ताजमहल के साथ वार्तालाप


"मैं ताज हूं ,
वक्त के गाल पर थमा हुआ आंसू हूं,

मैं शब्दहीन ध्वनि और ध्वनिहीन शब्द का अंजाम हूं,
मैं दिलो की धड़कन का आकार हूं,
मैं एक ध्वनि का रूपांतरित दृश्य हूं,
मैं इंसानी हौंसलो और इरादों का परचम हूं,

मैं ताज हूं,
संगमरमर पर लिखी हुई कविता हूं,
मैं मनुष्य के अंतहीन सफर का एक पड़ाव हूं

वियना यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर और लेखिका इबा कोच से ताजमहल ने इस तरह बातचीत की। इस वार्तालाप के वाक्यो को दोबारा गौर से पढ़े तो कही पर भी ताजमहल बड़बोला नही लगता। वह इन सब बातों पर खरा उतरता है। यहां पर लेखिका ने एक पंक्ति रविन्द्र नाथ टेंगोरे से चुरा ली है जिन्होंने ताजमहल को 'काल के गाल पर थमा हुआ आंसू' बताया था।

इबा कोच ही नही यहां आने वाले सभी सैलानियों से ताजमहल कुछ न कुछ बाते जरूर करता है। किसी से वह प्रदूषण के कारण व्हाइट मार्बल के बदलते रंग पर बात करता है, तो किसी से यहां के पर्यटन व्यवसाय में लगे लोगो की गुस्ताखीयो को नजरअंदाज करने की कहता है, किसी को वह प्रेम और सद्भाव के पन्ने पढ़ाता है। वहीं जो चंचल मन वाले लोग है उन्हें कहता है कि तुम फोटोज लेकर ही अपनी मुलाक़ात को यादगार बना लो, क्योंकि इस परिसर की हर एक जगह सेल्फी/फोटोग्राफी पॉइंट है।

मेरी भी ताजमहल के साथ इतिहास और संस्कृति से जुड़े विषयो पर लंबी बातचीत हुई। जिसका सार नीचे दे रहा हूँ -
  1. ताजमहल के निर्माण से कई मिथक जुड़े हुए है। कहा जाता है कि इसके ऊपर किए जा रहे खर्चे और ऊर्जा के व्यव से मुगल परिवार के दूसरे सदस्य खुश नही थे। जहांआरा जिन्होंने शाहजहां की अंतिम समय मे देखभाल की थी उन्होंने तो प्रतिक्रिया स्वरूप कह भी दिया था कि मेरी कब्र पर तो केवल घासफूस लगा देना। लेकिन ताजमहल के निर्माण में लगे मजदूरों की संख्या, निर्माण राशि की विशालता, बर्षो की मेहनत आदि सभी चीजो को आखिरी कृति न्यायोचित ठहरा देती है।

    ताजमहल फुरसत और बिना जल्दबाजी का नतीजा है। कही पर भी इसमे सममिति को भंग नही किया गया है। वैसे तो फुरसत में बनाई गई चीज मुहावरे का प्रयोग आशिक़ लोग लड़कियों के नैन-नक्श की सुंदरता के लिए करते है। लेकिन एक आशिक़ की इस कृति पर भी यह बात सटीक बैठती है। प्यार करने वाले लोगो ने तो शाहजहां पर यह भी आरोप लगाया है कि उसने मोहब्बत को दौलत से जोड़ दिया, जिस पर प्रतिक्रिया देते हुए साहिर लुधियानवी ने लिखा है कि -"इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले करहम गरीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाकमेरे महबूब, कहीं और मिला कर मुझसे ! "

