सहकारी समितियों के माध्यम से अमरूद विपणन की समस्या का समाधान

सवाई माधोपुर का अमरुद अपनी मिठास के कारण बहुत अधिक लोकप्रिय हैं। यहां पर अमरूदों की बंपर पैदावार होती है। स्वादिष्ट व उत्तम क्वालिटी से भरपूर यहां का अमरूद देश की नामी-गिरामी मंडियों तक जाता है। यहाँ की मिट्टी और जलवायु के कारण अमरुद के बागान सवाई माधोपुर जिले में काफी सफल रहे हैं। करमोदा गाँव में अमरूदों की सफलता के बाद, एक दशक के भीतर ही इसके बगीचे लगभग पुरे सवाई माधोपुर जिले में विस्तृत हो गये।  सवाई माधोपुर में अब अमरूद की खेती व्यापक स्तर पर होने लगी है। लेकिन जैसे ही अमरुदों की बागवानी के अंतर्गत क्षेत्र में वृद्धि हुई, इनकी बिक्री की समस्या भी उत्पन्न हो गई। एक समय था जब अमरुद के लिए भाव और बाजार बहुत ज्यादा था, लेकिन धीरे-धीरे व्यापार खत्म होता चला गया। इस समय पर स्थिति उस निर्णायक मोड पर आ गई हैं, जहां किसान ये सोच रहा है कि इनके पेड़ों को लगे रहने दे या फिर खोद करके फेंक दे। सरकार भी इस दिशा में कई प्रयास कर रही हैं। ऐसी स्थिति में एक उपाय सहकारी समितियों के माध्यम से नजर आता है। जिस प्रकार क्रय-विक्रय सहकारी समितियां न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कृषि खाद्यान्नों की खरीद करती हैं, उसी प्रकार से अमरुद के लिए भी खरीद की जा सकती हैं। इसके बारे में हम विस्तार से चर्चा करते है-

उपयुक्तता

अमरुद के लिए शुष्क जलवायु उपयुक्त होती हैं। ये सभी दशाएं सवाई माधोपुर में उपलब्ध हैं। इसलिए इसके बागान यहां पर तेजी से लोकप्रिय हुए। यहां की अनुकूल जलवायु, सिचाई हेतु यहां का बरसाती पानी एवं यहां की मिट्टी में बसे लौह तत्व की अधिकता व काली जलोढ़ मिट्टी की पर्याप्तता होने के कारण (अच्छी बारिश होने पर) लगभग सभी फसलों में प्रति हैक्टेयर उत्पादन बहुत अधिक है। मिट्टी काली जलोढ़ होने के कारण अधिक समय तक भूमि में नमी बनाए रखने में यह कारगर है। प्रायः देखा गया है कि पेड़ो की ग्रोथ के साथ फलों का आकार भी काफी बड़ा होता है। और सबसे अहम बात यहां मिट्टी में लवणीयता नही होने के कारण अमरूदों का स्वाद बिल्कुल मीठा है।

सवाई माधोपुर में अमरूद की खेती के प्रारंभिक चरण में उत्तर प्रदेश की नर्सरी से अमरूद के पौधे खरीदे गए।अब तो सवाई माधोपुर में ही बहुत सारी नर्सरी बन चुकी हैं। यहां बर्फ खान गोला, लखनऊ 49, इलाहाबादी, सफेदा किस्म के अमरूद के पौधे तैयार किए जाते हैं। वर्तमान में सवाई माधोपुर में 100 से अधिक नर्सरी हैं। इनमें विनियर ग्राफ्टिंग से अमरूद के पौधे तैयार किए जा रहे हैं।किसान अपनी आवश्यकता के अनुरूप पौधे यही से प्राप्त कर लेते हैं।

