RAS-2018 के संदर्भ में मेडिकल एवं सेवा आवंटन प्रक्रिया

राजस्थान लोक सेवा आयोग, अजमेर द्वारा आयोजित होने वाली RAS परीक्षा में इंटरव्यू के बाद अंतिम परिणाम की घोषणा की जाती है। इस अंतिम परिणाम के आधार पर सेवाओं का आवंटन मेरिट एवं विज्ञापित रिक्तियों के अनुसार किया जाता हैं। सेवा आवंटन से पूर्व मेडिकल टेस्ट एवं पुलिस वेरिफिकेशन की प्रक्रिया भी पूर्ण की जाती हैं। इस आलेख में RAS-2018 को आधार मानकर सेवा आवंटन की प्रक्रिया के विभिन्न चरणों का विवरण दिया गया हैं।

 RAS-2018 भर्ती की प्रक्रिया काफी लंबी चली थी। जुलाई 2021 में परिणाम घोषित होने के बाद 25 दिसम्बर 2021 को जाकर सफल अभ्यर्थियों को विभिन्न पदों को आवंटित किया गया। RAS के परिणाम एवं पद आवंटन की प्रक्रिया कई मायनों में UPSC से भिन्न हो जाती हैं। इस आलेख में हम UPSC के सापेक्ष तुलनात्मक अध्ययन करते हुए सेवा आवंटन तक की प्रक्रिया को समझेंगे।

परीक्षा में सेवा आवंटन की प्रक्रिया तक के विभिन्न चरण इस प्रकार हैं-

अंतिम परिणाम घोषित होना 

अंतिम दिन के इंटरव्यू के दिन ही अंतिम परिणाम घोषित किया जाता है। अंतिम परिणाम में कुल प्राप्तांकों के आधार पर सभी इंटरव्यू में भाग लेने वाले उम्मीदवारों की श्रेणी-वार रैंक जारी की जाती हैं। इससे यह निर्धारित नहीं हो पाता है कि अंतिम किस रैंक तक उम्मीदवारों को सेवा आवंटन हो जाएगा।

इसके विपरीत UPSC में अंतिम परिणाम में उन ही अभ्यर्थियों को शामिल किया जाता हैं, जिन्हें सेवा आवंटन होना होता हैं। इसका कारण यह हैं कि इंटरव्यू के दौरान ही कार्मिक विभाग मेडिकल टेस्ट एवं पुलिस वेरिफिकेशन की कार्यवाही पूर्ण कर लेता हैं। जबकि RAS में RPSC एवं DOP दोनों के मध्य यह समन्वय नहीं रहता हैं।      

मेडिकल टेस्ट

एक रफ़ सेवा आवंटन कार्मिक विभाग द्वारा किया जाता हैं और इस रफ़ सर्विस एलोकेशन में जिस रैंक तक सेवा आवंटन की संभावना होती हैं, वहां तक रैंक वाले अभ्यर्थियों को संभाग स्तर पर चिकित्सा परीक्षण के लिए भेजा जाता हैं। 

कार्मिक विभाग द्वारा चिकित्सा परीक्षण का कार्यक्रम निर्धारित किया जाता हैं। संभाग स्तर पर स्थित हॉस्पिटल में मेडिकल टेस्ट के लिए अभ्यर्थियों को बुलाया जाता हैं।

मेरा अनुभव 

मेरा मेडिकल सवाई मानसिंह अस्पताल, जयपुर में हुआ था। मेरे साथ कुछ और भी लोग थे। वहां पर हमारी प्रक्रिया दो दिन चली थी, जिसका विवरण इस प्रकार हैं -

प्रथम दिन: हम मेडिकल टेस्ट के लिए निर्धारित रूम के बाहर खड़े थे। तभी कार्मिक विभाग का एक प्रतिनिधि आया और उसने अंदर अभ्यर्थियों की लिस्ट दी। प्रत्येक उम्मीदवार के लिए मूत्र, खून, ECG और X-Ray टेस्ट के लिए पर्ची देकर DOP प्रतिनिधि के साथ हमे संबंधित प्रयोगशालाओं में भेज दिया गया। सभी प्रयोगशालाओं में सैंपल देने के बाद हमे अगले दिन आने की बोला गया ताकि तब तक सैंपल्स की रिपोर्ट आ जाए।

द्वितीय दिन : दुसरे दिन हमे Eye Test के लिए भेज दिया गया। हमारे साथ एक फॉर्म था, जिसमे डॉक्टर ने सभी की आँखों का विवरण लिख दिया। इसके बाद फिर से हम फिजिकल एग्जामिनेशन रूम के बाहर आ गये। यहाँ पर एक डॉक्टर ने सभी को बारी बारी से बुलाकर हर्निया की जांच की। इसके कुछ देर बाद फिजिकल टेस्ट करने वाला डॉक्टर आया, उसने ऊंचाई, छाती का प्रसार, वजन आदि माप नोट की और फ्लेट फीट का टेस्ट भी किया। इस प्रकार सारे टेस्ट होने के बाद हमसे फॉर्म में कुछ और अतिरिक्त जानकारी भरवाई गई। इसके बाद DOP प्रतिनिधि ने कहा कि अब आप जा सकते हो।

री-मेडिकल

कार्मिक विभाग का प्रतिनिधि सारे टेस्ट होने के बाद आवेदक के फॉर्म को ले जाता हैं। उस फॉर्म में सभी टेस्टों के बारे में उम्मीदवार का विवरण होता हैं। फॉर्म का कार्मिक विभाग द्वारा परीक्षण किया जाता हैं और उसके उपरांत कुछ मामलों में कुछ दिन के अंतराल के बाद उम्मीदवारों को री-मेडिकल के लिए बुलाया जाता है। कुछ अभ्यर्थियों के कुछ मेडिकल टेस्ट मापदंडों के अनुरूप नहीं आते हैं, ऐसे अभ्यर्थियों को कुछ दिन के उपरांत री-मेडिकल के लिए बुलाया जाता हैं। कुछ उम्मीदवार विभिन्न कारणों से अनुपस्थित रह जाते है, ऐसे अभ्यर्थियों को दूसरा अवसर दिया जाता हैं।

