विरोधाभासी हितों की जकड़न में रणथंभौर

Ranthambore tiger, territorial conflict among tigers
बाघों के प्राकृतिक परिवेश में विचरण करते देखने की चाह लेकर आने वाले वाले देशी-विदेशी पर्यटकों ने रणथंभौर को वैश्विक पर्यटन मानचित्र पर विशिष्ट जगह दी हैं। रणथंभौर को बाघ आरक्षित क्षेत्र घोषित करके उनके संरक्षण को विधायी रूप से सुनिश्चित किया गया हैं। पर्यटन से जुडी गतिविधियाँ यहाँ पर तेजी से फलफूल रही हैं। लेकिन इन्ही के समानांतर रणथंभौर में इस समय कई प्रकार के द्वन्द मौजूद है। जो स्थानीय लोगो को दैनिक रूप से प्रतिकूल रूप से प्रभावित  कर रहे है। इस आलेख में  हम उन द्वंदों की पहचान कर रहे हैं, हालाँकि स्थानीय लोगो को इन द्वंदों के बारे में जागरूक करना भी समान रूप से चुनौतीपूर्ण है। इन द्वंदों का संतुलित विश्लेषण करने के लिए आवश्यक हैं कि द्वंद में मौजूद कमजोर पक्ष अपने उपेक्षित होते हितो की पहचान करे। ऐसी स्थिति में ही संबंधित प्राधिकारियों को उनके हितो के लिए उपाय करने हेतु तैयार किया जा सकता हैं। रणथंभौर में विरोधाभासी हितो की इस पहेली में कई हितधारक हैं, जिनमे सरकार, पर्यटन उद्योग, पर्यावरणवादीयों के साथ-साथ स्थानीय समुदाय प्रमुख हैं। इनमे सबसे कमजोर हितधारक स्थानीय समुदाय हैं, जिनके हितो की पहचान, जागरूकता और संरक्षण की आवश्यकता हैं। इस आलेख में स्थानीय समुदाय को विशिष्ट रूप से ध्यान में रखते हुए द्वंदों की पड़ताल की गई हैं। 

एक ऐसी स्थिति याद आ रही हैं जिसमें लोगो के मन में असंतोष तो हैं कि जो भी हो रहा हैं, वो उनके हितो के अनुकूल नही हैं। लेकिन उन्हें पता नही हैं कि उनके हित क्या हैं और क्या वे किसी प्रकार का कोई नैतिक या न्यायिक आधार रखते भी हैं या नही। कोई न तो उनके हितो की वकालात करता और न ही कोई उनके प्रति सहानुभूति दर्शाता हैं, इससे ऐसा भी लगता हैं कि हो सकता हैं वो ही गलत हो। इस प्रकार यह अज्ञानतापूर्ण अपराधबोध ही उन्हें सुभेद्य स्थिति में ले जाने के लिए उत्तरदायी हैं। यह एक तरीके से औपनिवेशिक स्थिति के समकक्ष हैं, उसकी आहट हैं।     

जिस तरह दादाभाई नौरोजी ने औपनिवेशिक व्यवस्था के आर्थिक प्रभावों की पहचान की और उनके खिलाफ आवाज उठाई। भले ही उसका अंग्रेजों पर तत्काल कोई असर नही हुआ हो,परन्तु वे द्वंद को उजागर करने में कामयाब हुए थे। इसलिए हमे भी दादाभाई नैरोजी के समान अपनी बात को कहने से नहीं चूकना चाहिए, इस भरोसे में नहीं रहे कि कोई सुनने वाला तो है ही नहीं, हम बोलकर क्या करेंगे। हो सकता है लोग एक शुरुआत का इंतजार कर रहे हो।

मौजूदा द्वन्द निम्न प्रकार के है -
1.  वन्य जीव -मानव संघर्ष
2.  बाघ-बाघ संघर्ष
3.  स्थानीय लोग -वन प्रशासन टकराव
4 . लोग आपसी टकराव
5.  व्यावसायिक समूहो के संघर्ष

