शब्दावलियों के जाल में फंसाकर बजट का पूंजीपति उन्मुखीकरण

mastram meena blogबजट की घोषणा के आते ही लोग इस चर्चा में लग जाते हैं की क्या क्या नए काम होंगे और कोनसी चीज सस्ती होगी तथा कोनसी चीज महंगी होगी इसके अलावा किस क्षेत्र को क्या मिला और ज्यादा से ज्यादा हम सोचते हैं की क्यों मिला , मीडिया में भी इन्ही चीजो पर जोर के कारण लोक-लुभावन मुद्दो पर बहस के अलावा बजट की कभी भी भावना को परखा नही जाता हैं। क्यों की बजट में जो शब्दावलियाँ प्रयुक्त की जाती हैं वे आम आदमी की समझ से दूर होती हैं और मीडिया भी उन्हें उसी रूप में पेश कर देता हैं।


बजट का रुख 
हा अब अगर लोकलुभावन चीजो को हम नही  देखे तो फिर हमे कोनसी चीजे देखनी चाहिए, ये सवाल आता हैं। क्यों परेशानी होती हैं मुख्य भावना को समझने में
बजट में जो शब्द प्रयुक्त होते हैं उनमे अंतर केवल अर्थशास्त्र का विद्यार्थी ही कर सकता हैं। जैसे की राजस्व घाटा, पूंजी घाटा, सकल घाटा और  प्राथमिक घाटा , लोगो को इतने घाटो में उलझाने के बाद वे सोचते हैं की हाँ सरकार घाटे में चल रही हैं इसलिए सरकार से ज्यादा अपेक्षा करना ठीक नही हैं ,उसी प्रकार प्राप्तियों के सम्बन्ध में हैं। मीडिया को चाहिए की इनके आंकड़े हरेक अवयवो सहित प्रकाशित किये जाए।
अब यहां से शुरू होता हैं एक खेल, जिसमे लोगो को केवल गुमराह किया जाता हैं। जिसे हम इस तरीके से समझ सकते हैं।
1. सबसे पहले तो आंकड़े दे कर बताया जाता हैं की हमारी अर्थव्यवस्था की हालत यह हैं , जिसमे घरेलु और वैश्विक दोनों कारको को शामिल किया जाता हैं।  फिर क्षेत्रवार तुलना द्वारा बताया जाता हैं की कोनसा क्षेत्र अधिक उत्पादक हैं और उसके लिए सुविधाओ में इजाफा करने के लिए किये जाने वाले प्रावधानों को आम स्वीकृति दिलाई जाती हैं दूसरी तरफ कृषि का योगदान जीडीपी  में कम साबित करके सब्सिडियों की याद दिलाई जाती हैं।

 2. यह पहले ही बताया जा चूका हैं की कृषि एक रोजगार परक क्षेत्र नही हो सकता और फिर विनिर्माण क्षेत्र का गुणगान किया जाता हैं की इसी में वो क्षमता हैं जो देश से बेरोजगारी को  मिटा सकता हैं और यही देश के निर्यात को बढ़ा सकता हैं।

3. विनिर्माण की महिमा बताने के बाद इसके लिए जरुरी चीजो की पूर्ति का इंतजाम किया जाता हैं। इसके बहाने देश के कानूनो, संवेधानिक प्रावधानों को तोड़ा और मरोड़ा जाता हैं। तथा देश के हित के साथ भी समझोते किये जाते हैं।
सेज़ जैसे प्रावधान करके एक भ्रष्ट सिस्टम को तैयार करके सरकारी खजाने के हितो से खेला जाता हैं। इसमें प्रावधान कर दिया गया हैं की उन्हें करो से छूट दी जायेगी , जो सरकारी राजस्व को सीधा नुकसान हैं। इसके बाद इन इलाको में बिज़नेस इकाई लगाने के लिए फिर रिश्वत गेम खेल जाता हैं। इस प्रकार काफी बड़ी राशि को माफ़ कर दिया जाता हैं , और इसका खामियाजा दूसरे क्षेत्रो को भुगतना पड़ता हैं जिसे उनको होने वाले आवंटन से जान सकते हैं।

