Tracing MODI-fied India

जब मोदी प्रधानमंत्री बने थे तब यह प्रोपेगेंडा चलाया गया था कि उनके पास गुजरात में प्रशासन चलाने का लम्बा  अनुभव केंद्र में भी काम आएगा। लेकिन अब स्पष्ट हो गया है कि ज्यादा अनुभव वाला आदमी भी सही नहीं रहता क्योकि उसके अंदर सिस्टम को नजरअंदाज करने की क्षमता आ जाती है। सरकार ने इस समय देश के सभी उच्च शीर्ष संस्थानों की हालत खराब कर रखी है। सभी संस्थाओ पर केंद्र सरकार का भारी दबाव है। मोदी सरकार उन्हें अपने निर्देशो के अनुसार चलाना चाह रही है।

इस आलेख में हम दो भागो में आगे बढ़ते है। पहले भाग में हम उच्च अफसरों के साथ सरकार कैसा व्यवहार कर रही है, के बारे में होगा। वही दूसरे भाग में संस्थानों की हालत कैसे ख़राब कर रखी है, के बारे में विचार करेंगे। 

दादागिरी करने वाले लोगो की एक लोकप्रिय कहावत है कि या तो आप हमारे साथ है या फिर हमारे खिलाफ, बीच में रहकर सत्यनिष्टा दिखाने की कोई गुंजाईश नहीं है। यहां पर भी इसी रणनीति का अनुसरण किया जा रहा है। जो अफसर सरकार के एजेंडे को बिना प्रश्न किए जैसे-तैसे आगे बढ़ा रहे है, वे सर्वाइव कर रहे है। बाकी लोगो को प्रताड़ित या उपेक्षित किया जा रहा है।   
  1. इस सरकार को शुरू में देश के बेहतरीन लोगो का साथ मिला था, जो अपने अपने फील्ड में ख्यातिप्राप्त थे। लेकिन इस सरकार के एजेंडे को भांपकर सभी लोग भाग खड़े हुए। आर्थिक क्षेत्र में सबसे ज्यादा ब्रेन ड्रेन मोदी के काल मे हुआ। रघुराम राजन चले गए, अरविंद सुब्रह्मण्यम, अरविंद पनगड़िया चले गए। अर्थशास्त्रियों में केवल विवेक देवराय इनके साथ है।
  2. अच्छे अच्छे अफसरों को इन्होंने लांछन लगाकर बर्खास्त कर दिया। जब भी किसी अफसर को हटाया गया। भाजपा के आईटी सेल ने उन्हें बदनाम करके रख दिया। विदेश सचिव निरुपमा और रघुराम राजन के उदाहरण सामने है।
  3. कई अफसरों को मोदी जी ने व्यक्तिगत प्रतिशोध का निशाना बनाया , जिसमे संजीव भट्ट शामिल है जिसने गुजरात दंगो पर मोदी को आरोपी ठहराने वाले अवधारणाएँ सामने रखी थी।
  4. जिन लोगो ने आने पर निकालने की कोशिश की, उनको कोपभाजन सहना पड़ा। इनमे पुराने रेलमंत्री गोडा और हरड़ मंत्री स्मृति ईरानी का नाम शामिल है। 
  5. अफसरों की बलि भी अपने संकीर्ण हितों को पूरा करने के लिए दी गई। देवयानी खोबरागड़े को अमेरिका से रिश्ते सुधारने के लिए उपेक्षित किया गया। अब बैंकिंग लॉबी के दबाव में उर्जित पटेल भी बलि का बकरा बन सकते है।
  6. उनकी जगह पर जो लोग लाये गए। उनके कद छोटे रखे गए ताकि उन्हें अपने व्यक्तित्व का मातहत बनाया जा सके। राष्ट्रपति के पद पर निर्वाचन भी इसी रणनीति का हिस्सा है। उर्जित पटेल ने नोटबन्दी के समय समर्पण कर दिया था। ओपी रावत ने राजस्थान के चुनावों की घोषणा में देरी की ताकि मोदी की सभा पूरी हो सके।
  7. कई पदाधिकारी यो ने मोदी को फायदे वाले काम किए। उन्हें दूसरे उच्च पद देकर सम्मानित किया। जिनमे 2G scam की अवधारणा बुनने वाले विनोद रॉय को बैंक बोर्ड ब्यूरो का चेयरमैन बनाया गया। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी सदाशिवम को केरल का राज्यपाल बनाकर भेजना भी इसी तरह की दुर्गंध के संकेत देता है।
  8. केंद्र में गुजरात कैडर और आरएसएस की विचारधारा के व्यक्तियों का जमावड़ा कर दिया गया। उन्हें श्रेष्ठ पद दिए गए। हसमुख अधिया उनमे प्रमुख नाम है।
  9. कुछ अफसरों के प्रति मोदी का विशेष स्नेह रहा। इनमे पहला नाम तो अजित डोवाल का है। जिसका कद एक मंत्री से भी ऊपर है। राजीव महर्षि भी वित्त सचिव, गृह सचिव रहे। उन्हें सेवा विस्तार मिला और उसके बाद कैग जैसे महत्वपूर्ण पद पर बिठा दिया गया।
मतलब मोदी सरकार में पद पाने के लिए मोदी भक्त होना प्राथमिक और अनिवार्य योग्यता है। इस योग्यता को धारण करने के बाद आप साहेब की असीम कृपा का लाभ प्राप्त करोगे।


