जयसिंहपुरा गाँव का अतिक्रमण विरोधी प्रदर्शन

धरना प्रदर्शन को लोकतंत्र में अपनी मांग मनवाने का सबसे सशक्त एवं शांतिपूर्ण माध्यम माना जाता हैं। हालांकि सरकार द्वारा ऐसे प्रदर्शनों को ज्यादा महत्त्व देने के परम्परा कमजोर पड़ी हैं। जैसे कि दिल्ली में किसान अपनी मांगों के लिए 25 नवंबर से प्रदर्शन कर रहे हैं,लेकिन कोई सार्थक परिणाम नहीं आया हैं। फिर भी धरना प्रदर्शन ही वह हथियार हैं, जो अकर्मण्य एवं उदासीन शासन व्यवस्था को गहराई तक प्रभावित करता हैं। ऐसी ही एक घटना एक दिन मैंने सवाई माधोपुर के अखबार में पढ़ी। जो इस प्रकार थी कि खण्डार तहसील क्षेत्र के जयसिंहपुरा गांव (ग्राम पंचायत गोठड़ा) के लोग 11 दिन से धरने पर बैठे हुए हैं। इनकी मांग थी कि चरागाह भूमि पर हो रहे अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई की जाए। यह धरना 4 जनवरी से शुरू हुआ था और 12 दिन तक जारी रहा था। शुरू में तो प्रशासन ने कोई कार्यवाही नहीं की, लेकिन जब धरना लंबा चलता हुआ दिखाई दिया तो प्रशासन द्वारा समस्या समाधान के लिए विधिवत प्रक्रिया शुरू की गई। लेकिन यह अपने आप में ही एक अनूठा उदाहरण था, जिसमे अतिक्रमण जैसी समस्या के लिए लोग स्वंय आगे आ रहे थे। सरकारी भूमि पर अतिक्रमण एक समस्या हैं, और किसी ने इसके खिलाफ एकजुट होकर पहल करने का साहस जुटाया हैं। यह सब सोचने पर मजबूर करने वाला था। 

हम इस आलेख में इस धरने में हुए घटनाक्रमों के माध्यम से अतिक्रमण की समस्या से जुडी जटिलताओं को समझाने की कोशिश करेंगे। साथ ही अतिक्रमण के लिए उत्तरदायी कारणों, उत्तरदायी व्यक्तियों की भूमिका एवं समाधानों पर भी विचार करेंगे।

मौजूदा घटनाक्रम : 

दरअसल, 4 जनवरी 2021 को सुबह करीब 8 बजे जयसिंहपुरा के दर्जनों ग्रामीण तहसील कार्यालय खंडार पर ज्ञापन देने पहुंचे थे। यहां ग्रामीणों द्वारा खंडार तहसीलदार को ज्ञापन सौंपकर गांव की चरागाह, सिवायचक व आबादी भूमि से अतिक्रमण हटाने की मांग की गई। जिस पर प्रशासन द्वारा उन्हें कार्रवाई का आश्वासन दिया गया। इससे एक दिन पूर्व भी इस मामले में उनके द्वारा प्रशासन को ज्ञापन दिया गया था। और आज भी कार्रवाई के लिए प्रशासन की कोई गंभीरता नजर नहीं आ रही थी। ऐसे में देर शाम तक भी सुनवाई नहीं होने पर ग्रामीण भड़क गए और तहसील कार्यालय में ही करीब 30 लोग धरने पर बैठ गए। इनका कहना था कि जब तक संपूर्ण सरकारी जमीन से अतिक्रमण नहीं हटाया जाता है, तब तक वे धरनास्थल से किसी भी सूरत में नहीं उठेंगे।

अब बात यह हैं कि यह समस्या तो कई जगह देखने को मिल जाती हैं फिर इनकी समस्या में क्या गंभीरता थी, जो इन्होने इतना बड़ा कदम उठाया।

