बीएचयू की स्थापना और मदन मोहन मालवीय

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन की एक अमूल्य विरासत हैं। ब्रिटिश शासन के समक्ष स्वदेशी मूल्यों में भारतीयों को शिक्षित करने के लिए स्थापित इस विश्वविद्यालय का एक दीर्घ इतिहास रहा हैं। जितने  प्रयास और संघर्ष इसकी स्थापना से पूर्व के हैं, उससे अधिक संघर्ष इसकी स्थापना के बाद इसे निर्मित और संचालित करने में किया गया। इस विद्या की राजधानी को स्थापित करने में महामना जी ने अपने जीवन का अधिकांश भाग समर्पित किया हैं। इसलिए हम प. मदन मोहन मालवीय को इसकी स्थापना का श्रेय देते हैं। लेकिन हाल ही में एक शोधकर्ता तेजकर झा ने अपनी पुस्तक हिस्ट्री ऑफ बीएचयू में बीएचयू के संस्थापक को लेकर मालवीय जी की भूमिका पर सवाल उठाये है। इनका मानना है कि इसमें अन्य सहयोगियों की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी जिनमें एनी बेसेंट और दरभंगा के महाराजा रामेश्वर सिंह का नाम प्रमुख है। एनी बेसेंट ने कॉलेज प्रदान किया था और दरभंगा के महाराजा ने धन जुटाने की मुहिम का नेतृत्व किया था। लेकिन इसका श्रेय केवल मालवीय जी को जाता हैं, जबकि उनका योगदान अन्य व्यक्तियों के समकक्ष ही था।

बीएचयू के संस्थापक के रूप में नवीन दावे 

अपनी बात के समर्थन के लिए तेजकर झा निम्न तथ्य प्रस्तुत करते हैं :

  1. विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए गठित की गई बीएचयू सोसायटी के अध्यक्ष दरभंगा के महाराजा रामेश्वर सिंह थे। उनका यह दायित्व केवल सम्मानार्थ (honorary) नहीं था, बल्कि उन्होंने इस क्षमता से कार्य भी किए थे।
  2. बीएचयू मूवमेंट को लोकप्रिय बनाने और धन जुटाने के लिए उन्होंने कई देशी रियासतों के पास प्रतिनिधि मंडल भेजे थे और स्वंय ने भी 5 लाख रूपये का योगदान प्रदान किया था।
  3. बीएचयू मूवमेंट से संबंधित सभी चर्चाओं में महाराजा का नाम आता था, संबंधित पत्राचार भी महाराजा के नाम से होते थे।
  4. स्थापना समारोह के अवसर पर वायसरॉय लार्ड हार्डिंग के बाद प्रेसिडेंट ऑफ बीएचयू सोसाइटी की हैसियत से महाराजा रामेश्वर सिंह ने ही भाषण दिया था।  स्थापना समारोह की अध्यक्षता भी एनी बेसेंट द्वारा की गई थी। मालवीय जी कही से भी फ्रंट लाइन में दिखाई नही पड़ रहे थे। यहाँ तक कि स्थापना के बाद सभी प्रकार के बधाई संदेश भी महाराजा को ही प्राप्त हुए थे।

इस प्रकार तेजकर झा मानते हैं कि अन्य लोगो के योगदान को इतिहास से मिटा दिया गया हैं और मालवीय जी को एक तरफा श्रेय दिया जा रहा हैं। बीएचयू के हर संस्थान, डिपार्टमेंट और भवनों में मालवीय जी की प्रतिमा लगी हुई हैं, जबकि बाकी लोगो का उल्लेख तक नही हैं। जबकि उनके योगदान के बिना बीएचयू का अस्तित्व में आना कदापि संभव नही था।

