अवैध बजरी खनन पर रोक के प्रयास, उनकी सीमाएं और समाधान

राजस्थान ऐसा पहला राज्य नहीं है, जहां सुप्रीम कोर्ट ने बजरी खनन पर रोक लगाई हो। लेकिन दुसरे राज्यों में 2 साल के बाद ही पर्यावरणीय अनुमति के साथ इसे हटा दिया गया था, उदाहरण के लिए उत्तराखंड। लेकिन राजस्थान में राज्य सरकार की लापरवाही को इस स्थिति के लिए उत्तरदायी माना जा रहा है। अगर नियमानुसार खनन होता तो ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं होती। इसने समय पर रिप्लेसमेंट स्टडी रिपोर्ट पेश नहीं की। साथ ही राज्य सरकार, अवैध खनन पर भी कोई विश्वसनीय रोक नहीं लगा पाई है। अवैध खनन पर रोक नहीं होने के कारण माफिया बेलगाम हो गये हैं। माफियाओं द्वारा निर्मित जोखिमग्रस्त परिस्थितियों को पिछले आलेख में वर्णित किया गया हैं। अवैध वसूली में शामिल रहे उत्तरदायी सरकारी कर्मियों ने स्थिति को ऐसी जगह पहुंचा दिया हैं कि अब समस्या नासूर बन गई हैं। 

इससे पूर्व के 2 आलेख में हम अवैध बजरी खनन की समस्या के कारण एवं प्रभावों के बारे में विभिन्न आयामों की जानकारी दे चुके हैं। जबकि इस आलेख में हमारा ध्यान सीधे इस समस्या से पार पाने के लिए राज्य सरकार द्वारा किए गये प्रयासों एवं उनकी सीमओं का अध्ययन करने पर हैं।

1. अवैध खनन से जुडी विसंगतियों पर सरकार की प्रतिक्रिया और उनकी नियति

अवैध खनन से न तो राजस्व प्राप्त हो रहा है, और न ही पर्यावरण का निम्नीकरण रुक रहा है। इसलिए अवैध खनन से जुडी विसंगतियों को रोकने एवं समाप्त करने के लिए सरकार ने कई प्रतिक्रियाएँ व्यक्त की हैं, जो कि इस प्रकार हैं :

1.1. अवैध खनन पर रोक

अवैध खनन से जुडी विसंगतियों को रोकने के लिए सबसे पहले तो अवैध खनन पर रोक लगायी जानी चाहिए। इसके लिए जिला स्तर पर डीएम को जवाबदेह बनाया गया है। फिर भी इसके लिए प्रशासन द्वारा किये जाने वाले प्रयास नाकाफी हो रहे हैं। इसके बावजूद भी अवैध खनन, परिवहन एवं भंडारण पर रोक नहीं लग पायी हैं।

1.2. बजरी के वैध खनन को शुरू करवाने का प्रयास

राजस्थान सरकार ने खनन शुरू करवाने के लिए कई प्रयास किए हैं, इसके लिए किए गए विभिन्न उपाय इस प्रकार है :

  • फिर से नीलामी की तैयारी : राजस्थान सरकार ने 2018 में पुरानी नीलामी की खानों पर पर्यावरणीय अनुमति के अभाव में रोक लगा दी थी। ऐसे में सरकार ने फिर से नीलामी की तैयारी शुरू की थी। इस बार सरकार ने नीलामी के लिए 800 छोटे प्लाट राज्य भर में आवंटन के लिए चयनित किए। इनको लेकर आशा व्यक्त की जा रही थी कि इनका आकार छोटा होने के कारण पर्यावरण अनुमति में भी दिक्कत नहीं आएगी। ऐसे में नीलामी के बाद राज्य में बजरी खनन चालू हो सकेगा। लेकिन पुरानी नीलामी के मंशा पत्र धारकों द्वारा न्यायालय में चले जाने के कारण यह योजना अटक गई। [1]
  • निजी खातेदारी भूमि से खनन की अनुमति : सरकारी जमीन पर बजरी खनन पर रोक के बाद एक हेक्टेयर तक की निजी खातेदारी भूमि से खनन के लिए खान विभाग ने आवेदन आमंत्रित किये थे। परंतु इनमें से अधिकतर आवेदनों पर पर्यावरणीय अनुमति प्राप्त नहीं हो सकी। जहाँ कही अनुमति प्राप्त हुई, वहां खातेदारी भूमि की आड़ में नदी से खनन आरंभ हो गया। लोग नदी से बजरी भरकर लाते और खातेदारी भूमि के पास से रवन्ना लेकर आराम से परिवहन कर रहे थे। (अधिक विस्तृत 2.2 में)

