बजरी खनन पर न्यायिक रोक : कारण एवं समाधान

बजरी निर्माण कार्यों में उपयोग होने वाला प्रमुख खनिज हैं। इस समय पर तेजी से बढ़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था में निर्माण कार्य पर्याप्त मात्रा में हो रहे है। निर्माण कार्यों के अनुपात में ही बजरी की भी मांग बढ़ रही हैं। राजस्थान के बनास, मोरेल एवं अन्य नदियों जैसे कई बजरी प्राप्त करने के प्रमुख स्त्रोत हैं। राजस्थान के ये बजरी के स्त्रोत न केवल राजस्थान की बल्कि हरियाणा, उत्तर प्रदेश एवं दिल्ली की बजरी की आवश्यकताओं को काफी हद तक पूर्ण कर सकते हैं। लेकिन राजस्थान में बजरी खनन पर रोक लगी हुई हैं। चूंकि निर्माण कार्य तो बंद हो नहीं सकते, इसलिए इनकी मांग को पूर्ण करने के लिए अवैध तरीके से बजरी का खनन एवं परिवहन किया जा रहा हैं। इस अवैध तरीके से बजरी की आपूर्ति ने एक माफिया-अफसर-राजनेताओं के कुख्यात गठजोड़ को जन्म दिया हैं। इससे रोक का कोई फायदा नहीं निकल रहा हैं। एक तरीके से सरकार की नाक के नीचे से अवैध खनन, भंडारण एवं परिवहन हो रहा हैं। 

राजस्थान में बनास सहित अन्य नदियों में बजरी खनन 16 नवंबर 2018 से सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशानुसार बंद हैं। कुछ जगहों पर पहले से ही बंद हैं, जैसे- नागौर, बीकानेर। इस आलेख में हम उन कारणों की पड़ताल करेंगे, जिनके कारण ऐसी परिस्थितियां निर्मित हुई हैं।

पृष्ठभूमि

दरअसल केंद्र सरकार ने खान एवं खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 के तहत बजरी जैसे कुछ खनिजों को लघु खनिज (Minor Mineral) घोषित किया हैं, जिनके लिए शक्तियों को राज्य सरकार को हस्तांतरित किया गया हैं। इन शक्तियों का प्रयोग करते हुए राजस्थान सरकार बजरी खनन के लिए खानों का आवंटन करती हैं। चूंकि खनन के परिवेश पर प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव होते हैं, इसलिए खनन शरू करने से पहले पर्यावरण विभाग से अनुमति की भी आवश्यकता होती हैं। पर्यावरणीय अनुपालन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने वर्ष 2010 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण का भी गठन किया हैं। चूंकि बजरी खनन नदी के पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित करता हैं, इसलिए पर्यावरणीय कारणों से इसके खनन को विनियमित किया जाता हैं। अथार्त किसी खान विशेष की पृष्ठभूमि, खनन के बाद वापस बजरी आने की संभावना एवं समयावधि, संपार्श्विक परिवेश पर प्रभाव आदि पहलुओं को ध्यान में रखते हुए खनन की अनुमति दी जाती हैं। राजस्थान में खानों का आवंटन करने के बाद इस प्रक्रिया के पालन में चुक हुई और न्यायालय द्वारा रोक लगा दी गई। चलिए इस संदर्भ में हुए घटनाक्रमों को समझते हैं।

1. दुर्गा शक्ति नागपाल वाद, 2013 और बिना EC बजरी खनन पर रोक

दुर्गा शक्ति नागपाल उत्तर प्रदेश कैडर में एक आईएएस अधिकारी थी, जिन्हें अगस्त 2013 में गौतम बुध नगर एसडीएम के पद पर रहते हुए बजरी माफिया पर कार्रवाई के कारण शासन द्वारा निलंबित कर दिया गया था। एनजीटी ने इस मामले पर संज्ञान लेते हुए 5 अगस्त 2013 को एनजीटी बार एसोसिएशन की याचिका पर संपूर्ण देश में बिना पर्यावरणीय मंजूरी के बजरी खनन पर रोक लगा दी। NGT ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत कार्यवाही करते हुए इस आदेश को जारी किया तथा जिले के पुलिस अधिकारियों को इसका अनुपालन सुनिश्चित कारने के लिए अधिकृत किया। NGT का मानना हैं कि बजरी खनन संबंधित क्षेत्र की पारिस्थितिकी को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता हैं। [1]

