UPSC सिविल सेवा मुख्य परीक्षा 2019 निबंध प्रश्न पत्र

सिविल सेवा मुख्य परीक्षा 2019, निबंध प्रश्न-पत्र का इस आलेख में सटीक दृष्टिकोण बताया जा रहा हैं। किसी निबंध के मॉडल उत्तर में किन-किन पक्षों को शामिल किया जाना चाहिए तथा सम्बन्धित विषय पर क्या संतुलित दृष्टिकोण होना चाहिए, इन सबको आप इस आलेख में देख सकते हैं। इसी तरह की हमारी पहल को गत वर्ष भी काफी सराहा गया था।
खंड I
  1. विवेक सत्य को खोज निकालता है।  (Wisdom finds truth)
  2. मूल्य वे नही जो मानवता है, बल्कि वे है जैसा मानवता को होना चाहिए।  (Values are not what humanity is, but what humanity ought to be)
  3. व्यक्ति के लिए जो सर्वश्रेष्ट है, वह आवशयक नही की समाज के लिए भी हो। (Best for an individual is not necessarily best for the society)
  4. स्वीकारोक्ति का साहस एवं सुधार करने की निष्ठा सफलता के दो मंत्र है। (Courage to accept and dedication to improve are two keys to success)
खंड II
  1. दक्षिण एशियाई समाज सत्ता के आस-पास नही, बल्कि अपनी अनेक संस्कृतियों और विभिन्न पहचानो के ताने बाने से बने है। (South Asian Societies are woven not around the state, but around their plural cultures and plural identities)
  2. प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा की उपेक्षा भारत के पिछड़ेपन का कारण हैं। (Neglect of primary healthcare and education in India are reasons for its backwardness)
  3. पक्षपातपूर्ण मीडिया भारत के लोकतंत्र के समक्ष एक वास्तविक खतरा है। (Biased media is a real threat to Indian Democracy)
  4. कृत्रिम बुद्धि का उत्थान:भविष्य में बेरोजगारी का खतरा अथवा पुनर्कौशल और उच्च-कौशल के माध्यम से बेहतर रोजगार के सृजन का अवसर। (Rise of Artificial Intelligence: the threat of jobless future or better job opportunities through reskilling and upskilling)


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खंड I के निबंधों से संबंधित सही दृष्टिकोण

1.1.विवेक सत्य को खोज निकालता है।
(Wisdom finds truth)

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1.2.मूल्य वे नही जो मानवता है, बल्कि वे है जैसा मानवता को होना चाहिए।
(Values are not what humanity is, but what humanity ought to be)
एक मापदंड के रूप में मूल्यों ने किसी समाज, देश या संगठन के लक्ष्यों और उद्देश्यो की प्राप्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। समाज के उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक मूल्यों को हमेशा सराहा गया है।मानव समाज के हितों की प्राप्ति के लिए भी मूल्यों का निर्धारण किया गया है। जिन्हें मानवीय मूल्य कहा जा सकता है। सभी लोगो को इन मूल्यों को अंगीकृत करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। एक तरह से मानव समाज के ऐसा होने की उम्मीद की जाती है।
  • लेकिन मूल्यों का यह मापदंड मानवीय उद्देश्यो में पूर्णतः सफल नही रहा है क्योंकि : कई मूल्य हिंसक, द्वेषतापूर्ण, पक्षपातीय और समयातीत है। भौतिकतावादी दौड़ के कारण मूल्यों का क्षरण हो रहा है। मूल्यों की प्राप्ति हमेशा से आदर्श रही है और माना जाता रहा है कि लोगो की सामाजिक आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं है कि वे आदर्शो को व्यवहार में अपना सके।मानवीय हितों पर आधारित मूल्यों ने प्रकृति की अनदेखी की है।
  • इसलिए मूल्यों ने तो मानवता को समुचित राह दिखाई। लेकिन मानवता ने  मूल्यों को हमेशा कमतर आंका। इसका परिणाम यह रहा कि अनैतिकता को समाज मे मान्यता मिलने लगी। उदारहण के लिए भ्रष्टाचार करने वालो को लोगो द्वारा गलत नही मानना। अगरिमामय और शोषणकारी गतिविधियों को नियति मान लिया गया और विरोध करने वालो को   बगावती या विद्रोही माना गया। एक तरह से मूल्यों का नवीनीकरण जटिल हो गया।
  • ऐसे में जरूरी है कि मूल्यों की शाश्वतता को बनाये रखा जाए, उसे मानवीय हितों के अनुकूल सुविधा अनुसार परिभाषित नही किया जाए। उसके पालन को समाज और सरकारो द्वारा बढ़ावा दिया जाए। अगरिमापूर्ण चीजो को समाप्त किया जाए और सार्वभौमिक मूल्यों को बढ़ावा दिया जाए।
निष्कर्ष :
मूल्य सार्वभौमिक होते है, वे सुविधा के अनुसार प्रभावित नही होते। मूल्यों को संकीर्ण आधार पर निर्धारित नही किया जाना चाहिए। इसलिए यहां भी मानवता को मूल्यों से बढ़कर नही मानना चाहिए, बल्कि मानवता भले ही मूल्यों को निर्धारित करती हो परन्तु वह भी मूल्यों के अधीन ही है।


