खेती में शारीरिक जोखिम

खेतीं के कामकाजों में गम्भीर शारीरिक जोखिम निहित रहती है। ये जोखिम कृषि कार्यों के दौरान लापरवाही बरतने, कृषि यंत्रों के संचालन में कौशल के अभाव या कई प्रकार की दुर्घटनाओं के कारण होती है। जिनके कारण लोग शारीरिक अंगो को या तो विकृत कर लेते हैं या जान से ही हाथ धो बैठते है। इसके अलावा मेहनत भी अकुशल तरीके से करने के कारण सेहत पर भी कुप्रभाव पड़ता है। ऐसा लगता है कि लोग इसे मजबूरी ज्यादा और एक पेशा कम समझते है।

गांवो में लोग खेतीबाड़ी के कामो में दिन-रात कठीन परिश्रम करते है और फिर उसके अनुरूप   पोषण नही प्राप्त करते है। इस तरह की जीवन शैली के लंबे समय तक चलने से उनके शारीरिक ढांचे में बदलाव आ जाता है। जो लोग मजदूरी करते है वे भारी भरकम सामान उठाने के कारण कमर से झुक जाते है। इस वजह से वे युवावस्था के उत्तरार्द्ध से ही वृध्दों के समान लगने लग जाते है। अकुशल तरीके से की जाने वाली मेहनत उनके शरीर को निचोड़ लेती है। इससे उनकी रोग प्रतिरोधकता पर भी असर पड़ता है जिसके कारण वे बुढ़ापे के दिन बीमारियों के साथ व्यतीत करते है।

