हमारे इर्द-गिर्द के नवीन सामान्य रुझानों का अनुरेखण

किसी भी समाज, संगठन या देश में अधिकतर गतिविधिया तयशुदा नियमो के तहत होती है। लेकिन कुछ गतिविधिया अगर मानक प्रक्रिया के अनुरूप नहीं होती तो उसे हम अपवाद मानकर छोड़ देते है। लेकिन जब इन अपवादों की आवृति बढ़ जाती है तो ये सामान्य सी चीजे बन जाती है।  फिर समय और परिस्थितियों की मांग होती है कि इन नई सामन्य चीजों को व्यवस्थित किया जाए। ताकि इनसे किसी प्रकार की अव्यवस्था नहीं फैले। वर्तमान में ऐसी बहुत सारी चीजे सभी क्षेत्रो में देखी जा रही है। सरकार की इन पर तीव्र निगाहे है ताकि लोगो को गतिशील विश्व के साथ सर्वोत्तम अभिशासन उपलब्ध कराया जा सके।  ये आम बाते राजनीति,अर्थव्यवस्था,समाज और संस्कृति सभी में पाई जाती है। तकनीकी विकास, जनसंख्या वृद्धि और वैश्वीकरण के विभिन्न प्रभावों के कारण ये नई सामन्य चीजे उत्पन्न हो रही है।

इस आलेख में हम इन नई सामान्य चीजों को क्षेत्रवार तलाशने की कोशिश करेंगे।

1. प्रशासन 
निचले स्तर पर रिश्वत दिया जाना सहूलियत के लिए सही समझा जाने लगा है। वही ऊपर के स्तर पर फेवर के बदले फेवर का चलना आम बात हो गई है।

2. राजनीति 
चुनावो को किसी भी तरीके से जीतना सामान्य उद्देश्य हो गया है, बाकी सिद्धांतो को संभालने के लिए धरना प्रबंधन सेल है। जमीनी कार्यकर्ताओ को साम-दाम -दंड - भेद की नीति पकड़ा दी गई है।

3. अर्थव्यवस्था 
अर्थव्यवस्था में क्रोनी कैपिटलिज्म का प्रचलन आम होता जा रहा है।

4. मीडिया 
मीडिया पत्रकारिता के उद्देश्य को छोड़कर बिज़नेस इकाई हो गए है। कई अख़बार और टीवी चैनल राजनितिक दलों के प्रवक्ता बन गए है।

5. समाज 
समाजो में व्यक्तिवाद को महत्व मिल गया है और परम्परागत संस्थाओ और उनके मूल्यों की अपेक्षा आम बात हो गई है।

6. संस्कृति 
संस्कृति में बाह्य तत्वों को बिज़नेस जगत द्वारा मान्यता दिलाने की कोशिश आम बात हो गई है।

7. डिप्लोमेसी 
सभी देशो के साथ रिश्तो को गहरे करना आम चलन में है। देश इसे शीर्ष स्तर से निम्न स्तर के संबध्दता में बदलना चाहते है।

8. शिक्षा और रोजगार 
पढ़ा लिखा लेकिन बेरोजगार आदमी आजकल के समाजो में आम बात हो गई। नौकरी के लिए कई तरह के फर्जीवाड़ा का प्रचलन और उसके लिए किया जाने वाला विरोध का बेअसर होना भी सामान्य सी बात है।

9. सिनेमा 
सिनेमा में दर्शको को कैसे भी करके खींचने के लिए प्रयोग हो रहे है। इसलिए पुराणी अवांछित चीजे अब सामान्य बाते हो गई है। जैसे दारु सिगरेट गाली ,अश्लीलता आदि।

10. पब्लिकेशन 
पब्लिकेशन में तुलनात्मक रूप से लिखने वाले तो बढ़े ही है। लेकिन लक्ष्यित दर्शको/ पाठको का आभाव सामान्य सी बाते है।

खंड II

किस दिशा में ले जा रहे है ये न्यू नॉर्मल्स 
अगर हम इन नई सामन्य चीजों के पैटर्न का अवलोकन करे तो पता चलता है कि अब दुनिया खुल रही है, लोग अपनी इच्छाओ को दबाकर नहीं रख रहे है, अपनी इच्छाओ की पूर्ति के प्रयास भी कर रहे है। यह सब व्यक्तिवाद को समर्थ देने वाले बाजार आधारित मूल्यों की बदौलत भी हो रहा है। लोगो की आदतों में गंभीरता का आभाव बाजार के लिए उर्वर भूमि तैयार करता है।

आगे क्या करने की जरुरत है 
लोगो को या किसी को भी रोकने की जरुरत नहीं है। बल्कि हमे प्रशासन को चुस्त बनाना है ताकि कोई भी नुकसान इनकी गतिविधियों के माध्यम से नहीं हो। लोगो का इस तरह से अपने अरमानो को पूरा करना स्थापित संस्थाओ की सुरक्षा के हित में बहुत जरुरी है। हमे अपने नियमो और नैतिकताओ को इसे अनुरूप कर लेना चाहिए।

इस प्रचलन के प्रभाव 
अधिकतर प्रभाव सकारत्मक ही होंगे। व्यक्तिगत अधिकारों क बल पर आदमी अपना विकास बेहतर क्रियान्वित कर सकता है। अगर कोई नुकसान हो रहा है तो वो यह कि लोगो की उत्पादकता पहले की तुलना में कम होती जा रही है। लेकिन यह कोई मुद्दा नहीं है क्योकि आजकी पीढ़ी के पास लक्ष्य भी बढ़े नहीं है।

निष्कर्ष : 
इन नई सामान्य चीजों पर दृष्टि होना बहुत ही जरुरी है। ताकि इनकी दिशा को पकड़ के इनके प्रभावों को दोहित कर सके। वही इनकी नकारात्मकताओं को रोक सके। इसके लिए सभी संस्थाओ ने संस्थागत प्रयास शुरू कर दिए है जहां पर संक्रमण को लेकर अध्ययन किया जाता है और रणनीति बनाई  जाती है। लोगो को भी नई चीजों के साथ खुद को ढल लेना चाहिए।  

UPSC सिविल सेवा मुख्य परीक्षा 2018 निबंध प्रश्न पत्र

सिविल सेवा मुख्य परीक्षा 2018, निबंध प्रश्न-पत्र का इस आलेख में सटीक दृष्टिकोण बताया जा रहा हैं। किसी निबंध के मॉडल उत्तर में किन-किन पक्षों को शामिल किया जाना चाहिए तथा सम्बन्धित विषय पर क्या संतुलित दृष्टिकोण होना चाहिए, इन सबको आप इस आलेख में देख सकते हैं। इसी तरह की हमारी पहल को गत वर्ष भी काफी सराहा गया था।
खंड I
  1. जलवायु परिवर्तन के प्रति सुनम्य भारत हेतु वैकल्पिक तकनीकियां (Alternative Technologies for a Climate Change resilient india)
  2. एक अच्छा जीवन प्रेम से प्रेरित तथा ज्ञान से संचालित होता है (A good life is one inspired by love and guided by knowledge)
  3. कही पर भी गरीबी हर जगह की समृद्धि के लिए खतरा है (Poverty anywhere is a threat to prosperity everywhere)
  4. भारत के सीमा विवादों का प्रबंधन - एक जटिल कार्य (Management of Indian border disputes - a complex task)
      खंड II
      1. रूढ़िगत नैतिकता आधुनिक जीवन का मार्गदर्शक नहीं हो सकती है। (Customary morality can not be a guide to modern life)
      2. अतीत मानवीय चेतना तथा मूल्यों का एक स्थायी आयाम है। (The past is a permanent dimension of human consciousness and values)
      3. जो समाज अपने सिधान्तो के ऊपर अपने विशेषाधिकारों को महत्व देता है, वह दोनों से हाथ धो बैठता है। (A people that values its privileges above its principles, loses both is defeated by both of them.)
      4. यथार्थ आदर्श के अनुरूप नहीं होता है , बल्कि उसकी पुष्टि करता है। (Reality Does not conform to the ideal, but confirms it.)

