इतिहास के साथ हमारी असुविधा

भारत विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है जिसका एक विस्तृत इतिहास रहा है। इन इतिहास के पन्नो में तमाम उतार-चढ़ाव भरे पड़े है, इनमे जीत और हार, सम्मान और अपमान, वीरता और कायरता के असंख्य उदाहरण भरे पड़े है। इन उदाहरणो के माध्यम से कुछ लोग आज भी गर्व महसूस करते है और अपनी महिमा का बखान करते है। वही कई उदाहरणो के द्वारा कुछ लोग शर्मिंदगी महसूस करते है और वे नही चाहते कि किसी भी कहानी, फ़िल्म, किताब या अन्य माध्यमों के द्वारा वे यादे ताजा हो। एक तरीके से ये लोग इतिहास को अपनी सुविधा के अनुकूल नही मानते है।

भारतीय इतिहास का मूल्यांकन करे तो इसमे सुविधाओं और असुविधाओं के तमाम उदाहरण भरे पड़े है। सुविधाओं के तौर पर हम जीत, सम्मान, वीरता के किस्से याद करते है। जैसे महाराणा प्रताप ने अकबर के आगे जीवनपर्यंत समर्पण नही किया तो इस बात से राजपूत गर्व महसूस करते है और अपनी वीरता को सबके सामने रखते है। मराठा भी शिवाजी के कौशल का बखान करने में सुविधा महसूस करते है। मुस्लिम भी मूक रूप से इस बात में गर्व करते है कि उन्होंने इस देश पर लंबे समय तक शासन किया था। इसके अलावा तमाम धर्मो और जातियों के लोग भी कई आयामो पर सुविधा देखते है, जैसे सिक्खों, जाटो ने औरंगजेब का प्रतिकार किया।

लेकिन समस्या इतिहास से जुड़ी हुई असुविधाओं को लेकर है। जिनके कारण सम्बंधित वर्ग का आदमी सार्वजनिक विमर्शों में आत्मविश्वास को कमजोर महसूस करता है।कोई भी दूसरे वर्ग का आदमी उनको इतिहास याद दिलाकर अपमानित कर देता है। उनकी भूमिका को भी वे लोग हल्के में ले लेते है जिनका कोई दागरहित या समृद्ध इतिहास रहा होता है। उदाहरण के लिए - मुगलों के साथ वैवाहिक गठबंधन की नीति के कारण राजपूत अब असुविधा महसूस करते है। उनकी महिलाओं पर आधारित अब कोई भी रचनाये उनकी भावनाओं को दुख पहुचाती है।
यहां पर समय-समय पर बाहरी तत्वों का आगमन होता रहा जिन्होंने स्थानीय तत्वों का दमन किया। विदेशियों के द्वारा आक्रमण किया गया, लुटपाट मचाई गई, संसाधनों का दोहन किया गया और स्त्रियों के सम्मान को क्षति पहुचाई गई। ये सब ज्यादतियां विदेशियों द्वारा ही नही की गई अपितु स्थानीय स्तर पर भी हुई।एक वर्ग के लोगो द्वारा दूसरे वर्ग के लोगो को उत्पीड़ित किया गया, दूसरे क्षेत्र के लोगो का दमन किया गया और वहां के संसाधनों का दोहन किया गया। प्राचीन काल मे ग्रीक और मध्य एशिया की लड़ाकू जनजातियों ने, मध्य काल मे अरब व तुर्को द्वारा तथा आधुनिक काल मे अंग्रेजों द्वारा स्थानीय तत्वों के सम्मान को क्षति पहुचाई। वही स्थानीय शासको द्वारा भी आदिवासियों व दलितों के साथ अत्याचार किया गया, मुस्लिम शासकों के काल में हिन्दू कुलीन भी प्रताड़ित किए गए। ब्रिटिश काल मे सभी भारतीयों को नस्लीय आधार पर अपमानित और वंचित किया गया। ये सब मोटे-मोटे उदाहरण है जिनके आधार पर हम ऐतिहासिक किताबो और फिल्मो को देखते हुए असुविधा महसूस करते है।

