ईआरसीपी परियोजना : राजनीतिक श्रेय के भंवर में पूर्वी राजस्थान का पानी

 “भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ,

आजकल दिल्ली में है ज़ेर-ए-बहस ये मुद्दआ।”


कवि दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां धरातल पर पानी की आवश्यकताओं और पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना के राष्ट्रीय दर्जे को लेकर चल रहे आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति पर सटीक बैठती है। एक तरफ तो पेयजल एवं सिंचाई के लिए बेसब्री से आस लगाये बैठे हुए लोग है, दूसरी तरफ एक दुसरे पर दोषारोपण करते हुए राजनीतिक दल है। कांग्रेस का कहना है कि इसे राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा देकर प्रधानमन्त्री को अपना वादा पूरा करना चाहिए। वही केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री का मानना है कि दर्जे की मांग करने से पहले कम से कम परियोजना की डीपीआर तो सही से बनाकर भेजे। वही लोगों के मन में बिठा दिया गया हैं कि यह परियोजना उनकी जल संकट की समस्या का समाधान कर देगी। बहुत सारे लोगों को तो यह पता भी नही है कि यह नहर किस भाग से होकर गुजरेगी, उनके क्षेत्रों से गुजरेगी भी या नहीं, लेकिन वे इस विषय पर राजनीतिक दलों के कार्यक्रमों में भाग लेकर अपनी उर्जा को व्यर्थ करने में कोई कमी नही छोड़ रहे है। इस आलेख में ऐसे ही कई आयामों को शामिल किया गया हैं।

सबसे पहले पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना के बारे में जान लेते है, इसके बाद राष्ट्रीय दर्जे को लेकर चल रही राजनीति के विभिन्न पहलुओं पर विचार करेंगे।


1.1. पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ERCP) के बारे में

पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरपीसी ) का मुख्य उद्देश्य राजस्थान के जल प्रबंधन को नए सिरे से विकसित करना है। यह इंट्रा-बेसिन जल स्थानांतरण (Intra - Basin Water Transfer) स्कीम है, जिसके तहत दक्षिणी राजस्थान की नदियों (कुन्नू, पार्वती, कालीसिंध) के मानसून काल में अधिशेष पानी को दक्षिण-पूर्व की नदियों (बनास, मोरेल, बाणगंगा, गंभीर, पार्वती) में स्थानांतरित करना प्रस्तावित है। यह पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों (झालवाड़, बांरा, कोटा, बूंदी, टोंक, अजमेर, जयपुर, दौसा, सवाई माधोपुर, करौली, धौलपुर, भरतपुर, अलवर) की पेयजल एवं सिंचाई आवश्यकताओं को पूर्ण करेगी।


यह परियोजना तीन चरणों में पूर्ण होगी। इस परियोजना के अंतर्गत 6 बैराज (हनोतिया, रामगढ़, महलपुर, नवनेरा, मेज और राठौड़ बैराज) एवं डूंगरी नामक बांध का निर्माण प्रस्तावित है। गुरुत्वाकर्षण नहरें, गुरुत्वाकर्षण सुरंगें, पंपिंग/ डिलीवरी के माध्यम से लगभग 1268 किलोमीटर लंबी जल संवाहक प्रणाली निर्मित की जाएगी, जो सभी मौजूद एवं प्रस्तावित संरचनाओं को आपस में जोड़ेगी।


कुन्नु नदी, कुल नदी, पार्वती नदी एवं कालीसिंध नदी पर डायवर्जन संरचनाओं का निर्माण करके ग्रेविटी नहरों के माध्यम से पानी को चंबल क्रॉस कराते हुए आगे भेजा जाएगा। नहरों के माध्यम से जलाशयों को भरा जाएगा तथा विशिष्ट आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए अगले जलाशय तक पानी को भेजा जाएगा। उदाहरण के लिए- ईसरदा बांध के पानी को जयपुर की पेयजल आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए उपयोग में लिया जाएगा। 


1.2. परियोजना का महत्व

इस प्रकार इस परियोजना के माध्यम से पूर्वी राजस्थान के जलाशयों को आपस में जोड़ा जाना संभव होगा। इससे मानसून अवधि में अधिशेष जल को दुसरे बेसिन में भेज कर बाढ़ की संभावनाओं को समाप्त किया जा सकेगा और वर्षा के जल का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित हो सकेगा। इस प्रकार बाढ़ एवं सूखे की समस्या का समाधान होगा। पूर्वी क्षेत्र में जल की उपलब्धता बढ़ने से सतही एवं भूजल की उपलब्धता में वृद्धि होगी। 