कुछ अन्य उम्मीदवारों को मेडिकल के लिए बुलावा

मेडिकल टेस्ट होने तक बहुत सारे उम्मीदवार अपने को मिलने वाली पोस्ट का अंदाजा लगा चुके होते हैं और अगर उनकी सेवा में कोई बदलाव की आशंका नही हो या पहले से कही दूसरी जगह अधिक लाभदायक पद पर हो तो ऐसे अभ्यर्थी मेडिकल टेस्ट से अनुपस्थित रह जाते हैं। इंटरव्यू रिजल्ट और मेडिकल की प्रक्रिया तीन से चार महीने ले लेती हैं, ऐसे में कुछ लोगो का UPSC में भी हो जाता हैं तो वे मेडिकल देने के बाद भी कार्मिक विभाग में शपथ पत्र देकर अपनी अभ्यर्थना वापस ले लेते हैं। इस प्रकार कुछ रिक्तियां सृजित हो जाती हैं। इन रिक्तियों को भरने के लिए संबंधित वर्ग से मेरिट के अनुसार अगले अभ्यर्थियों को मेडिकल के लिए बुलाया जाता हैं। यह एक प्रकार से अप्रत्यक्ष प्रतीक्षा सूची का कार्य करती हैं। इससे 5-10 अभ्यर्थी आसानी से लाभान्वित हो जाते हैं।   

सेवा आवंटन 

मेडिकल टेस्ट हो जाने वाले अभ्यर्थियों का समानांतर रूप से पुलिस वेरिफिकेशन भी कराया जाता हैं। सभी अभ्यर्थियों के मेडिकल टेस्ट और पुलिस वेरिफिकेशन हो जाने के बाद सर्विस एलोकेशन जारी कर दिया जाता हैं। यह आवंटन कार्मिक विभाग द्वारा संबंधित विभागों को भेजा जाता है, फिर संबंधित विभाग द्वारा ही अभ्यर्थियों को अग्रिम निर्देशों के साथ नियुक्ति की सूचना भेजी जाती हैं।   

प्रशिक्षण एवं फील्ड पोस्टिंग 

सेवा आवंटन आने के बाद संबंधित विभागों में रिपोर्ट करना होता हैं। जो अभ्यर्थी विभिन्न कारणों से तत्काल नियुक्ति नहीं चाहते हैं, वे नियुक्ति तिथि में विस्तार (Extension) के लिए आवेदन दे देते हैं। बाकी उम्मीदवार नियुक्ति ग्रहण संबंधित आवेदन एवं शपथ पत्र को भरके जमा करवाते हैं। ऐसी सेवाएँ जिनमे तत्काल प्रशिक्षण शुरू होना है, उनमे नियुक्ति संबंधित विस्तार (Extension) की अनुमति नहीं होती हैं।  

कुछ सेवाओं में सीधे HCM-RIPA, Jaipur में ही रिपोर्ट करना होता हैं, जैसे- RAS, RPS, RAcS एवं अन्य। इनमे नियुक्ति ग्रहण संबंधित कागजी कार्यवाही प्रशिक्षण स्थल पर ही हो जाती हैं, विभागों में जाने की जरुरत नहीं रहती। यही पर संबंधित विभागों के प्रतिनिधि आ जाते हैं।

नियुक्ति ग्रहण करने के बाद में कुछ सेवाओं में तत्काल आधारभूत प्रशिक्षण शुरू हो जाता हैं। राज्य सेवाओं का प्रशिक्षण OTS, जयपुर में होता हैं। कुछ सेवाओं का प्रशिक्षण RIPA के अन्य केन्द्रों उदयपुर एवं कोटा में भी होता हैं। अधीनस्थ सेवाओं में कुछ विभागों के अपने प्रशिक्षण केंद्र होते हैं, जैसे तहसीलदार सेवा के लिए अजमेर में, सहकारिता अधीनस्थ सेवा के लिए झालाना में राईसेम आदि।

जिन सेवाओं में तत्काल प्रशिक्षण शुरू नहीं होता, उनमे फिल्ड में अटेच कर दिया जाता हैं या पोस्टिंग दे दी जाती हैं। ऐसी स्थिति में प्रशिक्षण के लिए बाद में बुलाया जाता हैं। 

UPSC के सापेक्ष तुलना 

UPSC के सापेक्ष तुलना करने पर हम पाते है कि मेडिकल एवं पुलिस वेरिफिकेशन की प्रक्रिया इंटरव्यू के समानांतर पूर्ण की जा सकती हैं। इसके लिए कार्मिक विभाग एवं  RPSC के मध्य समन्वय स्थापित करना होगा। इससे प्रक्रिया को तीव्र करने में सहायता मिलेगी। 

निष्कर्ष

इस प्रकार RAS में अंतिम परिणाम से लेकर नियुक्ति तक की प्रक्रिया में विभिन्न चरण शामिल हैं, जो कई मायनों में केन्द्रीय सिविल सेवाओं से भिन्न हैं। इसमें अत्यधिक समय लगने की समस्या काफी गंभीर हैं, जिसे कम किए जाने की आवश्यकता हैं।      