1.3. बजरी पर रोक से विकास कार्य प्रभावित नही हो, इसलिए वर्क परमिट का प्रावधान 

सरकारी अवसंरचना विकास एवं निर्माण कार्यों में प्रयुक्त होने वाली बजरी के खनन एवं परिवहन के लिए वर्क परमिट जारी किए जाते हैं। ताकि बजरी खनन पर रोक की वजह से विकास कार्य अवरुद्ध नहीं हो। लेकिन वर्क परमिट समस्या के समाधान के बजाय अपने आप में ही अवैध खनन का एक और जरिया बन गया।

1.4. बजरी के विकल्प के रूप में एम-सैंड को प्रोत्साहन

  • एम सैंड को बजरी के विकल्प के तौर पर देखा गया। बजरी खनन पर रोक के बाद राज्य में एम सैंड के संयंत्र लगना शुरू हो गये हैं। एम सैंड उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए राज्य में राजस्थान प्रधान खनिज रियायत नियम 2017 में संशोधन प्रस्तावित है। राजस्थान निवेश प्रोत्साहन नीति 2019 में एम सैंड मैन्युफैक्चरिंग पर दी जाने वाली सहायता का विवरण है।
  • एम सैंड नीति की घोषणा [2]
  • कुछ जगह पर पत्थरों को पीसकर एम-सैंड तैयार की गई, लेकिन यह बजरी मकानों के कार्यों में ज्यादा लोकप्रिय नहीं हो पाई। 

2. सरकार द्वारा किए गये प्रयासों की सीमाएं

बजरी खनन से जुडी विसंगतियों को रोकने के लिए सरकार द्वारा किये गये उपायों की सीमाओं को इस प्रकार समझा जा सकता हैं :

2.1. पर्यावरणीय अनुमति और वैज्ञानिक पुनर्भरण अध्ययन 

राज्य सरकार की इच्छा और तमाम प्रयासों के बावजूद भी पर्यावरणीय स्वीकृति के अभाव में कानूनी रूप से खनन करने की अनुमति प्राप्त नहीं हो पा रही हैं।

  • ज्ञातव्य हैं कि लीज धारकों को वन विभाग से NOC और खान विभाग से पर्यावरणीय मंजूरी लेना अनिवार्य है। पर्यावरणीय मंजूरी से पहले वन विभाग की NOC जरूरी है। इसके लिए लीज धारक को वन विभाग को खेत के आसपास नाड़ी और ओरण-गोचर भूमि की जानकारी देनी होती हैं। 
  • वैज्ञानिक पुनर्भरण अध्ययन के माध्यम से यह सुनिश्चित करना होता हैं कि संबंधित स्थान पर फिर से बजरी की आवक हो जाएगी। लेकिन राज्य के अधिकांश नदी-नालों में पानी का बहाव वर्षाकाल के दौरान ही होता है एवं कई बार प्रदेश में सूखे की स्थिति भी उत्पन्न होती है। इन कारणों से नदी-नालों में बजरी का पुनर्भरण भी काफी न्यून रहता है।
  • वैध खनन के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा नदियों में बजरी आने को लेकर मुख्य सचिव से रिप्लेसमेंट स्टडी रिपोर्ट मांगी गई है, जिसके आधार पर पर्यावरण मंत्रालय NOC पर निर्णय लेगा। NOC पर निर्णय लेते ही लीजधारक को खनन करने की कानूनी अनुमति भी मिल जाएगी। 
  • लेकिन राज्य सरकार द्वारा रिप्लेसमेंट स्टडी रिपोर्ट सौंपने में काफी समय लिया जा रहा हैं, जिसके कारण अब तक कुछ ही लीजधारकों को अनुमति मिल पाई हैं। यही समस्या की मुख्य जड़ हैं। इसके लिए कई कारण उत्तरदायी हो सकते हैं :
    • हो सकता हैं बाकी स्थानों पर पुनर्भरण को लेकर वास्तविक चिंताएं उपस्थित हो, ऐसे में तथ्यों से इतर रिपोर्ट पर्यावरण को प्रतिकूल तरीके से प्रभावित करेगी।
    • एक संभावना यह हो सकती हैं कि राज्य सरकार की वैध बजरी खनन शुरू करवाने में रूचि ही नहीं हो। ऐसा अनुमान इसलिए लगाया जा सकता हैं क्योंकि बजरी के अवैध खनन से माफियाओं, अधिकारियों एवं राजनेताओं को काली कमाई होती हैं। ऐसे में वैध खनन के शुरू होते ही, यह बंद हो जाएगी।
    • तीसरी संभावना यह हैं कि हो सकता हैं वन एवं खान विभाग के पास संबंधित रिपोर्ट तैयार करने के लिए संसाधनों का अभाव हो।  