मालवीय जी को संस्थापक मानने का तथ्य कब से प्रचलित हुआ, इस बारे में तेजकर झा बताते हैं कि लंबे समय तक इस विषय पर कभी चर्चा ही नहीं हुई कि इस विश्वविद्यालय का संस्थापक कौन है या कौन थे। सबसे पहले विश्वविद्यालय प्रशासन में शामिल एक सीनेट सदस्य सुंदरम ने अपनी पुस्तक “BHU 1905 to 1935” में मालवीय जी को संस्थापक बताया। इस तथ्य का विरोध कर सकने वाले पक्षकारों की तब तक मृत्यु हो गई थी, बीएचयू सोसायटी के सचिव सर सुंदरलाल की वर्ष 1917 और महाराजा रामेश्वर सिंह की वर्ष 1929 में मृत्यु हो गई थी। इस पुस्तक में 1905 से 1919 तक के दस्तावेजों से बचने की कोशिश की गई है। एक संभावना यह भी हो सकती हैं कि बाद में उन दस्तावेजों को नष्ट कर दिया गया हो।

अब तेजकर झा द्वारा प्रस्तावित मत पर टिप्पणी करने से पहले हमे बीएचयू की स्थापना से जुड़े घटनाक्रमों को समझ लेना चाहिए।

बीएचयू की स्थापना से संबंधित घटनाक्रम

दरअसल बनारस में उच्च शिक्षा के लिए संस्थान की स्थापना हेतु तीन लोग प्रयासरत थे :

  1. एनी बेसेंट : इन्होने वर्ष 1898 में सेंट्रल हिंदू कॉलेज नामक विद्यालय की स्थापना की थी  तथा इसके बाद वे विश्वविद्यालय की स्थापना के प्रयास में आगे बढ़ रही थी। वर्ष 1960 में रॉयल चार्टर की अनुमति के लिए उन्होंने आवेदन भी कर दिया था, जिस पर सरकार की तरफ से उन्हें कोई भी प्रतिक्रिया नहीं मिली थी।
  2. महाराजा रामेश्वर सिंह : दरभंगा के महाराजा रामेश्वर सिंह भी काशी में शारदा विद्यापीठ की स्थापना करने की योजना बना रहे थे।
  3. मदन मोहन मालवीय : इन्होने वर्ष 1905 में कांग्रेस के बनारस सत्र के दौरान विश्वविद्यालय की स्थापना के संदर्भ में अपनी प्रतिबद्धता की घोषणा की। इन्होने वर्ष 1911 में अपने विचारों को एक योजना के रूप में प्रस्तुत किया, जिसका उद्देश्य ऐसी शिक्षा के लिए प्रयास करना था, जो गरीबी उन्मूलन और आय में वृद्धि के लिए भारतीय धर्म और संस्कृति के साथ तकनीकी और विज्ञान को संयोजित करती हो।

इन सभी प्रयासों के सहयोग से वर्ष 1911 में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी सोसाइटी की स्थापना हुई। दरभंगा के महाराजा को इसका अध्यक्ष बनाया गया और इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकील सुंदरलाल इसके सचिव थे। इसमें 3 सदस्य थे, जिनमें प्रथम मदन मोहन मालवीय जी थे, दूसरे एनी बेसेंट और तीसरे काशी नरेश महाराजा प्रभु नारायण सिंह थे।

विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए बीएचयू सोसाइटी को ब्रिटिश इंडिया गवर्नमेंट द्वारा दो शर्ते पूर्ण करनी थी। प्रथम तो सोसाइटी के पास कोई शिक्षा संस्थान का होना जरूरी था, इसके लिए एनी बेसेंट द्वारा स्थापित सेंट्रल हिंदू कॉलेज का अधिग्रहण किया गया था। द्वितीय शर्त के अनुसार 50 लाख रुपए एकत्रित करने थे, जिसे एकत्रित करने के लिए राजा महाराजाओं के सहयोग के अतिरिक्त जन सहयोग का भी सहारा लिया गया था। स्वंय दरभंगा के महाराजा ने 30 लाख रूपए प्रदान किए थे और फंड एकत्रित करने के लिए कई देसी राजा-महाराजाओं के पास प्रतिनिधि मंडल भेजा था। सोसाइटी के सदस्य काशी नरेश ने विश्वविद्यालय परिसर के लिए भूमि प्रदान की थी और आगे भी इस प्रक्रिया में योगदान देते रहे।