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          खंड I के निबंधों से संबंधित सही दृष्टिकोण

          1.1.जलवायु परिवर्तन के प्रति सुनम्य भारत हेतु वैकल्पिक तकनीकियां।
          (Alternative Technologies for a Climate Change resilient india)

          जलवायु परिवर्तन के नुकसान देशों को भारी जान माल की क्षति कर रहे है। वैश्विक स्तर पर सभी देशो द्वारा इन नुकसानों का न्यूनीकरण करने पर ध्यान दिया जा रहा है। यह मुद्दा कई अंतर्राष्ट्रीय मंचो के एजेंडा का हिस्सा रहा है। सेंडाइ फ्रेमवर्क हो या फिर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन से संबंधित क्षेत्रीय आयोजन हो। सभी में इस पर लक्ष्यबद्ध तैयारी को प्राथमिकता देने की बात कही गई है। भारत ने भी इन प्लेटफार्म की सदस्यता ली है और इनके लक्ष्यों का अंगीकरण भी किया है ताकि जलवायु परिवर्तन संबंधित जोखिमो को निम्नीकृत किया जा सके। 
          • इन तकनीकियों को अपनाने की क्यों जरुरत है -  Explain india's Vulnerability
          • इस सिलसिले में परम्परागत तरीको को अनुकूलित किए जाने की आवश्यकता है वही उनके जलवायु निम्नीकरण स्वभाव को न्यूनीकृत भी किया जाना चाहिए। इसके लिए निम्न तकनीकि उपयोगी हो सकती है -  Explain INDC and other technologies
          • लेकिन ये तकनीकियां मानस पटल पर ही रहेगी अगर हम इन्हे जमीं पर उतारने में काबिल नहीं हो सके तो , इसके लिए हमे इनके लिए तकनिकी और वित्त संबंधित जरुरतो की पूर्ति पर ध्यान देना होगा। अब इनके समाधान के लिए हम प्रयासरत तो है ही लेकिन सीमाओं को देखते हुए अधिक व्यवहार्य समाधानों पर विचार करने की जरुरत है। - Affordable and accessible solution
          • वैकल्पिक तकनीकियों के निम्न फायदे हो सकते है - ये निवेश का जरिया बनेगी, लोगो के लिए रोजगार के अवसर उत्पन्न होंगे और हरित अर्थव्यवस्था का आधार निर्मित होगा। अन्य फायदे तकनीकी के नवाचार से जुड़े हो सकते है।  
          • वैकल्पिक तकनीकियों के निम्न नुकसान हो सकते है- महँगी होगी , परम्परागत ज्ञान की उपेक्षा होगी या फिर उसके लाभ से वे वंचित रह सकते है। 
          निष्कर्ष : में कहा जा सकता है कि अत भारत को इन तकनीकियों को अपनाने पर ध्यान तो देना ही चाहिए , लेकिन इससे जुड़े सकारत्मक और नकारत्मक मुद्दों पर भी ध्यान दे लेना चाहिए। 

          1.2.एक अच्छा जीवन प्रेम से प्रेरित तथा ज्ञान से संचालित होता है।
          (A good life is one inspired by love and guided by knowledge)

          एक अच्छे जीवन की प्रकृति पर हमेशा विमर्श चलता रहता है। कुछ लोग इसका आंकलन पहले धन के आधार पर करते थे लेकिन हम देखते है कि धन रिश्तो में प्रेम का आभाव बना देता है और जीवन नीरस  या यांत्रिक अधिक प्रतीत होता है, वही गरीब आदमी पारिवारिक प्रेम की बदौलत ख़ुशी से अपना जीवन गुजारता है। लेकिन गरीब आदमी शिक्षा जैसे संसाधनों तक सीमित पहुंच के कारण अपने जीवन की गुणवत्ता को निम्नतर ही रखता है। प्रेम खाने को थोड़ी देता है। इसके लिए तो पैसा चाहिए जो कि ज्ञानार्जन के माध्यम से किए गए कुछ आर्थिक कार्यो पर निर्भर करता है। इसलिए हम देख सकते है की अच्छा जीवन अधिक प्रेम से भी प्रेरित नहीं होता, न ही अधिक ज्ञान से संचालित होता है। इसके लिए सभी गतिविधियों का समायोजन चाहिए। एक दूसरे को समय देना आना चाहिए। धनार्जन भी जरुरी है।  
          • जीवनशैली में प्रेम का महत्व : संतुलित प्रेम और प्रेम की अधिकता बिगड़ देती है और बच्चे कॅरिअर खराब कर लेते है , उसके बाद केवल प्रेम ही अच्छे जीवन का आधार नहीं है। 
          • ज्ञान से संचालित : ज्ञान से जीवन शैली की गुणवत्ता बढ़ती है। वः सही मायने में अच्छे जीवन की तरफ जाता है , लेकिन ज्ञान तर्क पर आधारित होता है जो जीवन को नीरस बना देता है। 
          • संतुलन : अच्छे जीवन के लिए ज्ञान और प्रेम दोनों में संतुलन होना चाहिए। 
          • अच्छे जीवन की लोकप्रिय धारणा और उस पर ये दोनों मानदंड : मानव विकास सूचकांक के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और आय। ऐसे में धनार्जन पर ध्यान देना भी जरुरी है। जिसकी बदौलत सामाजिक न्याय सुनिश्चित किया जा सकता है। 
          निष्कर्ष : अच्छे जीवन का पैमाना विविधता लिए हुए है जो अलग अलग चीजों पर निर्भर करता है. ये दोनों इसका बड़ा हिस्सा है। जिन की उपलब्धता पर हमे ध्यान देना चाहिए।  
          फैक्ट : Happiness index, HDI, Social justice based life

          1.3.कही पर भी गरीबी हर जगह की समृद्धि के लिए खतरा है।
          (Poverty anywhere is a threat to prosperity everywhere)

          आधुनिक सभ्य समाज में असमानता पर प्रश्न काफी दिनों से खड़ा किया जाता रहा है। जिसमे बहुआयामी गरीबी को जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी खत्म करने की बात कहि जाती है। सङ्ग में भी इस चीज के लक्ष्य निर्धारित किए गए है। जिसके लिए सभी देशो की सरकार प्रयासरत है। उसके अलावा कई निजी संस्थाए भी कार्यरत है। इस तरह के बहुआयामी प्रयासों वाले गरीबी के प्रश्न को अलगाव का विषय नहीं मानने की अवधारणा है। यह कही न कही दूसरे क्षेत्रो को भी प्रभावित करती है। 
          • गरीबी कैसे दूसरे क्षेत्रो को प्रभावित करती है - लोकतत्र कमजोर होता है, सही नीतिया नहीं बनती, जिससे शोषण या तो बढ़ता है या फिर सम्बोधित नहीं होता। अर्थव्यवस्था को भी शिथिल करती है , मांग का अभाव, उत्पादन और आगे रोजगारो को प्रेरित नहीं करता है।  सांस्कृतिक तोर पर भी विषमता उत्पन्न होती है जो देश के मूल्यों का विभाजन कर देती है , जिसकी वजह से समान रूप से लोगो का सम्बोधन रुक जाता है। समाज में भी व्यक्तिवाद जल्दी से घर कर जाता है।  संकीर्णतम विचारधाराओ को उर्वर भूमि मिल जाती है। 
          • लेकिन समृद्धि भी गरीबो के लिए मुश्किलें खड़ी करती है। जो आज के हालत में देख सकते है। धनि लोग उनके हको पर कब्जा कर रहे है और अपने नैतिक मूल्यों को ढीला कर रहे है। उन्हें विस्तापित करती है। 
          • उदाहरण जैसे नक्सलियों की गरीबी पुरे देश की सुरक्षा के लिए खतरा है, जिसके बदौलत निवेशकों की आनाकानी इस असुरक्षा को बढाती है।  
          • उठाये जाने वाले कदम- ताकि कोई क्षेत्र गरीब छूटे ही नहीं और अगर रह भी जाए तो उसे कैसे ऊपर लाये। 
          निष्कर्ष : हमारी संस्कृति लोगो को साथ में लेकर चलने की है। कोई पीछे छूट गया तो उसे साथ में लाना चाहिए। आरक्षण इसका उदारहण है। इसके अलावा आमिर लोगो को अपना न्य वर्ग बनाने की बजाय वर्गहीन समाज को बढ़ावा देना चाहिए।