1. आइये इस मामले की पृष्ठभूमि को समझते हैं 

इस मामले को हम शुरू से ही समझते हैं।

  • सरकारी भूमि पर अतिक्रमण : ग्रामीणों ने बताया हैं कि वे पिछले 15 सालों से लगभग 150 बीघा चरागाह, शिवायचक व आबादी भमि पर अतिक्रमण से परेशान हैं। सरकारी खाली भूमि की अनुपलब्धता के कारण उन्हें मवेशी चराने में परेशानी का सामना करना पड़ता हैं। जबकि अतिक्रमियों द्वारा उस पर खेती की जा रही हैं या घर बना लिए गये हैं।
  • भूमाफियाओं द्वारा सरकारी भूमि पर ही प्लाट काट कर बेचना : यह गांव खंडार तहसील मुख्यालय से थोड़ी ही दुरी पर हैं। इसलिए शहरी क्षेत्र के आसपास रहने को इच्छुक लोगो को भूमाफियाओं द्वारा इन जमीनों पर प्लाट काट कर बेच दिए गये।
  • ग्राम पंचायत द्वारा पट्टे जारी कर देना : जयसिंहपुरा गाँव, गोठड़ा ग्राम पंचायत के अंतर्गत आता हैं। ऐसे में अतिक्रमियों को गोठड़ा ग्राम पंचायत से आसानी से अवैध पट्टे भी प्राप्त हो गये। जब जयसिंहपुरा के पुरे ग्रामीण इन अतिक्रमियों के विरुद्ध हैं तो उन्हें किस की शह प्राप्त हो रही हैं, तो इसका जवाब यहाँ से प्राप्त किया जा सकता हैं। हो सकता हैं, इसमें दोनों गांवों की राजनीतिक प्रतिद्वंदिता का आयाम भी शामिल हो।  
  • शिकायत : जब इन लोगो को फर्जी पट्टे भी प्राप्त हो गये तो जयसिंहपुरा के लोगो ने प्रशासन से शिकायत की। 
  • संपूर्ण भूमि का सीमांकन : प्रशासन द्वारा वर्ष 2011 में संपूर्ण भूमि का सीमांकन करवाया गया। 
  • फर्जी तरमीम का खुलासा :  वर्ष 2011 में राजस्व विभाग के तत्कालीन अधिकारियों द्वारा गांव की संपूर्ण चरागाह व सिवायचक भूमि का सीमाज्ञान करवाकर रिपोर्ट तैयार की गई थी। जिसमें कई खातेदारों का मौके पर कब्जा काश्त ही नहीं पाया गया था। जबकि राजस्व विभाग के तत्कालीन अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा बिना कब्जा काश्त भूमियों पर ही कई फर्जी तरमीम भी की गई थी। इन सबका सीमाज्ञान के दौरान खुलासा हो गया था।
  • न्यायालय द्वारा फर्जी तरमीम खारिज : राजस्व न्यायालय द्वारा इनमे से कई फर्जी तरमीम को खारिज कर दिया गया।
  • राजस्व विभाग द्वारा बेदखली की कार्यवाही नहीं करना : राजस्व न्यायालय द्वारा फर्जी तरमीम खारिज होने के बावजूद राजस्व विभाग के अधिकारियों की नाकामी के चलते मौके पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है।
  • भूमाफियाओं के हौसले बुलंद/प्रोत्साहन : कोई कार्यवाही नहीं होने से भूमाफियाओं को प्रोत्साहन मिला और उन्होंने फिर से निरस्त तरमीम वाली भूमि पर ही प्लाट काटकर बेच दिए। ग्रामीणों का यह भी मानना हैं कि अतिक्रमण राजस्व कर्मियों की भूमाफियाओं के साथ मिलीभगत के कारण हुआ है।
  • शिकायत पर कार्यवाही नही होना : इनके विरुद्ध जयसिंहपूरा गाँव के लोगों ने बार-बार प्रशासन को अपनी शिकायत प्रस्तुत की। अब तक करीब एक दर्जन से अधिक बार प्रशासन को ज्ञापनों के माध्यम से शिकायत कर चुके है, लेकिन प्रशासन द्वारा हर बार अतिक्रमण हटाने का आश्वासन देकर उनके साथ धोखा किया जाता रहा है। प्रशासन द्वारा कार्यवाही के लिए कभी भी कोई गंभीरता नहीं दिखाई गई। ऐसे में पूरे गांव में प्रशासन के खिलाफ भारी आक्रोश व्याप्त है।

इस प्रकार इस समस्या की दीर्घकालिक प्रकृति के कारण इस आन्दोलन की पृष्ठभूमि निर्मित हुई।

2. आंदोलन का घटनाक्रम

आजकल हम देखते हैं कि आन्दोलन की रणनीति को ज्यादा लोकप्रियता हासिल नहीं हैं। फिर भी कभी कभार इनके समक्ष प्रशासन को झुकना पड़ता हैं। यह कुछ इसी तरह का आंदोलन था।