अक्टूबर 1915 में तत्कालीन शिक्षा मंत्री सर हारकोर्ट बटलर के प्रयासों से हिंदू यूनिवर्सिटी एक्ट 1915 केंद्रीय विधानसभा से पारित हो गया, जिस पर वायसराय ने तुरंत स्वीकृति प्रदान कर दी थी।

4 फरवरी 1916 को बसंत पंचमी के दिन वायसराय लॉर्ड हार्डिंग द्वारा इसका शिलान्यास किया गया। समारोह की अध्यक्षता एनी बेसेंट के द्वारा की गई। जिसमें देसी राजा महाराजाओं, प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा भाषण दिए गए, जिनमें महात्मा गांधी जी की प्रमुख थे और उनका यह भारत में प्रथम सार्वजनिक भाषण था, अन्य व्यक्तियों में सीवी रमन जगदीश चंद्र बसु आदि शामिल थे।

विश्वविद्यालय में विधिवत शिक्षण कार्य अक्टूबर 1917 से सेंट्रल हिंदू कॉलेज में प्रारंभ हुआ। परिसर में सबसे पहले इंजीनियरिंग कॉलेज का निर्माण हुआ, उसके बाद क्रमशः कला संकाय और विज्ञान संकाय के कॉलेज स्थापित हुए। आगे 13 दिसंबर 1921 को प्रिंस ऑफ़ वेल्स द्वारा विश्वविद्यालय का औपचारिक उद्घाटन किया गया। निजी प्रयासों से स्थापित यह प्रथम विश्वविद्यालय था।

आगे भी कई महान हस्तियों ने इसमें मदद की, जिनके माध्यम से भवन, छात्रावास, संकाय भवन और अन्य सुविधाओं का निर्माण हुआ। उदाहरण के लिए :

  1. परिसर में चारदीवारी एवं प्रवेश द्वार के निर्माण कार्य का वित्तपोषण बलरामपुर के महाराजा पतेश्वर प्रताप सिंह द्वारा किया गया।
  2.  सेंट्रल लाइब्रेरी के निर्माण में बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड तृतीय का अहम योगदान रहा।
  3.  बिरला परिवार द्वारा परिसर में विश्वनाथ मंदिर और एक बड़े छात्रावास का निर्माण किया गया।
  4.  कई राज परिवारों और व्यवसायियों द्वारा छात्रावास और अन्य विभागों के निर्माण में सहायता प्रदान की गई। जैसे कि : लिम्बडी के महाराजा द्वारा लिम्बडी छात्रावास, हैदराबाद के नवाब द्वारा हैदराबाद गेट का निर्माण।

इस प्रकार बीएचयू की स्थापना हुई। अब आते हैं इस विवाद पर 

आखिर मालवीयजी को ही संस्थापक क्यों माना जाना चाहिए ?

यह सही हैं कि बीएचयू की स्थापना में कई लोगो की उल्लेखनीय भूमिका रही। लेकिन मालवीयजी की भूमिका को हम इसलिए खास मान सकते हैं, क्योंकि :  