4. विनिर्माण या निर्माण क्षेत्र को जमीन उपलब्ध कराने के लिए भूमि अधिग्रहण कानूनो में संसोधन किया जाता हैं। और जो किसानो के लिए पहले सेफ़गार्ड थे जो उन्हें जमीन के छीनने से बचाते थे उनको लचीला बनाकर अंधाधुंध अधिग्रहण किया जा रहा हैं। इससे एक तो किसानो की जमीन छीनी जा रही हैं दूसरी और उनके भविष्य से भी खिलवाड़ की जा रही हैं।
कई जगहों पर तो सरकारी जमीन को ही बंजर, दलदली और अनुपजाऊ साबित करके आवंटित कर दिया जाता हैं।

5. अवसंरचना के नाम पर हम तुलना करने से पहले बता देते हैं की सरकार उन्ह अवसरचनाओ पर करोडो खर्च कर रही हैं जिन्हे एक खासा वर्ग ही इस्तेमाल करता हैं। जैसे की- हवाई अड्डो का निर्माण, ये ऐसा क्षेत्र जिसे हम कह सकते हैं की ये आम आदमी के हितो से परे हैं और कुछ ही लोगो की जरुरत हैं ,ऐसे में सरकार के बजाय निजी क्षेत्रो को इनमे आमंत्रित करना चाहिए।
इस प्रकार उन परिसम्पतियों के निर्माण पर बहुत अधिक खर्च किया जाता हैं जिन्हे कोई ख़ास वर्ग ही इस्तेमाल करता हैं।

6. सामजिक क्षेत्रो पर आते हैं तो हम देखते हैं की उनको अखिल भारतीय स्तर पर मिला आवंटन इतना कम होता हैं की उससे केवल इस चीज का अध्यन ही किया जाता होगा जिसके लिए इसका आवंटन हुआ हो।

7. गाँवो और जो निम्न वर्ग के लिए जो प्रावधान किये जाते हैं वो इतने जटिल बना दिए जाते हैं की उनका आसानी से कोई भी फायदा नही उठा सकता हैं। और फिर ऐसी व्यवस्था में फसा दिया जाता हैं जिसमे राजनितिक वर्ग के ही बिचोलिये जुड़े हो।

8. अब बात करते हैं हम कर्जो की तो  इनमे गाँवो को प्राथमिक क्षेत्र में डालकर अधिकतम उपलब्धता की बात की जाती हैं परन्तु उनकी प्रक्रिया इतनी जटिल हैं की किसी  गांव से दो-चार लोग ज्यादा से ज्यादा लाभान्वित होते होंगे। जबकि बहुत बड़े बड़े कर्ज कॉर्पोरेट सेक्टर को आसानी से उपलब्ध करा दिए जाते।
अगर हम बात करे नपा की तो वो सर्वाधिक कॉर्पोरेट सेक्टर की ही होती हैं पर हमारे नीति निर्माता जान बूझकर उसमे कृषि को भी शामिल करले लेते हैं जिनकी मात्रा बहुत छोटी होती हैं।

पूंजीपति कारी  एसेट निर्माण

  

समाज के विभिन्न वर्गों पर मुद्रास्फीति का असमान वितरण


मुद्रास्फीति आज हर क्षेत्र में अपने पांव पसार चुकी हैं। ऐसी अब कोई भी चीज नही बची होगी जो अपनी कीमतों में पिछले आठ-दस पुरानी कीमत संरचना से समानता दर्शाती हो। सब चीजो की कीमतों में भारी अंतर आ गया हैं। महंगाई की मार खाद्य सामग्रियों से लेकर भारी मशीनरी तक में सब जगह देखी जा सकती हैं। और कम-ज्यादा सभी वर्गों को प्रभावित करती हैं। महंगाई एक अलग से बनकर मुद्दा बन गया हैं जिस पर राजनीती की जा सकती हैं और जनता भी उनको प्रतिक्रिया दे कर इसे और अधिक महत्वपूर्ण बनाती हैं।