इस निर्णय में NGT ने दीपक कुमार बनाम हरियाणा सरकार वाद में उच्चतम न्यायालय के निर्णय (फरवरी,2012 ) की भी पुष्टि की, जिसमे पांच एकड़ से कम भाग में खनन करने के लिए भी सक्षम अधिकारीयों से पर्यावरणीय अनुमति प्राप्त करने की बात कही गई थी। इस आदेश के साथ ही पर्यावरणीय अनुमति के बिना बजरी खनन बंद हो गया।

मन में एक संदेह यह रहता हैं कि जब 2012 में ही उच्चतम न्यायालय ने बजरी के खनन पर रोक लगा दी थी, तो 2013 में NGT को फिर से प्रतिबन्ध लगाने की जरुरत क्यों पड़ी। इसका उत्तर यह हैं कि बजरी राज्य द्वारा नियंत्रित खनिज हैं, इसलिए NGT के निर्णय में इसका सभी खनिजो, राज्यों एवं नदियों तक विस्तार किया गया।

2. अब राजस्थान में क्या विवाद हुआ, उसे समझते हैं : 

2.1. राजस्थान सरकार द्वारा बजरी खानों की नीलामी, 2012 

राजस्थान सरकार ने उच्चतम न्यायालय के आदेश की पालना में नदियों में स्ट्रेचवार प्लाट बनाकर नीलामी की कार्यवाही प्रारंभ की। उच्चतम बोली के आधार पर 82 लोगों को खनन पट्टा स्वीकृत करते हुए राज्य सरकार ने मंशा पत्र (लेटर ऑफ इंटेंट/ Letter of Intent : LOI) जारी किए। इन मंशा पत्र धारकों से पर्यावरणीय अनुमति स्वीकृत कराने का वादा किया गया था।

2.2. अस्थायी कार्यानुमती, (2013-2017)

गौरतलब है कि 2013 में भारत सरकार के NGT ने देश में सभी बजरी एवं पत्थरों सहित अन्य खनन लीजों पर पर्यावरणीय अनुमति को लेकर रोक लगा दी थी। आगे NGT के फैंसले को खनन कंपनियों एवं बजरी लीज धारकों ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी। तब उच्चतम न्यायालय ने बजरी लीज धारकों को राहत देते हुए बजरी खनन करने के लिए अस्थायी कार्यानुमती इस शर्त पर प्रदान की थी कि बाद में उनको पर्यावरण स्वीकृति लेकर तय समय में उच्चतम न्यायालय में पेश करनी होगी। उच्चतम न्यायालय ने अस्थायी कार्यानुमती इसलिए भी प्रदान कर दी थी क्योंकि मंशा पत्र धारकों ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय में NOC के लिए आवेदन किया हुआ था, जिन पर आवेदन वार निर्णय लिए जा रहे थे। इस प्रक्रिया में काफी समय लग रहा था और उनके लीज की अवधि निकल रही थी। 

2.3. उच्चतम न्यायालय द्वारा अस्थायी कार्यानुमती निरस्त, 2017 

लेकिन लंबे समय तक पर्यावरणीय स्वीकृति प्राप्त नहीं हुई, ऐसे में उच्चतम न्यायालय ने अस्थायी कार्यानुमती के आदेश को वापस ले लिया। इस प्रकार उच्चतम न्यायालय ने 16 नवंबर 2017 से वैज्ञानिक पुनर्भरण अध्ययन एवं पर्यावरणीय अनुमति के बिना बजरी के खनन पर रोक लगा दी। वहीं सीएस को कहा था कि वे प्रदेश में नदियों का सर्वे करवाकर इसकी अध्ययन रिपोर्ट पेश करें और बताएं कि नदियों में कितनी नई बजरी आ रही है और कितनी निकाली जा रही है। [2]

2.4. मंशा पत्र धारकों द्वारा चुनौती, 2018

उच्चतम न्यायालय की रोक के बाद राज्य सरकार ने सभी लीज धारकों को खनन बंद करने का निर्देश दिया। साथ ही, खान विभाग ने 5 साल से चल रही 82 बजरी खानों की की अवधि की अवधि को 30 मार्च 2018 को समाप्त कर नई खानों की नीलामी की तैयारी की। लेकिन खान मालिक उच्च न्यायालय में चले गए कि उन्हें एनवायरनमेंट क्लीयरेंस नहीं मिलने से कानूनी रूप से संचालन शुरू ही नहीं हुआ, तो फिर 5 साल की अवधि कैसे समाप्त हो गई। तय शर्तों के अनुसार पर्यावरण अनापत्ति प्रमाण पत्र दिलाना तो सरकार का काम था।