UPSC कोचिंगों में कंटेंट डेवलपर के रूप में कैरियर की समीक्षा

कंटेंट डेवलपर या कंटेंट राइटर कोचिंग क्षेत्र में स्थायित्व ग्रहण करने की और बढ़ता हुआ एक क्षेत्र हैं। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, इसमें कंटेंट डेवलप करना होता हैं। कोचिंग क्षेत्र में कई प्रकार के कंटेंट डेवलप किये जाते हैं, जैसे कि- स्टडी मटेरियल, करेंट अफेयर्स, डेली न्यूज़, मंथली मैगज़ीन, टेस्ट सीरीज, मॉडल आंसर इत्यादि। ये सब कंटेंट कोचिंग में पढने वाले छात्रों को उपलब्ध कराया जाता हैं।  कंटेंट एक प्राइमरी प्रोडक्ट की तरह भी कार्य करता हैं। इसी कंटेंट के आधार पर टीचर अध्यापन कार्य करवाता हैं, टेस्ट सीरीज करवाई जाती हैं और फिर मॉडल आंसर उपलब्ध कराये जाते हैं। इसी कंटेंट को एक्सप्लेनेशन विडियो बनाने के लिए भी प्रयुक्त किया जाता हैं। इस प्रकार कंटेंट कोचिंग इंडस्ट्री में एक प्राइमरी प्रोडक्ट की भूमिका निभाता हैं और कंटेंट बनाने वाले बेक एंड प्लेयर्स की भूमिका में होते हैं। कंटेंट डेवलपर की भूमिका टीचर के विपरीत होती हैं, वह छात्रों से सीधा जुड़ने के कारण फ्रंट एंड प्लेयर होता हैं। आजकल कोचिंग क्षेत्र अपनी गहरी जड़े जमा चूका हैं, कोटा, जयपुर, पटना, दिल्ली जैसे शहरों की अर्थव्यवस्था में कोचिंग क्षेत्र बड़ी भूमिका निभा रहा हैं। ऐसे में फ्रंट एवं बेक एंड दोनों की समान आवश्यकता महसूस की जा रही है। दोनों ही प्रोफाइल स्थायित्व ग्रहण कर रही हैं।

विभिन्न प्रश्नों के माध्यम से इस आलेख में मैं अपने अनुभव को साझा कर रहा हूँ।

आपने इसे ज्वाइन करने का निर्णय क्यों लिया?

मैं 2015 में अपनी ग्रेजुएशन पूर्ण होने के बाद से लगातार यूपीएससी द्वारा आयोजित होने वाली सिविल सेवा की परीक्षा दे रहा था। तैयारी के माध्यम से मैंने अपनी एकेडमिक स्किल्स में काफी वृद्धि की थी। मैंने तीन बार मुख्य परीक्षा में कटऑफ के बहुत नजदीक अंक प्राप्त किए थे। 2016 में मेरा इंटरव्यू कॉल 12 मार्क्स (718/730) से रह गया था। 2018 में मैं UPSC सिविल सेवा के प्रीलिम्स में ही फ़ैल हो गया था परन्तु RAS का प्रीलिम्स पास हो गया था। ऐसे में 2019 में आयोजित RAS की मुख्य परीक्षा देने के बाद मैं पूरी तरीके से फ्री था, तब मैंने सोचा था कि अपने एकेडमिक नॉलेज का उपयोग करना चाहिए।

इसके अतिरिक्त पारिवारिक वित्तीय दबावों के कारण भी रोजगार प्राप्त करना आवश्यक था। चूँकि कोचिंग वाले वेतन भी अच्छा प्रदान कर रहे थे, जो कि सरकारी जॉब के समान ही था। इसलिए मुझे यह बेहतर विकल्प लगा।

आपकी जोइनिंग किस प्रकार हुई?    

ज्वाइन करने का निर्णय लेने के बाद, मुझे एक दोस्त ने बताया कि एक नई कोचिंग यूथ डेस्टिनेशन के नाम से शुरू हुई हैं, उसने एक दिन विज्ञापन जारी किया था। इसके बाद मैं कोचिंग के ऑफिस गया और HR को अपना रिज्यूमे दिया, तीन दिन बाद उन्होंने मुझे टेस्ट के लिए बुलाया और कुछ सैंपल लिख कर लाने को कहा। अगले दिन सैंपल सबमिट करने के बाद कंटेंट हेड ने मेरी मुलाकात उच्चाधिकारी से करवाई, जिन्होंने इंटरव्यू लिया। इसके बाद मुझे अगले दिन से आने की बोल दिया, पर कहा कि अभी आप अपने आपको स्थायी नहीं माने, हम आपको सात दिन के ट्रायल पर रख रहे हैं। पर वे मेरे काम से पहले दिन ही खुश हो गये थे, तो उन्होंने अगले दिन कुछ दस्तावेज और बैंक डिटेल्स उपलब्ध करवाने को कह दिया था। इस प्रकार मेरी फर्स्ट जॉब की शुरुआत हुई। कहते हैं कि हमे अपने को पहली जॉब देने वालो को कभी नहीं भूलना चाहिए, इसलिए मैं भी HR मैडम पूजा शर्मा जी, कंटेंट हेड अतुल मिश्रा जी का बहुत-बहुत आभार व्यक्त करना चाहता हूं।

यूथ डेस्टिनेशन में मेरा वेतन सोलह हजार रूपये था, इसलिए द हिन्दू में प्रकाशित विज्ञापन के आधार पर मैंने विज़न में भी आवेदन कर दिया था। जहाँ पर लिखित परीक्षा एवं इंटरव्यू के बाद मेरा चयन हो गया था और मेरा वेतन भी वर्तमान से दोगुना (बत्तीस हजार रूपये) था। यूथ डेस्टिनेशन में 35 दिन जॉब करने के बाद, मैंने 27 अगस्त 2019 को विज़न में अपना कैरियर शुरू किया था।

विज़न में कार्य संस्कृति किस प्रकार की थी?

विज़न आईएएस कोचिंग फॉर्मल सेक्टर में कार्य करता हैं, जिसमे हरेक एम्प्लोयी को सभी विधिसम्मत सुविधा प्रदान की जाती हैं। ज्वाइन करते समय कॉन्ट्रैक्ट एक्ट के नियमानुसार ऑफर लैटर जारी किया जाता हैं, जिसमे वेतन, कार्यावधि एवं अन्य चीजों का वर्णन होता हैं। सप्ताह में 6 दिन प्रात: दस बजे से सांय छ: बजे तक कार्यदिवस होता था। सभी नेशनल होलीडे पर अवकाश होता था। बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम था। टेस्ट सीरीज और करंट अफेयर्स के लिए अलग-अलग टीम थी। मैं करेंट अफेयर्स वाली टीम में था।