2.1. सर्वप्रथम ज्ञापन और उसके बाद धरना 

आरंभ में ग्रामीणों के ज्ञापन देने पर तहसीलदार द्वारा कार्यवाही का आश्वासन दिया गया, लेकिन कार्रवाई के लिए कोई गंभीरता दिखाई नहीं गई। आगे जब ग्रामीण धरने पर बैठ गये तो तहसीलदार ने ग्रामीणों पर कामकाज में बाधा डालने का आरोप लगाया। ताकि उन्हें बल पूर्वक हटाया जा सके। चूंकि धरने की मांग को समाचार पत्रों द्वारा प्रमुखता से जगह दी गई थी, इसलिए प्रशासन द्वारा बल पूर्वक उन्हें हटाने का प्रयास करने का अनुचित कार्य नहीं किया गया।

2.2. फटे नक्शे का बहाना

आरंभ में राजस्व कार्मिकों का कहना था कि जयसिंहपुरा हल्का का नक्शा फटा हुआ हैं, ऐसे में उनके द्वारा कार्रवाई किया जाना उनके कर्तव्यों के खिलाफ होगा। इस पर ग्रामीणों का कहना हैं कि जब वाकई में पटवार हल्का जयसिंहपुरा का नक्शा फटा हुआ है, तो राजस्व कार्मिकों द्वारा अतिक्रमियों को फर्जी तरमीम क्यों की जा रही है। कुल मिलाकर बात यह है कि तहसील कर्मियों का यह बहाना भी काम नहीं आया।

2.3. कार्यवाही की दिशा में प्रयास

मामले को आगे बढ़ता हुआ देखकर, उच्चाधिकारियों से मंत्रणा कर मामले को सुलझाने के लिए अधिकारी सक्रिय हुए। तहसीलदार ने स्वयं टीम के साथ मौके पर पहुंचकर स्थिति का पूरा जायजा लिया। साथ ही राजस्व विभाग के गिरदावरों व पटवारियों की टीमें गठित कर मौके पर अतिक्रमण चिन्हित करने की कार्रवाई की। टीम द्वारा आरंभ में 42 अतिक्रमियों द्वारा अतिक्रमण की हुई 72.07 बीघा भूमि को चिन्हित किया, जिन्हें धारा 91 के तहत नोटिस जारी किए गये और सभी अतिक्रमियों को 22 जनवरी को पेश होने का आदेश दिया गया।

2.4. उच्च अधिकारियों द्वारा समझाइश (12 जनवरी/ 8 वा दिन)

धारा 91 के तहत नोटिस जारी करने की कार्यवाही के बाद प्रशासन को उम्मीद थी कि अब ग्रामीण मान जाएंगे, इसलिए आठवें दिन सवाईमाधोपुर पुलिस उपाधीक्षक ग्रामीण, खंडार उपजिला कलेक्टर ने ग्रामीणों को करीब 2 घंटे तक समझाइश की। इस दौरान पुलिस एवं प्रशासन के अधिकारियों ने ग्रामीणों से 15 से 20 दिन का समय मांगते हुए विधि सम्मत कार्रवाई कर संपूर्ण अतिक्रमण को हटाने का भराेसा दिलाया।

लेकिन ग्रामीणों का कहना था कि प्रशासन पूर्व में भी वर्ष 2011 में संपूर्ण भूमि का सीमांकन करवाकर रिपोर्ट तैयार कर चुका है, लेकिन उसकी आजतक भी पालना नहीं हो पाई है। इतना ही नहीं 2011 के बाद से आज तक संबंधित अतिक्रमियों के खिलाफ धारा 91 के तहत कोई कार्रवाई भी नहीं की है। ग्रामीणों के धरने पर बैठने के बाद राजस्व विभाग को अतिक्रमण चिन्हित कर धारा 91 की कार्रवाई याद आई है। 

अधिकारियों द्वारा दिया गया आश्वासन पूर्व में भी भंग किया जा चूका था, इसलिए यह वार्ता विफल हो गई। इस दौरान ग्रामीणों ने मौके पर न्यायालय द्वारा निरस्त तरमीमों वाली जगहों पर ही अवैध प्लाट काटने तथा नवीन अवैध तरमीमाें की शिकायत करते हुए वस्तुस्थिति से भी अधिकारियों को अवगत कराया।

2.5. मीडिया में बायकाट

दसवे दिन तक भी ग्रामीण अतिक्रमियों की बेदखली की मांग को लेकर धरने पर बैठे हुए थे। लेकिन पहले की तरह समाचार पत्रों में मिलने वाला कवरेज एक दम से बंद हो गया। हो सकता हैं, अब 21 तारीख को सुनवाई में बेदखली की कार्रवाई का निर्णय लिया गया हो, जिसकी मांग ग्रामीणों द्वारा की जा रही थी। 

