UPSC सिविल सेवा मुख्य परीक्षा 2019 निबंध प्रश्न पत्र

सिविल सेवा मुख्य परीक्षा 2019, निबंध प्रश्न-पत्र का इस आलेख में सटीक दृष्टिकोण बताया जा रहा हैं। किसी निबंध के मॉडल उत्तर में किन-किन पक्षों को शामिल किया जाना चाहिए तथा सम्बन्धित विषय पर क्या संतुलित दृष्टिकोण होना चाहिए, इन सबको आप इस आलेख में देख सकते हैं। इसी तरह की हमारी पहल को गत वर्ष भी काफी सराहा गया था।
खंड I
  1. विवेक सत्य को खोज निकालता है।  (Wisdom finds truth)
  2. मूल्य वे नही जो मानवता है, बल्कि वे है जैसा मानवता को होना चाहिए।  (Values are not what humanity is, but what humanity ought to be)
  3. व्यक्ति के लिए जो सर्वश्रेष्ट है, वह आवशयक नही की समाज के लिए भी हो। (Best for an individual is not necessarily best for the society)
  4. स्वीकारोक्ति का साहस एवं सुधार करने की निष्ठा सफलता के दो मंत्र है। (Courage to accept and dedication to improve are two keys to success)
खंड II
  1. दक्षिण एशियाई समाज सत्ता के आस-पास नही, बल्कि अपनी अनेक संस्कृतियों और विभिन्न पहचानो के ताने बाने से बने है। (South Asian Societies are woven not around the state, but around their plural cultures and plural identities)
  2. प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा की उपेक्षा भारत के पिछड़ेपन का कारण हैं। (Neglect of primary healthcare and education in India are reasons for its backwardness)
  3. पक्षपातपूर्ण मीडिया भारत के लोकतंत्र के समक्ष एक वास्तविक खतरा है। (Biased media is a real threat to Indian Democracy)
  4. कृत्रिम बुद्धि का उत्थान:भविष्य में बेरोजगारी का खतरा अथवा पुनर्कौशल और उच्च-कौशल के माध्यम से बेहतर रोजगार के सृजन का अवसर। (Rise of Artificial Intelligence: the threat of jobless future or better job opportunities through reskilling and upskilling)


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खंड I के निबंधों से संबंधित सही दृष्टिकोण

1.1.विवेक सत्य को खोज निकालता है।
(Wisdom finds truth)

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1.2.मूल्य वे नही जो मानवता है, बल्कि वे है जैसा मानवता को होना चाहिए।
(Values are not what humanity is, but what humanity ought to be)
एक मापदंड के रूप में मूल्यों ने किसी समाज, देश या संगठन के लक्ष्यों और उद्देश्यो की प्राप्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। समाज के उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक मूल्यों को हमेशा सराहा गया है।मानव समाज के हितों की प्राप्ति के लिए भी मूल्यों का निर्धारण किया गया है। जिन्हें मानवीय मूल्य कहा जा सकता है। सभी लोगो को इन मूल्यों को अंगीकृत करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। एक तरह से मानव समाज के ऐसा होने की उम्मीद की जाती है।
  • लेकिन मूल्यों का यह मापदंड मानवीय उद्देश्यो में पूर्णतः सफल नही रहा है क्योंकि : कई मूल्य हिंसक, द्वेषतापूर्ण, पक्षपातीय और समयातीत है। भौतिकतावादी दौड़ के कारण मूल्यों का क्षरण हो रहा है। मूल्यों की प्राप्ति हमेशा से आदर्श रही है और माना जाता रहा है कि लोगो की सामाजिक आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं है कि वे आदर्शो को व्यवहार में अपना सके।मानवीय हितों पर आधारित मूल्यों ने प्रकृति की अनदेखी की है।
  • इसलिए मूल्यों ने तो मानवता को समुचित राह दिखाई। लेकिन मानवता ने  मूल्यों को हमेशा कमतर आंका। इसका परिणाम यह रहा कि अनैतिकता को समाज मे मान्यता मिलने लगी। उदारहण के लिए भ्रष्टाचार करने वालो को लोगो द्वारा गलत नही मानना। अगरिमामय और शोषणकारी गतिविधियों को नियति मान लिया गया और विरोध करने वालो को   बगावती या विद्रोही माना गया। एक तरह से मूल्यों का नवीनीकरण जटिल हो गया।
  • ऐसे में जरूरी है कि मूल्यों की शाश्वतता को बनाये रखा जाए, उसे मानवीय हितों के अनुकूल सुविधा अनुसार परिभाषित नही किया जाए। उसके पालन को समाज और सरकारो द्वारा बढ़ावा दिया जाए। अगरिमापूर्ण चीजो को समाप्त किया जाए और सार्वभौमिक मूल्यों को बढ़ावा दिया जाए।
निष्कर्ष :
मूल्य सार्वभौमिक होते है, वे सुविधा के अनुसार प्रभावित नही होते। मूल्यों को संकीर्ण आधार पर निर्धारित नही किया जाना चाहिए। इसलिए यहां भी मानवता को मूल्यों से बढ़कर नही मानना चाहिए, बल्कि मानवता भले ही मूल्यों को निर्धारित करती हो परन्तु वह भी मूल्यों के अधीन ही है।