चलो अब हम इन संघर्षो का विस्तृत खाका खींचने की कोशिश करते है -

1. TIGER- TIGER CONFLICT

रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान लम्बे समय से बाघों का प्राकृतिक आवास रहा है। प्रोजेक्ट टाइगर के द्वारा मिले संरक्षण के माध्यम से न केवल अपना अस्तित्व बनाये रखा है, बल्कि बाघों के जनसंख्या आधिक्य से जुडी समस्याए उत्पन्न भी हुई है। जंगल में बाघों के इलाको में टकराव के कारण आपसी संघर्ष हुए है। जंगल पर इनकी बढ़ती हुई संख्या के दबाव से इन्होने वन क्षेत्र के बाहर भी मूवमेंट शो किया है।

2. TIGER- LOCAL PEOPLE CONFLICT

आबादी क्षेत्रो में बाघों के प्रवेश ने लोगो में आक्रोश को उतपन्न किया है। इन बाघों ने आबादी क्षेत्रो में जाकर मवेशियों और यहां तक की मानव तक का शिकार किया है। इनके खौप के कारण लोग रात में फसलों की सिंचाई और रखवाली तक को नहीं जाते है। जिसके कारण उनकी फसल को रात्रि में आवारा पशुओ का जोखिम रहता है। रात्रि में विधुत का फीडर होने की वजह से उसे खली छोड़ना पड़ता है। इस वजह से आक्रोश के लपेटे में विद्युत विभाग भी आ जाता है।
बाघों की वजह से जंगल में लोगो की गतिविधियों को पहले ही प्रतिबंधित किया जा चूका है। इसकी वजह से वे दैनिक उपयोग के वनोत्पाद को प्राप्त नहीं कर सकते है। उनके पशुओ को चराने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। गाँवो में चरागाहों पर अतिक्रमण की स्थिति उत्पन्न होने से अब किसानो के लिए पशुओ को रखना मुश्किल हो गया है। इस प्रकार इसने आजीविका को भी बुरी तरिके से प्रभावित किया है।

3.  GOVT- PEOPLE CONFLICT

एक तरफ लोगो का प्रवेश हतोत्सहित कर दिया गया है , वही दूसरी तरफ पर्यटन गतिविधियों का संचालन लोगो के मन में संशय उत्पन्न करता है कि उन्हें उनके संसाधनों से वंचित किया जा रहा है। क्योकि कई गाँवो को इसके सीमा क्षेत्र से विस्थापित कर दिया गया है, जिनका पुनर्वास ने न केवल विस्थापित लोगो बल्कि अन्य लोगो के मन में भी आक्रोश उत्पन्न किया। क्योकि उन्हें नई  जगहों पर बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा।  अब जो गांव बफर एरिया में स्थित है उन पर भी कई तरह के अंकुश थोपे जाते है। जिसके कारण उनमे भी गुस्सा है। इन अंकुशों पर प्रतिक्रिया का उदाहरण उलियाना गांव में सामने आ चूका है। पडोसी गांव के लोगो ने दिवार को समय समय पर तोड़कर बताया है कि वे सरकार के वनो से पृथक करने के फैसले से खुश नहीं है।

4 PEOPLE-PEOPLE CONFLICT

 सरकारी अंकुशों के बावजूद अपनी गतिविधियों को जारी रखने के लिए लोगो ने अवैध तरीको को अख्तियार किया है। जिसकी वजह से स्वयं लोगो को ही परेशानी का सामना करना पड़ा है। जैसे कि - पहाड़ो से पत्थर लाने पर रोक के कारण अवैध खनन करने वाली सरपट दौड़ती ट्रेक्टर-ट्रॉलियों ने कई लोगो को कुचला है ,जिससे खुद ग्राम वाले ही इनका विरोध कर रहे है। दूसरा उदाहरण यह है कि वनो व चरागाहों तक पहुंच के आभाव में पशुपालको के जानवर खेतो में पहुंच जाते है, जिससे ग्रामीणों के बीच आपसी तनाव उत्पन्न हो जाता है। इस  प्रकार से चीजे आपसी तनाव को बढ़ावा दे रही है।