बता दें कि इस परियोजना से 4.31 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई का पानी मिलेगा। वहीं दिल्ली-मुबंई इंडस्ट्रियल कोरिडोर प्रोजेक्ट के तौर राजस्थान में औद्योगिक विकास के नए रास्ते खुल सकते हैं।


इससे लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सकारात्मक परिवर्तन आएगा। इसके परिणामस्वरूप राज्य में निवेश और राजस्व में वृद्धि होगी।


1.3. अनुमानित लागत

इस परियोजना की अनुमानित लागत 37500 करोड़ रूपये है। इस पर 5200 करोड़ रूपये के कार्य पूर्व में स्वीकृत हो चुके हैं। राजस्थान सरकार ने 2022-23 के बजट में 9,600 करोड़ रुपये की लागत से नवनेरा-बीसलपुर-ईसरदा लिंक, महलपुर बैराज और रामगढ़ बैराज के निर्माण की घोषणा की है, जो कि वर्ष 2022-23 में शुरू करके वर्ष 2027 तक पूर्ण किए जाएंगे। सरकार ने यह घोषणा तब की है, जब केंद्र सरकार ने इसे राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा देने के बजाय परियोजना को रोकने का निर्देश दिया था।


विलंब के कारण परियोजना की लागत बढती जा रही है, जो परियोजना 40 हजार करोड़ रूपये में पूरी होने वाली थी, अब उसकी लागत 70 हजार करोड़ रूपये तक आने का अनुमान व्यक्त किया जा रहा है। इस परियोजना को पूर्ण होने में काफी समय लग जाएगा, यदि यह राष्ट्रीय परियोजना घोषित नहीं हो पाती हैं।

खंड I

2.1. राष्ट्रीय परियोजना के दर्जे की मांग 

राजस्थान सरकार द्वारा इस परियोजना को समय पर पूर्ण करने के लिए राष्ट्रीय परियोजना के दर्जे की मांग की जा रही हैं। राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा मिलने से केंद्र सरकार के वित्तपोषण अंश में वृद्धि होगी। फंडिंग पैटर्न वर्तमान के 60:40 से बढ़कर 90:10 हो जाएगा। गौरतलब है कि केंद्र सरकार द्वारा अब तक 16 परियोजनाओं को यह दर्जा दिया गया है, जिसमे से एक भी राजस्थान की नहीं हैं।


2.2. राष्ट्रीय परियोजना के दर्जे को लेकर राजनीति

इस परियोजना को वर्ष 2016-2017 में भाजपा की वसुंधरा राजे सरकार ने बनाया था।

वर्ष 2017-18 के बजट में राजस्थान की तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार ने इस परियोजना की घोषणा की थी। राजे ने अपने आखिरी बजट भाषण में कहा था कि राज्य सरकार ने केंद्र सरकार को ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने के लिए प्रस्ताव भेजा है।


अब, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी लगातार ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना दर्जा दिलाने की मांग कर रहे हैं। इनका तर्क है कि इसकी अनुमानित लागत लगभग 40,000 करोड़ रुपये है, जिसे राज्य सरकार अकेले वहन नहीं कर सकती है। इसलिए, केंद्र सरकार को राज्य के कल्याण के हित में सहायता प्रदान करनी चाहिए। 


अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को हराकर लोकसभा सदस्य बने गजेन्द्र सिंह शेखावत के जल संसाधन मंत्री बनते ही इस परियोजना को लेकर शेखावत बनाम गहलोत अडावट शुरू हो गई। मंत्री महोदय के राजस्थान से संबंध रखने के कारण इस परियोजना को राष्ट्रीय दर्जा मिलने की उम्मीद जगी थी, परन्तु मंत्री जी ने 3 आपत्तियां गिनवा दी-

  1. पहला मामला है नदियों के पानी के उपयोग की डिपेंडेबिलिटी। राष्ट्रीय परियोजना के लिए इसका प्रतिशत 75 होना चाहिए, जबकि ईआरसीपी के मामले में यह 50 फीसदी है। 

  2. दूसरा मामला मध्य प्रदेश से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) का है। एमपी से आने वाली नदियों के पानी के उपयोग के लिए एनओसी अभी तक नहीं मिल सकी है। एमपी को यह भी लग रहा है कि राजस्थान उनके हिस्से का पानी ले लेगा। 