1.3.व्यक्ति के लिए जो सर्वश्रेष्ट है, वह आवशयक नही की समाज के लिए भी हो।
(Best for an individual is not necessarily best for the society)

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1.4.  स्वीकारोक्ति का साहस एवं सुधार करने की निष्ठा सफलता के दो मंत्र है।  
(Courage to accept and dedication to improve are two keys to success)
जीवन में हर मुकाम पर खुद को बनाये रखने और आगे बढ़ने के लिए संघर्ष करना पड़ता हैं। संघर्ष के परिणाम कई बार अनपेक्षित भी प्राप्त होते हैं। ऐसे में कई लोग परिणाम को स्वीकार करके अपनी राह बदल लेते हैं और कमतर परिणामो से संतुष्ट हो जाते हैं। कुछ लोग परिस्थितियों या व्यवस्था को दोष देने लग जाते हैं। लेकिन सफलता के प्रति जुनूनी लोग अपनी गलतियों को स्वीकार करने में हिचकिचाते नही हैं। वे उनमे सुधार करके फिर से कोशिश करते हैं। इस तरह वे प्रयास करते हुए सफलता को प्राप्त कर जाते हैं।
  • स्वीकारोक्ति की आवश्यकता : 
  • स्वीकार नही करने के नुकसान :
  • गलतियों से सबक और सुधार के बाद सफल होने वालो के उदाहरण 
  • सफलता के लिए क्यों जरुरी हैं  
  • उदहारण :
  • वर्तमान सन्दर्भ : 
निष्कर्ष :




अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के बहुआयामी निहितार्थ


भारत ने हाल ही में जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करते हुए राज्य का पुनर्गठन किया है।अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख नाम के दो अलग-अलग केंद्रशासित प्रदेश होंगे, जिसमे से जम्मू-कश्मीर में विधानसभा होगी, वही लद्दाख में विधानसभा नही होगी।दोनों राज्यों के लिए उप-राज्यपाल के पद का प्रावधान होगा। इसके साथ ही सात दशक पुराना कश्मीर का मसला एक बार फिर पूरी चर्चा के केंद्र में आ गया है।एक तरफ भारत में इसे ऐतिहासिक निर्णय मानते हुए ख़ुशी मनाई जा रही हैं, वही पाकिस्तान इसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बनाने में लगा हुआ हैं। कश्मीर घाटी में इसे हटाने को लेकर असंतोष देखा जा रहा हैं।इस प्रकार इस मुद्दे के बहुआयामीय निहितार्थ हैं।जिन पर हम पृथक-पृथक विमर्श करेंगे ।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि :
आजादी के बाद पाकिस्तान ने इसकी स्वतंत्र स्थिति को नकारते हुए कबाइली भेष में अपनी सेना को युद्ध के लिए भेज दिया। तब महाराजा हरिसिंह द्वारा विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने के साथ ही जम्मू-कश्मीर का भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 के प्रावधानों के तहत कानूनी तौर पर विलय हो गया था। पाकिस्तान द्वारा इस मसले पर युद्द थोपने के कारण  स्थिति को नाजुक होने से बचाने के लिए जवाहर लाल नेहरु इस मुद्दे को सुरक्षा परिषद् में ले गये। सुरक्षा परिषद ने इस पर जनमत संग्रह कराने और विवादित क्षेत्र से सेना हटाने का आश्वासन देते हुए कुछ शर्ते रखी थी।जिन पर पाकिस्तान ने कभी अमल नहीं किया, उसने पाक अधिकृत कश्मीर का विसैन्यीकरण करना तो दूर उस क्षेत्र की जनसांख्यिकी परिवर्तन करने के प्रयास किए। पाकिस्तान ने कश्मीर घाटी के लोगो में भी उग्रवादी भावनाओ को भड़काने के लिए कार्य किया।