2.6. गतिरोध का कारण

यह मामला पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारियों के 5 घंटे के अथक प्रयासों के बाद भी नहीं सुलझ पाया। एक ओर तहसील कार्यालय में धरने पर बैठे जयसिंहपुरा के ग्रामीण मौके पर संपूर्ण अतिक्रमण हटने पर ही धरने से उठने की बात कह रहे थे। वहीं दूसरी ओर पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारी नियमानुसार एवं विधि सम्मत कार्रवाई कर ही अतिक्रमण हटाने की बात कहते नजर आए। यही वजह थी कि इसमें लंबे समय तक गतिरोध समाप्त नहीं हो पाया।

2.7. कार्रवाई के ठोस आश्वासन पर धरना समाप्ति

तहसील स्तरीय अधिकारियों के गतिरोध समाप्त करवाने में विफल रहने पर सवाई माधोपुर अतिरिक्त जिला कलेक्टर ने 30 जनवरी से पहले संपूर्ण अतिक्रमण हटाने का आश्वासन दिया। इसके बाद ग्रामीणों ने धरना समाप्त किया। 

भावी संभावना

आगे इस मामलें में अब निम्न संभावनाएं हो सकती हैं :

  • अगर ग्रामीणों की मांग के हिसाब से देखे तो जिन अतिक्रमियों को नोटिस जारी किये गये हैं, उनको बेदखल करने पर ही इस मामले का पटापेक्ष किया जा सकता हैं। अन्यथा ग्रामीण फिर अपने आन्दोलन को तेज करते हुए भूख हड़ताल करने की बात को अमल में लाना शुरू कर सकते हैं।
  • जो अतिक्रमण चिन्हित हो गये हैं, उन्ही पर कार्यवाही होगी। इस हिसाब से केवल 72 बीघा सरकारी भूमि ही अतिक्रमण से मुक्त होगी, जबकि ग्रामीणों के अनुसार लगभग 150 बीघा भूमि पर अतिक्रमण हैं। इसलिए ग्रामीणों के संतुष्ट होने की संभावना की स्थिति नजर नहीं आती हैं।

जयसिंहपुरा एक मॉडल के रूप में 

चूँकि जयसिंहपुरा के लोगो के लिए अतिक्रमी पहचान किये जा सकते हैं, इसलिए ये एकजुट होकर उनका विरोध करने के लिए आ गये। लेकिन दुसरे गांवों में अतिक्रमी गाँव के ही लोग होते हैं, कई बार वे अपने संबंधी होते हैं या फिर प्रभावशाली होते हैं। इसलिए गाँव वाले स्वंय के स्तर पर अतिक्रमियों के विरुद्ध एकजुट नहीं हो पाते हैं। इसलिए बाकी गाँव के लोगों के लिए अतिक्रमण के विरुद्ध यह तरीका आसान नहीं हो सकता हैं। लेकिन  जयसिंहपुरा के लोगो से यह बात सीखनी होगी कि सरकारी जमीनों पर सभी का हक हैं। इसलिए, लोगो का गाँव के स्तर से ही अतिक्रमियो के विरुद्ध आवाज बुलंद करनी चाहिए।

खंड II

सरकारी भूमि पर अतिक्रमण का प्रभाव

सरकारी भूमि पर अतिक्रमण एक बहुत ही बड़ी समस्या हैं। इसके कई सामाजिक-आर्थिक प्रभाव होते हैं, जो आमजन को सीधे प्रभावित करते हैं। गांवों में चरागाह के लिए सरकारी भूमि होती थी, जो अब अतिक्रमण के कारण कही नजर नहीं आती हैं। इससे स्थानीय लोगों को मवेशी चराने में दिक्कत आती हैं, यहाँ तक की इस वजह से कई लोगो का तो पशुपालन बंद भी हो गया हैं। इससे उनका जीवन निर्वाह सीधा प्रभावित होता हैं। गाँव की केवल चारागाह भूमि ही अतिक्रमण की शिकार नहीं हैं, बल्कि शिवायचक व आबादी भूमि भी अतिक्रमण से प्रभावित हैं। कई गांवों में सरकारी भूमि की अनुपलब्धता विकास कार्यों को सीधे प्रभावित करती हैं। कई गांवों में सरकार की तरफ से विद्यालय, चिकित्सालय, खेल के मैदान एवं अन्य सुविधाएँ स्वीकृत तो होती हैं, लेकिन अंतिम समय में उन्हें जमीन नहीं मिलने के कारण निरस्त करना पड़ता हैं। इससे उन क्षेत्रों के मानव विकास के पेरामीटर का निष्पादन निम्नस्तरीय रहता हैं। कई गांवों में तो पंचायत के भवन बनाने तक के लिए आसानी से भूमि उपलब्ध नहीं हो पाई। इससे हम समझ सकते हैं कि सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण किस प्रकार विकास कार्यों को प्रभावित करता हैं।

