सीमांत किसानों का दर्द

सीमांत किसानों की संख्या भारत मे सर्वाधिक हो गयी है, जैसे जैसे जनसंख्या बढ़ती गयी तो जमीने भी बढ़ती चली गयी। जोतो की संख्या इतनी बढ़ गयी कि उनका आकार आजीविका के स्तर तक सिमट कर रह गया। लोगो की परेशानी तब और बढ़ गयी जब ये जोते बिखरी हुई है। ऐसे में इनके लिए न तो मशीनरी की व्यवस्था कर सकते और न ही सिंचाई हेतु कोई बड़ा निवेश कर सकते हैं। इससे उत्पादन में वृद्धि के अवसर भी चले जाते है। इन किसानों को उत्पादन के तौर पर निवेश और लागत को हटाने के बाद केवल खाने के लिए अनाज ही शेष बचता है। अतिरिक्त उपज होने की सम्भावना नगण्य होती है। ऐसे में कृषि से इतर गतिविधियों के संचालन के लिए ऋण की आवश्यकता अनिवार्य हो जाती है।

वर्तमान में कृषि की लागत बढ़ती जा रही है। अब खेती में प्रयुक्त होने वाले खाद बीजो का भाव काफी बढ़ गया है, ट्रैक्टरों से जुताई महंगी हो गयी है, बैल आधारित जुताई को कब का छोड़ा जा चुका है, सिंचाई के लिए भी पानी की उपलब्धता काफी महंगी है, इसके अतिरिक्त अन्य कार्यो में भी काफी महंगा निवेश होता है। इन सबके लिए किसानों को ऋण-फसल चक्र से जुड़ना पड़ता है। वर्तमान में महँगाई, सामाजिक और पारिवारिक खर्चो के बोझ तथा मानसून ने ऋण-फसल चक्र को चुनोती देकर सीमांत किसानों को और अधिक परेशानी में डाल दिया है।

सीमांत किसानों की पहचान वैसे तो किसानों के रूप में है लेकिन इन्हें भूमि युक्त मजदूरों के समान माना जा सकता है। क्योंकि इनके जीवन मे आजीविका को लेकर असुरक्षा काफी ज्यादा होती है। ये अपनी छोटी से भूमि में कामकाजों को जल्दी से निपटा लेते है उसके बाद तो बड़े किसानों के यहाँ मजदूरी करने को लेकर तैयार रहते है। अपनी भूमि से खाद्यान्न प्राप्ति के अलावा आय न हो तो यह एक विकट संकट की स्थिति बन जाती है।

सीमांतपने के दर्द से मुक्त होने के लिए अलग रोजगार अपनाने की आवश्यकता है, इसके अलावा अपने बच्चों के कॅरिअर पर भी ध्यान देने की जरूरत हैं। लेकिन यह भी कटु सत्य है कि सीमांत किसानों के लिए वैकल्पिक साधन भी बड़े निवेश की आवश्यकता रखते है और अंततः कठिन विकल्प प्रतीत होते है। ऐसे किसानों को ये आकर्षित नही कर पाते है।
इनकी बेहतरी के लिए आवश्यक है कि इनको मिलने वाले सरकारी फायदों को लक्षित किया जाए, कर्जो को असंस्थागत स्त्रोतों से हटाया जाए, सामाजिक आयोजनों के खर्चो को हतोत्साहित किया जाए।ऐसा करके ही ग्रामीण समाज को अधिक समावेशी स्वरूप दिया जा सकता है।

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