          1.4.  भारत के सीमा विवादों का प्रबंधन - एक जटिल कार्य ।
          (Management of Indian border disputes - a complex task)

          भारत एक बड़ी सीमा रखा का धनी है जो भौगोलिक रूप से समुद्र, रेगिस्तान, पहाड़ ,बर्फ, नदी-नाले, कीचड़ आदि के द्वारा बनती है। इसके अलावा यह सीमा कई देशों के साथ साझा होती है ,जिसमें से अधिकतर के साथ संबंध सही नही रहे है। ऐसे में यह चुनौती और बढ़ जाती है। इस सीमा के प्रबंधन के लिए बहुत सारी सुरक्षा एजेंसी भी कार्यरत है। जिसके कारण इसमें कोर्डिनेशन भी मुद्दा बना रहता है।  अंतरराष्ट्रीय सीमा घुसपैठ, तस्करी, चरमपंथियों के आवागमन  संबंधित मुद्दों से जूझ रही है। वही सैन्य प्रबंधन के लोगो को खराब दशा में कार्य करना पड़ता है। दूसरे देशो के सैन्य दलों के साथ कई बार मुठभेड़ की घटनाए भी होती है। 
          • सीमा विवादों की प्रकृति और उसकी वजह से क्या मुद्दे खड़े होते है। 
          • सीमा विवादों के समाधान क्या हो सकते है - क्षमता निर्माण, अवसंरचना निर्माण। राजनयिक प्रयास 
          • समाधानों की सीमाए क्या है - क्यों ये प्रभावी नहीं हो पा रहे है। 
          • सीमा विवादों का सुलझना अर्थव्यवस्था के हितो में जरुरी है। इसके लिए आगे की राह कैसी होनी चाहिए - न केवल सीमा विवादों का सुलझना चाहिए , बल्कि क्षेत्रीय एकीकरण के लिए कार्यकरना चाहिए। जिसका लाभ सभी को होगा। भारत की अफगानिस्तान तक पहुंच बढ़ेगी।  रक्षा बजट में कमी आएगी। मानव विकास में इजाफा होगा। 
          निष्कर्ष : हम दोस्त बदल सकते है लेकिन पडोसी नहीं।  इसलिए हमे इन संबंधो को सुधारने की बुनियाद सीमा विवादों के समाधान पर ध्यान देना चाहिए। जिससे हम देश के किसी भी हिस्से में होने वाली अनिश्चितताओं को रोक सके। क्षेत्र को आधुनिक मूल्यों की शक्ल दे सके, कब तक औपनिवेशिक विरासत से जूझते रहेंगे। 



          खंड II के निबंधों से संबंधित सही दृष्टिकोण

          2.1.रूढ़िगत नैतिकता आधुनिक जीवन का मार्गदर्शक नहीं हो सकती है।
          (Customary morality can not be a guide to modern life)

          भारतीय समाज विकास के आसमान स्तरो पर रहा है। जिसमे कुछ लोग आधुनिक मूल्यों को जल्दी ही प्राप्त कर लिए और कुछ लोग अभी भी परम्परागत मूल्यों के चिपके हुए है। इसके कारण समाज की गतिशीलता में विसंगति देखी जाती है। आधुनिक मूल्य वालो को प्राचीन वाले बिगड़े हुए मानते है, वही प्राचीन वालो को आधुनिक मूल्य वाले लोग पिछड़े हुए मानते है। अब हमे इसी पर विचार करना है कि वर्तमान आधुनिक जीवन में कोनसे मूल्य सही है और कोनसे गलत।  

          किसी भी समाज, संस्था या देश का संचालन कुछ नियमो के माध्यम से होता है। ये नियम उस समाज के उद्देशो की पूर्ति से जुड़े होते है। हमारा व्यवहार अगर उन नियमो के अनुरूप है जो संगठन के लक्ष्यों की पूर्ति में सहायक है तो हमे नैतिक समझा जाएगा। वही हमारा व्यवहार अगर उन नियमो के अनुरूप नहीं है या संगठन के लक्ष्यों में बाधा बनता है तो हमे अनैतिक समझा जायेगा। जैसे जैसे समय बदलता है, यह नैतिकता बदलती जाती है। स्थान के अनुसार भी यह बदलती है। 
          • आधुनिक समाज की प्रगति में रुकावट बने परंरागत मूल्य :  हमारा समाज आगे बढ़ गया। लेकिन कुछ मूल्य इस समाज को आधुनिक दौड़ में शामिल नहीं करा सके, जिनमे महिलाओ की शिक्षा से संबंधित प्रमुख है।
          • आधुनिक समाज के आधुनिक मूल्यों द्वारा उत्पन्न की गई विसंगति :जैसे महिलाओ को उपभोग की वस्तु मानना। अश्लीलता का प्रचलन 
          • आधुनिक जीवन में पश्चिमी मूल्यों की आवश्यकता : सयंम आधिरत जीवन और जलवायु परिवर्तन 
          निष्कर्ष : अत: हम कह सकते है की परम्परागत मूल्यों के संवर्धन की जरुरत है की उनको नकारने की। भारतीय मूल्यों की जड़े काफी गहरी है इसलिए उन्हें बेकार बताना सही नहीं है। भारतीय मूल्य परिष्कृत होकर समाज को बेहतर दिशा देते है। 

          2.2.अतीत मानवीय चेतना तथा मूल्यों का एक स्थायी आयाम है।
          (The past is a permanent dimension of human consciousness and values)

          मानवीय मूल्य और चेतना हमेशा गतिशील होती है। मानव जिस समाज में रहता है उसके अनुकूल अपने को ढालने के लिए अपने मूल्य विकसित करता है। इन सबके लिए उसे उस क्षेत्र की समझ बहुत सहायता करती है। ऐसे में उस समाज के पास इतिहास का समृध्द अनुभव उसके मूल्यों को बहुत धनवान बना सकता है। उसमे गलती होने के अवसर खत्म हो जाते है। इस प्रकार इतिहास एक आयाम की तरह कार्य करता है। 

          लेकिन इतिहास को हमेशा याद रखना उसके लिए अनिवार्य हो जाता है, वरना पुराणी चीजे फिर से दोहराई जा सकती है। इसलिए इतिहास एक स्थायी आयाम प्रतीत होता है। लेकिन मानव की चेतना भी विकसित होती रहती है। इसलिए वह इतिहास की उपेक्षा करके नवीन रास्ते अपना लेता है। जब वह सफल हो जाता है तो इतिहास के स्थायी आयाम की बात कंडित हो जाती है। 

          निष्कर्ष :  इसलिए मानव चेतना और मूल्यों में इतिहास एक आयाम तो होता है लेकिन स्थायी जैसी कोई चीजे नहीं होती है। क्योकि मानव चेतना स्वतंत्र होती है।

