Theory of individual interference

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भारतीय संविधान में लोगों के आर्थिक, सामाजिक विकास को सुनिश्चित करने के लिए नीति निदेशक तत्वों का प्रावधान किया गया है। जिसके अनुसार राज्य लोगो के उत्थान के लिए सक्रिय हस्तक्षेप करता है। हम देखते है की वर्तमान में यह हस्तक्षेप लोगो को राहत ही प्रदान करता है , न की उन्हें उठने का सामर्थ्य देता है। जिस सामर्थ्य के सहारे ये अभावो के चक्र से मुक्त हो सके और फिर अगले आर्थिक स्तर में प्रवेश कर सके। ऐसा करना समाज के निचले तबके के लिए बहुत ही जरुरी है क्योकि उनकी वर्तमान लाचार हालत उनके मानवीय विकास को अवरुद्द करने का पाप करती है। साथ ही उन्हें जन्म दर जन्म एक ही चक्र में घुमाती रहती है। ऐसे लोगो की उपलब्धता प्राइवेट कंपनी को सस्ते श्रमिक प्रदान करने की वजह से अच्छी लग सकती है। लेकिन तकनीकी समृध्द इस युग में दबी कुचली चेतना के लोगो की उपस्थिति खासकर किसी भी संवेदनशील मन को तो अवश्य कचोट रही होती है। ऐसे में जरूरी है कि हम प्रत्येक व्यक्ति की लॉन्चिंग पर आधारित Theory of Individual Interference के सिद्धांत पर विचार करना चाहिए।

क्या योजना है  (What) : 
प्रत्येक व्यक्ति को चयनात्मक हस्तक्षेप उपलब्ध कराने के बजाय लॉन्चिंग हस्तक्षेप उपलब्ध कराने चाहिए।  मौजूदा हस्तक्षेप केवल उनकी बेहतरी की बजाय कमतरी को ज्यादा सम्बोधित करते है। यह प्रणाली केवल उन्हें निर्वाह सक्षम उपाय प्रदान करती है। जबकि इससे आगे जाने के लिए किसी बाह्य समर्थन की जरूरत को पूरा किया जाना चाहिए।

वर्तमान में लॉन्चिंग के लिए हम सरकार के बहुआयामी उपायों  के माध्यम से समर्थ व्यक्ति के आगे आने की उम्मीद करते है। अगर समर्थ व्यक्ति बनाकर आगे लाने के उपाय किए जाए तो स्थिति अलग हो सकती है।

किस प्रकार (How) :
अब इसे किस प्रकार क्रियान्वित किया जा सकता है, इस पर भी विचार कर लेते है -
यूनिवर्सल बेसिक इनकम को पायलट मोड पर शुरू किया जाना चाहिए। यह शुरू में आर्थिक पैमाने पर परिवार आधारित हो सकती है। यह इतनी पर्याप्त हो कि संबंधित आदमी को शिक्षा, स्वस्थ्य जैसे क्षेत्रो में निवेश के लिए समर्थ कर सके।
उसके बाद मुद्रा योजना का प्रसार किया जा सकता है। इसे मांग आधारित की बजाय अधिकार आधारित बनाया जा सकता है। इसके लिए लाभार्थियों से काम की प्राथमिकता आमंत्रित करके कौशल विकास किया जाए, फिर ट्रायल एंड एरर मेथड पर आधारित गतिविधियों में भेजा जाए। उसकी लगातार तीन साल तक मॉनिटरिंग की जाए, अगर वह लांच हो जाता है तो हमारा मकसद सफल हो जाएगा। अन्यथा बचे हुए लोगो के लिए फिर से प्रयास किए जाएंगे। या फिर उन्हें अधीनस्थता के ढांचे में खपा लिया जाएगा।

व्यवहार्यता  (Feasibility) : 
योजना की व्यवहार्यता पूरी तरीके से क्रियान्वित करने योग्य है। मौजूदा समय में लॉन्चिंग की योजना के तोर पर मनरेगा को लिया जा सकता है। लेकिन हम जानते है की मनरेगा अधिकार आधारित से आकड़े भरपाई आधारित हो गई है। अब लॉन्चिंग के लिए दूसरे प्लेटफार्म की आवश्यकता है और प्रत्येक जरूरतमंद को सक्रिय हस्तक्षेप निश्चित तोर पर बेहतर विकल्प होगा।

नकारात्मक (Negative) :
इस योजना के नकारत्मक बिंदु यह हो सकते है की आदमी अब ज्यादा निकम्मे हो सकते है। वे संसाधनों का दुरूपयोग कर सकते है। इसके बाद वे अधिक निकम्मे हो सकते है।  जिससे मानव पूंजी की उत्पादकता में कमी हो सकती है।