टीम लीडर द्वारा रोजाना कार्य आवंटन किया जाता था। इसकी सूचना ईमेल के माध्यम से प्रदान की जाती थी। ऑफिस जाने के बाद इसे पूर्ण करना होता था। 1500 शब्दों का काम रोजाना के हिसाब से आवंटित किया जाता था। अगर किसी के टॉपिक पहले कम्पलीट हो जाते तो उसे उन्हें फिर से देखने को कहा जाता था ताकि किसी प्रकार की कोई त्रुटि न रहे। इस प्रकार वर्क लोड ज्यादा नहीं था। कभीकभार ही काम 1800 शब्दों तक पहुंचता था। कार्य कितना ज्यादा है या कितना कम है, यह मैटर नही करता, टीम और टीम लीडर का व्यवहार बहुत अधिक महत्वपूर्ण हैं। टीम लीडर का व्यवहार बहुत ही सपोर्टिव था, वे आगे पढाई के लिए भी प्रोत्साहित करते थे। मेरे टीम लीडर ने प्रारंभ के 3 महीने इंडस्ट्री स्टैण्डर्ड को सिखाने में बहुत ही ज्यादा मदद की। इसलिए मुझे वर्क कल्चर भी बहुत ही ज्यादा अच्छा लगा।

एक कंटेंट डेवलपर में किस प्रकार की स्किल्स होनी चाहिए?

एक कंटेंट डेवलपर में एकेडमिक और टेक्निकल स्किल्स होनी चाहिए। एकेडमिक स्किल्स में सब्जेक्ट का नॉलेज होना चाहिए ताकि प्रासंगिक चीजो को जोड़ा एवं आवश्यकतानुसार हटाया जा सके। उसी प्रकार टेक्निकल स्किल्स में MS-Word, Google Doc, गूगल इनपुट टूल और गूगल सर्च के बारे में जानकारी होनी चाहिए।

कंटेंट डेवलपर की भूमिका एवं उत्तरदायित्व क्या होती हैं?

एक कंटेंट डेवलपर टीम लीडर द्वारा आवंटित कार्य के संपादन के लिए उत्तरदायी होता हैं। कोचिंग क्षेत्र में किए जाने वाले प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं:

  • स्टडी मटेरियल तैयार करना और समय-समय पर अपडेट करना।
  • डेली न्यूज़, MCQ एवं अन्य अभ्यास पत्रक तैयार करना।
  • टेस्ट सीरीज तैयार करना और उनके मॉडल उत्तर तैयार करना। आदि

कंटेंट डेवलपर के कैरियर का भावी संभावना क्या हैं?

खुद कोचिंग का जीवनकाल बहुत छोटा होता है। इसलिए कोचिंग के बंद होने पर कंटेंट डेवलपर का कैरियर भी जोखिम में आ जाता है। इसलिए लॉन्ग टर्म के लिए इसकी सलाह नहीं दी जा सकती। हालांकि कंटेंट डेवलपर आगे फैकल्टी के रूप में पढाना शुरू कर सकता हैं, तब कैरियर को स्थायी बनाने के लिए अधिक विकल्प प्राप्त हो जाते हैं।

किसी अभ्यर्थी को कब ज्वाइन करना चाहिए?

जब कोई अभ्यर्थी कम मार्क्स से रह जाता है और फिर से कोशिस करना चाहता हैं। अगर उसे वित्तीय दबाव महसूस हो रहा है, तब वह ज्वाइन कर सकता हैं। ऐसी स्थिति में ज्वाइन करने से वह पढाई से जुड़ा रहेगा और वित्तीय सहायता भी प्राप्त होगी। जो अभ्यर्थी कम मार्क्स से रहते हैं, और अगले अटेम्पट में भी काफी टाइम होता हैं, तब रूम पर खाली रहने के बजाय ज्वाइन कर लेना चाहिए। इससे न केवल वित्तीय आवश्यकता पूर्ण होती है, बल्कि जॉब का अनुभव भी हो जाता है।

हालाँकि मैं फ्रेशर को ज्वाइन नहीं करने की सलाह दूंगा, क्योंकि उन्हें अभी अपने अटेम्पट देने चाहिए। एक बार पैसे के लालच में फंस गये तो बाहर निकलना मुश्किल हो जाएगा। जॉब करते वक्त इतना टाइम भी नहीं मिलता की ज्यादा पढाई कर सके।

निष्कर्ष 

कंटेंट डेवलपर पार्ट टाइम जॉब के लिए एक बेहतरीन विकल्प हैं। कुछ अच्छे संस्थानों में यह बेहतरीन करियर विकल्प प्रदान करता हैं। अभ्यर्थियों की डिमांड इस क्षेत्र में जॉब पाने के लिए बढ़ रही हैं, इसका फायदा फ्रीलांसर मोड़ में काम करवाने वाले उठा रहे हैं। इसलिए गैर-संगठित क्षेत्र के ऐसे अभिकर्ताओं को कानून के दायरे में लाने की आवश्यकता हैं। साथ हो कंटेंट डेवलपर को भी संगठित होकर इंडस्ट्री से बात करनी चाहिए। 

अवैध बजरी खनन पर रोक के प्रयास, उनकी सीमाएं और समाधान

राजस्थान ऐसा पहला राज्य नहीं है, जहां सुप्रीम कोर्ट ने बजरी खनन पर रोक लगाई हो। लेकिन दुसरे राज्यों में 2 साल के बाद ही पर्यावरणीय अनुमति के साथ इसे हटा दिया गया था, उदाहरण के लिए उत्तराखंड। लेकिन राजस्थान में राज्य सरकार की लापरवाही को इस स्थिति के लिए उत्तरदायी माना जा रहा है। अगर नियमानुसार खनन होता तो ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं होती। इसने समय पर रिप्लेसमेंट स्टडी रिपोर्ट पेश नहीं की। साथ ही राज्य सरकार, अवैध खनन पर भी कोई विश्वसनीय रोक नहीं लगा पाई है। अवैध खनन पर रोक नहीं होने के कारण माफिया बेलगाम हो गये हैं। माफियाओं द्वारा निर्मित जोखिमग्रस्त परिस्थितियों को पिछले आलेख में वर्णित किया गया हैं। अवैध वसूली में शामिल रहे उत्तरदायी सरकारी कर्मियों ने स्थिति को ऐसी जगह पहुंचा दिया हैं कि अब समस्या नासूर बन गई हैं। 