  2. दुनिया मे कोई भी रिकॉर्ड या उपलब्धि ज्यादा दिन नही टिकती, कुछ ही दिनों में उससे ज्यादा प्रतिभाशाली लोग उसे पार कर जाते है। लेकिन आज तक कोई भी ताजमहल की उत्कृष्टता को सफलतापूर्वक चुनोती नही दे पाया। कई लोगो ने इसे मात देने की कोशिश की लेकिन सब नाकाम रहे। इस सिलसिले में औरंगजेब  ने बीबी का मकबरा बनाया, वही अंग्रेज़ो ने भी कोलकाता में विक्टोरिया मेमोरियल बनाया, दोनो ही भोंडी नकल साबित हुए। इस मामले में खुद मुगल भी इतने सतर्क थे कि बनाने वाले कारीगरों के हाथ कटवा दिए गए। ऐसे में स्वतंत्र रूप से चुनोती देने वाली आकृति तो दूर की चीज हो जाती है। अतः बिना शक के कह सकते है कि दुनिया ताजमहल की अवधारणा (Concept of Tajmahal) की सर्वोच्चता को ही पार नही कर पाई है।

  3. ताजमहल की अवधारणा एक ऐसे मकबरे के रूप में की गई थी जो विशाल और भव्य हो। आज तो इस परिसर को सैलानियों से ही फुर्सत नही मिल पाती। लेकिन पहले के दिनों में इतनी बड़ी इमारत और बगीचे का सन्नाटा बाकी के लोगो को बताता होगा कि यहां एक महान आत्मा आराम कर रही है जिसे डिस्टर्ब नही किया जाए। दरअसल बाग-बगीचों में मकबरे बनाने की प्रथा इस्लाम मे विकसित हुई, जिसमे मुगलो ने चार बाग शैली की शुरुआत की।

  4. हमारे इतिहासकारो की नजर में भी यह तत्कालीन मुगल साम्राज्य की अर्थव्यवस्था में आई दरार को ढकने का प्रयास था, ताकि लोगो को ध्यान जर्जर होते साम्राज्य पर नही जा पाए और वे बगावत नही करे। लेकिन यह राज्य की असुरक्षाओं को कम नही कर सका।

  5. लाल किले के लिए लाल पत्थर और ताजमहल के लिए सफेद मार्बल दोनो की आपूर्ति राजस्थान से की गई थी। ऐसे विशालकाय स्थापत्य किसी साम्रज्य की महिमा को फैलाते थे और तत्कालीन राजपूती शासक मुगल साम्राज्य के इस कार्य में उल्लेखनीय योगदान दे रहे थे। बदले में मुगलो ने भी राजपूती शासको को खुश करने के लिए हिन्दुओ के साथ समन्वित व्यवहार किया। बिना राजपूती शासको के सहयोग के इसका निर्माण असम्भव था। अतः यह गंगी जुमनी तहजीब का उत्पाद है।

  6. ताजमहल आगरा से हिंदुस्तान पर राज करने वाले बादशाह का निर्माण कार्य है। इसके बाद उनकी राजधानी दिल्ली हो गई, जैसे ही राजधानी दिल्ली गई, वहां जाते ही कठमुल्लों के द्वारा कट्टरपंथ को हावी कर दिया गया और समन्वित संस्कृति का दारा शिकोह की तरह कत्ल कर दिया गया। अतः दिल्ली की इमारतों में इस्लाम हावी हो गया। हो सकता है इतने दिन रहने के बाद उसके पर ज्यादा निकल आये हो। इसलिए दिल्ली में मुस्लिमों ने हमेशा खुद को राज करने वालो की तरह ही पेश किया, यहाँ तक कि आज भी बुखारी और शाही इमाम राजनीतिक दलों को धर्मनिरपेक्षता का सर्टिफिकेट बांटकर इसका दस्तूर पूरा करते हो। मतलब हिन्दू-मुस्लिम में बांटने की राजनीति तो दिल्ली के डीएनए में है । आगे अंग्रेजों के टाइम पर फुट डालो राज करो कि नीति भी कोलकाता से दिल्ली राजधानी स्थान्तरित करने पर ही गति पकड़ी थी। वर्तमान में लोकतंत्र के युग मे भी यह जारी है।
    देख लो, दोनो ही शहर यमुना के किनारे है लेकिन दोनों जगह के पानी में शासन के तरीकों को लेकर मूलभूत अंतर है। एक बात और यह है कि भले ही आगे यमुना गंगा में जाकर मिल जाती हो, लेकिन इतिहास में तो यमुना ही गंगा पर हावी रही है। महाभारत काल मे भी हस्तिनापुर का उदाहरण मिल जाएगा।

