है किसके सिद्धांत अच्छे थे। इसे हम उदाहरणों के माध्यम से समझेंगे -
          • ब्राह्मणो ने चतुर्वर्ण के सिद्धांत के आधार पर विशेषाधिकारों का प्रयोग किया, जिसमे व्यक्तिगत हितो केंद्र में रखकर चतुर्वर्ण का सिद्धांत बनाया गया था। आगे विशेषाधिकार भी नहीं रहे और न ही सिद्धांत रहा। अगर सिद्धांत में कुछ पवित्रता होती तो विशेषाधिकारों को चुनौती नहीं मिलती। 
          • अंग्रेजो ने भी सभ्य बनाने के लिए नस्लवाद के सिद्धांत के आधार पर विशेषाधिकारों का उपभोग किया, उनको भी लोगो ने भगा दिया। 
          • यही हाल यूरोप के सामंतो का हुआ था। 
          • लोकतान्त्रिक नेताओ ने लोकतांत्रिक सिद्धांतो के माध्यम से विशेषाधिकार प्राप्त किए। जिन्हे कोई चुनौती नहीं दे पा रहा है क्योकि इनमे सिद्धांतो की प्रमुखता है। यहां पर भी विप कल्चर के बढ़ने पर उसे चुनौती दी जाती है। 
          निष्कर्ष :  इसलिए यहां पर मुद्दा यह है की विशेषाधिकारों का अगर उपभोग करना है तो उनके लिए सिद्धांत नैतिक होने चाहिए, उनमे किसी प्रकार का भेदभाव नहीं हो ,कोई भी प्रतिभा के आधार पर वहां तक पहुंच सके। लोकतंत्र की महत्ता यह से भी सही सिद्ध हो जाती है।

           2.4.यथार्थ आदर्श के अनुरूप नहीं होता है , बल्कि उसकी पुष्टि करता है।
          (Reality Does not conform to the ideal, but confirms it.)

          हक़ीक़त हम सब जानते है कि आदर्श से कोसो दूर होती है। लेकिन हकीकत की कोशिस हमेशा आदर्श के नजदीक जाने की होती है। मतलब हकीकत की आदर्श की तरफ झुकाव उसकी पुष्टि करता है। इसलिए हम किसी भी उद्देश्य को दिशा देने के लिए एक आदर्श लक्ष्य मन में स्थापित कर लेते है। 
          • लेकिन वर्तमान में आदर्श को मनोरंजन जगत की शक्तिया निर्धारित कर रही है, इस वजह से आदर्श विलासिता वाला होता जा रहा है, वह परम्परागत तरीको की वैकल्पिक विधियों की सरासर उपेक्षा कर रहा है। इसकी वजह से लोगो की निजी जिंदगी खराब होती जा रही है -लोगो में तनाव बढ़ रहा है, अवैध संबंध पनप रहे है, लोग भौतिक चीजों को बसने में लगे हुए है, इन सबका दबाव पर्यावरण पर पद रहा है। 
          • इसलिए आदर्शलोक को हक़ीक़त के पैमाने पर रख करके आंकना चाहिए। मार्क्स आदि भी यूटोपियन माने जाते है। जिन्होंने समाजवाद के नाम पर कई लड़ाई लडवाई, जबकि हक़ीक़त दुनिया पूंजीवाद में ही तलाशती है। आदर्शलोक का अव्यवहारिक होना मनोरंजन जगत में तो चल जाता है। लेकिन उसके आधार पर सिद्धांत जब निजी जिंदगी में दे दिए जाते है तब समस्या खड़ी होती है। 
          • यह सब खराब होमवर्क का नतीजा है। इसलिए मनोरंजन जगत को भी प्रैक्टिकल चीजे दिखने के लिए प्रेरित करना चाहिए। वही उलटे सीधे नियम बनाने वालो को भी आलोचनात्मक समीक्षा के आधार पर परखा जाना चाहिए।
          • लेकिन  यह हमेशा गलत ही नहीं होता। यह सपने दिखता है जिसके आधार पर हम कार्य करते है और अभी की खराब हालत से निकलकर बाहर आने के लिए प्रेरित होते है।  इसका मतलब है कि आदर्श को प्राप्त करने के लिए लोगो को प्लेटफार्म दिए जाने चाहिए।
          निष्कर्ष : आज का आदर्श कल की सामन्य चीज हो सकती है। यह इस पर निर्भर करता है की हम उसे पाने के लिए मेहनत कितनी कर रहे है। इसके लिए हमारे पास संसाधन है या नहीं।

          धन्यवाद 

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