भूमि अधिग्रहण और विकास परियोजनाएं 

कई बार सड़क, रेलमार्ग आदि के निर्माण के लिए भी यही समस्या आती हैं। सरकारी जमीन से होकर मार्ग निर्धारित न करके खातेदारी भूमि से किया जाता हैं, जिसके कारण खाताधारकों को मुआवजा देने में भारी राशी खर्च करनी पडती हैं। इससे परियोजनाओं की लागत बढ़ जाती हैं। कई बार किसान संगठित होकर आधिग्रहण का ही विरोध करने लग जाते हैं, ऐसे में परियोजना दीर्घकाल के लिए लंबित हो जाती हैं। इसके कारण डेवलपर द्वारा जुटाया गया निवेश फस जाता हैं और वह प्रतिफल देने में नाकाम रहता हैं। इसका नतीजा यह होता हैं कि बैंक या अन्य संस्थागत वित्तीय संस्थानों के पास अन्य कार्यों के लिए धन उपलब्ध कराने हेतु संसाधन नहीं रहते हैं। कुल मिलाकर यह अर्थव्यवस्था को बहुत गहराई से प्रभावित करता हैं। अवसंरचना विकास में सार्वजनिक- निजी-भागीदारी (PPP) मॉडल की विफलता में भूमि अधिग्रहण से जुडी समस्याओं ने बड़ी भूमिका निभाई हैं। यही कारण हैं कि नवीन परियोजनाओं में सरकार पहले से ही भूमि अधिग्रहित करके डेवलपर को उपलब्ध कराती हैं।

इस समस्या के समाधान के लिए सरकारी भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराकर एक भूमि बैंक बनाया जाना चाहिए। ऐसे में जब भी कोई सुविधा का निर्माण करना होगा तो भूमि की अनुपलब्धता जैसे मुद्दे नहीं होंगे। साथ ही बड़ी परियोजनाओं में जिनकी भूमि अधिग्रहित होती हैं, उन्हें मुआवजे के विकल्प के रूप में वैकल्पिक स्थान पर भूमि दी जा सकेगी। इससे परियोजनाओं के विरोध को भी टाला जा सकेगा।

अतिक्रमण की समस्या के कारण

अतिक्रमण की समस्या की पृष्ठभूमि विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग प्रकार की हैं। जैसे शहरी क्षेत्रों में दुकान या रिहायशी कामकाज के लिए अतिक्रमण कर लिया जाता हैं या फिर बेघर लोगो द्वारा रिहायशी कामकाज के लिए प्रयुक्त करना शुरू कर दिया जाता हैं।

गांवों में इस समस्या के कारण :

  • बढती हुई जनसंख्या के कारण जोतो का आकार घटना, ऐसे में लोगो की समीपवर्ती सरकारी भूमि पर निगाह लगी रहती हैं।
  • कृषि में मशीनीकरण के कारण भी उबड़-खाबड़ सरकारी भूमियों को समतल करके खेती के लायक बनाना संभव हुआ हैं।
  • गांवों में बढती असमानता एवं दबंगई के कारण भी सरकारी भूमि पर कब्जा किया जा रहा हैं, क्योंकि उन्हे रोकने-टोकने वाला कोई नहीं होता हैं।

सरपंच की भूमिका

सरपंच गाँव का ही निवासी होता हैं, उसे जानकारी होती हैं कि किसने अतिक्रमण किया हैं। लेकिन वह इनके प्रति उदासीन बना रहता हैं। कई बार तो वह खुद भी अतिक्रमण में शामिल हुआ मिल जाता हैं। साथ ही अतिक्रमण हटाकर वोट बैंक को नाराज करने की जोखिम भी रहती हैं। साथ ही सरपंच उनका स्वयं का आदमी होता हैं, इसलिए अतिक्रमण करने वाले उसे बेहतर तरीके से नहीं हटाने के लिए मना पाते हैं। कुल मिलाकर बात यह हैं कि अतिक्रमण हटाने या नहीं होने की दिशा में एक महत्वपूर्ण स्तंभ कमजोर भूमिका में हैं।