  7. मुगलो द्वारा राजधानी को आगरा से दिल्ली ले जाना उनके हित मे बिल्कुल भी नही रहा। आगरा भारतीय उपमहाद्वीप के लगभग केंद्र में था। दिल्ली जाते ही उनकी राज्य पर पकड़ कमजोर हो गई और अवध, बंगाल और हैदराबाद जैसे प्रान्त सम्भाल रहे उनके वजीर आज़ाद हो गए। एक तरीके से उनकी सोने की मुर्गी उड़कर चली गई। उनके दूर जाने से बगल में ही शक्तिशाली मराठा उभर आये, राजपूत राज्य आज़ाद हो गए, जाट और सिक्ख राज्यो का उदय हुआ। इतने सारे राज्यों के चले जाने के बाद मुगल केंद्रीय सत्ता को समय पर न तो राजस्व मिलता था और न ही सैनिक सहायता। इसकी बदौलत उसकी जीर्ण होती दशा को विरोधियों ने भी अवसर के तौर पर देखा। अफगानों ने आक्रमण कर दिया और मुगल बादशाह को मराठो को उनसे निपटने के लिए कहना पड़ा। अंग्रेज़ इन सबको नजदीक से देख रहे थे और उन्होंने भी मौका मिलते ही बक्सर में अपने हाथ सेंक लिए जहां से भारत की गुलामी का मार्ग प्रशस्त हुआ। कहने का मतलब है कि आगरा से बाहर गई राजधानी के प्रभावों को मुगल सल्तनत पचा नही पाई। शायद आगरा के  हवा पानी की बात ही अलग थी। अगर राजधानी यही रहती तो गुलामी का इतिहास अलग रहा होता।

  8. ताजमहल आगरा में स्थायित्व प्राप्त कर रहे साम्राज्य की परिपक्व होती स्थापत्य कला का उदाहरण है। जिसने यह उपलब्धि चरणबद्ध प्रयोगों के माध्यम से प्राप्त की थी। मैं यह कहना चाह रहा हु कि अगर मुगल बादशाह आगरा में ही टीके रहते तो अगले निर्माण कार्यो में ओर अधिक उत्कृष्टता उजागर हो सकती थी। उन्होंने दिल्ली में तो जाते ही आगरा शैली को लगभग छोड़ दिया।
इस तरह हमारे बीच बातचीत में हमने भूतकाल की बातों को आगे के इतिहास से जोड़कर देखा। ताजमहल सच मे ही काफी इतिहास छुपाए बैठे है, जिन पर अध्ययन किया जाता रहा है।

निष्कर्ष :

आगरा को प्रधानमंत्री मोदी जी के स्वच्छ भारत अभियान का मजाक उड़ाते रेलवे ट्रैक के आधार पर ही जज नही किया जाना चाहिए,  स्टेशन के पास की पुरानी बस्तियों की भीड़भाड़ से थोड़ा सा आगे चलकर देखे तो यह भी बाकी शहरों की तरह ही है। जहां पर खुली हुई कॉलोनी है, साफ सुथरे और चौड़े रोड है, मिलनसार और हँसमुख लोग है। अब आगरा को देश के 100 स्मार्ट सिटीज में जगह भी मिल पाई है। इससे  बनने वाले स्मार्ट सोलुशन लोगो को आकर्षित करेंगे ।आखिरकार यह शहर भारत के गौरवशाली इतिहास का साक्षी जो रहा है।

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