ग्रामीण क्षेत्रो में आजीविका के साधन के तौर पर कृषि प्रमुख साधन रहा हैं। कृषि लोगो को खाद्यान्न भी उपलब्ध करता हैं और रोजगार भी। वर्तमान में रोजगार के सेवा और उद्योग जैसे क्षेत्र खुलने से पहले कृषि और शिल्प ही रोजगार क्षेत्रक हुआ करते थे, तब किसी परिवार में कितने भी सदस्य हो वे सभी कृषि में हाथ बटा सकते थे। धीरे-धीरे गाँवो के लोगो का भौतिक विकास हुआ और उन्हें अधिक आय की जरुरत पड़ी। तब कृषि कार्य में लगे अतिरिक्त लोगो में छिपी बेरोजगारी दृष्टिगोचर होने लगी। तकनीकी विकास ने इस चीज को दृश्य बनाया की कम लोग काम करे या ज्यादा लोग काम करे उत्पादन तो उतना ही होगा। बढ़ती हुई महंगाई ने भी कृषि को अलाभदायक पेशा बनाया, छोटे किसानों की तो लागत भी उत्पादन में नहीं निकल पाती थी , दूसरे खर्चो का बोझ कृषि के भरोसे नहीं उठाया जा सकता था । अब गांव के लोगो ने दूसरे वैकल्पिक साधनो की तलाश शुरू की। कई लोग रोजगार की तलाश में शहरो की तरफ पलायन करने लगे। सरकार ने भी शहरो पर बढ़ते दबाव को रोकने के लिए गाँवो में रोजगार के लिए मनरेगा जैसी योजनाए चलाई।
महंगाई आधारित माहौल में कृषि से लोगो का मोह हट रहा था वही बड़े किसानों को महंगाई ने ही एक अन्य रास्ता पकड़ाया और वह था -बागवानी खेती, नकदी फसल, मात्सियकी, मधुमक्खी पालन और अन्य अधीनस्थ गतिविधियों को अपनाना। दरअसल इन सभी गतिविधियों के लिए एक तो काफी मात्रा में निवेश की जरुरत पड़ती हैं वही इनके लिए अतिरिक्त भूमि भी प्रयुक्त होती हैं , इस कारण बड़े किसान ही इनको अपना पाते हैं। इनसे होने वाली आमदनी भी अधिक होती हैं जो महंगाई के जमाने में कृषि के औचित्य को साबित करने के लिए आवश्यक होती हैं।
मनरेगा भी गांव के लोगो को रोजगार प्रदान करने का अच्छा सरकारी माध्यम था। जिसके माध्यम से एक तो लोगो का शहरो की और पलायन रुका वही उन्हें स्थानीय स्तर पर रोजगार की प्राप्ति हुई। लेकिन धीरे धीरे मनरेगा में भी वह क्षमता नहीं थी जो गाँवो की बेरोजगारी को दूर कर सके। एक तो काम के लिए बजट में कटौती हुई जिससे लोगो के काम के दिनों को काम कर दिया गया और साथ में मजदूरी को भी। इसका असर यह हुआ की गाँवो से पलायन को फिर से बल मिला।
जो लोग कृषि से परे रोजगार की तलाश में हैं उनको स्थानीय स्तर पर रोजगार की प्राप्ति हो , यह बात अब महत्वपूर्ण हो गयी हैं। इस दिशा में सरकारी नीति प्रोत्साहन बेहतर कार्य कर सकते हैं जो हाल ही के दिनों में काफी लोकप्रिय हुए जा रहे हैं क्योंकि लोग इनकी तरफ आजीविका के लिए देख भी रहे हैं। पहले तो गाँवो में कृषि उत्पादन के मूल्य में वृद्धि करने के क्रम में प्रसंस्करण गतिविधियों को गाँवो में अपनाने से लोगो को क्षेत्रीय स्तर पर रोजगार की प्राप्ति होती हैं , इसमें खासकर संख्या महिलाये की ही अधिक होने की सम्भावना रहती हैं। इसके अलावा गाँवो में डिजिटल इंडिया ने भी रोजगार के कई अवसर उपलब्ध कराये हैं और युवाओ को स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध कराया हैं। इसके अलावा पर्यटन जैसी गतिविधियां भी ग्रामीणों को रोजगार के नवीन साधन उपलब्ध करा रही हैं।