संस्थाओ की विकलांग स्थिति
इस समय सारी संस्थाए विकलांग व्यक्ति के समान कर दी गई है। किसी संस्था के पास बजट नही है, तो किसी के पास स्टाफ नही है।

नियुक्तियों को अटकाना :
जब किसी संस्था में स्टाफ ही नही होगा तो वे कैसे काम करेगी। ये सब ऐसे संस्थान है जो सरकार को जवाबदेह बनाते है। 
  1. भ्रष्टाचार की जांच के लिए लोकपाल नियुक्त करने का कानून बने लगभग चार साल हो गए है। लेकिन अभी भी उसकी नियुक्ति नही हुई है। दरअसल लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री को भी रखा गया है, अब PM के खिलाफ वह टिप्पणी करेगा तो मोदी की छवि का विश्लेषण करने का जनता को मौका मिलेगा। मोदी ने इसका अवसर ही जनता को नही दिया। बात को कानून में संशोधन पर फंसा दिया (explain in comment)
  2. जिन संस्थाओ में अध्यक्ष के अलावा कुछ सदस्य होते है। उनमें आधे सदस्यों की नियुक्ति ही नही की जाती। कुछ सदस्य उसमे विपरीत विचारधारा के नियुक्त कर दे रहे है ताकि वे आपस मे ही उलझे रहे। RBI में अभी ऐसे सदस्य घुसा दिए गए है।
  3. न्यायालयो में नियुक्तियो के आग्रह को ठुकराना भी इनका काम रहा है। CJI टीएस ठाकुर ने इनके सामने जजो की नियुक्ति को नही अटकाने का आग्रह करते हुए आंसू छलकाए थे, जिसका इन पर कोई असर नही हुआ। अल्फोंस की नियुक्ति को दोबारा भेजने पर स्वीकृति दी थी क्योंकि उसने उत्तराखंड में इनके विपरीत निर्णय दिया था।
  4. अयोग्य व्यक्तियों को नियुक्त किया जा रहा है। FTII पुणे में गजेंद्र चौहान को नियुक्त कर दिया। लम्बे विरोध के बाद अनुपम खेर को नियुक्त किया गया, जिसने भी इस्तीफा दे दिया।

कार्यप्रणाली में हस्तक्षेप :
कई संस्थानों की कार्यप्रणाली में हस्तक्षेप किया। फ़िल्म सर्टिफिकेशन बोर्ड को सेंसर बोर्ड बना दिया। पहलाज निहलानी ने इस मामले में बड़ी कुख्याती पाई। रिज़र्व बैंक में हस्तक्षेप किया जा रहा है। रघुराम राजन के स्वतंत्र व्यक्तित्व और विचारों के कारण ये उससे डरते रहे। लेकिन उर्जित पटेल को अंधेरे में रखकर नोटबन्दी कर दी। अब तो उसने भी ज्यादा हस्तक्षेप करने पर इस्तीफे की धमकी दी है।

संस्थाओ में टकराव :
सीबीआई और आईबी जैसी संस्थाओ में टकराव की स्थिति पैदा करने में मोदी जी को पुरानी महारत हासिल है। अभी सीबीआई डायरेक्टरो के बीच मामले में इसे देखा जा सकता है। कामकाज में भी दबाव बनाकर असंवेधानिक कार्य किए जा रहे है या फिर कानूनी लूपहोल का फायदा उठाया जा रहा है।

कानूनी दुर्बलता के प्रयास :
कई संस्थानों की शक्ति तो बाकायदा कानून लाकर कम कर दी गई। इस मामले में रिज़र्व बैंक सरकार को सर्वाधिक खटका जिससे बहुत सारी शक्तिया वापस ली गई। सुचना आयोग का भी यही हाल है। 

आगे क्या :
कुल मिलाकर बात यह है कि अफसरों और संस्थाओ को दबाव में रखकर काम करवाया जा रहा है। ये सब काम सिर्फ पूंजीपतियों के फायदे के लिए किया जा रहा है। जबकि संस्थान वंचित वर्ग के हितों की रक्षा के लिए खड़े होते है। ऐसे में गरीबो के हितों की कीमत पर बिजनेसमैन को खड़ा करने में मोदी सरकार तन मन धन से लगी हुई है।
जनमत को भी इसकी निंदा करनी चाहिए। अफसरों को अपनी सत्यनिष्ठा पर अडिग रहना चाहिए। तब जाकर हो सकता है हम संस्थानों को उन उद्देश्यो पर कार्यरत देख सके, जिनके लिए उन्हें स्थापित किया गया था।

Conclusion :
जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी तो india is indira, indira is india का नारा दिया गया। मतलब जो इंदिरा ने कर दिया वही सही है, कही से विरोधी स्वर निकलने की गुंजाईश ही नहीं थी। अब मोदी जी भी उसी रवैये पर चल रहे है जो मानते है कि अब india MODIfied हो चुका है, जिसमे मोदी जी ने जो कह दिया वो ही सही होगा। हालांकि हम सब जानते है कि अहंकार किसी को भी नही पचता। हमारे अंदर दूसरे संस्थानों और व्यक्तियों की उपस्थिति को लेकर सम्मान होना चाहिए।

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