1.3.व्यक्ति के लिए जो सर्वश्रेष्ट है, वह आवशयक नही की समाज के लिए भी हो।
(Best for an individual is not necessarily best for the society)

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1.4.  स्वीकारोक्ति का साहस एवं सुधार करने की निष्ठा सफलता के दो मंत्र है।  
(Courage to accept and dedication to improve are two keys to success)
जीवन में हर मुकाम पर खुद को बनाये रखने और आगे बढ़ने के लिए संघर्ष करना पड़ता हैं। संघर्ष के परिणाम कई बार अनपेक्षित भी प्राप्त होते हैं। ऐसे में कई लोग परिणाम को स्वीकार करके अपनी राह बदल लेते हैं और कमतर परिणामो से संतुष्ट हो जाते हैं। कुछ लोग परिस्थितियों या व्यवस्था को दोष देने लग जाते हैं। लेकिन सफलता के प्रति जुनूनी लोग अपनी गलतियों को स्वीकार करने में हिचकिचाते नही हैं। वे उनमे सुधार करके फिर से कोशिश करते हैं। इस तरह वे प्रयास करते हुए सफलता को प्राप्त कर जाते हैं।
  • स्वीकारोक्ति की आवश्यकता : 
  • स्वीकार नही करने के नुकसान :
  • गलतियों से सबक और सुधार के बाद सफल होने वालो के उदाहरण 
  • सफलता के लिए क्यों जरुरी हैं  
  • उदहारण :
  • वर्तमान सन्दर्भ : 
निष्कर्ष :




खंड II के निबंधों से संबंधित सही दृष्टिकोण

2.1.दक्षिण एशियाई समाज सत्ता के आस-पास नही, बल्कि अपनी अनेक संस्कृतियों और विभिन्न पहचानो के ताने बाने से बने है।
(South Asian Societies are woven not around the state, but around their plural cultures and plural identities)