1990 के दशक में कश्मीर घाटी से से पंडितो का निर्वासन करने के बाद जनसांख्यिकी में पर्याप्त परिवर्तन हो गये।इसके साथ ही सयुंक्त राष्ट्र का जनमतसंग्रह का प्रस्ताव अप्रासंगिक हो गया।हालाँकि सयुंक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप की गुंजाईश 1972 के शिमला समझौते के साथ ही नेपथ्य में चली गई, जिसमे दोनों देश सभी मुद्दों को आपसी बातचीत से सुलझाने के लिए सहमत हुए थे।पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित सीमापार आतंकवाद की घटनाओ ने बातचीत की कोशिशो को नाकाम कर दिया।जम्म-कश्मीर में राजनीतिक अस्थिरता भी स्थानीय लोगो में भारत-विरोधी भावनाये भड़काने में सहायक रही। जम्मू कश्मीर का राजनीतिक नेतृत्व जनता का विश्वास जितने में नाकाम रहा।इस तरह के परिदृश्य में पाकिस्तान द्वारा सीमापार घुसपैठ के प्रयासों को बढ़ावा देना, सुरक्षा बलों पर हमला करना, शहीदों के शवो को देखकर भारतीय राष्ट्रवाद का उग्र होना जैसी घटनाये नियमित तौर पर होने लगी।ऐसी स्थितिओ में यह अपरिहार्य हो गया था कि भारत सरकार स्थितियों को सुधारने के लिए धारा 370 को निरस्त करने जैसा क्रांतिकारी कदम उठाये ।

इस प्रकार अनुच्छेद 370 को निरस्त करते ही जम्मू-कश्मीर राज्य की संवैधानिक स्थिति भारत के बाकी राज्यों के समान हो गई।इसके साथ ही यह एक ऐतिहासिक कदम हो गया, जिसने भारत के एकीकरण की प्रक्रिया को पूर्ण कर दिया।वही ऐसा भी माना जा रहा हैं कि जवाहर लाल नेहरु के द्वारा भारतीय सेना ने कबाइलियो को नही खदेड़कर तथा मामले को सुरक्षा परिषद् में ले जाकर जो भूल की गई थी, उसे इस फैंसले के बाद सुधार लिया गया हैं।हालांकि उसे किसी व्यक्ति की भूल बताने की बाते अतिशयोक्तिपूर्ण हो सकती हैं, लेकिन इतना तो तय हैं कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के दूरगामी सकारात्मक प्रभाव सामने आयेंगे ।