कई बार सरपंचों द्वारा ऐसे अतिक्रमियों को पट्टे जारी कर दिए जाते हैं। इसके कारण यह समस्या अधिक जटिल हो जाती हैं। 

पटवारी की भूमिका

पटवारी का यह दायित्व होता हैं कि वह अपने अधीन आने वाले क्षेत्रों में अतिक्रमण की सुचना प्रदान करे। लेकिन उनके द्वारा ऐसा नहीं किया जाता हैं, हो सकता हैं कार्यभार के बोझ के कारण उसे इनके लिए समय ही नहीं मिल पाता हो। साथ ही अतिक्रमियों के भय के कारण भी अपनी इस भूमिका का निर्वाह नही कर पाता हैं। 

राजस्व विभाग की भूमिका

राजस्व विभाग अतिक्रमण हटाने के लिए सभी प्रकार की विधिक शक्तियां रखता हैं। इस शक्ति का प्रयोग करने के लिए तहसीलदार, उपखंड अधिकारी एवं जिलाधिकारी को अधिकृत किया गया हैं। लेकिन उनके द्वारा भी इस शक्ति का प्रयोग सार्वभौमिक न करके मांग आधारित ही किया जाता हैं। यही वजह हैं कि अतिक्रमण को जीरो टॉलरेंस वाली तवज्जों नहीं मिल पाती हैं।

खंड III

अतिक्रमण की समस्या से निपटने के लिए निम्न उपाय किये जाने की आवश्यकता हैं :

दोषियों पर कार्रवाही 

अतिक्रमण के मामले में दोषियों पर कार्यवाही की जानी चाहिए :

  • इस अतिक्रमण को चिन्हित किये जाने के बाद न्यायालय के माध्यम से अतिक्रमियों को बेदखल किया जाना चाहिए। बेदखली के साथ-साथ अर्थदंड जैसी व्यवस्था के माध्यम से उन्हें हतोत्साहित करना चाहिए और सख्त कारवाही करके बाकी लोगो को भी संदेश देना चाहिए। साथ ही वे दोबारा कब्जा न कर ले, इसे सुनिश्चित करने की भी व्यवस्था की जानी चाहिए।
  • अतिक्रमियों को शह देने वाले राजस्व कर्मियों पर भी कार्यवाही की जानी चाहिए। पटवारी या अन्य किसी की भी भूमिका संदिग्ध पाए जाने पर चार्जशीट जारी की जानी चाहिए।

राजस्व कर्मियों का सशक्तिकरण

  • पटवारियों का कार्यभार कम करना चाहिए ताकि वे अतिक्रमण की निगरानी आसानी से रख सके। इसके लिए पटवार सर्किलों की संख्या में वृद्धि की जानी चाहिए। साथ ही इनकी रिक्तियों को तत्काल भरा जाना चाहिए। पटवारियों की कार्यदशाओं में भी सुधार करके उनका मनोबल बढ़ाना चाहिए।
  • तहसील कर्मियों को भी कार्यवाही के लिए पर्याप्त जाब्ता उपलब्ध कराना चाहिए। साथ ही कार्यभार को कम करने के लिए राजस्व कर्मियों की संख्या बढाई जानी चाहिए। हो सके तो इसके लिए एक समर्पित कैडर बनाया जाना चाहिए। 

निष्कर्ष

अतिक्रमण विकास को अवरुद्ध करने वाली एक समस्या हैं, जो व्यापक सामाजिक आर्थिक विसंगति उत्पन्न करती हैं। इसलिए सरकार को इसके प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति अपनानी चाहिए। दोषियों को सख्त कार्यवाही के माध्यम से हतोत्साहित किया जाना चाहिए। समय-समय पर सरकार को अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाने चाहिए। राजस्व विभाग में भी एक समर्पित विंडो इसके लिए शुरू की जानी चाहिए।

संदर्भ
  • अतिक्रमण हटाने की मांग:जयसिंहपुरा ग्रामीणों का धरना 11वें दिन भी जारी [दैनिक भास्कर]
  • जयसिंहपुरा में सिवायचक और चरागाह पर 42 अतिक्रमियों ने कर रखा है 72 बीघा पर कब्जा [दैनिक भास्कर लिंक 2]
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