इन असुविधाओं के स्वरूप को हम और ढंग से समझ सकते है---

  1. प्राचीन काल मे दलितों व आदिवासियों का उच्च वर्गो के द्वारा शोषण किया गया। अब प्राचीन काल का इतिहास पढ़ेंगे तो दलितों के मन मे यह बात बैठेगी ही कि हमारा भूतकाल अगरिमामय रहा है।
  2. मध्य काल मे मुस्लिम शासकों के अधीन हिन्दू जनता की भावनाओ को तवज्जों नही मिली और कई जगह अपमानजनक समझौते भी करने पड़े। इस काल के इतिहास को लेकर मुस्लिम और हिन्दू दोनो असुविधा महसूस करते है। मुस्लिम यह कह नही सकते कि फलां मुस्लिम शासक हमारा आदर्श है, अगर ऐसा किया तो बहुसंख्यक लोगो के सामने उनकी निष्ठा तक पर प्रश्नचिन्ह लग सकता है। हिन्दू इसलिए असुविधाग्रस्त है कि उनके पास इस काल के बुरे अनुभव है, उनके राजवंशो को खत्म किया गया, स्त्रियों के सम्मान को चोट पहुचाई गयी, औरतो को जोहर करना पड़ा, उन्हें जबरदस्ती हरमो में डाल दिया गया।
  3. ब्रिटिश काल मे भारतीयों को नस्लीय आधार पर वंचित और अपमानित किया गया था। लेकिन इन सब को भारतीयों ने राष्टवादी आंदोलन का जरिया बना लिया। इसलिए यहां का इतिहास भारत से ज्यादा ब्रिटिश को असुविधा ग्रस्त करता है क्योंकि उनके आधुनिक मूल्य खोखले साबित होते है।


राजनीतिक असुविधा सम्बन्धित उदाहरण
टीपू सुल्तान ने अंग्रेज़ो का जीवनपर्यंत विरोध किया और उन्हें खदेड़ने की सोची, इसलिए कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने उसकी जयंती मनाई। वही भाजपा ने उसे हिन्दू विरोधी बताते हुए इसका विरोध किया। एक तरीके से यह भाजपा की असुविधा को दर्शा रहा है। बंगाल में टीटू मीर की अंग्रेज़ो के खिलाप बगावत की कहानी की पाठ्यक्रम में जगह देने को भी भाजपा ने इसी आधार पर विरोध किया। भाजपा की एक और सबसे बड़ी असुविधा इस तथ्य को लेकर है कि स्वतन्त्रता संग्राम में इनका कोई योगदान नही है।

मुस्लिम, दलितों, आदिवासी सभी को कुछ न कुछ आश्वासन देकर कांग्रेस ने इन सबकी असुविधाओ को भुना लिया । अब भाजपा ने भी इन असुविधाओ को भुनाने के लिए स्वतंत्रता के बाद के इतिहास को पकड़ा है। इन्होंने कहा है कि नेहरू के कारण अन्य नेताओ की उपेक्षा कर दी गयी, जैसे कि- सरदार पटेल, अम्बेडकर, सुभाष चन्द्र बोस आदि। फिर इन्होंने उन सबको अपने खेमे में पकड़ लिया। इसके अलावा अपनी धर्मनिरपेक्ष अंधता के कारण हिन्दुओ की भावनाओं की हुई अनदेखी को भी कांग्रेस की गलती माना है। यहां से कांग्रेस को असुविधा हुई है। हाल में इंदु सरकार को लेकर कांग्रेस का विरोध भी इंदिरा गांधी के काल की असुविधाओ को लेकर था। इस कारण दोनों पार्टियां इतिहास के प्रति संवेदनशील हो गयी है।