उत्पादन

  • देश का 60 प्रतिशत अमरूद केवल राजस्थान में हो रहा है। इस 60 प्रतिशत का 75 से 80 फीसदी हिस्सा सवाई माधोपुर जिले का है। अनुमानित रूप से देश का 50 प्रतिशत अमरूद अकेला सवाई माधोपुर जिला पैदा कर रहा है। विश्व में सबसे अधिक अमरूद भारत में होता है।
  • सवाई माधोपुर के अमरुद इतने अधिक पसंद किए जाते हैं कि वर्ष 2016-17 के सर्वे के अनुसार जहां सवाई माधोपुर में जहां पर्यटन से सालाना ₹800 करोड़  की आय हुई थी, वहीं अमरूदों के कारोबार ने  1200 करोड़ का आंकड़ा पार किया था।
  • उद्यान विभाग की माने तो गत वर्ष इस बार 90 हजार मीट्रिक टन के लगभग अमरुद का उत्पादन हुआ था और यह आंकड़ा दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। इसके डेढ़ से दो लाख मीट्रिक टन के उत्पादन होने की आशा की जा रही है जो कि आने वाले समय में और बढ़ने की उम्मीद है।
  • बारह अरब तक व्यवसाय की उम्मीद: एक पक्के बीघा में 150 से 200 अमरूदों के पेड़ लगाए जा सकते हैं। जिले में फल दे रहे अमरूदों के पौधों की तादाद तकरीबन 40 लाख है। एक पौधा औसतन 100 से 125 किलोग्राम अमरूद की उपज देता है यानी जिले में 40 करोड़ किलोग्राम अमरूद का उत्पादन हो रहा है। यहां के अमरूद की औसतन फुटकर कीमत 25 रुपए किलोग्राम आंकी गई है। इस हिसाब से जिले में अमरूद का रिटेल कारोबार 12 अरब रुपए के आसपास पहुंच चुका है।

अमरुद की खेती से तुलनात्मक लाभ 

अमरूद की खेती सवाई माधोपुर जिले का वातावरण अनुकुल होने से फायदे का सौदा साबित हो रही है। अमरुद की खेती से उस खेत में बोई जाती रही अन्य फसलों की तुलना में लाभ रहता हैं। यह किसान की आय दोगुना करने में सहायक है।

उद्यान विभाग के अनुसार परंपरागत खेती की तुलना में अमरुद बागवानी से चार गुना तक लाभ होने से किसान इसे अपना रहे हैं। हाल के कुछ सालों में जिले के किसानों ने सरसों, गेहूं जैसी फसलों को को छोड़कर अमरूद की बागवानी की ओर रुख किया है।

शुरू में किसानों ने काफी मुनाफा कमाया

नवंबर व दिसंबर माह में यहां होने वाली अमरूदों की बंपर पैदावार किसानों को रोजगार ही नहीं आर्थिक सुदृढ़ीकरण में भी योगदान करती है। अमरूदों की खेती ने यहां के किसानों की जिंदगी ही बदल दी है। सवाईमाधोपर जिला मुख्यालय और आसपास के गांवों के किसानों की माली हालत सुधारने में अमरूद की खेती कारगर सिद्ध हुई है। इससे किसानों के सपने सच हुए हैं।

मांग अधिक होने के कारण अच्छे दाम प्राप्त होते हैं। किसानों का अमरूद की फसल पर कहना है कि फिलहाल अमरूद का उत्पादन काफी बेहतर चल रहा है जिसके चलते किसानों को अमरूदों के काफी अच्छे दाम मिल रहे है। अमरूदों के बगीचों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही हैं जिससे व्यापार के लगातार बढ़ने की उम्मीद है।

इससे प्रेरित होकर इनके बागानों की संख्या में चरघातांकी वृद्धि हुई। अमरूद के प्रति किसानों की बढ़ती रुचि को देखते हुए इसके पौधे की नर्सरियों की संख्या काफी बढ़ गई है। ऐसे में अब जिले में ही अमरूदों की नर्सरियां तैयार होने लगी हैं।

खंड I

अमरूदों की बागवानी पर दबाव

अमरूदों की बागवानी कई कारणों से अब दबाव का सामना कर रही हैं। अमरूदों में बग व विल्ट रोग का खासा प्रकोप देखा जाता है। बेमौसम बरसात एवं मानसून की बेरुखी के कारण भी उत्पादन में गिरावट आ रही हैं। इसके चलते अमरूदों की पैदावार पर व उसकी बिकवाली पर खासा असर पड़ा है। दूरदराज के ठेकेदारों की अब यहां अमरूद की खेती करने में कम रुचि दिखाई देने लगी हैं। वाणिज्यिक कारणों से भी अमरूदों की बागवानी पर दबाव महसूस किया जा रहा है।