परिणाम (Outcomes ):
इस योजना के परिणाम का आंकलन करे तो यह है कि इसके बाद आदमी की नागरिक गतिविधि अधिक सक्रियता की परिचायक हो जायेगी। इससे अभिशासन और राजनीती की गुणवत्ता में बढ़ोतरी होगी। जिससे आगे भी लोगो में सुधार के मूल्यों का समायोजन होगा।

खंड II
अब हम दूसरे सहायक मुद्दों पर विचार करते है। जो इस कदम की सार्थकता को सिध्द करने में मददगार होंगे।

1. समाजवाद की अवधारणा आज के युग में 
समाजवाद की अवधारणा आज के युग में पहले से ज्यादा मायने रखती है। भले ही १९ वि सदी से जीवन स्तर में सुधार हुआ है जिस कारण सम्पतियो का विषम वितरण दृष्टिगोचर नहीं होता है। वर्तमान में यह खाई बढ़ती जा रही है। आदमी आदमी को गुलाम बनाने की हालत पहले भी थी और आज भी वह संवर्द्धित हुई है , जिससे अनुमान लगा सकते है कि इस समय पर भी समाजवाद पूरी तरीके से प्रासंगिक है। 


लेकिन इसके उद्देश्यों को किस प्रकार प्राप्त किया जाए, यह असली चुनौती है। इसके लिए हमे निचले लोगो को मौजूदा हालत में राहत आधारित समर्थनों से आगे जाकर उन्हें अगले स्तर पर लांच करना होगा। तब जाकर वे भी अगली कक्षाओं में दोड़ने के लिए समर्थ हो सकेंगे।  वरना वे अपने मौजूदा चक्र में ही वे घूमते रहेंगे।

2. विकास अधिकार या फिर भाग्य के रूप में 
मौजूदा समय में विकास के जो अवसर उपलब्ध है, उनका वितरण असमान रूप से है। जो नए प्रवेशार्थी  है अगर वे इन विकास अवसरों के पास में है तो वे भी लाभदायक स्थिति में होंगे। वही जो लोग दूरस्थ क्षेत्रो में है उनको इन विकल्पों की उपलब्धता प्राप्त नहीं हो सकेगी। ऐसे में एक बात सामने आती है कि विकास तक पहुँच कोई अधिकार की बात नहीं होकर के भाग्य की बात होती है। अगर विकास के भाग्य रूपी स्वरूप को बदलना है तो दूरस्थ क्षेत्रो को भी लॉन्चिंग करनी होगी।

3. सभी कार्यो को करने की सुगमता 
अगर हम लॉन्चिंग ड्राइव शुरू करना चाह रहे है तो हमे निम्न वर्ग के लिए उत्थान के कार्यक्रमों की क्रियान्वयन रुकावटों को न्यून करना होगा। यह एक तरीके से व्यापार की सुगमता के समान होगा। लेकिन इसके क्षेत्र भिन्न होंगे और उनके लिए सुगमता के पैरामीटर भी भिन्न प्रकार के ही होंगे। जिनकी सबसे पहले तो हमे पहचान करनी होगी। उसके बाद उन्हें आसान बनाने के प्रयासों को लागू करना होगा।

4. दूसरे क्षेत्रो की भागीदारी 
दूसरे क्षेत्रो की भागीदारी अत्यंत आवश्यक है। जिसके तहत हम कॉर्पोरेट की सामाजिक जिम्मेदारी, अकेडमिक सामाजिक जिम्मेदारी, सोसाइटी की सामाजिक जिम्मेदारी जैसे नवाचारी प्रयासों की मदद लेनी होगी। इससे यह कार्य एक आंदोलन की शक्ल लेगा। जिससे सभी प्रयासों की प्रभावशीलता में इजाफा होगा और हम उद्देश्य के अधिक करीब पहुंचेंगे।

निष्कर्ष :
भारतीय संस्कृति सर्वे भवन्तु सुखिनः की रही है। जिसमे सभी लोगो के सुखी होने के आदर्श को स्थापित किया गया है।  इसलिए हमे सरकारी रवैये में भी कष्ट निवारण  से कष्ट उन्मूलन की तरफ बढ़ना होगा। इस कार्य के लिए सरकार को अपनी जिम्मेदारी को एक योजना के लागू करने से बढाकर विभिन्न योजनाओ के बीच संतुलन स्थापित करना होगा। 

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