राजनीतिक निहितार्थ :
अनुच्छेद 370 के प्रावधानों के निरस्त होने से जम्म-कश्मीर को मिले विशेष प्रावधान खत्म हो गये हैं।अब बाकी राज्यों की तरह वहाँ पर भी भारतीय कानून लागू होंगे।कुछ ऐतिहासिक कानूनी बदलाव वहाँ देखने को मिलेंगे जो कि इस प्रकार हैं -
  • संसद की ओर से बनाए गए हर क़ानून अब वहां प्रदेश की विधानसभा की मंज़ूरी के बिना लागू होंगे ।
  • सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसलों पर भी अमल लागू हो जाएगा ।
  • जम्मू-कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल छह से घटकर पांच साल का हो जाएगा.
  • संसद या केंद्र सरकार तय करेगी कि इसके बाद आईपीसी की धाराएं प्रदेश में लागू होंगी या स्थानीय रनबीर पीनल कोड (RPC)। साथ ही इस पर भी फ़ैसला लिया जाएगा कि पहले से लागू स्थानीय पंचायत क़ानून जारी रहेंगे या उन्हें बदल दिया जाएगा ।
  • अब तक क़ानून व्यवस्था मुख्यमंत्री की ज़िम्मेदारी होती थी, लेकिन अब वह सीधे केंद्र सरकार के अधीन होगी और केन्द्रीय गृह मंत्री प्रदेश में अपने प्रतिनिधि उपराज्यपाल के ज़रिये क़ानून-व्यवस्था को संभालेंगे ।
  • अब तक सिर्फ़ 'स्थायी नागरिक' का दर्जा प्राप्त कश्मीरी ही वहां ज़मीन ख़रीद सकते थे, नौकरी प्राप्त कर सकते थे, लेकिन 370 हटने के बाद बाकी लोगो की भी इन तक पहुँच हो जायेगी ।
  • प्रदेश के अलग झंडे की अहमियत नहीं रहेगी ।
  • महिलाओं पर लागू स्थानीय पर्सनल क़ानून बेअसर हो जाएंगे ।
इस प्रकार जम्मू-कश्मीर में व्यापक राजनीतिक परिवर्तन दिखाई देंगे।लेकिन जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के साथ ही भारतीय राजनीती पर भी इसके गहन निहितार्थ सामने आयेंगे। उदाहरण के लिए -
  1. अब तक किसी क्षेत्र में मौजूद असंतोष का समाधान करने के लिए उस क्षेत्र को संवैधानिक रियायते प्रदान की जाती रही हैं , उदाहरण के लिए बोडोलैंड, गोरखालैंड और लद्दाख के लिए स्वायत पहाड़ी परिषदों का प्रावधान करना, पुंडुचेरी को केन्द्रशासित प्रदेश का दर्जा देना या मेघालय को केंद्र शासित प्रदेश से राज्य का दर्जा देना।लेकिन पहली बार किसी क्षेत्र के असंतोष को शांत करने के लिए राज्य का दर्जा घटाकर केंद्र शासित प्रदेश का कर दिया गया हैं।
  2. अनुच्छेद 370 के समान ही कुछ विशेष प्रावधान 371 के तहत किये गये हैं।अब उन राज्यों में भी आशंका बढ़ रही हैं कि उनकी विशिष्ट संस्कृतियों को संरक्षित करने वाले कानूनों को केंद्र सरकार एकतरफा खत्म कर सकती हैं।
  3. विधानसभा युक्त केन्द्रशासित प्रदेशो में चुनी हुई सरकार और उपराज्यपाल के बीच अधिकारों को लेकर टकराव देखने को मिलता हैं।ऐसे में कश्मीर में भी इन मुद्दों के कारण राजनीतिक स्थितियों के अधिक जटिल होने की संभावना हैं ।
  4. लद्दाख के लिए अलग से केंद्र शासित प्रदेश बनाकर भले ही लम्बे समय से चली आ रही मांग को पूरा कर दिया गया हो लेकिन विधानसभा का नहीं होना स्थानीय जनता के लोकतान्त्रिक अधिकारों की अवहेलना करेगा, साथ ही मुस्लिम बाहुल्य कारगिल जिले को लद्दाख में शामिल करने से कारगिल के लोगो में असंतोष उत्पन्न होगा।
  5. कश्मीरी पंडितो को वापस घाटी में बसाने में मदद मिलेगी।वर्षो से अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे समुदाय को न्याय प्रदान करने में मदद मिलेगी।
राजनयिक निहितार्थ :
ऐतिहासिक और संवैधानिक साक्ष्य पर्याप्त रूप से साबित करते हैं कि जम्मू कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग हैं, लेकिन पाकिस्तान ने कश्मीर को हमेशा विवादित मुद्दे के तौर पर पेश किया हैं।पाकिस्तान ने इसे बहुपक्षीय मंचो पर उठाने के प्रयास किए हैं।  अपने हितो के कारण कई देशो की पाकिस्तान के साथ सहानुभूति वाली नीति भी रही हैं।वर्तमान में भारत एक तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था हैं, जिसके पास दुनिया का सबसे बड़ा बाजार हैं।अधिकतर विकसित देश इसीलिए भारत को आकर्षक निवेश गन्तव्य के तौर पर देख रहे हैं।शायद यही कारण हैं कि भारत को अनुच्छेद 370 निरस्तीकरण के कारण किसी बाहरी देश की बयानबाजी का सामना नही करना पड़ा।

