PRESENTING LOGIC THROUGH GRAPHS

हम सभी आंकड़ों के युग में जी रहे है। जिसके तहत  किसी प्लेटफार्म पर हमारी बात में तब तक कोई वजन नहीं आएगा, जब तक कि हम उस बात को आंकड़ों के माध्यम से स्थापित नहीं कर देते। सरकारी कामकाज की कार्यप्रणाली इसी तरह की होती है। जहां कोई भी पॉलिसी तबतक विश्वसनीय नहीं मानी जाती, जब तक की उसे आंकड़ों के माध्यम से स्थापित नहीं कर दिया जाता। सरकार न केवल योजना बनाने क लिए आंकड़े एकत्रित करती है। बल्कि वह योजनाओ के क्रियान्वयन के पश्च्यात भी आंकड़े जारी करती है।  ताकि विपक्षी दलों और जनता को सरकार की कर्मण्य प्रवृति का अहसास हो सके। इस कार्य में सरकार को सहयोग करने के लिए कई सरकारी एजेंसी, विभाग यहां तक कि मंत्रालय तक निर्मित किये गए है। खुद सरकार भी इन आंकड़ों के प्रसार में दिलचस्पी रखती है , जिसका उदाहरण है RTI एक्ट के माध्यम से आंकड़े को जनता के सामने रखने की इच्छा व्यक्त करना ।

अगर गौर से नजर दौड़ाये तो  ये आंकड़ों का संसार कई लोगो को आकर्षित कर सकता है। जो आंकड़ों के संग्रहण, विश्लेषण, प्रस्तुतिकरण के माध्यम से  विभिन्न क्षेत्रो में मदद कर सकते है -
  1. यह ऐसी सिविल सोसाइटी को आकर्षित कर सकता है जो आंकड़ों के विश्लेषण के माध्यम से नीति-निर्माण में सरकार की सहायता करनी चाहती हो। ऐसा करके वे सुधार के क्षेत्रो की पहचान में मदद कर सकती है। पश्चिमी देशो की कई संस्थाए इंडेक्स और स्केल के माध्यम से इन आंकड़ों को प्रस्तुत करके दुनिया भर के देशो की नीतियों को प्रभावित करने में लगी हुई है। इसके सकारत्मक पहलु तो यह है की इससे कार्यवाही करने योग्य क्षेत्रो की पहचान होती है। वही नकारत्मक यह है कि देशो की नीतियों की सम्प्रभुता प्रभावित होती है। 
  2. यह आंकड़े संग्रहण के क्षेत्र में कार्य करने वालो को आकर्षित करता है क्योकि वर्तमान समय में इन आंकड़ों के संग्रहण में कई प्रकार की चुनोतिया है। जिनमे प्रमाणिकता की कमी है क्योकि वे अकुशल कार्मिको के द्वारा जुटाए जाते है। समय पर अद्यतन नहीं किए होते है। एक व्यापक छवि बनाने के लिए केवल सैंपल पर निर्भर रहना पड़ता है। जाहिर सी बात है इस वजह से जो परिणाम पेश किए जाते है, वे वास्तविकताओं से अंतराल रखते है। 
  3. सरकार खुद अपने काम को वर्तमान में आउटसोर्स करने में लगी हुई है। इसलिए निजी क्षेत्रो का इस दिशा में सामने आना भविष्य की तैयारियों का अच्छा संकेत है। गूगल और फेसबुक दुनिया भर के आंकड़ों को एकत्रित करके व्यवस्थित करने में लगे हुए है। स्थानीय लोगो को भी इस आंदोलन का फायदा तभी मिलेगा, जब उनके मुद्दों और आदतों को इन आंकड़ों को माध्यम से विश्लेषित किया जाएगा। सरकार के लिए इन आउटसोर्स करने वाली इकाइयों के बीच समन्यव की आवश्यकता बढ़ती जायेगी। 
  4. बहुत सारे डेटा तो सरकार की मौजूदा पद्धति में ही मौजूद है जैसे की IRCTC, GSTN आदि। इनका BIG DATA  के माध्यम से विश्लेषण करके किसी निष्कर्ष पर पहुंचने की आवश्यकता है। ताकि जटिलता भरे विश्व को सुविधाजनक बनाया जा सके। इस कार्य के लिए निवेश तलाशने की आवश्यकता है। 
  5. इस आंकड़े का प्रयोग करके कई प्रकार की सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वाह करने में कॉर्पोरेट सेक्टर की मदद की जा सकती है। जो ट्रस्टीशिप में भरोसा करते हुए सकारत्मक योगदान देना चाहता है। कई क्रियान्वयन एजेंसी को भी इसकी जरूरत पड़ सकती है।  
दूसरे देश और बाहर की कम्पनिया इस चीज का महत्व काफी पहले समझ चुकी है। भारत सरकार ने भी इसकी महत्ता को स्वीकारा है और डिजिटल इंडिया अभियान के तहत बहुत सारे कामकाजो की नीव रखने का कार्य किया है। अब जरुरत है तो सिर्फ इस अवसर का दोहन करने की। 