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2.2.  प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा की उपेक्षा भारत के पिछड़ेपन का कारण हैं। 
(Neglect of primary healthcare and education in India are reasons for its backwardness)
शिक्षा ,स्वास्थ्य इत्यादि मूल्य मानव की मूलभूत आवश्यकताओं में समाहित होते  हैं | जिनकी पूर्ति न होने पर या कमी होने पर मानव का मानव संसाधन के रूप में समूचित विकास नही हो पाता हैं | फलस्वरूप मानव न सिर्फ अपने अपितु अपने देश के विकास के योगदान से भी  पिछड़ जाता है | वर्तमान समय में भारत का विकासशील देशों की श्रेणी में बने रहने का एक प्रमुख कारण शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों की उपेक्षा भी रही है|
  • शिक्षा ,स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रो की  उपेक्षा किस तरह प्रगति में  बाधक रही है - कुशल मानव संसाधन का अभाव, अनुसन्धान कार्यो मे विफलता, आधारभूत संरचना का अभाव, 
  • लेकिन भारत के पिछड़ेपन के लिए इन दो क्षत्रों  को ही जिम्मेदार नही ठहरा सकते, इसके लिए अन्य कारक भी जिम्मेदार हैं , जैसे कि-भ्रष्टाचार, औपनिवेशिक शोषण , अव्यवहारिक सरकारी नीतियाँ आदि | इस प्रकार इन सभी कारकों ने मिलकर भारत के  विकास में अवरोधक की भूमिका निभाई है | ये कारक ही शिक्षा ,स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रो की  प्रगति में बाधक बने हैं |
  • इस तरह की तमाम चुनौतियों के बावजूद भारत सरकार  ने शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों  में सुधार करने के लिए कई  सकारात्मक कदम उठाएं  है, उदाहरण के लिए सर्व शिक्षा अभियान , शिक्षा को मौलिक अधिकारों में शामिल करना, आयुष्मान भारत, NHM इत्यादि | इन सबका परिणाम यह रहा कि भारत ने न केवल मानव विकास के इन संकेतको पर प्रगति की बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था भी तेजी से उभर रही हैं |
  • भारत में पिछड़ेपन की समस्या को दूर करने के लिए अभी और प्रयास करने की जरुरत हैं, जैसे कि : समावेशी विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करना, गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों  में अपवंचना को समाप्त करना आदि |
निष्कर्ष :
शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्र किसी भी देश की प्रगति से प्रत्यक्ष रूप से  सम्बन्ध रखते हैं | इनकी उपेक्षा भावी पीढ़ियों के  भविष्य पर व्यापक परिणाम दर्शाते आते हैं |  इस समय जब भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की और अग्रसर  हैं,  तब सरकार के लिए यह आवश्यक हो जाता है  कि शिक्षा और स्वास्थ्य पर जीडीपी के प्रतिशत के रूप में खर्च को बढ़ाये  |


2.3. पक्षपातपूर्ण मीडिया भारत के लोकतंत्र के समक्ष एक वास्तविक खतरा है। 
(Biased media is a real threat to Indian Democracy)
मीडिया को सरकार का चतुर्थ स्तम्भ माना जाता है। एक तरफ यह जनता के मुद्दों से शासन के विभिन्न अंगो को अवगत कराता है, वही दूसरी तरफ यह सरकार को जवाबदेह बनाने का कार्य भी करता है। एक समय था जब मीडिया अपने मूल्यों से संचालित होता था, वह व्यापक सार्वजानिक हित के मुद्दों के प्रति समर्पित था। लेकिन समय के साथ मीडिया की राजनीतिक और व्यवसायिक वर्ग से नजदीकियां बढ़ी हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि मीडिया की गतिविधियाँ पूरी तरह से प्रायोजित लगने लगी है। वे किसी न किसी राजनीतिक दल, व्यावसायिक समूह या अन्य के हितो को आगे बढ़ाने का जरिया बन गई हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि लोकतंत्र का यह स्तम्भ कमजोर हो गया हैं। सरकार की जवाबदेही तय करने के बजाय उसकी प्रचार मशीनरी बन गये हैं। ऐसे में जनता के असली मुद्दों से भी मीडिया दूर हुआ हैं । 
  • मीडिया की पक्षपातपूर्ण भूमिका के उदाहरण और इस रुझान के कारण : 
  • मीडिया राजनीतिक गठजोड़ और इसके लोकतंत्र पर दुष्प्रभाव :
  • स्वतंत्र मीडिया के लिए प्रावधान 
  • सुझाव 
निष्कर्ष :  
नवीनतम रुझानो के साथ मीडिया को नागरिकों की आवाज बनाने के लिए अपने मूल्यों के प्रति समर्पित दिखाई देना चाहिए। 