          2.3.जो समाज अपने सिधान्तो के ऊपर अपने विशेषाधिकारों को महत्व देता है, वह दोनों से हाथ धो बैठता है।
          (A people that values its privileges above its principles, loses both is defeated by both of them)

          किसी समुदाय या जगह पर बाउट सारे समाजो का अधिवास होता है। उनमे से कोई समाज वर्चस्वकारी  भूमिका में होता है तो कोई अधीनस्थ की भूमिका मे। ऊपर वाला समाज अपने वर्चस्व की बदौलत कुछ विशेषाधिकारों का उपभोग करता है। इसके लिए वह कुछ सिधान्तो के द्वारा अपनी श्रेष्ठता को स्थापित करता है। लेकिन समाज गतिशील होता है उसमे स्थापित वर्ग को चुनौती मिलती है और दूसरा वर्ग स्थापित होता है। यह चक्र चलता रहता है। 

          लेकिन बात संतुलन की है किसके सिद्धांत अच्छे थे। इसे हम उदाहरणों के माध्यम से समझेंगे -
          • ब्राह्मणो ने चतुर्वर्ण के सिद्धांत के आधार पर विशेषाधिकारों का प्रयोग किया, जिसमे व्यक्तिगत हितो केंद्र में रखकर चतुर्वर्ण का सिद्धांत बनाया गया था। आगे विशेषाधिकार भी नहीं रहे और न ही सिद्धांत रहा। अगर सिद्धांत में कुछ पवित्रता होती तो विशेषाधिकारों को चुनौती नहीं मिलती। 
          • अंग्रेजो ने भी सभ्य बनाने के लिए नस्लवाद के सिद्धांत के आधार पर विशेषाधिकारों का उपभोग किया, उनको भी लोगो ने भगा दिया। 
          • यही हाल यूरोप के सामंतो का हुआ था। 
          • लोकतान्त्रिक नेताओ ने लोकतांत्रिक सिद्धांतो के माध्यम से विशेषाधिकार प्राप्त किए। जिन्हे कोई चुनौती नहीं दे पा रहा है क्योकि इनमे सिद्धांतो की प्रमुखता है। यहां पर भी विप कल्चर के बढ़ने पर उसे चुनौती दी जाती है। 
          निष्कर्ष :  इसलिए यहां पर मुद्दा यह है की विशेषाधिकारों का अगर उपभोग करना है तो उनके लिए सिद्धांत नैतिक होने चाहिए, उनमे किसी प्रकार का भेदभाव नहीं हो ,कोई भी प्रतिभा के आधार पर वहां तक पहुंच सके। लोकतंत्र की महत्ता यह से भी सही सिद्ध हो जाती है।

           2.4.यथार्थ आदर्श के अनुरूप नहीं होता है , बल्कि उसकी पुष्टि करता है।
          (Reality Does not conform to the ideal, but confirms it.)

          हक़ीक़त हम सब जानते है कि आदर्श से कोसो दूर होती है। लेकिन हकीकत की कोशिस हमेशा आदर्श के नजदीक जाने की होती है। मतलब हकीकत की आदर्श की तरफ झुकाव उसकी पुष्टि करता है। इसलिए हम किसी भी उद्देश्य को दिशा देने के लिए एक आदर्श लक्ष्य मन में स्थापित कर लेते है। 
          • लेकिन वर्तमान में आदर्श को मनोरंजन जगत की शक्तिया निर्धारित कर रही है, इस वजह से आदर्श विलासिता वाला होता जा रहा है, वह परम्परागत तरीको की वैकल्पिक विधियों की सरासर उपेक्षा कर रहा है। इसकी वजह से लोगो की निजी जिंदगी खराब होती जा रही है -लोगो में तनाव बढ़ रहा है, अवैध संबंध पनप रहे है, लोग भौतिक चीजों को बसने में लगे हुए है, इन सबका दबाव पर्यावरण पर पद रहा है। 
          • इसलिए आदर्शलोक को हक़ीक़त के पैमाने पर रख करके आंकना चाहिए। मार्क्स आदि भी यूटोपियन माने जाते है। जिन्होंने समाजवाद के नाम पर कई लड़ाई लडवाई, जबकि हक़ीक़त दुनिया पूंजीवाद में ही तलाशती है। आदर्शलोक का अव्यवहारिक होना मनोरंजन जगत में तो चल जाता है। लेकिन उसके आधार पर सिद्धांत जब निजी जिंदगी में दे दिए जाते है तब समस्या खड़ी होती है। 
          • यह सब खराब होमवर्क का नतीजा है। इसलिए मनोरंजन जगत को भी प्रैक्टिकल चीजे दिखने के लिए प्रेरित करना चाहिए। वही उलटे सीधे नियम बनाने वालो को भी आलोचनात्मक समीक्षा के आधार पर परखा जाना चाहिए।
          • लेकिन  यह हमेशा गलत ही नहीं होता। यह सपने दिखता है जिसके आधार पर हम कार्य करते है और अभी की खराब हालत से निकलकर बाहर आने के लिए प्रेरित होते है।  इसका मतलब है कि आदर्श को प्राप्त करने के लिए लोगो को प्लेटफार्म दिए जाने चाहिए।
          निष्कर्ष : आज का आदर्श कल की सामन्य चीज हो सकती है। यह इस पर निर्भर करता है की हम उसे पाने के लिए मेहनत कितनी कर रहे है। इसके लिए हमारे पास संसाधन है या नहीं।

          धन्यवाद 

          Theory of individual interference

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          भारतीय संविधान में लोगों के आर्थिक, सामाजिक विकास को सुनिश्चित करने के लिए नीति निदेशक तत्वों का प्रावधान किया गया है। जिसके अनुसार राज्य लोगो के उत्थान के लिए सक्रिय हस्तक्षेप करता है। हम देखते है की वर्तमान में यह हस्तक्षेप लोगो को राहत ही प्रदान करता है , न की उन्हें उठने का सामर्थ्य देता है। जिस सामर्थ्य के सहारे ये अभावो के चक्र से मुक्त हो सके और फिर अगले आर्थिक स्तर में प्रवेश कर सके। ऐसा करना समाज के निचले तबके के लिए बहुत ही जरुरी है क्योकि उनकी वर्तमान लाचार हालत उनके मानवीय विकास को अवरुद्द करने का पाप करती है। साथ ही उन्हें जन्म दर जन्म एक ही चक्र में घुमाती रहती है। ऐसे लोगो की उपलब्धता प्राइवेट कंपनी को सस्ते श्रमिक प्रदान करने की वजह से अच्छी लग सकती है। लेकिन तकनीकी समृध्द इस युग में दबी कुचली चेतना के लोगो की उपस्थिति खासकर किसी भी संवेदनशील मन को तो अवश्य कचोट रही होती है। ऐसे में जरूरी है कि हम प्रत्येक व्यक्ति की लॉन्चिंग पर आधारित Theory of Individual Interference के सिद्धांत पर विचार करना चाहिए।

          क्या योजना है  (What) : 
          प्रत्येक व्यक्ति को चयनात्मक हस्तक्षेप उपलब्ध कराने के बजाय लॉन्चिंग हस्तक्षेप उपलब्ध कराने चाहिए।  मौजूदा हस्तक्षेप केवल उनकी बेहतरी की बजाय कमतरी को ज्यादा सम्बोधित करते है। यह प्रणाली केवल उन्हें निर्वाह सक्षम उपाय प्रदान करती है। जबकि इससे आगे जाने के लिए किसी बाह्य समर्थन की जरूरत को पूरा किया जाना चाहिए।

          वर्तमान में लॉन्चिंग के लिए हम सरकार के बहुआयामी उपायों  के माध्यम से समर्थ व्यक्ति के आगे आने की उम्मीद करते है। अगर समर्थ व्यक्ति बनाकर आगे लाने के उपाय किए जाए तो स्थिति अलग हो सकती है।