इससे पूर्व के 2 आलेख में हम अवैध बजरी खनन की समस्या के कारण एवं प्रभावों के बारे में विभिन्न आयामों की जानकारी दे चुके हैं। जबकि इस आलेख में हमारा ध्यान सीधे इस समस्या से पार पाने के लिए राज्य सरकार द्वारा किए गये प्रयासों एवं उनकी सीमओं का अध्ययन करने पर हैं।

1. अवैध खनन से जुडी विसंगतियों पर सरकार की प्रतिक्रिया और उनकी नियति

अवैध खनन से न तो राजस्व प्राप्त हो रहा है, और न ही पर्यावरण का निम्नीकरण रुक रहा है। इसलिए अवैध खनन से जुडी विसंगतियों को रोकने एवं समाप्त करने के लिए सरकार ने कई प्रतिक्रियाएँ व्यक्त की हैं, जो कि इस प्रकार हैं :

1.1. अवैध खनन पर रोक

अवैध खनन से जुडी विसंगतियों को रोकने के लिए सबसे पहले तो अवैध खनन पर रोक लगायी जानी चाहिए। इसके लिए जिला स्तर पर डीएम को जवाबदेह बनाया गया है। फिर भी इसके लिए प्रशासन द्वारा किये जाने वाले प्रयास नाकाफी हो रहे हैं। इसके बावजूद भी अवैध खनन, परिवहन एवं भंडारण पर रोक नहीं लग पायी हैं।

1.2. बजरी के वैध खनन को शुरू करवाने का प्रयास

राजस्थान सरकार ने खनन शुरू करवाने के लिए कई प्रयास किए हैं, इसके लिए किए गए विभिन्न उपाय इस प्रकार है :

  • फिर से नीलामी की तैयारी : राजस्थान सरकार ने 2018 में पुरानी नीलामी की खानों पर पर्यावरणीय अनुमति के अभाव में रोक लगा दी थी। ऐसे में सरकार ने फिर से नीलामी की तैयारी शुरू की थी। इस बार सरकार ने नीलामी के लिए 800 छोटे प्लाट राज्य भर में आवंटन के लिए चयनित किए। इनको लेकर आशा व्यक्त की जा रही थी कि इनका आकार छोटा होने के कारण पर्यावरण अनुमति में भी दिक्कत नहीं आएगी। ऐसे में नीलामी के बाद राज्य में बजरी खनन चालू हो सकेगा। लेकिन पुरानी नीलामी के मंशा पत्र धारकों द्वारा न्यायालय में चले जाने के कारण यह योजना अटक गई। [1]
  • निजी खातेदारी भूमि से खनन की अनुमति : सरकारी जमीन पर बजरी खनन पर रोक के बाद एक हेक्टेयर तक की निजी खातेदारी भूमि से खनन के लिए खान विभाग ने आवेदन आमंत्रित किये थे। परंतु इनमें से अधिकतर आवेदनों पर पर्यावरणीय अनुमति प्राप्त नहीं हो सकी। जहाँ कही अनुमति प्राप्त हुई, वहां खातेदारी भूमि की आड़ में नदी से खनन आरंभ हो गया। लोग नदी से बजरी भरकर लाते और खातेदारी भूमि के पास से रवन्ना लेकर आराम से परिवहन कर रहे थे। (अधिक विस्तृत 2.2 में)

1.3. बजरी पर रोक से विकास कार्य प्रभावित नही हो, इसलिए वर्क परमिट का प्रावधान 

सरकारी अवसंरचना विकास एवं निर्माण कार्यों में प्रयुक्त होने वाली बजरी के खनन एवं परिवहन के लिए वर्क परमिट जारी किए जाते हैं। ताकि बजरी खनन पर रोक की वजह से विकास कार्य अवरुद्ध नहीं हो। लेकिन वर्क परमिट समस्या के समाधान के बजाय अपने आप में ही अवैध खनन का एक और जरिया बन गया।

1.4. बजरी के विकल्प के रूप में एम-सैंड को प्रोत्साहन

  • एम सैंड को बजरी के विकल्प के तौर पर देखा गया। बजरी खनन पर रोक के बाद राज्य में एम सैंड के संयंत्र लगना शुरू हो गये हैं। एम सैंड उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए राज्य में राजस्थान प्रधान खनिज रियायत नियम 2017 में संशोधन प्रस्तावित है। राजस्थान निवेश प्रोत्साहन नीति 2019 में एम सैंड मैन्युफैक्चरिंग पर दी जाने वाली सहायता का विवरण है।
  • एम सैंड नीति की घोषणा [2]
  • कुछ जगह पर पत्थरों को पीसकर एम-सैंड तैयार की गई, लेकिन यह बजरी मकानों के कार्यों में ज्यादा लोकप्रिय नहीं हो पाई। 