2.2. खातेदारी लीज एवं वर्क आर्डर की आड़ में अवैध खनन और परिवहन 

शोर्ट टर्म परमिट (STP) के आधार पर निजी खातेदारी जमीनों पर आवंटित लीजो की आड़ में बजरी का अवैध खनन धड़ल्ले से चल रहा है। इससे आम आदमी को कोई राहत नहीं मिल पाई, बल्कि बजरी का फर्जीवाड़ा तेजी से बढ़ा हैं। लीज और वर्क आर्डर की आड़ में बजरी खनन का अवैध कारोबार धड़ल्ले से हो रहा है। [3]

  • लीज धारक खातेदारी की जमीनों के अतिरिक्त नदी पेटे से भी बजरी उठा रहे हैं। खनन कर्ता दिन के समय में नदी पेटे से बजरी लाकर के स्टॉक में डालते हैं और रात्रि में शिथिल प्रशासनिक सतर्कता का फायदा उठाकर इसे अन्यत्र भेज देते हैं।
  • वर्क आर्डर में बताई गई आवश्यकता से कई गुना अधिक बजरी का परिवहन किया जा रहा हैं। 
  • लीजशुदा जमीन के सामने से रॉयल्टी की रसीद लेकर गुजरने वाले वाहन खनन विभाग की आंखों में धूल झोंक रहे हैं। 
  • खनन विभाग द्वारा वर्क आर्डर और लीज की समीक्षा नहीं की जाती हैं, जिससे अवैध खनन पर लगाम नहीं लग पाती।

2.3. संसाधनों का अभाव / खनन विभाग की लापरवाही

  • खनन विभाग के पास संसाधनों का अभाव है। अवैध खनन का परिवहन करने वालों पर कार्यवाही पुलिस द्वारा की जाती हैं। खनन विभाग की टीम सूचना के काफी देर बाद पहुंचती है। 
  • कार्यवाही की मात्रा बहुत कम है, उदाहरण के लिए- हाथी पकड़ने गए दल का पूछ ले कर लौटना। मतलब दो या तीन ट्रोली पकड़ी जाती है, जबकि रोजाना 500 ट्रोलियों का परिवहन होता है।
  • खनन विभाग के भी कई कृत्य अवैध बजरी खनन एवं परिवहन को बढ़ावा देने वाले होते हैं। उदाहरण के लिए- सरकारी भूमि पर बजरी भंडारण प्राप्त होने पर उनको खनन विभाग द्वारा जब्त कर लिया जाता हैं। इस जब्त भंडार की आगे नीलामी की जाती हैं। परंतु जब्त भंडार को निगरानी के अभाव में माफिया द्वारा अगले ही दिन खली कर दिया जाता हैं। फिर खनन विभाग किस चीज की नीलामी करता हैं। लेकिन यही खेल हैं। जिनको नीलामी की जाती हैं, वे उन खाली भंडार स्थलों को रात में नदी से बजरी लाकर भर देते हैं और दिन में आपूर्ति करते हैं। यह सब खेल खनन विभाग के कुत्सित इरादों का परिणाम हैं। यह तो एक उदाहरण हैं, ऐसे कई तरीके हैं, जिनके माध्यम से खनन विभाग द्वारा नकारात्मक भूमिका निभाई जाती हैं। 

3. अवैध खनन की समस्या से निपटने के उपाय

अवैध खनन की समस्या से निपटने के उपायों को इस प्रकार समझ सकते हैं :