  3. तीसरा मामला अंतर-राज्य विवाद पर केंद्र के दखल का है। ऐसे अंतर-राज्य विवादों को केंद्र साथ बैठकर हल कराता है। लेकिन ईआरसीपी मामले में कई बैठकों के बाद भी पेच 50 फीसदी डिपेंडेबिलिटी के चलते डीपीआर पर अटका हुआ है।


इसी सिलसिले में केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के सचिव ने राजस्थान के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर निर्देश दिया कि जब तक मध्य प्रदेश की समस्या का समाधान नहीं हो जाता, तब तक ईआरसीपी पर सभी तरह के काम बंद कर दिए जाएं। 


इसके जवाब में मुख्यमंत्री श्री गहलोत ने पूछा कि पानी राज्य का विषय है, इसलिए केंद्र को हस्तक्षेप ही नहीं करना चाहिए। साथ ही, राज्य द्वारा अपनी सीमाओं के भीतर अपने हिस्से के पानी को स्वयं की लागत पर प्रयुक्त किया जा रहा है, ऐसे में केंद्र सरकार, राज्य सरकार को काम रोकने के लिए कैसे कह सकती है। उन्होंने केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत पर ईआरसीपी के कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न करने का भी आरोप लगाया। साथ ही कहा कि राज्य अब इसे अपने संसाधनों से ही पूर्ण करने की कोशिश करेगा।


2.3. तीनो आपत्तियों का विश्लेषण

2.3.1.  डिपेंडेबिलिटी 

प्रथम आपत्ति डिपेंडेबिलिटी को लेकर है। वर्तमान में राजस्थान सरकार ने 50 प्रतिशत निर्भरता पर DPR बना राखी हैं क्योंकि इसमें राजस्थान के कैचमेंट यील्ड एवं मध्य प्रदेश की 10% यील्ड पर 3510 MCM पानी उपलब्ध हैं, जबकि ERCP के लिए 3510 MCM पानी की ही आवश्यकता है। इसलिए पेयजल एवं सिंचाई की आवश्यकता आराम से पूर्ण हो जाएगी।

पानी की उपलब्धता (MCM में)

50% निर्भरता पर 

75% निर्भरता पर 

राजस्थान के कैचमेंट यील्ड एवं मध्य प्रदेश की सरप्लस यील्ड पर 

7878

3393

राजस्थान के कैचमेंट यील्ड एवं मध्य प्रदेश की 10% यील्ड पर 

3921

1744

ERCP के लिए आवश्यक पानी

3510

1744


लेकिन केंद्र सरकार 75 प्रतिशत निर्भरता पर DPR बनाने की कह रही हैं, जिस पर केवल 1744 MCM पानी ही उपलब्ध है। इससे पेयजल हेतु मांग 1723.5 MCM को पूर्ण करने के पश्चात केवल 21 MCM जल ही शेष रहेगा। ऐसे में सिचाई एवं उद्योगों की आवश्यकता के लिए पानी की मांग की पूर्ति नहीं हो सकेगी, जिससे जल संकट की समस्या हल होने की बजाय बनी रहेगी।


विवरण

मांग (MCM में)

पेयजल हेतु मांग

1723.5

उद्योगों के लिए आरक्षित

286.4

सिंचाई के लिए आरक्षित

1500.4


ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा 75 प्रतिशत डिपेंडेबिलिटी का मानदंड राज्य के हित में नहीं हैं। फिर भी नियमों के अनुसार भले ही 75 प्रतिशत निर्भरता पर DPR का होना जरुरी हो, परन्तु जल विवाद प्राधिकरण के निर्णय और केंद्र सरकार का एक सर्कुलर इसमे रियायत देते हैं। कावेरी एवं कृष्णा प्राधिकरण 75 प्रतिशत से कम के कई प्रोजेक्ट्स को सही ठहरा चूका है। वर्ष 1983 में जारी केंद्र सरकार के एक सर्कुलर में कहा गया है कि 50 प्रतिशत निर्भरता पर प्रोजेक्ट्स बनाये जा सकते है, जहां पानी की कमी है। इस प्रकार केंद्र सरकार चाहे तो मौजूदा 50 प्रतिशत निर्भरता पर आधारित डीपीआर के आधार पर भी राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा दे सकती हैं।


2.3.2.  मध्य प्रदेश से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC)

राजस्थान एवं मध्य प्रदेश के मध्य चंबल के पानी का बंटवारा वर्ष 2005 में जयपुर में आयोजित इंटर-स्टेट वाटर कंट्रोल बोर्ड की बैठक में हुआ था। इसमें तय हुआ था कि दोनों राज्य अपने जलग्रहण क्षेत्र के पानी के साथ-साथ दूसरे राज्य के जलग्रहण क्षेत्र से 10% पानी का उपयोग कर सकते है। 