बजरी का अवैध खनन, भंडारण एवं परिवहन और इनसे संबंधित परिणाम

इस समय राजस्थान में बजरी का खनन एवं परिवहन बहुत बडा मुद्दा बना हुआ है। राजस्थान में बजरी खनन पर न्यायालय द्वारा रोक लगाने का नतीजा अवैध गतिविधियों के प्रारंभ होने के रूप में सामने आया हैं।  बजरी खनन पर 16 नवंबर, 2017 को उच्चतम न्यायालय की रोक के साथ ही बजरी के भंडारण एवं परिवहन जैसी गतिविधियां भी अवैध घोषित हो गई। चूंकि विकास एवं निर्माण कार्य तो बजरी के बिना चल नहीं सकते, इसलिए मांग को देखते हुए आपूर्ति के कई अवैध चैनल खड़े हो गये। समय-समय पर मीडिया और जनता द्वारा साक्ष्य प्रस्तुत किए जाते हैं कि इन अवैध तरीकों को स्वंय प्रशासन द्वारा ही शह दी जा रही हैं। कहा जाता हैं कि इनके माध्यम से पुलिस वसूली करके कमाई करती हैं। बजरी के अवैध खनन में पुलिस की संलिप्तता एक पक्ष हो सकती हैं, लेकिन इसका एक और पक्ष भी हैं, जिसमे खुद पुलिस पर ही बजरी माफिया द्वारा हमले किए जाते हैं। कुल मिलाकर बात यह हैं कि अवैध बजरी खनन पर्यावरणीय चिंताओं के साथ-साथ कानून-व्यवस्था के लिए भी एक बड़ी चुनौती हैं। इसके कई आर्थिक, राजनीतिक एवं सामाजिक पहलु भी हैं। इस आलेख में अवैध बजरी खनन से जुड़े विभिन्न प्रभावों का बहुआयामी अध्ययन किया जाएगा। बजरी खनन के साथ पर्यावरणीय प्रभाव हमेशा जुड़े रहते हैं। लेकिन इस आलेख में मेरा ध्यान उन प्रभावों को बताना हैं, जो कि इस अवैधता के कारण प्रमुखता से हो रहे हैं।

इससे पूर्व पिछले आलेख बजरी खनन पर न्यायिक रोक : कारण एवं समाधान में बताया था कि राजस्थान में किस प्रकार बजरी का खनन अवैध घोषित हो गया। न्यायालय द्वारा लगाईं गई रोक और उनसे संबंधित विभिन्न घटनाक्रमों को भी उसमे बताया गया हैं। 

पृष्ठभूमि

दरअसल, राजस्थान में बजरी खनन को लेकर एक याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने नवंबर, 2017 में आदेश दिया था कि बिना पर्यावरण स्वीकृति के चल रही बजरी खानें बंद की जाए। इसके साथ ही बजरी खनन से जुड़े 82 लाइसेंसों को रद कर दिया था। उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि बिना पर्यावरणीय मंजूरी और अध्ययन रिपोर्ट के खनन की इजाजत नहीं दी जा सकती है। इसके बाद से राजस्थान में बजरी खनन पर रोक लगी हुई है। उच्चतम न्यायालय ने पर्यावरण मंत्रालय से कहा था कि वो पर्यावरणीय स्वीकृति का काम जल्द पूरा करे। लेकिन यह काम अभी भी चल रहा है। इसका नतीजा अवैध खनन के रूप में सामने आया। अवैध खनन पर रोक लगाने में प्रशासन की विफलता पर न्यायालय द्वारा अवमानना नोटिस तक जारी किये जा चुके हैं। 

राजस्थान के पाली जिले में सुमेरपुर और शिवगंज के बीच बहने वाली जवाई नदी में बजरी का अवैध खनन सबसे ज्यादा हो रहा है। इसके अलावा सुमेरपुर उपखंड क्षेत्र की सभी नदियों में अवैध बजरी खनन का कार्य जोरों पर है। इसके अलावा टोंक जिले में बनास नदी, सवाई माधोपुर जिले के मलारना डूंगर उपखंड के बिलोली नदी और श्यामोली बनास नदी के पास बजरी का अवैध खनन चल रहा है।

दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार बनास में आज भी 1800 से दो हजार ट्रोलियां रोजाना बजरी का अवैध परिवहन हो रहा है। एक ट्रॉली में 14 से 16 टन तक माल भरा जा रहा है। एक ट्रॉली की कीमत 1000 प्रति टन के हिसाब से 16 हजार तक पडती हैं। इस प्रकार बनास नदी में रोजाना 32 हजार टन अवैध खनन होता हैं, जिसकी कीमत ढाई करोड़ से ज्यादा है। रोज 80% बजरी दौसा की तरफ जाती हैै। बाकी 20% बजरी दूसरे इलाकों से निकल रही है, जो श्योपुर मध्यप्रदेश व टोंक जिले से होकर जयपुर की तरफ सप्लाई की जा रही है। [1]

इस स्तर पर खनन एवं परिवहन ऐसे समय पर हो रहा हैं, जब पूरा प्रशासन बजरी के अवैध खनन और परिवहन को रोकने के लिए विशेष अभियान चला रहा है। इससे समस्या का गंभीरता का अनुमान लगाया जा सकता हैं।

बजरी खनन पर न्यायिक रोक : कारण एवं समाधान

बजरी निर्माण कार्यों में उपयोग होने वाला प्रमुख खनिज हैं। इस समय पर तेजी से बढ़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था में निर्माण कार्य पर्याप्त मात्रा में हो रहे है। निर्माण कार्यों के अनुपात में ही बजरी की भी मांग बढ़ रही हैं। राजस्थान के बनास, मोरेल एवं अन्य नदियों जैसे कई बजरी प्राप्त करने के प्रमुख स्त्रोत हैं। राजस्थान के ये बजरी के स्त्रोत न केवल राजस्थान की बल्कि हरियाणा, उत्तर प्रदेश एवं दिल्ली की बजरी की आवश्यकताओं को काफी हद तक पूर्ण कर सकते हैं। लेकिन राजस्थान में बजरी खनन पर रोक लगी हुई हैं। चूंकि निर्माण कार्य तो बंद हो नहीं सकते, इसलिए इनकी मांग को पूर्ण करने के लिए अवैध तरीके से बजरी का खनन एवं परिवहन किया जा रहा हैं। इस अवैध तरीके से बजरी की आपूर्ति ने एक माफिया-अफसर-राजनेताओं के कुख्यात गठजोड़ को जन्म दिया हैं। इससे रोक का कोई फायदा नहीं निकल रहा हैं। एक तरीके से सरकार की नाक के नीचे से अवैध खनन, भंडारण एवं परिवहन हो रहा हैं। 

राजस्थान में बनास सहित अन्य नदियों में बजरी खनन 16 नवंबर 2018 से सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशानुसार बंद हैं। कुछ जगहों पर पहले से ही बंद हैं, जैसे- नागौर, बीकानेर। इस आलेख में हम उन कारणों की पड़ताल करेंगे, जिनके कारण ऐसी परिस्थितियां निर्मित हुई हैं।