          किस प्रकार (How) :
          अब इसे किस प्रकार क्रियान्वित किया जा सकता है, इस पर भी विचार कर लेते है -
          यूनिवर्सल बेसिक इनकम को पायलट मोड पर शुरू किया जाना चाहिए। यह शुरू में आर्थिक पैमाने पर परिवार आधारित हो सकती है। यह इतनी पर्याप्त हो कि संबंधित आदमी को शिक्षा, स्वस्थ्य जैसे क्षेत्रो में निवेश के लिए समर्थ कर सके।
          उसके बाद मुद्रा योजना का प्रसार किया जा सकता है। इसे मांग आधारित की बजाय अधिकार आधारित बनाया जा सकता है। इसके लिए लाभार्थियों से काम की प्राथमिकता आमंत्रित करके कौशल विकास किया जाए, फिर ट्रायल एंड एरर मेथड पर आधारित गतिविधियों में भेजा जाए। उसकी लगातार तीन साल तक मॉनिटरिंग की जाए, अगर वह लांच हो जाता है तो हमारा मकसद सफल हो जाएगा। अन्यथा बचे हुए लोगो के लिए फिर से प्रयास किए जाएंगे। या फिर उन्हें अधीनस्थता के ढांचे में खपा लिया जाएगा।

          व्यवहार्यता  (Feasibility) : 
          योजना की व्यवहार्यता पूरी तरीके से क्रियान्वित करने योग्य है। मौजूदा समय में लॉन्चिंग की योजना के तोर पर मनरेगा को लिया जा सकता है। लेकिन हम जानते है की मनरेगा अधिकार आधारित से आकड़े भरपाई आधारित हो गई है। अब लॉन्चिंग के लिए दूसरे प्लेटफार्म की आवश्यकता है और प्रत्येक जरूरतमंद को सक्रिय हस्तक्षेप निश्चित तोर पर बेहतर विकल्प होगा।

          नकारात्मक (Negative) :
          इस योजना के नकारत्मक बिंदु यह हो सकते है की आदमी अब ज्यादा निकम्मे हो सकते है। वे संसाधनों का दुरूपयोग कर सकते है। इसके बाद वे अधिक निकम्मे हो सकते है।  जिससे मानव पूंजी की उत्पादकता में कमी हो सकती है।

          परिणाम (Outcomes ):
          इस योजना के परिणाम का आंकलन करे तो यह है कि इसके बाद आदमी की नागरिक गतिविधि अधिक सक्रियता की परिचायक हो जायेगी। इससे अभिशासन और राजनीती की गुणवत्ता में बढ़ोतरी होगी। जिससे आगे भी लोगो में सुधार के मूल्यों का समायोजन होगा।

          खंड II
          अब हम दूसरे सहायक मुद्दों पर विचार करते है। जो इस कदम की सार्थकता को सिध्द करने में मददगार होंगे।

          1. समाजवाद की अवधारणा आज के युग में 
          समाजवाद की अवधारणा आज के युग में पहले से ज्यादा मायने रखती है। भले ही १९ वि सदी से जीवन स्तर में सुधार हुआ है जिस कारण सम्पतियो का विषम वितरण दृष्टिगोचर नहीं होता है। वर्तमान में यह खाई बढ़ती जा रही है। आदमी आदमी को गुलाम बनाने की हालत पहले भी थी और आज भी वह संवर्द्धित हुई है , जिससे अनुमान लगा सकते है कि इस समय पर भी समाजवाद पूरी तरीके से प्रासंगिक है। 


          लेकिन इसके उद्देश्यों को किस प्रकार प्राप्त किया जाए, यह असली चुनौती है। इसके लिए हमे निचले लोगो को मौजूदा हालत में राहत आधारित समर्थनों से आगे जाकर उन्हें अगले स्तर पर लांच करना होगा। तब जाकर वे भी अगली कक्षाओं में दोड़ने के लिए समर्थ हो सकेंगे।  वरना वे अपने मौजूदा चक्र में ही वे घूमते रहेंगे।

          2. विकास अधिकार या फिर भाग्य के रूप में 
          मौजूदा समय में विकास के जो अवसर उपलब्ध है, उनका वितरण असमान रूप से है। जो नए प्रवेशार्थी  है अगर वे इन विकास अवसरों के पास में है तो वे भी लाभदायक स्थिति में होंगे। वही जो लोग दूरस्थ क्षेत्रो में है उनको इन विकल्पों की उपलब्धता प्राप्त नहीं हो सकेगी। ऐसे में एक बात सामने आती है कि विकास तक पहुँच कोई अधिकार की बात नहीं होकर के भाग्य की बात होती है। अगर विकास के भाग्य रूपी स्वरूप को बदलना है तो दूरस्थ क्षेत्रो को भी लॉन्चिंग करनी होगी।

          3. सभी कार्यो को करने की सुगमता 
          अगर हम लॉन्चिंग ड्राइव शुरू करना चाह रहे है तो हमे निम्न वर्ग के लिए उत्थान के कार्यक्रमों की क्रियान्वयन रुकावटों को न्यून करना होगा। यह एक तरीके से व्यापार की सुगमता के समान होगा। लेकिन इसके क्षेत्र भिन्न होंगे और उनके लिए सुगमता के पैरामीटर भी भिन्न प्रकार के ही होंगे। जिनकी सबसे पहले तो हमे पहचान करनी होगी। उसके बाद उन्हें आसान बनाने के प्रयासों को लागू करना होगा।

          4. दूसरे क्षेत्रो की भागीदारी 
          दूसरे क्षेत्रो की भागीदारी अत्यंत आवश्यक है। जिसके तहत हम कॉर्पोरेट की सामाजिक जिम्मेदारी, अकेडमिक सामाजिक जिम्मेदारी, सोसाइटी की सामाजिक जिम्मेदारी जैसे नवाचारी प्रयासों की मदद लेनी होगी। इससे यह कार्य एक आंदोलन की शक्ल लेगा। जिससे सभी प्रयासों की प्रभावशीलता में इजाफा होगा और हम उद्देश्य के अधिक करीब पहुंचेंगे।

          निष्कर्ष :
          भारतीय संस्कृति सर्वे भवन्तु सुखिनः की रही है। जिसमे सभी लोगो के सुखी होने के आदर्श को स्थापित किया गया है।  इसलिए हमे सरकारी रवैये में भी कष्ट निवारण  से कष्ट उन्मूलन की तरफ बढ़ना होगा। इस कार्य के लिए सरकार को अपनी जिम्मेदारी को एक योजना के लागू करने से बढाकर विभिन्न योजनाओ के बीच संतुलन स्थापित करना होगा। 

          बनारस में वर्ष 2014 के आम चुनाव के संस्मरण

          वर्ष 2018 के आम चुनावो की आहट शुरू हो गई है। इसी सिलसिले में में मुझे वर्ष 2014 के आम चुनाव में बनारस का मुकाबला याद आ जाता है। दो लोकप्रिय उम्मीदवार अरविंद केजरीवाल और नरेंद्र मोदी के बनारस से चुनाव लड़ने के कारण, वह पूरे भारत की लाइम लाइट में आ गया था। देश की राजनीती की दिशा भी वहां से जुडी हुई थी। तो उस मुकाबले को कवर करने के लिए देश -विदेश के पत्रकार बनारस में इकठ्ठे हुए थे।