असुविधाओं का असर

  1. राजनीतिक तौर पर ऐतिहासिक असुविधाओ की संवेदनशीलता अधिक होती है। दरअसल चुनाव उम्मीदवार की प्रतिष्ठा के नाम पर लड़े जाते है जिसमे उसके अतीत को भी शामिल किया हुआ होता है। ऐसे में कोई भी उम्मीदवार या दल नही चाहता कि कोई भी फ़िल्म, गाना, किताब व नाटक उसके अतीत की याद दिलाकर उनकी छवि को न्यून करके दिखाए। इन्हें रोकने के लिए भावनाओ को ठेस पहुचाने का आरोप लगाकर अभिव्यक्ति की आज़ादी तक को सीमित कर दिया जाता है। यही कारण था कि पद्मावती पर बनने वाली फिल्म के विरोध में पूरे राजपूत नेता खड़े हो गए,  भाजपा ने भी इन्हें समर्थन दिया।
  2.  कई वर्ग अपनी ऐतिहासिक असुविधाओं से बचने के लिए इतिहास की ही दोबारा व्याख्या पर जोर दे रहे है। कई राज्यों की सरकारों ने इतिहास के पाठ्यक्रमो में बदलाव किया है। वे इतिहास की मनमर्जी से व्याख्या करके खुद को सुविधा में रख रहे है। जैसे कहा जा रहा है कि दलितों की खराब दशा प्राचीन काल मे न होकर मुस्लिम शासकों के समय हुई है। यह नया तथ्य उच्च वर्गों के प्रभुत्व वाली भाजपा के फायदे के अनुकूल है। इस प्रकार अन्य तथ्यों को भी विभिन्न वर्ग अपने फायदे के अनुकूल पुनर्परिभाषित कर रहे है।
  3. इन असुविधाओ का फायदा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के द्वारा भी उठाया जा रहा है। पहले वे  ऐतिहासिक कमजोरिया पर बनने वाली फिल्मों, किताबो को वित्तीय समर्थन प्रदान करते है। इसके बाद जब स्थानीय वर्गो का अपनी चीजो के प्रति विश्वास कम हो जाता है, तब वे अपने उत्पादों को श्रेष्ठ विकल्पों के तौर पर लेकर आ जाते है। 

आगे क्या किया जाना चाहिए ?
हमने देखा कि इतिहास से जुड़ी हुई असुविधाएं एक तरफ तो भावनाओ को ठेस पहुचाती है, वही उनके कलात्मक प्रदर्शन का विरोध रचनात्मक कला के सृजन को तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को रोकता है। ऐसे में हमारे सामने निम्न विकल्प है-

  1. अगर हम भावनाओ को ठेस पहुंचाने के आधार पर असुविधाओं से सम्बंधित रचनात्मक कार्यो को रोकेंगे तो कोई भी ऐतिहासिक फ़िल्म बन ही नही पायेगी। मान लो राजपूतो की हार की कहानियों से उनकी भावनाओं को ठेस पहुचती है लेकिन उन्होंने जो वीरता हासिल की है वह भी तो जनजातीय और दलितों के उत्पीड़न पर आधारित है। कहने का मतलब है कि एक वर्ग के लिए सकारात्मक चीज दुसरो के लिए नकारात्मक है।ऐसे में जरूरी है कि हम इतिहास के बुरे प्रसंगों को सभी के लिए बुरे अनुभव माने। इस प्रकार की मानसिकता का निर्माण जरूरी है।
  2. फिल्मो की फंडिंग में पारदर्शिता को बढ़ावा दिया जाए । हो सकता है कोई बाहरी तत्व जान बूझकर ही असुविधाओ को भड़का रहा हो या हीन साबित कर रहा हो।
  3. राजनेताओं को भी इतिहास सम्बन्धित छेड़छाड़ करने से बचना चाहिए। अनावश्यक पाठ्यक्रम में बदलाव से बचे।


निष्कर्ष
असुविधाओ को हमे व्यक्तिगत तौर पर ज्यादा नही लेना चाहिए क्योंकि हमें कई बार उस काल की परिस्थितियों का पता नही होता है। हो सकता है उस काल मे उन चीजों में कोई गलत रहा ही नही हो। जैसे वैवाहिक गठबंधन राजपूतो में ही नही विदेशो में भी खूब प्रचलन में था।
और अच्छा-बुरा कुछ नही होता, इतिहास इसी का नाम होता है। कोई भी काल कभी भी ऐसा नही होता जो सभी की सुविधाओं के अनुकूल हो। इसलिए असुविधा को इतिहास में नही राजनीति में तलाशा जाना चाहिए

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