विक्रय प्रणाली पर दबाव 

‘जहां उत्पादन वही विपणन’ सिद्धांत को दृष्टिगत रखते हुए चकचैनपुरा में अमरुद की विशिष्ट मंडी स्थापित की गई है। यहां पर होने वाले 70 हजार मीट्रिक टन से लेकर 1.10 लाख मीट्रिक टन उत्पादन का क्रय करने के लिए यह सक्षम नहीं है। यहां पर रोजाना ले जाकर बेचने की भी समस्या किसानों के सामने आती हैं क्योंकि अधिकतर के पास में वाहन नहीं हैं। मंडी में पहुंचने वाली खेप की भी पूरी नीलामी नहीं हो पाती है। इसका प्रमुख कारण वेयरहाउस की कमी जैसी समस्याओं का होना है।

निजी खरीददारों पर आधारित व्यवस्था की खामियां

हर साल यहां के पेड़ो पर फल आते ही ठेकेदारों का जमावड़ा लग जाता है। यहां दूर- दूर से व्यापारी आते है और अमरूदों के हिसाब से बोली लगाकर ले जाते है, तथा दूसरे जगह ले जाकर ऊंचे दामों में बेचकर मुनाफा अर्जित करते है। लेकिन इस व्यवस्था की कई खामियां सामने आ रही हैं-

  • ठेकेदार द्वारा पुरे खेत की बोली लगाईं जाती है। इसके बाद बगीचे में ठेकेदार का ही काम रहता हैं। ठेकेदार द्वारा इस प्रकार थोक में खरीदने से सही मूल्य प्राप्त नही हो पाता। ज्यादा माल निकलने की स्थिति में नुकसान होता हैं। 
  • ख़राब मौसम का असर अमरूदों पर होता है, ठेकेदार द्वारा माल खरीदने के बाद समय पर खेत से निकासी नही हो पाने की स्थिति में उसे नुकसान उठाना पड़ता है। परिवहन संबंधी बाधाओं के कारण भी ठेकेदार को नुकसान उठाना पड़ता हैं।
  • ठेकेदारी प्रणाली में नुकसानों की संभावना अधिक होने के कारण कई ठेकेदार बीच में ही भाग जाते है और किसानों का भुगतान तक रुक जाता हैं।
  • ठेकेदार एक व्यक्ति विशेष होता है। उसके पास वेयरहाउस जैसी सुविधा नही होती हैं। इसलिए उसकी सुभेद्यता अंतर्निहित होती है।

इसके विकल्प के तौर पर कांटा प्रणाली की शुरुआत हुई हैं। इसमें ठेकेदार द्वारा पुरे खेत की बोली लगाने के बजाय खुद किसान द्वारा लाया गया माल ख़रीदा जाता हैं। स्थानीय कांटा संचालक ठेकेदार से जुड़े होते हैं, जो सभी संचालकों से माल को इकट्टा करके आगे भेज देता है। इसका फायदा यह हैं कि किसान को अनुमान के बजाय वास्तविक पैदावार का मूल्य प्राप्त होता हैं। ठेकेदार का फायदा यह हैं कि मौसम की वजह से ख़राब हुए अमरूदों की लागत से वह बच जाता है। फिर भी इसकी खामियां यह हैं कि किसानों के पास कांटा तक लाने के लिए साधन नहीं होते हैं। साथ ही अधिक मात्रा में माल खरीदने को कांटा संचालक भी अनिच्छुक होते हैं।

खंड II

विकल्प के तौर पर सहकारी समितियां

जैसा कि ऊपर स्पष्ट किया जा चूका है कि मंडी प्रणाली, ठेकेदार प्रणाली एवं कांटा प्रणाली, तीनो हो अपनी-अपनी कमियों के कारण एक विश्वसनीय एवं टिकाऊ विपणन के विकल्प के रूप में स्थापित नहीं हुई है। ऐसे में सहकारी समितियों के माध्यम से इस समस्या का बेहतर तरीके से समाधान किया जा सकता है।