3.1. सस्टेनेबल सैंड माइनिंग पर पर्यावरण मंत्रालय के दिशा निर्देश 

सस्टेनेबल सैंड माइनिंग गाइडलाइंस 2016 में रेत खनन के प्रबंधन से संबंधित प्रावधान थे, लेकिन नियमों के प्रभावी प्रवर्तन और निगरानी के उपायों का अभाव था। इसलिए वर्ष 2020 की यह गाइडलाइन अवैध खनन से निपटने में सहायक होगी। [4]

  • डिस्ट्रिक्ट सर्वे रिपोर्ट  : वर्ष 2016 की गाइडलाइन में लीज आवंटन से पूर्व डीएसआर तैयार करने की बात कही गई थी। इसमें व्यापक आयामों का अभाव था। नवीन दिशा निर्देशों के अनुसार उसे तैयार करने की प्रक्रिया को तय किया गया है। 
  • निगरानी : स्त्रोत से लेकर उपभोक्ता तक निगरानी के लिए पूरे देश में एक समान प्रोटोकॉल लागू लागू किया जाएगा। ड्रोन और नाइट सर्विलेंस का प्रयोग किया जाएगा। 
  • रिवर ऑडिट : राज्यों द्वारा रिवर ऑडिट पब्लिक डोमेन में उपलब्ध कराई जाएगी। रिवर बेड मटेरियल और रेत की खरीद बिक्री की जानकारी ऑनलाइन प्रदान की जाएगी। 
  • रिप्लेनिशमेंट स्टडी : अत्यधिक बजरी खनन के प्रभाव को समाप्त करने के लिए रिप्लेनिशमेंट स्टडी की जाएगी। 
  • टास्क फोर्स : जिला स्तर पर परिवर्तन के लिए डेडीकेटेड टास्क फोर्स गठित की जाएगी। सीमावर्ती क्षेत्रों में कंबाइंड टास्क फोर्स द्वारा निगरानी की जाएगी। 

3.2. प्रशासनिक कार्रवाई 

  • अवैध खनन रोकने के लिए खान पुलिस और परिवहन विभाग की संयुक्त टीम गठित कर रखी है। वाहनों, भंडारण करने वाले भूमि मालिकों पर समन्वित और कड़ी कार्रवाई की जा रही है। जुर्माने दोगने किए गए हैं।
  • ओवरलोड वाहनों पर कार्रवाई के लिए रवन्ना पर्ची को ऑनलाइन बनाया गया हैं। इससे परिवहन विभाग को इन्हें रोकने में आसानी होगी। 
  • मॉडिफाइड व्हीकल पर कार्रवाई की जा रही है। 
  • माफियाओं के मुखबिरों को चिन्हित किया जा रहा है। रेकी करने वालों पर सख्त दंडात्मक कार्रवाई की जा रही है।

4. बजरी के अवैध खनन, परिवहन एवं भंडारण को रोकने हेतु सुझाव

बजरी के अवैध खनन, परिवहन एवं भंडारण को रोकने हेतु सुझाव मेरे कुछ सुझाव इस प्रकार हैं :