 महंगाई का तुलनात्मक असर
महंगाई का असर हम गरीब और अमीर वर्ग पर अलग-अलग देखते हैं। एक वर्ग को दैनिक जीवन की सभी उपयोगी वस्तुओ पर इसका असर देखने को मिलता हैं ,जब की दूसरे वर्ग के लिए यह असर  उसकी क्रय शक्ति के दायरे में आने के कारण अप्रभावी रहता हैं।
अमीर वर्ग की क्रय शक्ति का दायरा अधिक होने के कारण उसे केवल भौतिक चीजो में ही महंगाई का सामना करना पड़ता हैं , और इनकी खरीददारी कभी कभार ही की जाती हैं इस प्रकार यह वर्ग मुद्रास्फीति  से अनभिज्ञ ही रहता हैं। साथ ही इनकी भौतिक चीजो के मांग और आपूर्ति का संतुलन बना रहने के कारण इसमें भी कम ही मुद्रास्फीति रहती हैं।
अमीर और गरीब वर्ग के बीच में हम एक मध्यम वर्ग को लेकर चलते हैं जिसकी आय निम्न वर्ग से थोड़े ऊपर से शुरू होकर काफी आगे तक जाती हैं।  इस वर्ग की आय नियमित होती हैं इस प्रकार यह वर्ग अपने आप को निम्न वर्ग से अलग करता  हैं। यह वर्ग दैनिक जीवन में भी महंगाई का सामना करता  हैं जो इसकी क्रय शक्ति को प्रभावित करता हैं। क्रय शक्ति प्रभावित होने से भौतिक साधनो को बसाने में इस वर्ग को अधिक समय लगता हैं। इस प्रकार यह वर्ग भौतिक सुविधाओ के साथ दोनों ऊपर व नीचे के वर्ग के बीच दोलायमान स्थिति दर्शाता हैं।
अब सबसे निम्न वर्ग के पास आते हैं इसमें में उन सभी परिवारो को शामिल करता हूँ जिनकी आय नियमित नही हैं तथा उद्योग व सेवा क्षेत्र से संबंधित नही हो। जैसे की कृषि या उससे संबंधित कार्यो में कार्यरत लोगो की आय नियमित नही होती हैं। असंघटित क्षेत्र में कार्य करने वाले लोग भी इसी दायरे में आते हैं।

निम्न वर्ग की व्यथा 
इस वर्ग की आय अनियमित होने के साथ-साथ बहुत ही कम होती हैं। इनको दैनिक जरुरतो के लिए सबसे ज्यादा महंगाई को उठाना पड़ता हैं, इस कारण इनकी क्रय शक्ति ही विकसित नही हो पाती। इस वर्ग में भौतिक साधनो की कमी अत्यधिक रहती हैं। साथ ही विभिन्न प्रकार के पारिवारिक आयोजन इन्हे कर्ज के तले धकेल देते हैं।
ऊपर से देखने पर एकमात्र ये ही वर्ग हैं जिसे पारिवारिक सदस्यों की जरुरतो, जैसे की -शिक्षा ,स्वास्थ्य, वस्त्र,आवास आदि के लिए भी ऋणग्रस्तता झेलनी पड़ती हैं। इस वर्ग में शिक्षा का काफी अभाव हैं इसलिए अपनी आय को बढ़ने के लिए दूसरे जीविका निर्वाह के साधन भी चुन नही पाते हैं।
इस वर्ग की दूसरी पीढ़ी भी पैसे के अभाव में गुणवत्ताहीन जगहों से शिक्षा प्राप्त कर रही हैं जो उन्हें केवल पढ़े लिखे मजदुर से ज्यादा कुछ नही बनाएगी। इनमे से कुछ मेधावी छात्र ही छात्रवृति या फिर अन्य अनुदानों अथवा कर्जे लेकर अपनी पढाई आगे नियमित कर पाते हैं। कुछ छात्र तो बाहर जाकर पढाई करने में होने वाले खर्चे या महंगी फीसों से बचने के लिए पढाई या तो छोड़ देते हैं या फिर  गुणवत्ताहीन जगहों से जारी रखते हैं। इस प्रकार शिक्षा के द्वारा कौशल विकसित कर इस वर्ग की आय बढ़ाने का विकल्प भी अप्रभावी लगता हैं।

दूसरी बात यह हैं की इस वर्ग को महंगाई के प्रभाव को कम करने के लिए कोई सहायता भी नही मिलती हैं। जबकि मध्यम वर्ग  आदि को महंगाई भत्ते ,करो में कटौती आदि महंगाई रोधी विकल्प मिलते हैं। सरकार से पूछने पर वो सब्सिडियों की याद दिलाती हैं जिसे वो निम्न और गरीब वर्ग की सभी समस्याओ का सार्वभौमिक जवाब मानते हैं। तथा कुछ संकीर्ण सोच वाले बुद्धिजीवी तो यहां तक दावा कर देते हैं की सरकार द्वारा खर्च किया जाने वाला पैसा मध्यम वर्ग के करो का हैं इसे एक अनुत्पादक वर्ग पर कैसे खर्च किया जा सकता हैं।