2.4.  कृत्रिम बुद्धि का उत्थान:भविष्य में बेरोजगारी का खतरा अथवा पुनर्कौशल और उच्च-कौशल के माध्यम से बेहतर रोजगार के सृजन का अवसर। 
(Rise of Artificial Intelligence: the threat of jobless future or better job opportunities through reskilling and upskilling)
उभरती हुई तकनीकियों को भले ही आकर्षक माना जा रहा हो, लेकिन इनके छिपे हुए खतरों को लोगो ने पहचान लिया हैं। कृत्रिम बुद्धिमता जैसी तकनीकी को लेकर भी ऐसे ही कयास लगाए जा रहे हैं कि यह वृहद् स्तर पर बेरोजगारी को बढ़ावा दे सकती है। इस तरह की आशंकाओं के जमीनी उदाहरण उपलब्ध हैं। लेकिन इस परिदृश्य का एक पहलु और भी है और वो यह हैं कि अगर लोगो को पुनर्कौशल और उच्च-कौशल प्रदान किया जाए तो इस तकनीकी के माध्यम से बेहतर रोजगार के अवसर सृजित किए जा सकते हैं। 
  • कृत्रिम बुद्धिमता की क्षमताये : किस तरह उत्पादन में गुणवत्ता और मात्रात्मक वृद्धि कर सकती हैं।
  • कृत्रिम बुद्धिमता से रोजगारो पर संकट का पक्ष : कृत्रिम बुद्दिमता से संचालित उपकरण और पद्धतिया मानव को प्रतिस्थापित करने वाली साबित हुई हैं, साथ ही मानव की तुलना में अधिक दक्षता और परिशुद्धता से काम कर सकती है। 
  • कृत्रिम बुद्धिमता से रोजगार कटौती की बात सही हैं, लेकिन इससे लड़ने के लिए उच्च कौशल की जरुरत होगी। तब जाकर रोजगारो को बचाया जा सकता हैं ।
  • इसके अलावा कुछ नवीन क्षेत्र भी शुरू होंगे, जहाँ रोजगार के नवीन अवसर सृजित होंगे। इन मशीनो को चलाने के लिए उच्च कौशल वाले मानव संसाधन की जरुरत होगी।
  • रोजगार का संकट वास्तविक हैं, कृत्रिम बुद्धिमता को इसे त्वरित करने का जरिया नही बनने देना चाहिए , इसलिए कुछ संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता हैं । अनावश्यक मशीनो की तैनाती नही की जाए, उत्पादन और गुणवत्ता को बनाये रखने के लिए मानव संसाधन का ही कौशल विकास किया जाए ताकि उन्हें प्रतिस्थापित करने की जरुरत नही पड़े । इसलिए तकनीकी को जोखिम भरे क्षेत्रो या कठिन प्रक्रियो की सुगमता तक सीमित रखना चाहिए ।
निष्कर्ष : 
वर्तमान में सभी क्षेत्र अपनी उत्पादकता और दक्षता बढ़ाने के लिए कार्यरत हैं। ऐसे में एक अद्धतन  बुद्धि की आवश्यकता है- भले ही वह कृत्रिम हो या प्राकृतिक। हमे प्राकृतिक बुद्धि युक्त मनुष्यों की क्षमता बढ़ने पर ध्यान देना चाहिए ।


#  विशेष सहयोगकर्ता 
(Special collaborator)
राजवीर सिंह सर् (Content Writer)
पंकज मीना सर्(Content Writer)

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1 comments:

सर्,यह काफी शानदार तरीका है।इससे समय की बचत करते हुए निबंध पर बेहतरीन कमांड बनाई जा सकती है।

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