हमारे इर्द-गिर्द के नवीन सामान्य रुझानों का अनुरेखण

किसी भी समाज, संगठन या देश में अधिकतर गतिविधिया तयशुदा नियमो के तहत होती है। लेकिन कुछ गतिविधिया अगर मानक प्रक्रिया के अनुरूप नहीं होती तो उसे हम अपवाद मानकर छोड़ देते है। लेकिन जब इन अपवादों की आवृति बढ़ जाती है तो ये सामान्य सी चीजे बन जाती है।  फिर समय और परिस्थितियों की मांग होती है कि इन नई सामन्य चीजों को व्यवस्थित किया जाए। ताकि इनसे किसी प्रकार की अव्यवस्था नहीं फैले। वर्तमान में ऐसी बहुत सारी चीजे सभी क्षेत्रो में देखी जा रही है। सरकार की इन पर तीव्र निगाहे है ताकि लोगो को गतिशील विश्व के साथ सर्वोत्तम अभिशासन उपलब्ध कराया जा सके।  ये आम बाते राजनीति,अर्थव्यवस्था,समाज और संस्कृति सभी में पाई जाती है। तकनीकी विकास, जनसंख्या वृद्धि और वैश्वीकरण के विभिन्न प्रभावों के कारण ये नई सामन्य चीजे उत्पन्न हो रही है।

इस आलेख में हम इन नई सामान्य चीजों को क्षेत्रवार तलाशने की कोशिश करेंगे।

1. प्रशासन 
निचले स्तर पर रिश्वत दिया जाना सहूलियत के लिए सही समझा जाने लगा है। वही ऊपर के स्तर पर फेवर के बदले फेवर का चलना आम बात हो गई है।

2. राजनीति 
चुनावो को किसी भी तरीके से जीतना सामान्य उद्देश्य हो गया है, बाकी सिद्धांतो को संभालने के लिए धरना प्रबंधन सेल है। जमीनी कार्यकर्ताओ को साम-दाम -दंड - भेद की नीति पकड़ा दी गई है।

3. अर्थव्यवस्था 
अर्थव्यवस्था में क्रोनी कैपिटलिज्म का प्रचलन आम होता जा रहा है।

4. मीडिया 
मीडिया पत्रकारिता के उद्देश्य को छोड़कर बिज़नेस इकाई हो गए है। कई अख़बार और टीवी चैनल राजनितिक दलों के प्रवक्ता बन गए है।

5. समाज 
समाजो में व्यक्तिवाद को महत्व मिल गया है और परम्परागत संस्थाओ और उनके मूल्यों की अपेक्षा आम बात हो गई है।

6. संस्कृति 
संस्कृति में बाह्य तत्वों को बिज़नेस जगत द्वारा मान्यता दिलाने की कोशिश आम बात हो गई है।

7. डिप्लोमेसी 
सभी देशो के साथ रिश्तो को गहरे करना आम चलन में है। देश इसे शीर्ष स्तर से निम्न स्तर के संबध्दता में बदलना चाहते है।

8. शिक्षा और रोजगार 
पढ़ा लिखा लेकिन बेरोजगार आदमी आजकल के समाजो में आम बात हो गई। नौकरी के लिए कई तरह के फर्जीवाड़ा का प्रचलन और उसके लिए किया जाने वाला विरोध का बेअसर होना भी सामान्य सी बात है।

9. सिनेमा 
सिनेमा में दर्शको को कैसे भी करके खींचने के लिए प्रयोग हो रहे है। इसलिए पुराणी अवांछित चीजे अब सामान्य बाते हो गई है। जैसे दारु सिगरेट गाली ,अश्लीलता आदि।

10. पब्लिकेशन 
पब्लिकेशन में तुलनात्मक रूप से लिखने वाले तो बढ़े ही है। लेकिन लक्ष्यित दर्शको/ पाठको का आभाव सामान्य सी बाते है।

खंड II

किस दिशा में ले जा रहे है ये न्यू नॉर्मल्स 
अगर हम इन नई सामन्य चीजों के पैटर्न का अवलोकन करे तो पता चलता है कि अब दुनिया खुल रही है, लोग अपनी इच्छाओ को दबाकर नहीं रख रहे है, अपनी इच्छाओ की पूर्ति के प्रयास भी कर रहे है। यह सब व्यक्तिवाद को समर्थ देने वाले बाजार आधारित मूल्यों की बदौलत भी हो रहा है। लोगो की आदतों में गंभीरता का आभाव बाजार के लिए उर्वर भूमि तैयार करता है।

आगे क्या करने की जरुरत है 
लोगो को या किसी को भी रोकने की जरुरत नहीं है। बल्कि हमे प्रशासन को चुस्त बनाना है ताकि कोई भी नुकसान इनकी गतिविधियों के माध्यम से नहीं हो। लोगो का इस तरह से अपने अरमानो को पूरा करना स्थापित संस्थाओ की सुरक्षा के हित में बहुत जरुरी है। हमे अपने नियमो और नैतिकताओ को इसे अनुरूप कर लेना चाहिए।

इस प्रचलन के प्रभाव 
अधिकतर प्रभाव सकारत्मक ही होंगे। व्यक्तिगत अधिकारों क बल पर आदमी अपना विकास बेहतर क्रियान्वित कर सकता है। अगर कोई नुकसान हो रहा है तो वो यह कि लोगो की उत्पादकता पहले की तुलना में कम होती जा रही है। लेकिन यह कोई मुद्दा नहीं है क्योकि आजकी पीढ़ी के पास लक्ष्य भी बढ़े नहीं है।

निष्कर्ष : 
इन नई सामान्य चीजों पर दृष्टि होना बहुत ही जरुरी है। ताकि इनकी दिशा को पकड़ के इनके प्रभावों को दोहित कर सके। वही इनकी नकारात्मकताओं को रोक सके। इसके लिए सभी संस्थाओ ने संस्थागत प्रयास शुरू कर दिए है जहां पर संक्रमण को लेकर अध्ययन किया जाता है और रणनीति बनाई  जाती है। लोगो को भी नई चीजों के साथ खुद को ढल लेना चाहिए।  

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