जम्मू-कश्मीर को लेकर बहुआयामी राजनयिक निहितार्थ निम्न प्रकार हैं -
  1. पाकिस्तान के लिए कश्मीर का मुद्दा बेहद अहम् हैं।वह मुस्लिम जनसँख्या होने के कारण इसे अपना स्वभाविक भाग मानता हैं।पाकिस्तान की घरेलु राजनीति कश्मीर मुद्दे से काफी गहराई तक जुडी हुई हैं।इसलिए वह इस मुद्दे को लेकर तनाव बढ़ाने के प्रयास करने में लगा हुआ हैं और आपसी व्यापारिक संबंधो को स्थगित कर दिया हैं। वही इस मुद्दे के अंतर्राष्ट्रीयकरण करने के प्रयास  में लगा हुआ हैं।उसने अन्तराष्ट्रीय न्यायालय में भी इस मुद्दे को ले जाने की घोषणा की हैं।
  2. भारत का जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में अक्साई चीन को लेकर विवाद हैं, लेकिन भारत ने इसे आंतरिक मामला बताया हैं, जो कि राजव्यवस्था से सम्बन्धित हैं और किसी भी प्रकार से सीमाओं में परिवर्तन नहीं करता हैं।इसलिए चीन ने आपसी विवाद को लेकर तो कोई टिप्पणी नहीं की हैं।लेकिन पाकिस्तान में अपने निवेश की रक्षा के लिए पाकिस्तान के हित में कुछ बयान दिए हैं और सुरक्षा परिषद् में इसे उठाने की कोशिश की हैं। 
  3. अमेरिका इस समय अफगानिस्तान से बाहर निकलने के लिए तालिबान से समझौता करने में लगा हैं ।इस कार्य में पाकिस्तान का सहयोग उसके लिए उपयोगी हो सकता हैं।इस वजह से पाकिस्तान को राजी करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दोनों देशो के बीच मध्यस्थता करने की पेशकश की हैं ।
  4. अगर दुसरे देशो की भूमिका को देखे तो वे बयानबाजी तक सीमित रहे हैं। केवल तुर्की ने पाकिस्तान के पक्ष में बयान दिए हैं।बाकी देशो ने सक्रीय या मूक रूप से भारत के पक्ष में अपना रुख रखा हैं ।
  5. दक्षिण एशिया में पाकिस्तान को छोड़कर बाकि सभी देशो ने इसे भारत का आंतरिक मामला बताया हैं।श्रीलंका ने बोद्ध बाहुल्य लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिए जाने का स्वागत किया हैं ।
  6. सयुंक्त राष्ट संघ की भूमिका - 1972 के शिमला समझौते के बाद सयुंक्त राष्ट की भूमिका इस मामले पर अप्रासंगिक होती चली गई।इसलिए सयुंक्त राष्ट्र का इस विषय पर विमर्श क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को ध्यान में रखकर ही हो सकता हैं। खासकर पाकिस्तान द्वारा सीमापार युद्धविराम के उल्लंघन की घटनाओ की स्थिति में ।
राजनयिक समीकरणों की भविष्य की राह को लेकर अभी कयास नही लगाये जा सकते।लेकिन भारत के अपनी मजबूत अर्थव्यवस्था और सशक्त राजनयिक पहुँचो की बदौलत इस मामले में फायदे में रहने की संभावना हैं।अब भारत ने अपनी परमाणु हथियारों को ‘पहले उपयोग नही करने’ की नीति में भी संशोधन करने के संकेत दिए हैं तथा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पर अब बात करने को एजेंडा बनाने की घोषणा की हैं।इन सबसे लगता हैं कि भारत ने पाकिस्तान के साथ आक्रामक व्यवहार को अपनाने को तवज्जो दी हैं।दरअसल पाकिस्तान का व्यवहार इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं।उसने भारत द्वारा किए गये पिछले शांति प्रयासों को प्रभावहीन कर दिया था।ऐसे में उसे शांति का व्यवहार करने हेतु प्रेरित करने के लिए वैश्विक मंचो पर अलग-थलग करने की जरुरत हैं ।