पृष्ठभूमि

दरअसल केंद्र सरकार ने खान एवं खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 के तहत बजरी जैसे कुछ खनिजों को लघु खनिज (Minor Mineral) घोषित किया हैं, जिनके लिए शक्तियों को राज्य सरकार को हस्तांतरित किया गया हैं। इन शक्तियों का प्रयोग करते हुए राजस्थान सरकार बजरी खनन के लिए खानों का आवंटन करती हैं। चूंकि खनन के परिवेश पर प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव होते हैं, इसलिए खनन शरू करने से पहले पर्यावरण विभाग से अनुमति की भी आवश्यकता होती हैं। पर्यावरणीय अनुपालन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने वर्ष 2010 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण का भी गठन किया हैं। चूंकि बजरी खनन नदी के पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित करता हैं, इसलिए पर्यावरणीय कारणों से इसके खनन को विनियमित किया जाता हैं। अथार्त किसी खान विशेष की पृष्ठभूमि, खनन के बाद वापस बजरी आने की संभावना एवं समयावधि, संपार्श्विक परिवेश पर प्रभाव आदि पहलुओं को ध्यान में रखते हुए खनन की अनुमति दी जाती हैं। राजस्थान में खानों का आवंटन करने के बाद इस प्रक्रिया के पालन में चुक हुई और न्यायालय द्वारा रोक लगा दी गई। चलिए इस संदर्भ में हुए घटनाक्रमों को समझते हैं।

1. दुर्गा शक्ति नागपाल वाद, 2013 और बिना EC बजरी खनन पर रोक

दुर्गा शक्ति नागपाल उत्तर प्रदेश कैडर में एक आईएएस अधिकारी थी, जिन्हें अगस्त 2013 में गौतम बुध नगर एसडीएम के पद पर रहते हुए बजरी माफिया पर कार्रवाई के कारण शासन द्वारा निलंबित कर दिया गया था। एनजीटी ने इस मामले पर संज्ञान लेते हुए 5 अगस्त 2013 को एनजीटी बार एसोसिएशन की याचिका पर संपूर्ण देश में बिना पर्यावरणीय मंजूरी के बजरी खनन पर रोक लगा दी। NGT ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत कार्यवाही करते हुए इस आदेश को जारी किया तथा जिले के पुलिस अधिकारियों को इसका अनुपालन सुनिश्चित कारने के लिए अधिकृत किया। NGT का मानना हैं कि बजरी खनन संबंधित क्षेत्र की पारिस्थितिकी को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता हैं। [1]

इस निर्णय में NGT ने दीपक कुमार बनाम हरियाणा सरकार वाद में उच्चतम न्यायालय के निर्णय (फरवरी,2012 ) की भी पुष्टि की, जिसमे पांच एकड़ से कम भाग में खनन करने के लिए भी सक्षम अधिकारीयों से पर्यावरणीय अनुमति प्राप्त करने की बात कही गई थी। इस आदेश के साथ ही पर्यावरणीय अनुमति के बिना बजरी खनन बंद हो गया।

मन में एक संदेह यह रहता हैं कि जब 2012 में ही उच्चतम न्यायालय ने बजरी के खनन पर रोक लगा दी थी, तो 2013 में NGT को फिर से प्रतिबन्ध लगाने की जरुरत क्यों पड़ी। इसका उत्तर यह हैं कि बजरी राज्य द्वारा नियंत्रित खनिज हैं, इसलिए NGT के निर्णय में इसका सभी खनिजो, राज्यों एवं नदियों तक विस्तार किया गया।

जयसिंहपुरा गाँव का अतिक्रमण विरोधी प्रदर्शन

धरना प्रदर्शन को लोकतंत्र में अपनी मांग मनवाने का सबसे सशक्त एवं शांतिपूर्ण माध्यम माना जाता हैं। हालांकि सरकार द्वारा ऐसे प्रदर्शनों को ज्यादा महत्त्व देने के परम्परा कमजोर पड़ी हैं। जैसे कि दिल्ली में किसान अपनी मांगों के लिए 25 नवंबर से प्रदर्शन कर रहे हैं,लेकिन कोई सार्थक परिणाम नहीं आया हैं। फिर भी धरना प्रदर्शन ही वह हथियार हैं, जो अकर्मण्य एवं उदासीन शासन व्यवस्था को गहराई तक प्रभावित करता हैं। ऐसी ही एक घटना एक दिन मैंने सवाई माधोपुर के अखबार में पढ़ी। जो इस प्रकार थी कि खण्डार तहसील क्षेत्र के जयसिंहपुरा गांव (ग्राम पंचायत गोठड़ा) के लोग 11 दिन से धरने पर बैठे हुए हैं। इनकी मांग थी कि चरागाह भूमि पर हो रहे अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई की जाए। यह धरना 4 जनवरी से शुरू हुआ था और 12 दिन तक जारी रहा था। शुरू में तो प्रशासन ने कोई कार्यवाही नहीं की, लेकिन जब धरना लंबा चलता हुआ दिखाई दिया तो प्रशासन द्वारा समस्या समाधान के लिए विधिवत प्रक्रिया शुरू की गई। लेकिन यह अपने आप में ही एक अनूठा उदाहरण था, जिसमे अतिक्रमण जैसी समस्या के लिए लोग स्वंय आगे आ रहे थे। सरकारी भूमि पर अतिक्रमण एक समस्या हैं, और किसी ने इसके खिलाफ एकजुट होकर पहल करने का साहस जुटाया हैं। यह सब सोचने पर मजबूर करने वाला था। 

हम इस आलेख में इस धरने में हुए घटनाक्रमों के माध्यम से अतिक्रमण की समस्या से जुडी जटिलताओं को समझाने की कोशिश करेंगे। साथ ही अतिक्रमण के लिए उत्तरदायी कारणों, उत्तरदायी व्यक्तियों की भूमिका एवं समाधानों पर भी विचार करेंगे।

मौजूदा घटनाक्रम : 