          उस दौरान मैं IIT(BHU) से अपनी इंजीनियरिंग का तीसरा साल समाप्त कर रहा था। जब यह लग गया कि इंजीनियरिंग में अपना कुछ होना नहीं है तो मैंने सिविल सेवाओं की तयारी शुरू कर दी थी। इस वजह से देश के जमीनी मुद्दों पर एक समझ विकसित हो गई थी, जिसकी बदौलत यह तय करने में आसानी होने लगी कि कोनसा नेता झूठ बोल रहा है और कोनसा सही बात कर रहा है। इसलिए मैंने अपने साथियों के साथ इस चुनाव में आम आदमी पार्टी का समर्थन किया। हालांकि कॉलेज में सभी दलों का समर्थन करने वाले छात्र मौजूद थे।

          आम आदमी पार्टी की तरफ आकर्षण
          उस दौरान लोकसभा चुनावों में पहली बार उतरे केजरीवाल सिविल सेवा को ही छोड़कर आये थे और IITian भी थे, वे बाते भी व्यवस्था में बदलाव की कर रहे थे। इन सभी चीजों की वजह से मेरा आकर्षण आम आदमी पार्टी की तरफ हो गया। साथ में पढ़ने वाले लगभग 20-25 लड़को की एक टीम बना ली थी। सबको आम आदमी पार्टी के पक्ष में कर लिया और विरोध करने वालो को स्वच्छ राजनीती का पाठ पढ़ने लग गए। केजरीवाल जब बनारस आये तो कई लड़को ने वोलियन्टर बनकर उसका सहयोग भी किया। केजरीवाल के साथ आये स्टार प्रचारकों से भी सम्पर्क किया। आम आदमी पार्टी को वित्तीय सहायता के लिए ऑनलाइन डोनेशन भी दिया। उसी समय टाइम पत्रिका ने विश्व के प्रभावशाली लोगो के लिए वोटिंग करवाई थी, जिसमे केजरीवाल के पक्ष में मतदान के लिए छात्रों को प्रेरित किया। पार्टी के प्रचार के सिलसिले में आने वाले कई लोगों से मुलाकात की।

          बाद में जब जब परिणाम आया तो केजरीवाल बुरी तरीके से हार गए और नरेंद मोदी की देश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी,  इस तरह हमारी इच्छाओ की हार हो गई। बाकी लड़को के सामने शर्मिंदा होना पड़ा। मैंने इसके बाद राजनीती में सक्रिय रूचि से मुँह मोड़ लिया और सिविल सेवाओं की जरूरतों के अनुकूल पार्टी लाइन से ऊपर उठकर निष्पक्षता को मन में बिठा लिया। बाकी के लड़को को अपनी शर्मिंदगी मिटाने का अवसर तब मिला जब केजरीवाल ने अगले साल वर्ष 2015 में दिल्ली विधानसभा की 70 में से 67 सीट जीत ली। लेकिन आगे केजरीवाल ने भी अपनी पार्टी को एक  कम्पनी की शक्ल दे दी और कई गणमान्य सदस्यों को उपेक्षित कर दिया, तो बाकी साथियो का भी आम आदमी पार्टी से मोह खत्म हो गया। आगे वे भाजपा विरोध को आगे जारी रखने के लिए कांग्रेस की तरफ आकर्षित हो गए और खुद को अभी भी वहां पर राजनितिक रूप से सक्रिय बनाये हुए है। 

          लेकिन अब पांच साल बाद मेरा मन उस घटनाक्रम और राजनीती का विश्लेषण करने का कर रहा है। कुछ बुनियादी प्रश्न है जिन पर विचार करते है -
          >क्या मोदी उस समय अजेय थे?
          >क्या केजरीवाल भी एक विकल्प था।

          सभी के मन में यही सवाल था कि क्या अरविंद केजरीवाल बनारस में भी दिल्वली की कहानी दोहराएंगे, जहां  दिल्ली में खुद शीला दीक्षित के सामने खड़े होकर उसे शिकस्त दी थी। चाहे कुछ भी हो लेकिन केजरीवाल ने किसी भी प्रकार के चमत्कार की उम्मीद अंतिम समय तक रखी और अंत तक संघर्ष किया। 

          संभावनाए और समीकरण :
          1. सब को पता था कि पिछले दो-तीन सालों में जो घोटाले कांग्रेस ने किए है, उसकी वजह से वह सत्ता में कभी नही आ पाएगी। ऐसे में भाजपा के गठबंधन दलों को भावी सरकार के तौर पर देखा जा रहा था। लेकिन भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आधारित अन्ना आंदोलन को सहारा बनाकर केजरीवाल द्वारा गठित पार्टी की लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी। दिल्ली में लोकलुभावन वादों के सहारे अपनी जगह बनाने वाले केजरीवाल ने खुद शीला दीक्षित को शिकस्त दे डाली, इसके बाद वे केंद में सरकार के ख्याली पुलाव बनाने लगे। और इसी के तहत उन्होंने नरेंद मोदी के खिलाफ बनारस से लड़ने का मन बना लिया था। वही पार्टी के दूसरे दिग्गज नेता कुमार विश्वास को राहुल गांधी के खिलाफ अमेठी से खड़ा कर दिया था ।                               
          2. मोदी को प्रधानमंत्री नही देखने वालों का मानना था कि केजरीवाल ने अगर कैसे भी करके मोदी को बनारस में हरा दिया तो बनारस से हारे हुए मोदी को न तो भाजपा और नही सहयोगी कभी प्रधानमंत्री बनाएंगे। इसलिए सभी केजरीवाल का मूक समर्थन कर रहे थे। लेकिन केजरीवाल की मंशा किसी के समझ में नही आ रही थी। क्योंकि उसने राहुल गांधी के खिलाफ भी बड़ा उम्मीदवार खड़ा कर दिया था। सपा, बसपा से भी उसकी कोई खास बन नही पा रही थी। दूसरे दलों में से केवल नीतीश कुमार की पार्टी ने समर्थन दिया, शरद कुमार प्रचार के लिए भी आये थे ।
          3. यह बात सच मे भी थी। राजनाथ सिंह उस समय भाजपा के अध्यक्ष थे, वे कही न कही ऐसे मौकों का इंतजार भी कर रहे थे। मोदी की टीम को भी पता चल तो उसके समर्थकों ने यह कहना भी शुरू कर दिया था कि अगर मोदी को PM बनाना है तो राजनाथ को हराना है। लखनऊ से खुद के खिलाफ हवा देखकर राजनाथ को कहना पड़ा कि भाई मुझे हराओ मत, जिताओ में आगे रुकावट नही बनूंगा। तब जाकर उसके पक्ष में माहौल बनाया गया।
          प्रचार अभियान :
          जब बनारस में प्रचार शुरू हुआ तो भाजपा ने केजरीवाल को रायता फैलाने वाले के तौर पर देखा और उसके प्रति बिल्कुल भी सहनशीलता नही दर्शाई गई। वैसे तो मोदी विकास के गुजरात मॉडल पर चुनाव लड़ रहे थे। लेकिन यह विकास की बजाय चुनाव जीतने का मॉडल ज्यादा था। जिसमे विरोधी उम्मीदवार को डराया-धमकाया जाता है। 

          बनारस में जगह-जगह पोस्टर लगाए गये कि देखो दिल्ली का भगोड़ा आया हैं। जो दिल्ली में टिक नही सका वो बनारस में क्या टिकेगा। इस आरोप पर केजरीवाल सफाई देते रहे लेकिन उन्हें सुनने के लिए जनता मौजूद नही थी।

          केजरीवाल का स्वागत अंडे फेंककर किया गया। इसके मंत्रियों को पीटा गया जिनमे सोमनाथ भारती शामिल थे। इस का समर्थन कर रहे रोडीज के रघु राम को बीएचयू में पीटा गया। इसका मतलब था कि भाजपा वास्तविक तौर पर केजरीवाल से डरी हुई थी।