अब न्यायालय में सुनवाई का विषय यह हो गया कि लीजधारकों के मंशा पत्र को सक्रिय माना जाएगा या खानों की नीलामी में रखी गई 5 साल की अवधि समाप्त मानी जाएगी। अब अगर फैसला सरकार के पक्ष में आया तो नवीन खानों का आवंटन करने का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा। पूर्व में बीकानेर और नागौर में सरकार के पक्ष में फैसला आया था। लेकिन फैसला सरकार के प्रतिकूल आने पर पूर्व के पट्टों का निस्तारण करना होगा।

2.5. उच्च न्यायालय द्वारा मंशा पत्र निरस्त, 2019

10 अप्रैल 2019 को उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के लीज निरस्त करने के फैसले को सही माना। इसके अनुसरण में राज्य सरकार ने मंशा पत्र निरस्त कर दिए तो मंशा पत्र धारक कल्याण समिति ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर दी, वहीं राज्य सरकार ने भी मामले में केविएट दायर की थी। यह मामला अब उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन हैं। इसमें होने वाले अपडेट आपको संलग्नकों के माध्यम से प्राप्त होंगे। [3]

2.6. अवमानना याचिका, 29 जुलाई  2019

जब उच्चतम न्यायालय द्वारा 16 नवंबर, 2017 के अपने आदेश में पूरे राजस्थान में बजरी खनन पर रोक लगा रखी है। फिर भी अवैध खनन धड़ल्ले से क्यों हो रहा है। इस आशय की अवमानना याचिका बजरी ऑपरेटर वेलफेयर सोसायटी अध्यक्ष नवीन शर्मा की तरफ से दाखिल की गई है। इसमें कहा गया हैं कि अवैध बजरी खनन रोकने की जिम्मेदारी सरकार की है, लेकिन सरकार इस दिशा में कोई प्रयास नहीं कर रही है। सरकार इस अवैध खनन को रोकने के लिए रस्मी तौर पर कार्रवाई कर रही है, लेकिन इसे रोकने के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। इस पर उच्चतम न्यायालय ने राजस्थान सरकार को नोटिस जारी करके एक माह में जवाब मांगा है। [4]

2.7. सेंट्रल एंपावर्ड कमिटी, 2020

राजस्थान के ट्रक ऑपरेटर वेलफेयर सोसाइटी की याचिका पर सुनवाई करते हुए लीगल माइनिंग को लेकर 18 फरवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने 8 सदस्य समिति का गठन किया, जिसे 1 माह में जांच रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया। 

  • इस कमेटी को राज्य में बजरी खनन, अवैध खनन और अवैध खनन की रोकथाम के साथ ही खनन चालू कराए जाने को लेकर सुझाव देना हैं। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर निर्णय करेगा।
  • समिति की पहली बैठक 4 मार्च 2020 को दिल्ली में हुई। शीर्ष कोर्ट द्वारा गठित इस समिति के समक्ष राजस्थान खनन विभाग के मुख्य सचिव कुंजी लाल मीणा और निदेशक गौरव गोयल ने राजस्थान में चल रहे अवैध बजरी खनन एवं इसमें सक्रिय माफिया की भूमिका को स्वीकार किया।
  • कोरोना की वजह से कमेटी तय समय पर रिपोर्ट नहीं दे सकी। तब कोर्ट में कमेटी को 30 अक्टूबर तक रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए गये।
  • एम्पावर्ड कमेटी के अध्यक्ष पी. वी. जयकृष्णन के नेतृत्व में सदस्य सचिव अमरनाथ सेठी और महेन्द्र व्यास ने राजस्थान की विभिन्न नदियों और उनके अलग-अलग भागों में निरीक्षण कर अध्ययन किया। [5]

2.7.1. एंपावर्ड कमेटी का अवलोकन 

दिसंबर 2020 तक एंपावर्ड कमेटी के सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट सौंपने की सूचना आ रही थी, जिसके प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं -  