  1. स्वपनदृष्टा और साकार कर्ता :  मालवीयजी ने ही विश्वविद्यालय की स्थापना का स्वपन देखा और वे उसे साकार करने तक उससे जुड़े रहे। बीएचयू की स्थापना में भले ही अन्य लोगो का भी योगदान हो सकता हैं, लेकिन वे सभी चरणों में विश्वविद्यालय से जुड़े नही रहे। दरभंगा के महाराजा और ऐनी बेसेंट स्थापना के बाद विश्वविद्यालय के संचालन में सक्रिय नही रहे। जबकि मालवीयजी वर्ष 1919 से लेकर वर्ष 1938 तक यहाँ के कुलपति रहे।
  2. औपचारिक बनाम व्यावहारिक योगदान : मालवीयजी भले ही औपचारिक समितियों और समारोह का हिस्सा नही रहे हो, परन्तु उनके द्वारा इस मुहिम को ज़मीनी नेतृत्व प्रदान किया गया। उन्होंने ही देशभर में इस मांग हेतु समर्थन अर्जित करने के लिए भ्रमण किया और तत्कालीन राजनेताओं, शिक्षाविद एवं वैज्ञानिकों को यहाँ पर आमंत्रित किया।
  3. स्थापना के बाद के कार्य : विश्वविद्यालय की स्थापना कोई सरकारी मंजूरी प्राप्त करने का कार्य भर नही थी। विश्वविद्यालय में भवनों का निर्माण शेष था, जिसके लिए पहले से भी ज्यादा धन जुटाने की आवश्यकता थी। पढने वाले छात्रों की सुविधा और पढ़ाने वाले संकायों के लिए भी धन की जरुरत थी। इन सब के लिए धन के स्त्रोत मालवीयजी द्वारा जुटाए गये। कई मौके ऐसे आये जब विश्वविद्यालय सहायता के अभाव में बंद हो सकता था, लेकिन मालवीयजी द्वारा किए गये प्रयासों से यह बच गया। 

इस प्रकार मालवीयजी के पक्ष में औपचारिक साक्ष्य कमजोर प्रतीत होते हो, परंतु व्यावहारिक साक्ष्य केवल और केवल उन्ही के पक्ष में हैं। मालवीयजी,अन्य संस्थापकों से इस मायने में अलग हैं कि उन्होंने विश्वविद्यालय की बगियाँ को सींचकर बढ़ा करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। जमीनी स्तर पर इस पहल को लोकप्रिय करने और स्थापना के बाद स्थायित्व प्रदान करने में मालवीय की भूमिका उन्हें अन्य से अलग कर देती हैं। इसलिए तेजकर झा द्वारा किए गये दावे के साथ खड़ा होने से हमे असहजता महसूस होती हैं।

अन्य संस्थापकों और योगदान करने वालो की उपेक्षा नही की गई हैं

ये बात सही हैं कि मालवीयजी की प्रतिमा की स्थापना ज्यादा संख्या में हैं, लेकिन इसका मतलब यह कतई नही हैं कि विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा अन्य संस्थापकों और योगदान करने वालो की उपेक्षा कर दी हैं।

  1. बीएचयू सोसाइटी के सदस्य रहे सुंदरलाल के नाम पर विश्वविद्यालय के मेडिकल कॉलेज का नाम रखा गया हैं।
  2. जिन भी लोगो ने आर्थिक सहयोग देकर विश्वविद्यालय परिसर के अंदर जो भी भवन, छात्रावास या विभाग बनवाये हैं, उनके नाम उन्ही महापुरुषों के नाम पर रखे गये हैं।
  3. दरभंगा के महाराजा को भी इसी प्रकार का सम्मान दिया गया हैं।

इसलिए यह कहना सही नही हैं कि अन्य संस्थापकों और योगदान करने वालो की उपेक्षा कर दी गई हैं।

निष्कर्ष 

बीएचयू की स्थापना एक महान उद्देश्य से जुडी हुई हैं, जिसके तहत हमारे महापुरुष ऐसी शिक्षा के लिए प्रयासरत थे, जो गरीबी उन्मूलन और आय में वृद्धि के लिए भारतीय धर्म और संस्कृति के साथ तकनीकी और विज्ञान को सयोंजित करती हो। इस उद्देश्य को पूरा करने में बहुत सार्थक रहा हैं, जिसने साबित किया कि धर्म और संस्कृति तथा तकनीकी और विज्ञान एक दुसरे के विरोधी नही हैं, बल्कि एक साथ अस्तित्व में आने पर प्रगति के द्वार खोलते हैं। इस प्रकार के मूल्यों को स्थापित करने वाले विश्वविद्यालय की स्थापना से जुड़े सभी महापुरुषों का सम्मान होना चाहिए।

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