          मजबूत और कमजोर पक्ष :
          लेकिन माहौल भाजपा के पक्ष में ही था। जिसके कई कारण तलाशे जा सकते है। पिछली बार भी भाजपा का ही सांसद मुरली मनोहर जोशी थे, जिन्हें मोदी के लिए सीट खाली करके कानपुर भेजा गया था। दूसरी तरफ बनारस हिंदू धर्म का गढ़ मानी जा सकती है। मोदी को स्थानीय जनता ने एक तारणहार के तौर पर देखा।  'हर हर मोदी, घर घर मोदी' नारा कोई कल्पना मात्र नही था। केजरीवाल के पास जनता के दिल मे बसने का ऐसा कोई कारण नही था।

          वही भाजपा के पास समर्पित स्थानीय कार्यकर्ताओ का संगठन था। जिन्होंने पार्टी के प्रचार के साथ ही केजरीवाल का विरोध बढ़ चढ़कर किया। जबकि केजरीवाल के पास दिल्ली और एनसीआर से ले जाये गए बन्दे थे, जिन्हें स्थानीय परिस्थितियों की समझ नही थी। फिर राष्ट्रीय नेता का दम्भ भरते केजरीवाल के अहंकार को सन्तुष्ट करने के लिए यह भीड़ उनके साथ ही जाती थी। चाहे अमेठी हो, नागपुर हो, गुजरात हो या फिर दिल्ली एनसीआर हो। सीधी सी बात है इस वजह से कही पर भी फोकस नही हो पाया। फिर भाजपा कार्यकर्ताओं ने भी आप के टूरिस्ट कार्यकर्ता के पैर नही टिकने दिए। उन्हें न तो आराम से रहने दिया और न ही अपनी बात रखने दी। उनकी सभाओ में मंच के पास जाकर विरोधी नारे लगाए।

          खुद केजरीवाल को भी इस खराब स्थिति का आंकलन हो गया था। भले ही उन्होंने माना नही हो, लेकिन उनके ढीले पड़े Attitude से इसका अंदाजा लगाया जा सकता था।

          केजरीवाल की राजनीति अवसरवाद से भरी हुई थी। जिसे दूसरे दल कतई नही समझ पा रहे थे। वही मीडिया के ऊपर भी केजरीवाल ने लांछन लगा दिया। इसके बाद वे एस्टबलिशमेंट के निशाने पर आ गए।

          चुनावी मुद्दे :
          भाजपा का एजेंडा पुरे देश के समान मोदी था। जिसके सामने उत्साहित कार्यकर्ता किसी भी विरोधी  मुद्दे को नहीं टिकने दे रहे थे। वही केजरीवाल के पास कोई ठोस मुद्दा नहीं था। वे कह रहे थे कि प्रधानमंत्री का उम्मीदवार होने का मतलब यह नहीं कि इससे आपके क्षेत्र को तगड़े विकास की गारंटी मिल गई है। इस बात को ज्यादा तवज्जो भी नहीं मिल पाई।

          वही केजरीवाल को रक्षात्मक भूमिका में ला दिया। जगह-जगह भाजपा ने ४९ दिन के बाद दिल्ली से सरकार छोड़कर भागने का ताना मारने वाले पोस्टर लगा दिए। केजरीवाल इसका कोई ठोस जवाब नहीं दे पाए। दो बड़े उम्मीदवारों की खींचतान में अन्य उम्मीदवारों के मुद्दे दबकर रह गए।

          दूसरे दलों की भूमिका :
          दूसरे दल इस लड़ाई में भागीदारी का दस्तूर पूरा कर रहे थे। कांग्रेस ने पहले तो कद्दावर नेता की तलाश की थी जिसमे सचिन तेंदुलकर और रेखा के नामो की चर्चा हुई थी। लेकिन आगे फिर स्थानीय व्यक्ति को ही टिकट दे दिया। सपा और बसपा ने भी अपने उम्मीदवार खड़े किए थे। जिनको ठीक ठाक संख्या में वोट प्राप्त हुए थे।

          वोट बैंक का विश्लेषण  :
          उत्तरप्रदेश की राजनीति पर गौर करे तो हम पाते है कि दलित वर्ग बसपा और कांग्रेस दोनो का वोटबैंक है, वही मुस्लिम समुदाय सपा और कांग्रेस दोनो का वोटबैंक है। रही बात पिछड़े वर्ग की तो ये सपा के हिस्से में रहे है, वही उच्च जाति के सवर्ण वर्ग भाजपा के वोटबैंक रहे है।
          दलित वर्ग = बसपा और कांग्रेस 
          मुस्लिम =  सपा और कांग्रेस 
          पिछड़े वर्ग = सपा 
          सवर्ण वर्ग = भाजपा
          अब भाजपा को ऐसा लग रहा था कि केजरीवाल शहरी सवर्ण वर्ग के वोट बांट कर नुकसान पहुचाएगा। वही केजरीवाल दलित और मुस्लिम समुदाय को भी आकर्षित करने की रणनीति पर चल रहे थे। इसलिए वहां के मुस्लिम धर्मगुरुओं से मुलाकात की। लेकिन यह बंटा हुआ मोदी विरोध अपने उद्देश्य में विफल रहा था।

          परिणाम :
          जब अंतिम परिणाम आये तो मतगणना के दिन केजरीवाल बनारस आये थे, इसका मतलब था कि अपने अनुमान के अनुसार वे जितने की उम्मीद रखते थे। लेकिन दोपहर तक प्रतिकूल परिणाम पाकर निकल लिए। अब बनारस आने की बारी मोदी की थी। उन्हें पूरे देश मे भी भारी बहुमत मिला था। उनका सपना पूरा हो गया था, उन्होंने गंगा घाट पर जाकर आरती की।

          कुछ अन्य रोचक घटनाए :
          1. भाजपा मुस्लिम बाहुल्य इलाके में रैली करना चाहती थी। लेकिन निर्वाचन अधिकारी प्रांजल यादव ने साफ मना कर दिया। भाजपा ने विरोध करते हुए बीएचयू के गेट पर धरना भी दिया, लेकिन नाकाम रहा।
          2. मोदी की तरफ से प्रचार अभियान भाजपा के बजाय खुद मोदी की टीम के पास था। अमित शाह उस समय उत्तर प्रदेश के प्रचार प्रभारी थे।
          3. बाबा रामदेव ने मोदी का प्रचार किया था। वैसे तो ये व्यवसायी है । इन्होंने पूरे शहर में 100% मतदान होना चाहिए के बोर्ड लगाए। हालांकि किसके पक्ष में इसका उल्लेख नही करके चुनाव आयोग की नजरों से बच गए।
          4. आम आदमी पार्टी के भी कई कार्यकर्ताओ ने गली-गली में धूल छानी। अलका लांबा ने अकेले ही पूरे शहर में पैदल घुमफिरके पर्चे बांटे, बाद में उसे दिल्ली से टिकट मिला और वह विधायक बनी।
          5. मीडिया ने अघोषित रूप से केजरीवाल का बहिष्कार कर दिया। किसी भी अखबार में कोई खबर नही मिलती थी। यह सब ऊपर से मिले निर्देशो का नतीजा कहा जा सकता है। कॉर्पोरेट मीडिया क्या कर सकता है। इस चीज को यहां से समझ सकते है। 

          निष्कर्ष :
          यह एक ऐतिहासिक चुनाव था, जिसके गवाह बनने का मौका मिला। लेकिन उसके बाद से आप की राजनीति से मोहभंग हो गया। वह कुछ ज्यादा ही व्यक्तिवादी हो चली थी। पूरी पार्टी को केजरीवाल ने हाइजेक कर लिया और उसे एक कॉरपोरेट कम्पनी की तरह चलाने लगे। अंततः कह सकते है कि भोले मनो को ठगने के इस जाल में  केजरीवाल विफल रहे और मोदी इस कार्य मे जीत गये।