  • अवैध बजरी खनन पर रोक के लिए : अगर कोई वाहन अवैध बजरी खनन करेगा तो प्रति वाहन 10 लाख का जुर्माना और 5 लाख प्रति क्यूबिक मीटर जुर्माने तक का प्रावधान उस पर लागू हो सकता है।
  • अवैध बजरी खनन को रोकने के लिए सूख चुकी नदी की लीजों को स्वीकृति देना जरूरी है। वहीं एग्रीकल्चर लीज पर रोक जरूरी है क्योंकि एग्रीकल्चर के नाम पर नदियों-नालों से अवैध बजरी खनन किया जा रहा है और रवन्ना एग्रीकल्चर वाली जमीन का दिया जा रहा है।
  • लीगल माइनिंग शुरू करने के लिए : पर्यावरण मंत्रालय को 2014-16 के बीच के एनवायरमेंट क्लीयरेंस 3 महीने में जारी करना चाहिए।
  • अब सुप्रीम कोर्ट इस रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट कई निर्णय ले सकता है।

दरअसल, इस कमेटी ने 3 महीने तक मारवाड़ क्षेत्र में अवैध बजरी खनन के धंधे को नदी से लेकर आमजन तक पहुंचाने तक के कामकाज को समझा। कमेटी के सदस्यों ने माना कि राज्य सरकार और मंत्रालय के स्तर पर कमिया रही हैं। इससे बजरी खनन को लेकर विवाद बढ़ता गया और इसके परिणामस्वरूप अवैध बजरी खनन शुरू हुआ। [6]

2.8. नवीन लीजों को पर्यावरणीय स्वीकृति की प्राप्ति

एक नवीन घटनाक्रम के तहत पर्यावरण मंत्रालय ने प्रदेश की 8 लीजों को एनओसी जारी कर दी है। एनओसी जारी होने के बाद अब राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का इंतजार है। कोर्ट के आदेश मिलते के साथ ही यहां खनन शुरू हो जाएगा। इस प्रकार अब वैध बजरी खनन के दोबारा शुरू होने के आसार बन गए हैं।

  • अब एनओसी जारी होने के बाद प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का इंतजार कर रही है। गत दिनों सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित सेंटर एम्पावर्ड कमेटी ने भी प्रदेश में हो रही अवैध बजरी खनन की रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी थी।
  • जिन आठ लीजो को पर्यावरण मंत्रालय ने स्वीकृति दी है, उनमें टोंक में देवली, भीलवाड़ा में कोटरी, शाहपुरा, जालोर, जालोर में सायला, पाली में रायपुर, राजसमंद और राजसमंद में नाथद्वारा शामिल है। कोर्ट के आदेश मिलते के साथ ही यहां खनन शुरू हो जाएगा।

निष्कर्ष यह हैं कि लंबे इंतजार के बाद अब प्रदेश के लोगों को जल्द ही अवैध बजरी खनन से मुक्ति मिल सकती है। इसके लिए सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के निर्देश जारी होने की देरी हैं। जिससे प्रदेश में अवैध खनन के जरिए महंगी दरों पर मिल रही बजरी की कीमतों में कमी आएगी और आम जनता को राहत मिलेगी। [7]

3. भावी संभावना

बजरी को लेकर भावी संभावना इस प्रकार हो सकती हैं :

  • SC द्वारा रोक की समाप्ति : सेंटर एम्पावर्ड कमेटी ने सुखी नदियों से बजरी खनन को अनुमति देने की सिफारिश की हैं। इसलिए सुप्रीम कोर्ट इसके आधार पर बजरी खनन की स्वीकृति प्रदान कर सकता हैं। यह आदेश अब कभी भी जारी किया जा सकता है। हो सकता हैं, सुप्रीम कोर्ट अपने आदेश में सुरक्षा उपाय जैसी व्यवस्था के लिए भी निर्देशित करे।
  • पर्यावरणीय स्वीकृति : पुरानी लीजों के लिए पर्यावरण मंत्रालय को शीघ्र NOC जारी करने को कहा गया हैं। लेकिन यह लीज-वार ही उन पर निर्णय लेगा। इसलिए इस प्रक्रिया में थोडा समय लग सकता हैं।
  • अवैध कारोबार पर रोक : अवैध कारोबार पर रोक के कारण उत्पन्न गैर-कानूनी परम्पराएँ समाप्त होगी। लेकिन अवैध कारोबार से लाभ प्राप्त कर रहे लोग उन लाभों को दूसरे तरीके से प्राप्त करने के प्रयास कर सकते हैं। उदाहरण के लिए- अवैध बजरी परिवहन करने वालो को पकड़ने के नाम पर चलने वाला रिश्वत का खेल ओवरलोड पर कार्यवाही के नाम पर जारी रह सकता हैं।