मध्य प्रदेश ने पार्वती नदी की सहायक नदी नेवज नदी पर मोहनपुरा बांध और कालीसिंध नदी पर कुंडलिया बांध का निर्माण किया है, जिससे वहां पर लगभग 2.65 लाख हेक्टेयर सिंचित क्षेत्र का विकास हुआ है। इनके निर्माण पर राजस्थान ने आपत्ति दर्ज नहीं की, न ही जल आयोग ने प्रदेश की NOC मांगी। जलशक्ति मंत्रालय ने भी सवाल नहीं उठाये थे। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2017 में बांधों के निर्माण के बाद अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त किया गया था।


राजस्थान सरकार ने कहा है कि ईआरसीपी पर मध्य प्रदेश की आपत्ति की आवश्यकता निराधार है, क्योंकि उसने वर्ष 2005 में आयोजित अंतर्राज्यीय बैठक में लिए गए निर्णय के अनुसार अपनी परियोजनाओं को मंजूरी दी थी। साथ ही, राजस्थान सरकार ने केंद्रीय जल आयोग के वर्ष 2010 के दिशानिर्देशों के अनुसार ही विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार की है।


2.3.3.  केंद्र की भूमिका 

तीसरी आपत्ति केंद्र की भूमिका के बारे में हैं। ऐसे अंतर-राज्य विवादों को केंद्र साथ बैठकर हल कराता है। लेकिन ईआरसीपी मामले में कई बैठकों के बाद भी पेच 50 फीसदी डिपेंडेबिलिटी के चलते डीपीआर पर अटका हुआ है। यहाँ पर केंद्र सरकार की भूमिका असहयोगपूर्ण नजर आ रही है। केंद्र सरकार, राजस्थान के प्रति न केवल भेदभावपूर्ण रवैया अपना रही है बल्कि ईआरसीपी के कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न करने का कार्य कर रही है।


खंड II


3.1. ईआरसीपी राजनीतिक मुद्दे के रूप में

ईआरसीपी ऐसा मुद्दा बन गया है, जो श्रेय लेने की लड़ाई में फस गया है। भाजपा की वसुंधरा राजे सरकार ने इसकी परिकल्पना की थी और प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने अपने वर्ष 2018 के विधानसभा चुनावी भाषण में इसे राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा देने का वादा किया था। इस परियोजना की आवश्यकता इतनी अपरिहार्य है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद अशोक गहलोत ने भी इसे दर्जा देने की मांग को केंद्र के समक्ष बार-बार दोहराया है। लेकिन अशोक गहलोत की मांग पर जल संसाधन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने कभी भी सकारात्मक प्रतिक्रिया नही दी। वे चाहते तो अपने राज्य के हित पूर्ण करने का प्रतिनिधि धर्म निभा सकते थे। गहलोत ने इसे चुनावी मुद्दा बनाने का इरादा जाहिर किया है। जब केंद्र सरकार ने रोक लगाने का आदेश किया तो गहलोत ने इसकी संवैधानिकता पर सवाल उठा कर सिद्ध कर दिया कि भाजपा इस परियोजना के पक्ष में नहीं है और पूर्वी राजस्थान के जल संकट की समस्या के समाधान हेतु अनिच्छुक है। अब भाजपा के लिए यह गले की फांस बनता जा रहा हैं, क्योंकि उहोने दर्जा देने के प्रति उदासीनता दर्शाई हैं। ऐसे में इसे दर्जा मिलने और नहीं मिलने दोनों ही स्थिति में कांग्रेस को फायदा होने की संभावना बन रही हैं।


निष्कर्ष 

पूर्वी राजस्थान में पेयजल एवं सिंचाई की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु ईआरसीपी का क्रियान्वयन बहुत जरुरी है। इसके समय पर क्रियान्वयन हेतु जरुरी है कि इसे राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा यथाशीघ्र प्रदान किया जाए। मानसून काल में व्यर्थ बहकर जाने वाले पानी को इसमें स्थानांतरित करके बाढ़ एवं सूखे की समस्या का समाधान प्रभावी तरीके से किया जा सकता हैं।



संदर्भ

Eastern Rajasthan Canal Project takes political twist after Centre’s directive to stop work

https://www.thehindu.com/news/national/other-states/eastern-rajasthan-canal-project-takes-political-twist-after-centres-directive-to-stop-work/article65600112.ece