महंगाई के प्रभाव से निपटने के लिए एक विकल्प बैंको से कर्ज का हैं। परन्तु पहली बात यह सरकार का केवल हाजिरजवाबी विकल्प हैं क्यूंकि निम्न वर्ग सर्वाधिक पीड़ित खाद्य मुद्रास्फीति से रहता हैं और कोई भी सब्जियां खरीदने के लिए न तो कर्ज लेता हैं और नही कोई देता हैं। अब बात आती हैं भौतिक सुविधाओ या फिर पारिवारिक आवश्यकताओं के लिए कर्ज प्राप्त करने की तो, इनकी प्रक्रिया भ्रष्टाचार या फिर कामचोरी की वजह से इतनी जटिल हैं की  एक अशिक्षित किसान बिना किसी बिचोलिये के आगे बढ़ ही नही सकता। इस प्रकार यह विकल्प जटिलताओं भरा हैं और इसमें भी कुछ लोग प्राथमिक क्षेत्र की कर्ज सीमा को कम करवाने के प्रयास में लगे हुए हैं, तथा NPA  आदि को इस से जोड़ रहे हैं भले ये सब को पता हैं की इस क्षेत्र का NPA बहुत ही कम हैं।

इस प्रकार हम देख चुके हैं की महंगाई से सबसे ज्यादा कम आय वाला व्यक्ति प्रभावित होता हैं।  

सामुदायिक विकास की अवधारणा


हमारी संस्कृति आपस में सहयोग करने की हैं ,जिसे हम संस्कृत के वाक्य "वसुधैव कुटुंबकम" से समझ सकते हैं। भारतीय संस्कृति को ये पहलु ही सबसे अलग बनाता हैं की यहां लोग एक दूसरे के काम काज में हाथ बढ़ाते हैं तथा मिलजुलकर अपना जीवन निर्वाह करते हैं। अब हम इस बात को एक समूह के ऊपर ले जाते हैं की लोग मिलजुल कर एक साझा उद्देश्य के लिए काम करते हैं। तो हम यहां से एक समुदाय जो किसी भी कारण से संगठित हो वह अपने विकास का मार्ग मौजूद संसाधनो के द्वारा एक सामूहिक प्रयास से  तय करता हैं। इस प्रकार हम देख सकते हैं की समुदाय स्तर पर विकास करने का बीज भारतीय संस्कृति में पहले से मौजूद हैं।

क्या हैं सामुदायिक विकास ?
सामुदायिक विकास ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत समुदाय के लोग साथ आकर अपनी एक जैसी समस्याओ के समाधान के लिए सामूहिक प्रयास करते हैं। यह एक व्यापक शब्द हैं जो कई प्रकार के समुदायों का प्रतिनिधित्व करता हैं जिनमे  नागरिक, व्यावसायिक या सरकारी वर्ग हो सकते हैं।
सामुदायिक विकास एक प्रकार की पहल हैं जो समान रूचि या फिर समान समस्याओ वाले लोगो द्वारा सामूहिक प्रयास करके शुरू की जाती हैं। यह एक स्वप्रेरित भावना हैं।
सामुदायिक विकास शब्द का अधिकतर प्रयोग अमेरिका, कनाडा, यूरोपीय देशो , ऑस्ट्रेलिया आदि देशो में किया जाता हैं।


सामुदायिक विकास के विभिन्न  प्रकार 
अब हम इसके विभिन्न आयामों के बारे में भारतीय परिप्रेक्ष्य से नजर डालेंगे
1. क्षमता निर्माण
इसके तहत उन गुणों के विकास पर जोर दिया जाता हैं जो समाज को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति में सक्षम बनाते हैं।
2. सामाजिक पूंजी निर्माण 
इसके तहत उन कार्यो पर फोकस किया जाता हैं जिनसे आपसी सहयोग से लाभ की प्राप्ति होती हो।
3.अर्थिक विकास 
इसके तहत समुदाय को स्थानीय संसाधनो का प्रयोग करते हुए आर्थिक विकास के लिए प्रेरित किया जाता हैं।
4.समुदाय संचालित विकास
इसके तहत योजना का उन्मुखीकरण विकेन्द्रित होता हैं और समुदाय स्तर पर नियोजन पर अधिक भरोसा किया जाता हैं।
5 परिसंपत्ति आधारित सामुदायिक विकास
इसके तहत समुदाय के प्रयासों का उन्मुखीकरण स्थायी सम्पति के निर्माण पर होता हैं। यह एक प्रकार से टिकाऊ विकास के समान हैं।
6.सहभागितापूर्ण नियोजन
इसके तहत पूरा समुदाय योजना निर्माण में भाग लेता हैं।