4. न्यायिक रोक के समाधान हेतु उपाय

जैसा कि एंपावर्ड कमिटी ने माना हैं कि राज्य सरकार और मंत्रालय के स्तर पर कमिया रही हैं। इससे बजरी खनन को लेकर विवाद बढ़ता गया और इसके परिणामस्वरूप अवैध बजरी खनन शुरू हुआ। न्यायालय की रोक जैसी स्थितियों से बचने के लिए दो महत्वपूर्ण उपाय करने की जरुरत हैं :

  • पर्यावरणीय स्वीकृति प्रदान की जाए : बजरी की मांग के अनुरूप लीजों को स्वीकृत किया जाना चाहिए। इसके लिए पर्याप्त मात्रा में ऐसे स्थानों को चिन्हित किया जाना चाहिए, जहां पर पर्यावरणीय  मानदंडों के अनुरूप खनन किया जा सके। इसके लिए पर्याप्त मात्रा में संसाधन पर्यावरण मंत्रालय को उपलब्ध कराने चाहिए ताकि वह अध्ययन को समय पर पूर्ण कर सके और विलंबता की संभावना को समाप्त किया जा सके।
  • अवैध खनन पर रोक लगाए : बजरी के अवैध खनन को सख्ती से रोका जाए, ताकि पर्यावरणीय चिंताएं उत्पन्न नहीं हो। अवैध खनन के कारण प्रशासन एवं राजनेताओं के भ्रष्ट हित विकसित होते हैं, जिससे वैध तरीकों का प्रवर्तन अप्रभावी होता हैं। इसलिए वैधता का स्तर अवैधता पर हावी रहना चाहिए। मतलब एक मजबूत राजनीतिक एवं प्रशासनिक इच्छाशक्ति का होना बेहद जरुरी हैं। इसलिए जनता को भी आगे आना चाहिए, क्योंकि अवैधता के कारण ही बजरी आमजन तक लगभग तीन गुनी कीमत पर पहुंचती हैं। इसलिए नागरिकों को कम्युनिटी पुलिसिंग जैसी व्यवस्था के माध्यम से अपना योगदान करना चाहिए। अथार्त अवैध खनन पर रोक के लिए प्रशासन एवं जनता दोनों को एकजुट होना होगा। इसके लिए प्रशासन को अपनी दृढ मंशा और लोगों को अपनी जागरूकता व्यक्त करनी होगी। 

निष्कर्ष 

एक तरफ भारत की उभरती हुई अर्थव्यवस्था को निर्माण कार्यों को तेजी से पूर्ण करने के लिए बजरी की उपलब्धता को आसान बनाने की आवश्यकता हैं। दूसरा पर्यावरणीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखने की भी आवश्यकता हैं। इन दोनों पक्षों के बीच में एक और आयाम हैं, वह हैं कानूनी और न्यायिक प्रक्रिया का। जिसमें हो रहे विलंब के कारण पुर्वेत्तर दोनों पक्ष प्रभावित हो रहे हैं। प्रक्रियात्मक विलंब के कारण अवैध बजरी खनन को बढ़ावा मिला हैं, जिसके कारण न तो सरकार को राजस्व प्राप्त हो रहा हैं और न ही पर्यावरण का निम्नीकरण रुक रहा हैं। इसलिए बजरी खनन को न्यायोचित तरीके से विनियमित करने की आवश्यकता हैं, न कि प्रतिबंधित करने की।  

संदर्भ
[3]. बजरी लीज मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर लगाई रोक, हाईकोर्ट में राज्य सरकार के लीज निरस्त करने के फैसले को सही माना था
[4.a]. उच्चतम न्यायालय ने राजस्थान सरकार को अवमानना नोटिस जारी करके एक माह में जवाब मांगा। 
[4.b]. सुप्रीम कोर्ट ने रोक के बावजूद प्रदेश में अवैध बजरी खनन पर सीएस, एसीएस खान व डीजीपी को अवमानना नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब देने के लिए कहा है।  

Disclaimer
 This article cover popular aspect of legal and judicial issues responsible for ban on gravel mining.

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