          PRESENTING LOGIC THROUGH GRAPHS

          हम सभी आंकड़ों के युग में जी रहे है। जिसके तहत  किसी प्लेटफार्म पर हमारी बात में तब तक कोई वजन नहीं आएगा, जब तक कि हम उस बात को आंकड़ों के माध्यम से स्थापित नहीं कर देते। सरकारी कामकाज की कार्यप्रणाली इसी तरह की होती है। जहां कोई भी पॉलिसी तबतक विश्वसनीय नहीं मानी जाती, जब तक की उसे आंकड़ों के माध्यम से स्थापित नहीं कर दिया जाता। सरकार न केवल योजना बनाने क लिए आंकड़े एकत्रित करती है। बल्कि वह योजनाओ के क्रियान्वयन के पश्च्यात भी आंकड़े जारी करती है।  ताकि विपक्षी दलों और जनता को सरकार की कर्मण्य प्रवृति का अहसास हो सके। इस कार्य में सरकार को सहयोग करने के लिए कई सरकारी एजेंसी, विभाग यहां तक कि मंत्रालय तक निर्मित किये गए है। खुद सरकार भी इन आंकड़ों के प्रसार में दिलचस्पी रखती है , जिसका उदाहरण है RTI एक्ट के माध्यम से आंकड़े को जनता के सामने रखने की इच्छा व्यक्त करना ।

          अगर गौर से नजर दौड़ाये तो  ये आंकड़ों का संसार कई लोगो को आकर्षित कर सकता है। जो आंकड़ों के संग्रहण, विश्लेषण, प्रस्तुतिकरण के माध्यम से  विभिन्न क्षेत्रो में मदद कर सकते है -
          1. यह ऐसी सिविल सोसाइटी को आकर्षित कर सकता है जो आंकड़ों के विश्लेषण के माध्यम से नीति-निर्माण में सरकार की सहायता करनी चाहती हो। ऐसा करके वे सुधार के क्षेत्रो की पहचान में मदद कर सकती है। पश्चिमी देशो की कई संस्थाए इंडेक्स और स्केल के माध्यम से इन आंकड़ों को प्रस्तुत करके दुनिया भर के देशो की नीतियों को प्रभावित करने में लगी हुई है। इसके सकारत्मक पहलु तो यह है की इससे कार्यवाही करने योग्य क्षेत्रो की पहचान होती है। वही नकारत्मक यह है कि देशो की नीतियों की सम्प्रभुता प्रभावित होती है। 
          2. यह आंकड़े संग्रहण के क्षेत्र में कार्य करने वालो को आकर्षित करता है क्योकि वर्तमान समय में इन आंकड़ों के संग्रहण में कई प्रकार की चुनोतिया है। जिनमे प्रमाणिकता की कमी है क्योकि वे अकुशल कार्मिको के द्वारा जुटाए जाते है। समय पर अद्यतन नहीं किए होते है। एक व्यापक छवि बनाने के लिए केवल सैंपल पर निर्भर रहना पड़ता है। जाहिर सी बात है इस वजह से जो परिणाम पेश किए जाते है, वे वास्तविकताओं से अंतराल रखते है। 
          3. सरकार खुद अपने काम को वर्तमान में आउटसोर्स करने में लगी हुई है। इसलिए निजी क्षेत्रो का इस दिशा में सामने आना भविष्य की तैयारियों का अच्छा संकेत है। गूगल और फेसबुक दुनिया भर के आंकड़ों को एकत्रित करके व्यवस्थित करने में लगे हुए है। स्थानीय लोगो को भी इस आंदोलन का फायदा तभी मिलेगा, जब उनके मुद्दों और आदतों को इन आंकड़ों को माध्यम से विश्लेषित किया जाएगा। सरकार के लिए इन आउटसोर्स करने वाली इकाइयों के बीच समन्यव की आवश्यकता बढ़ती जायेगी। 
          4. बहुत सारे डेटा तो सरकार की मौजूदा पद्धति में ही मौजूद है जैसे की IRCTC, GSTN आदि। इनका BIG DATA  के माध्यम से विश्लेषण करके किसी निष्कर्ष पर पहुंचने की आवश्यकता है। ताकि जटिलता भरे विश्व को सुविधाजनक बनाया जा सके। इस कार्य के लिए निवेश तलाशने की आवश्यकता है। 
          5. इस आंकड़े का प्रयोग करके कई प्रकार की सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वाह करने में कॉर्पोरेट सेक्टर की मदद की जा सकती है। जो ट्रस्टीशिप में भरोसा करते हुए सकारत्मक योगदान देना चाहता है। कई क्रियान्वयन एजेंसी को भी इसकी जरूरत पड़ सकती है।  
          दूसरे देश और बाहर की कम्पनिया इस चीज का महत्व काफी पहले समझ चुकी है। भारत सरकार ने भी इसकी महत्ता को स्वीकारा है और डिजिटल इंडिया अभियान के तहत बहुत सारे कामकाजो की नीव रखने का कार्य किया है। अब जरुरत है तो सिर्फ इस अवसर का दोहन करने की। 

          इसके कई फायदे हो सकते है। जैसे की
          1. सुदूर और उपेक्षित क्षेत्रो का पक्ष आंकड़ों के माध्यम से मजबूती से रखा जा सकता है। जिसके कारण पॉलिसी लेवल पर उसके साथ हो रहे भेदभाव को खत्म करने में मदद मिल सकती है। जिसकी बदौलत उसे आसानी से मुख्यधारा में लाया जा सकता है। 
          2. आंकड़ों के माध्यम से अकर्मण्य संस्थाओ और कार्मिको को जवाबदेह बनाने में मदद मिलेगी। पारदर्शिता बढ़ेगी।  सुशासन का सपना साकार होगा। भ्रष्टाचार को रोकने में मदद मिलेगी। 
          3. सरकार की प्राथमिकता उच्च स्तरीय कामकाजो में सलग्न होने के लिए उपलब्ध हो सकेगी। 
          4. हम विभाजित राजनीती के चंगुल से मुक्त हो सकेंगे। केवल तथ्यों पर आधारित राजनीती की शुरुआत होगी , जो मजबूत होते लोकतंत्र की परिचायक होगी। 
          5. कई लोगो को इस कार्य में रोजगार उपलब्ध होगा। आंकड़ों के संग्रहण के लिए लोगो से होने वाला निरंतर सम्पर्क उनमे जागरूकता उत्पन्न करेगा। 
          6.  
          इस मौके का फायदा उठाने के लिए धन और समय के भारी निवेश की जरूरत होगी। विकेन्द्रीकृत ढांचे के अंदर कार्य शुरू किया जा सकता है। जो माइक्रो स्टडीज के माध्यम से ही उत्पादन करने में सक्षम हो सकेगा। और ऐसी छोटी -छोटी इकाइयां ही बेहतर विशेलषण प्रदान कर सकती है क्योकि कम आंकड़ों के साथ फोकस विचलित नहीं होगा। इसके लिए कई प्लेटफार्म हो सकते है जैसे किसी विभाग के साथ कार्य करना या फिर किसी जिले या क्षेत्र के साथ कार्य करना।  


          निष्कर्ष 
          अवसर हमारे सामने मौजूद है ,अब यह सिर्फ हम पर निर्भर करता है की हम इसके प्रति कैसे प्रतिक्रिया करते है। हम उदासीन रहकर विदेशी कम्पनियो को यह सब करते हुए देखना चाहते है या फिर खुद भी इस रेस में दौड़ना चाहते है। अगर हम दूसरा विकल्प चुनते है तो हमे सोचने से आगे जाना होगा और एक शुरआत करनी होगी। एक शुरुआत -बेहतर कल की। यह सुचना क्रांति के फायदों को अगले चरण में ले जाने वाली बात होगी।