कृषि कार्यो के दौरान भी कई ऐसी घटनाएं होती है जो गम्भीर शारीरिक नुकसान पहुचाती है। जो कि इस प्रकार है-
  1. धूल और धुंए सम्बंधित कई कामकाज ऐसे होते है जो सांस व त्वचा की बीमारियों को जन्म देते है जैसे कि थ्रेशिंग कार्य। त्वचा सम्बंधित बीमारी अक़्सर बच्चों में ज्यादा देखने को मिलती है, इनमे फोड़े, खाज-खुजली, एलर्जी आदि शामिल है।
  2. गांवो में बरसात के पानी के निकास की सही व्यवस्था नही होती है, ऐसे में गंदे जल से बार-बार निकलने के कारण पैरो में खारवा नामक समस्या लोगो को होती है। पांवो के फटने की समस्या भी अधिकतर महिलाएं और पुरुषों में देखी जाती है। कई लोगो के तो हाथ की धारियां ही मिट गई है, जिसके कारण उन्हें बॉयोमेट्रिक प्रमाणीकरण में दिक्कत होती है ।
  3. कई जानलेवा चीजे भी खेतीं के कार्य मे निहित होती है। कई बार लोग फसल कटाई या चारा काटते समय अपने अंगो को क्षतिग्रस्त करवा बैठते है। मशीनों से कइयों की अंगुली कट जाती है तो कइयों के हाथ या पैर, कई बार तो थ्रेशिंग मशीनों से लोगो तक के मरने तक कि खबर सुनने में आती है।
  4. रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग के सही तरीको से अज्ञानता के कारण भी समस्या उत्पन होती है। लोग उन्हें सीधे हाथ मे ले लेते है और फिर हाथ सही से साफ नही करते है। उन्हें छिड़कते समय भी मुह को ढककर नही रखते है। जिसके कारण साँस लेने में समस्या होती है और कई प्रकार की त्वचा सम्बंधित एलर्जी उत्पन हो जाती है।
  5. फसली कामकाज के दौरान जहरीले कीड़ो का भी खतरा रहता है। सांप, बिच्छू जैसे जीव खेतो में घूमते रहते है। घास में ये दिखते तो है नही और जब गलती से हाथ-पैर लग जाता है तो ये काट लेते है। इनके उपचार के लिए भी स्थानीय स्तर पर कोई चिकित्सकीय व्यवस्था नही होती है। लोग झाड़फूंक के भरोसे रह जाते है।
  6. विधुत लाइनो की क्षतिग्रस्तता भी किसानों के लिए जानलेवा बन रही है। खंभो और तारो का सरकार द्वारा समय पर रखरखाव नही किया जाता है, जिससे वे कभी भी टूटकर खेतो में गिर जाते है। ऐसे में अंधेरे-उजाले खेतो में जाने वाले किसानों को करंट लग जाता है। उच्च वोल्टेज के उतरने पर भी विधुत उपकरणों की वजह से करंट आ जाता है।
  7. लोगो को शारीरिक नुकसान पहुंचाने में आपसी झगड़ो का भी योगदान रहता है। वे खेतो की मेड़बंदी, मेड़ो पर स्थित पोधो के स्वामित्व को लेकर, पशुओं के दुसरो के खेतों में जाने को लेकर आपस मे लड़ पड़ते है। इन बातों पर वे लाठी या धारदार हथियारों का प्रयोग करते है जिससे सामने वाले के या तो हाथपैर तोड़ दिये जाते है या काट दिये जाते है, कई बार तो जान भी चली जाती है।
उपाय
कृषि कार्य के दौरान होने वाली शारीरिक जोखिमों को कम करने के लिए वैसे तो सबसे बड़ा उपाय सावधानी बरतना है फिर भी निम्न उपाय किए जाने चाहिए--
  1. साँस व त्वचा सम्बंधित समस्याओं का कारण धूल और धुंए में कार्य है। इसलिए किसानों को ऐसी पध्दतियों से अवगत कराने की जरूरत है जो स्वच्छ तरीके से करे जा सकते हो। गंदे जल की निकसीं की व्यवस्था की जाए ताकि उसमे बार-बार घूमने की जरूरत नही पड़े।
  2. कृषि उपकरणों को चलाने का प्रशिक्षण दिया जाए , बिना जानकारी के अभाव में मशीनों से अपने हाथपैर कटवा लेते है। मशीनों की डिज़ाइन भी इस तरीके से की जाए कि वे लापरवाही और असावधानी की दशा में नुकसान दायक साबित नही हो।
  3. रासायनिक पदार्थो को प्रयोग करने के सही तरीको के बारे में किसानों को अवगत कराया जाए। हाथ मे दस्ताने लगाने और मुंह ढकने की सलाह दी जाए।
  4. जहरीले कीड़ो के काटते ही आदमी और उसके आसपास के लोग अपना आपा खो देते है। जल्दबाजी में वे कोई उचित कदम नही उठा पाते है। पहले तो उन्हें प्राथमिक चिकित्सा के बारे में अवगत कराया जाए और फिर स्थानीय चिकित्सालय में पहुचाया जाए। जहर-रोधी दवाएं गांवो के स्तर तक भी उपलब्ध होनी चाहिए।
  5. करंट लगने की दशा में भी प्राथमिक उपचार से लोगो को अवगत कराया जाए। इसके अलावा तारो की समय-समय पर देखरेख की जानी चाहिए। तारो की लाइनो को खेतों के बीच से होकर कम से कम निकाला जाए।
  6. लोगो को आपसी झगड़ो के समाधान में भी कम आक्रामक रहने की सलाह दी जाए। छोटी-मोटी लड़ाइयों में शरीर को नुकसान पहुंचाने को कभी भी सही नही कहा जा सकता।

निष्कर्ष
इस प्रकार खेतीं के कार्य को कम जोखिमयुक्त बनाया जा सकता है। ग्रामीणों को कौशल प्रशिक्षण और तकनीकी साहचर्यता से परिचित कराकर इन समस्याओं के समाधान ढूंढना चाहिए।
कोई भी ऐसी आजीविका सही नही मानी जा सकती जिसमे शारीरिक नुकसान शामिल हो। कृषि को भी एक आरामदायक पेशा बनाया जाना चाहिए जिसे तकनीकी उपकरणों और पध्दतियों के माध्यम से सुनिश्चित किया जाए।

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