इसके कई फायदे हो सकते है। जैसे की
  1. सुदूर और उपेक्षित क्षेत्रो का पक्ष आंकड़ों के माध्यम से मजबूती से रखा जा सकता है। जिसके कारण पॉलिसी लेवल पर उसके साथ हो रहे भेदभाव को खत्म करने में मदद मिल सकती है। जिसकी बदौलत उसे आसानी से मुख्यधारा में लाया जा सकता है। 
  2. आंकड़ों के माध्यम से अकर्मण्य संस्थाओ और कार्मिको को जवाबदेह बनाने में मदद मिलेगी। पारदर्शिता बढ़ेगी।  सुशासन का सपना साकार होगा। भ्रष्टाचार को रोकने में मदद मिलेगी। 
  3. सरकार की प्राथमिकता उच्च स्तरीय कामकाजो में सलग्न होने के लिए उपलब्ध हो सकेगी। 
  4. हम विभाजित राजनीती के चंगुल से मुक्त हो सकेंगे। केवल तथ्यों पर आधारित राजनीती की शुरुआत होगी , जो मजबूत होते लोकतंत्र की परिचायक होगी। 
  5. कई लोगो को इस कार्य में रोजगार उपलब्ध होगा। आंकड़ों के संग्रहण के लिए लोगो से होने वाला निरंतर सम्पर्क उनमे जागरूकता उत्पन्न करेगा। 
  6.  
इस मौके का फायदा उठाने के लिए धन और समय के भारी निवेश की जरूरत होगी। विकेन्द्रीकृत ढांचे के अंदर कार्य शुरू किया जा सकता है। जो माइक्रो स्टडीज के माध्यम से ही उत्पादन करने में सक्षम हो सकेगा। और ऐसी छोटी -छोटी इकाइयां ही बेहतर विशेलषण प्रदान कर सकती है क्योकि कम आंकड़ों के साथ फोकस विचलित नहीं होगा। इसके लिए कई प्लेटफार्म हो सकते है जैसे किसी विभाग के साथ कार्य करना या फिर किसी जिले या क्षेत्र के साथ कार्य करना।  


निष्कर्ष 
अवसर हमारे सामने मौजूद है ,अब यह सिर्फ हम पर निर्भर करता है की हम इसके प्रति कैसे प्रतिक्रिया करते है। हम उदासीन रहकर विदेशी कम्पनियो को यह सब करते हुए देखना चाहते है या फिर खुद भी इस रेस में दौड़ना चाहते है। अगर हम दूसरा विकल्प चुनते है तो हमे सोचने से आगे जाना होगा और एक शुरआत करनी होगी। एक शुरुआत -बेहतर कल की। यह सुचना क्रांति के फायदों को अगले चरण में ले जाने वाली बात होगी। 


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