  • नाकों पर जाब्तों को मजबूत किया जाना चाहिए। जिले की सीमा पर स्थित नाकों पर बेरिकेड एवं जवानों की संख्या में वृद्धि की जाए। नाकों को अस्थायी पुलिस चौकी के समान सुविधा उपलब्ध करायी जाए, ताकि वहां पर तैनाती को जवान एक गर्व समझे। नाकों से पहले अवरोधक बनाए जाए ताकि तेज गति से वाहन नही गुजर सके। नाकों पर अवैध वसूली को रोकने के लिए CCTV लगाए जाए, जिन तक पुलिस के आला अधिकारियों के साथ-साथ नागरिक समाज की भी पहुँच हो। सीमावर्ती क्षेत्रों में उन कच्चे रास्तों को बंद किया जाए, जहाँ से वाहन गुजरते हो। 
  • नदी में खनन को रोकने के लिए कम्युनिटी पुलिसिंग की मदद ली जाए। नदी के आसपास के ग्रामीणों को उनके क्षेत्र के अधीन निगरानी के लिए बोला जाए, हो सके तो इसके लिए उहे मानदेय भी प्रदान करना चाहिए। जिसका भुगतान जुर्मानों से प्राप्त राशि से किया जाना चाहिए।
  • आसपास के गांवों को स्थानीय जरूरतों की पूर्ति के लिए बजरी लाने की अनुमति दी जानी चाहिए। साथ ही शहरी क्षेत्र की जरूरतों की पूर्ति के लिए भी अंडरलोड व्हीकल्स को एक निश्चित समयावधि में अनुमति प्रदान की जानी चाहिए। स्थानीय जरूरतों को नजरंदाज करना किसी भी रोक को अप्रभावी बनाता हैं।
  • मुख्य मार्गों पर सीसीटीवी लगाए जाए और उनको एसडीएम, तहसीलदार एवं अन्य उत्तरदायी व्यक्तियों के मोबाइल से लिंक किया जाए, ताकि लाइव निगरानी की जा सके। बाद में रिकार्डेड वीडियो के माध्यम से  वाहन एवं उनके चालकों का विश्लेषण किया जा सके। ओवर स्पीड एवं ओवरलोड वाहनों पर कार्यवाही को अमल में लाया जा सके।
  • गैर-कृषि या सहायक गतिविधियों में लगे ट्रेक्टरों को रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया जाए, बिना रजिस्ट्रेशन वाले वाहनों पर कार्यवाही की जाए।
  • अवैध वसूली को रोकने के लिए सिविल सोसाइटी के माध्यम से निगरानी की व्यवस्था की जाए।

सबसे बड़ी बात यह हैं कि अवैध बजरी खनन पर कार्यवाही एक जिला प्रशासन का मुद्दा हैं, जो भी कार्यवाही करनी हैं, वह जिला प्रशासन को अपने उपलब्ध संसाधनों के आधार पर करनी हैं, उन्ही संसाधनों से रूटीन कामकाज भी करने हैं। यही समस्या की मुख्य जड़ हैं। प्रशासन के पास इतने संसाधन हैं ही नही की वह इस रोकथाम को अमल में ला सके। उसके पास केवल रस्मी कार्यवाही करने के लिए संसाधन हैं। माफियाओं के बेखौप होने का भी यही कारण हैं। प्रशासन के अनावश्यक पीछा करने से बचने वाले माफिया वसूली को बढ़ावा देते हैं और पीछा करने से बचने की हिम्मत रखने वाले माफिया हमले को अंजाम देते हैं। बजरी खनन पर रोक राज्यव्यापी हैं, इसलिए राज्य सरकार को अपने स्तर पर भी व्यवस्था करनी चाहिए। एक समर्पित फाॅर्स इसके लिए बनानी चाहिए, जिसकी नाकों एवं परिवहन मार्गों पर तैनाती की जानी चाहिए। बेरिकेड, वाहन एवं चौकी जैसी व्यवस्था करनी चाहिए। अभी हरेक कार्यवाही के लिए एक समन्वित टीम बनाने की जरुरत पड़ती हैं, जबकि राज्य स्तर पर एक समर्पित इकाई बनानी चाहिए, जिसमे सभी विभागों की शक्तियां निहित हो।  

निष्कर्ष

राजस्थान में बजरी के अवैध खनन की समस्या काफी गहरा गई है। बजरी का अवैध खनन, परिवहन और भंडारण नासूर बन गया है। अगर इसका यथा शीघ्र समाधान नहीं किया गया तो इस पर अंकुश लगाना दुष्कर साबित हो सकता है। इसलिए अवैध बजरी खनन के बहु आयामी प्रभावों को देखते हुए एम्पोवेरेड कमेटी की सिफरिशों के अनुकूल यथाशीघ्र बजरी खनन शुरू करवाया जाना चाहिए।

संदर्भ

[1]. बनास पर फैंसला आते ही 800 खानों को मंजूरी [Patrika]

[2]. राजस्थान एम सैंड पॉलिसी 2020 [ras junction portal]

[3]. लीज की आड़ में नदी पेटे से हो रहा धड़ल्ले से अवैध बजरी खनन [mewarkiran portal]

[4]. सस्टेनेबल सैंड माइनिंग मैनेजमेंट गाइडलाइंस के बाद भी अवैध रेत खनन [india water portal || drishtiias]

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