इस प्रकार अगर देखा जाए तो समर्पित तरीके से अगर प्रयास कर लिए जाए तो गांव के लोगो की बेरोजगारी न केवल दूर की जा सकती हैं बल्कि उनमे उद्यमिता का संचार भी किया जा सकता हैं। इसके लिए सरकार के साथ स्थानीय निकायों के अलावा तकनिकी संस्थानों और सिविल सोसाइटी के सहयोग की भी अपेक्षा होगी।
महंगाई आधारित माहौल में कृषि से लोगो का मोह हट रहा था वही बड़े किसानों को महंगाई ने ही एक अन्य रास्ता पकड़ाया और वह था -बागवानी खेती, नकदी फसल, मात्सियकी, मधुमक्खी पालन और अन्य अधीनस्थ गतिविधियों को अपनाना। दरअसल इन सभी गतिविधियों के लिए एक तो काफी मात्रा में निवेश की जरुरत पड़ती हैं वही इनके लिए अतिरिक्त भूमि भी प्रयुक्त होती हैं , इस कारण बड़े किसान ही इनको अपना पाते हैं। इनसे होने वाली आमदनी भी अधिक होती हैं जो महंगाई के जमाने में कृषि के औचित्य को साबित करने के लिए आवश्यक होती हैं।
मनरेगा भी गांव के लोगो को रोजगार प्रदान करने का अच्छा सरकारी माध्यम था। जिसके माध्यम से एक तो लोगो का शहरो की और पलायन रुका वही उन्हें स्थानीय स्तर पर रोजगार की प्राप्ति हुई। लेकिन धीरे धीरे मनरेगा में भी वह क्षमता नहीं थी जो गाँवो की बेरोजगारी को दूर कर सके। एक तो काम के लिए बजट में कटौती हुई जिससे लोगो के काम के दिनों को काम कर दिया गया और साथ में मजदूरी को भी। इसका असर यह हुआ की गाँवो से पलायन को फिर से बल मिला।
जो लोग कृषि से परे रोजगार की तलाश में हैं उनको स्थानीय स्तर पर रोजगार की प्राप्ति हो , यह बात अब महत्वपूर्ण हो गयी हैं। इस दिशा में सरकारी नीति प्रोत्साहन बेहतर कार्य कर सकते हैं जो हाल ही के दिनों में काफी लोकप्रिय हुए जा रहे हैं क्योंकि लोग इनकी तरफ आजीविका के लिए देख भी रहे हैं। पहले तो गाँवो में कृषि उत्पादन के मूल्य में वृद्धि करने के क्रम में प्रसंस्करण गतिविधियों को गाँवो में अपनाने से लोगो को क्षेत्रीय स्तर पर रोजगार की प्राप्ति होती हैं , इसमें खासकर संख्या महिलाये की ही अधिक होने की सम्भावना रहती हैं। इसके अलावा गाँवो में डिजिटल इंडिया ने भी रोजगार के कई अवसर उपलब्ध कराये हैं और युवाओ को स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध कराया हैं। इसके अलावा पर्यटन जैसी गतिविधियां भी ग्रामीणों को रोजगार के नवीन साधन उपलब्ध करा रही हैं।
इस प्रकार अगर देखा जाए तो समर्पित तरीके से अगर प्रयास कर लिए जाए तो गांव के लोगो की बेरोजगारी न केवल दूर की जा सकती हैं बल्कि उनमे उद्यमिता का संचार भी किया जा सकता हैं। इसके लिए सरकार के साथ स्थानीय निकायों के अलावा तकनिकी संस्थानों और सिविल सोसाइटी के सहयोग की भी अपेक्षा होगी।
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