5. CONFLICT FROM BUSINESS

वही लोगो को एक तरफ तो घरो के लिए पत्थरो आदि की जरूरत पड़ती है, वही दूसरी तरफ सरकार इस पर प्रतिबंध लगाकर इस मसले को उलझा देती है। वही कुछ व्यवसायियों को वनो में गतिविधियों का संचालन की अनुमति देती है। जिससे यह साबित होता है कि नियम कायदे केवल गरीबो के लिए है। पैसे वाले के लिए कोई नियम कानून नहीं है।

6. CONFLICT BY ENVIRONMENT

रणथम्भौर के पर्यावरण संरक्षण के मद्देनजर इस क्षेत्र में कोई बड़ी औधोगिक इकाई यहाँ पर लग नहीं पाई है। इसकी वजह से क्षेत्र में काफी ज्यादा बेरोजगारी पाई जाती है। पर्यटन की वजह से भी पर्याप्त रोजगार उत्पन्न नहीं हुए है।

7. OTHER ISSUES

इसके अलावा रणथम्भौर एक ऐतिहासिक स्थल रहा है ,जिसका महत्व वर्तमान में गौण हो गया है। उसके ऐतिहासिक महत्व के आधार पर इसकी प्रासंगिकता पर विचार करना चाहिए , न की सवाई माधोपुर की स्थापना की छाया में उसे दबाना चाहिए।

खंड II
कभी भी ऐसा नहीं होना चाहिए कि भौगोलिक विशेषताएं स्थानीय लोगो को फायदा नहीं पहुचाये, उल्टा उन्हें परेशानी में डाले और फायदे बाहर के लोगो को मिले। लोगो में अपने स्थान को लेकर स्वाभिमान की भावना उत्पन्न करने के प्रयास किए जाने चाहिए। रणथम्भोर से जुड़े इसी प्रकार के मुद्दों को हम इस रिपोर्ट में कवर करने की कोशिश करेंगे, ताकि हम उन से जुड़े समाधानों की तलाश कर सके। लोगो में यह भाव रहना चाहिए कि प्राकृतिक संस्धानों पर उनके परम्परागत अधिकार कायम है। रणथम्भौर में लोगो की समस्याओं के समाधान की असीम क्षमता है, जिसे प्रयुक्त  करने की आवश्यकता है। रणथम्भौर लोगो के जीवन में सकारत्मक भूमिका निभाएगा। इस भावना के साथ हम इस मुद्दे पर आगे बढ़ते है।

अब बात करते है समाधानों की। तो इसके लिए सभी हितधारकों की  चिंताओं का समाधान जरुरी है। जिसे पृथक-पृथक रूप से सम्बोधित किया जा सकता है -
  1. ग्रामीण फोरम
     
    वन क्षेत्र के पडोसी गांव  के लोगो की एक फोरम बनाई जानी चाहिए , जिसे स्थानीय वन चौकी से जोड़ा जाए। जिसमे वन विभाग ग्रामीणों की अपेक्षाओं का ध्यान रखे। वही ग्रामीण वन कानूनों के प्रवर्तन में सहयोग करे। इससे दोनों पक्षों के बीच सुचना अंतराल उत्पन्न नहीं होगा और किसी प्रकार के अविश्वास  उत्पन्न नहीं होगी। वही मांगो और अपेक्षाओं पर तात्कालिक कार्रवाही सम्भव होगी। 
  2. वन्य जीवो का दूसरे जगहों पर स्थानांतरण किया जाए।  वन क्षेत्रो में दूसरे जीवो की संख्या बधाई जाए। पर्यटन  के द्वारा वन क्षेत्र को इतना अशांत नहीं बनाया जाए कि बाघ जंगल से निकलकर आबादी भूमि में पहुंच जाए। 
इस प्रकार हम रणथम्भौर से जुडी प्रतिकुलताओ को  अवसरों में बदल सकते है।

खंड III
रणथम्भौर में पर्यटन से जुड़े अवसरों को संवर्धित करने की आवश्यकता है। यहां  शूटिंग की भी अपार संभावनाए है।

निष्कर्ष :
Those who forget geography can never defeat it  वाली बात यहां पर सही साबित हो जाती है। इसलिए हमे भूगोल को काबू में करने की जरुरत है।

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