दरअसल, 4 जनवरी 2021 को सुबह करीब 8 बजे जयसिंहपुरा के दर्जनों ग्रामीण तहसील कार्यालय खंडार पर ज्ञापन देने पहुंचे थे। यहां ग्रामीणों द्वारा खंडार तहसीलदार को ज्ञापन सौंपकर गांव की चरागाह, सिवायचक व आबादी भूमि से अतिक्रमण हटाने की मांग की गई। जिस पर प्रशासन द्वारा उन्हें कार्रवाई का आश्वासन दिया गया। इससे एक दिन पूर्व भी इस मामले में उनके द्वारा प्रशासन को ज्ञापन दिया गया था। और आज भी कार्रवाई के लिए प्रशासन की कोई गंभीरता नजर नहीं आ रही थी। ऐसे में देर शाम तक भी सुनवाई नहीं होने पर ग्रामीण भड़क गए और तहसील कार्यालय में ही करीब 30 लोग धरने पर बैठ गए। इनका कहना था कि जब तक संपूर्ण सरकारी जमीन से अतिक्रमण नहीं हटाया जाता है, तब तक वे धरनास्थल से किसी भी सूरत में नहीं उठेंगे।

अब बात यह हैं कि यह समस्या तो कई जगह देखने को मिल जाती हैं फिर इनकी समस्या में क्या गंभीरता थी, जो इन्होने इतना बड़ा कदम उठाया।

1. आइये इस मामले की पृष्ठभूमि को समझते हैं 

इस मामले को हम शुरू से ही समझते हैं।

  • सरकारी भूमि पर अतिक्रमण : ग्रामीणों ने बताया हैं कि वे पिछले 15 सालों से लगभग 150 बीघा चरागाह, शिवायचक व आबादी भमि पर अतिक्रमण से परेशान हैं। सरकारी खाली भूमि की अनुपलब्धता के कारण उन्हें मवेशी चराने में परेशानी का सामना करना पड़ता हैं। जबकि अतिक्रमियों द्वारा उस पर खेती की जा रही हैं या घर बना लिए गये हैं।
  • भूमाफियाओं द्वारा सरकारी भूमि पर ही प्लाट काट कर बेचना : यह गांव खंडार तहसील मुख्यालय से थोड़ी ही दुरी पर हैं। इसलिए शहरी क्षेत्र के आसपास रहने को इच्छुक लोगो को भूमाफियाओं द्वारा इन जमीनों पर प्लाट काट कर बेच दिए गये।
  • ग्राम पंचायत द्वारा पट्टे जारी कर देना : जयसिंहपुरा गाँव, गोठड़ा ग्राम पंचायत के अंतर्गत आता हैं। ऐसे में अतिक्रमियों को गोठड़ा ग्राम पंचायत से आसानी से अवैध पट्टे भी प्राप्त हो गये। जब जयसिंहपुरा के पुरे ग्रामीण इन अतिक्रमियों के विरुद्ध हैं तो उन्हें किस की शह प्राप्त हो रही हैं, तो इसका जवाब यहाँ से प्राप्त किया जा सकता हैं। हो सकता हैं, इसमें दोनों गांवों की राजनीतिक प्रतिद्वंदिता का आयाम भी शामिल हो।  
  • शिकायत : जब इन लोगो को फर्जी पट्टे भी प्राप्त हो गये तो जयसिंहपुरा के लोगो ने प्रशासन से शिकायत की। 
  • संपूर्ण भूमि का सीमांकन : प्रशासन द्वारा वर्ष 2011 में संपूर्ण भूमि का सीमांकन करवाया गया। 
  • फर्जी तरमीम का खुलासा :  वर्ष 2011 में राजस्व विभाग के तत्कालीन अधिकारियों द्वारा गांव की संपूर्ण चरागाह व सिवायचक भूमि का सीमाज्ञान करवाकर रिपोर्ट तैयार की गई थी। जिसमें कई खातेदारों का मौके पर कब्जा काश्त ही नहीं पाया गया था। जबकि राजस्व विभाग के तत्कालीन अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा बिना कब्जा काश्त भूमियों पर ही कई फर्जी तरमीम भी की गई थी। इन सबका सीमाज्ञान के दौरान खुलासा हो गया था।
  • न्यायालय द्वारा फर्जी तरमीम खारिज : राजस्व न्यायालय द्वारा इनमे से कई फर्जी तरमीम को खारिज कर दिया गया।
  • राजस्व विभाग द्वारा बेदखली की कार्यवाही नहीं करना : राजस्व न्यायालय द्वारा फर्जी तरमीम खारिज होने के बावजूद राजस्व विभाग के अधिकारियों की नाकामी के चलते मौके पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है।
  • भूमाफियाओं के हौसले बुलंद/प्रोत्साहन : कोई कार्यवाही नहीं होने से भूमाफियाओं को प्रोत्साहन मिला और उन्होंने फिर से निरस्त तरमीम वाली भूमि पर ही प्लाट काटकर बेच दिए। ग्रामीणों का यह भी मानना हैं कि अतिक्रमण राजस्व कर्मियों की भूमाफियाओं के साथ मिलीभगत के कारण हुआ है।
  • शिकायत पर कार्यवाही नही होना : इनके विरुद्ध जयसिंहपूरा गाँव के लोगों ने बार-बार प्रशासन को अपनी शिकायत प्रस्तुत की। अब तक करीब एक दर्जन से अधिक बार प्रशासन को ज्ञापनों के माध्यम से शिकायत कर चुके है, लेकिन प्रशासन द्वारा हर बार अतिक्रमण हटाने का आश्वासन देकर उनके साथ धोखा किया जाता रहा है। प्रशासन द्वारा कार्यवाही के लिए कभी भी कोई गंभीरता नहीं दिखाई गई। ऐसे में पूरे गांव में प्रशासन के खिलाफ भारी आक्रोश व्याप्त है।

इस प्रकार इस समस्या की दीर्घकालिक प्रकृति के कारण इस आन्दोलन की पृष्ठभूमि निर्मित हुई।