निजी खरीददारों की अपनी क्षमताएं होती है। उनके पास परिवहन के साधन नहीं होते हैं, जिन्हें वे किराये से लेते हैं। एक दिन भी सड़क मार्ग संबंधी बाधाओं के कारण ट्रक के खड़े रहने से उन्हें भाड़ा अधिक चुकाना पड़ता हैं। इनके पास में वेयरहाउस की सुविधा भी नहीं होती हैं, ऐसे में माल के खराब होने पर फेंकने के अलावा कोई चारा नहीं बचता है। निजी खरीददार भविष्य में भी इन सुविधाओं को जुटाने का इच्छुक नहीं होता है। कई लोग दुसरे ठेकेदारों से प्रेरित होकर इस व्यवसाय में लग जाते हैं। बाद में अनुभव की कमी के कारण उन्हें घाटा उठाना पड़ता हैं और वे बिना भुगतान किए ही अमरूदों को छोड़कर भाग जाते हैं। कई बाद में भुगतान करने का आश्वासन देते हैं, परन्तु बिना भुगतान किए ही लापता हो जाते हैं। किसानों के पास इन ठेकेदारों को पाबन्द करने की क्षमता नहीं होती हैं। ठेकेदार वन टाइम प्रॉफिट के उद्देश्य से कार्य करते है, इसलिए आगे निवेश करने में इनकी रूचि नही होती हैं। विपणन के कार्य में बहुत मेहनत करनी होती है, जैसे कि अमरुद खेत से ग्रेडिंग करके पैक करना, परिवहन और बाहर ले जाकर बेचना, मजदूरों का भुगतान करना आदि। ये सब थकाऊ प्रक्रिया है, इनमे आदमी विशेष की शक्तियां क्षीण हो जाती हैं।

इसलिए सहकारी समितियां इनके समाधान बेहतर तरीके से प्रदान कर सकती है-

  • सहकारी समितियों की क्षमता असीमित होगी। इनकी क्षमता निजी ठेकेदारों की तुलना में अधिक होगी क्योंकि इनके पास स्टाफ होगा। प्रत्येक कार्मिक का कार्य विभाजित होगा, जिससे वे थकेंगे नही। साथ ही, निर्धारित काम को करने से विशेषज्ञता भी अर्जित होगी, इससे दक्षता में वृद्धि होगी।
  • सहकारी समितियां वन टाइम प्रॉफिट के बजाय आगे भी कार्य करेगी, इससे वे निवेश करने को प्रेरित होगी। समितियों के पास वेयरहाउस और वाहन खुद के उपलब्ध हो सकेंगे। इससे विपणन क्षमता में सुधार होगा।
  • सहकारी समितियों को भुगतान पूर्ण नहीं करने की स्थिति में उत्तरदायी ठहराया जा सकता हैं। 
  • सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों को जोड़ने से भावी उत्पादन का सटीक अनुमान लगाना और उसके अनुसार विपणन योजना बनाना भी संभव होगा।
  • सहकारी समितियां न केवल विपणन का बल्कि प्रसंस्करण के लिए भी प्रयास कर सकेगी।

इसके लिए द्विस्तरीय सहकारी समितियां स्थापित की जानी चाहिए- जिला स्तर पर केन्द्रीय सहकारी समिति एवं गाँव के स्तर पर प्राथमिक सहकारी समिति। केन्द्रीय सोसाइटी द्वारा समन्वय एवं सुविधा प्रदाता का कार्य किया जाएगा। प्राथमिक सोसाइटी गांवों में काँटा प्रणाली के माध्यम से क्रय करेगी। किसानों के खेत से ही उपज को एकत्रित किया जाएगा। केन्द्रीय सोसाइटी मुख्य बाजार एवं वहां तक परिवहन या वेयरहाउस प्रबन्धन का कार्य देखेगी।

आगे की राह

  • राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर सवाई माधोपुर की पहचान अमरूदों से है। अमरूद उत्पाद को अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने के लिए यहां के किसानों को जैविक पद्धति से खेती करने की आवश्यकता है।
  • सवाई माधोपुर, राजस्थान (भारत) में अमरूद को एक जिला एक उत्पाद के तहत चयनित किया गया हैं।
  • प्रसंस्करण के क्षेत्र में निम्न प्रगति: यहां जल्द ही वेल्यू एडिशन के लिए प्रोसेसिंग यूनिट लगाया जाना तय है। किसानों को FPO के माध्यम से अमरुद की प्रसंस्करण यूनिट स्थापित करने के लिए जागरूक किया जा रहा है। प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित करने के लिए किसानों को अनुदान सहायता भी उपलब्ध कराई जाएगी।
  • भण्डारण क्षमता के लिए सहकारी समितियों या FPO को वेयरहाउस निर्माण के लिए ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है।

निष्कर्ष

अमरूदों के आर्थिक महत्त्व को बनाये रखने के लिए इसकी विपणन श्रृंखला को मजबूत करने की आवश्यकता हैं। इसके लिए सहकारी समितियों का ग्रामीण स्तर पर जाल फैलाना होगा। सहकारिता आन्दोलन किसानों की विपणन समस्या का समाधान करने में सहायक होगा।

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