जम्मू कश्मीर को मुख्यधारा में शामिल करना : 
अनुच्छेद 370 को निरस्त करके राज्य का पुनर्गठन कर दिया गया हैं।लेकिन कश्मीर के लोगो को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए प्रयास करने की जरुरत हैं। ऐसे में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का “इंसानियत, कश्मीरियत और जम्हूरियत ” का विचार एक मार्गदर्शन सूत्र हो सकता हैं। जम्मू-कश्मीर के लोगों को भरोसा दिलाना होगा कि कि केन्द्र सरकार उनके दुख-दर्द में उनके साथ है।राज्य की सभी की समस्याओं को सुना जाएगा और मिलजुल कर हल किया जाएगा।लोगो को विश्वास दिलाना होगा कि दिल्ली का दरवाजा और दिल हमेशा राज्य की जनता के लिए खुला हैं।इस प्रकार के उदार माहौल के द्वारा ही कश्मीर क्षेत्र के लोगो के मन से उग्रवादी विचारो को दूर किया जा सकता हैं।इसके लिए युवाओ को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए निवेश को बढ़ावा देना होगा।खेलकूद और रंगमंच जैसी गतिविधियों में युवाओ की भागीदारी बढ़ानी होगी ।
अभी हालात समान्य होने में थोडा समय लगेगा।लेकिन अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद लोगो में विशिष्टता के भाव का अंत होगा, जिससे अलगाववादी विचारो को पनपने से रोका जा सकेगा।फिलहाल कानून व्यवस्था को बनाये रखने के लिए कार्य करना होगा।पाकिस्तान भी इस समय प्रतिशोधवश आतंकी घटनाओ को अंजाम दे सकता हैं।इसलिए नियंत्रण रेखा और अन्य भागो में सुरक्षा व्यवस्था चौकस रखने की जरुरत होगी ।

केंद्र सरकार ने खुद यह आश्वासन दिया हैं कि एक दिन जम्मू-कश्मीर में हालात सामान्य होंगे और उसे फिर से राज्य का दर्जा दिया जाएगा।इसलिए संक्रमण काल के लिए केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा एक अहम् कड़ी साबित होगा।इस दौरान कानून व्यवस्था भी बेहतर रखी जा सकती हैं और कल्याणकारी योजनाओ का भ्रष्टाचार मुक्त क्रियान्वयन करके राज्य के लोगो को भरोसा भी दिलाया जा सकता हैं ।

निष्कर्ष :
संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू कश्मीर को मिल रहे विशेष दर्जे को हटाने से क्षेत्र में आतंकवाद का खात्मा होने की उम्मीद हैं।अब ऐसे कदम उठाने की जरुरत हैं कि वह विकास के मार्ग पर अग्रसर हो।इस मामलें में सर्वसम्मति से फैंसले लिए जाने चाहिए । जिससे सहकारी संघवाद को भी बढ़ावा मिलेगा और कश्मीर के युवाओं तथा निवासियों को भी यह आश्वाशन प्राप्त होगा कि कश्मीर देश की आर्थिक प्रगति का हिस्सा है और भारत का अभिन्न अंग है ।