UPSC कोचिंगों में कंटेंट डेवलपर के रूप में कैरियर की समीक्षा

कंटेंट डेवलपर या कंटेंट राइटर कोचिंग क्षेत्र में स्थायित्व ग्रहण करने की और बढ़ता हुआ एक क्षेत्र हैं। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, इसमें कंटेंट डेवलप करना होता हैं। कोचिंग क्षेत्र में कई प्रकार के कंटेंट डेवलप किये जाते हैं, जैसे कि- स्टडी मटेरियल, करेंट अफेयर्स, डेली न्यूज़, मंथली मैगज़ीन, टेस्ट सीरीज, मॉडल आंसर इत्यादि। ये सब कंटेंट कोचिंग में पढने वाले छात्रों को उपलब्ध कराया जाता हैं।  कंटेंट एक प्राइमरी प्रोडक्ट की तरह भी कार्य करता हैं। इसी कंटेंट के आधार पर टीचर अध्यापन कार्य करवाता हैं, टेस्ट सीरीज करवाई जाती हैं और फिर मॉडल आंसर उपलब्ध कराये जाते हैं। इसी कंटेंट को एक्सप्लेनेशन विडियो बनाने के लिए भी प्रयुक्त किया जाता हैं। इस प्रकार कंटेंट कोचिंग इंडस्ट्री में एक प्राइमरी प्रोडक्ट की भूमिका निभाता हैं और कंटेंट बनाने वाले बेक एंड प्लेयर्स की भूमिका में होते हैं। कंटेंट डेवलपर की भूमिका टीचर के विपरीत होती हैं, वह छात्रों से सीधा जुड़ने के कारण फ्रंट एंड प्लेयर होता हैं। आजकल कोचिंग क्षेत्र अपनी गहरी जड़े जमा चूका हैं, कोटा, जयपुर, पटना, दिल्ली जैसे शहरों की अर्थव्यवस्था में कोचिंग क्षेत्र बड़ी भूमिका निभा रहा हैं। ऐसे में फ्रंट एवं बेक एंड दोनों की समान आवश्यकता महसूस की जा रही है। दोनों ही प्रोफाइल स्थायित्व ग्रहण कर रही हैं।

विभिन्न प्रश्नों के माध्यम से इस आलेख में मैं अपने अनुभव को साझा कर रहा हूँ।

आपने इसे ज्वाइन करने का निर्णय क्यों लिया?

मैं 2015 में अपनी ग्रेजुएशन पूर्ण होने के बाद से लगातार यूपीएससी द्वारा आयोजित होने वाली सिविल सेवा की परीक्षा दे रहा था। तैयारी के माध्यम से मैंने अपनी एकेडमिक स्किल्स में काफी वृद्धि की थी। मैंने तीन बार मुख्य परीक्षा में कटऑफ के बहुत नजदीक अंक प्राप्त किए थे। 2016 में मेरा इंटरव्यू कॉल 12 मार्क्स (718/730) से रह गया था। 2018 में मैं UPSC सिविल सेवा के प्रीलिम्स में ही फ़ैल हो गया था परन्तु RAS का प्रीलिम्स पास हो गया था। ऐसे में 2019 में आयोजित RAS की मुख्य परीक्षा देने के बाद मैं पूरी तरीके से फ्री था, तब मैंने सोचा था कि अपने एकेडमिक नॉलेज का उपयोग करना चाहिए।

इसके अतिरिक्त पारिवारिक वित्तीय दबावों के कारण भी रोजगार प्राप्त करना आवश्यक था। चूँकि कोचिंग वाले वेतन भी अच्छा प्रदान कर रहे थे, जो कि सरकारी जॉब के समान ही था। इसलिए मुझे यह बेहतर विकल्प लगा।

आपकी जोइनिंग किस प्रकार हुई?    

ज्वाइन करने का निर्णय लेने के बाद, मुझे एक दोस्त ने बताया कि एक नई कोचिंग यूथ डेस्टिनेशन के नाम से शुरू हुई हैं, उसने एक दिन विज्ञापन जारी किया था। इसके बाद मैं कोचिंग के ऑफिस गया और HR को अपना रिज्यूमे दिया, तीन दिन बाद उन्होंने मुझे टेस्ट के लिए बुलाया और कुछ सैंपल लिख कर लाने को कहा। अगले दिन सैंपल सबमिट करने के बाद कंटेंट हेड ने मेरी मुलाकात उच्चाधिकारी से करवाई, जिन्होंने इंटरव्यू लिया। इसके बाद मुझे अगले दिन से आने की बोल दिया, पर कहा कि अभी आप अपने आपको स्थायी नहीं माने, हम आपको सात दिन के ट्रायल पर रख रहे हैं। पर वे मेरे काम से पहले दिन ही खुश हो गये थे, तो उन्होंने अगले दिन कुछ दस्तावेज और बैंक डिटेल्स उपलब्ध करवाने को कह दिया था। इस प्रकार मेरी फर्स्ट जॉब की शुरुआत हुई। कहते हैं कि हमे अपने को पहली जॉब देने वालो को कभी नहीं भूलना चाहिए, इसलिए मैं भी HR मैडम पूजा शर्मा जी, कंटेंट हेड अतुल मिश्रा जी का बहुत-बहुत आभार व्यक्त करना चाहता हूं।

यूथ डेस्टिनेशन में मेरा वेतन सोलह हजार रूपये था, इसलिए द हिन्दू में प्रकाशित विज्ञापन के आधार पर मैंने विज़न में भी आवेदन कर दिया था। जहाँ पर लिखित परीक्षा एवं इंटरव्यू के बाद मेरा चयन हो गया था और मेरा वेतन भी वर्तमान से दोगुना (बत्तीस हजार रूपये) था। यूथ डेस्टिनेशन में 35 दिन जॉब करने के बाद, मैंने 27 अगस्त 2019 को विज़न में अपना कैरियर शुरू किया था।

विज़न में कार्य संस्कृति किस प्रकार की थी?

विज़न आईएएस कोचिंग फॉर्मल सेक्टर में कार्य करता हैं, जिसमे हरेक एम्प्लोयी को सभी विधिसम्मत सुविधा प्रदान की जाती हैं। ज्वाइन करते समय कॉन्ट्रैक्ट एक्ट के नियमानुसार ऑफर लैटर जारी किया जाता हैं, जिसमे वेतन, कार्यावधि एवं अन्य चीजों का वर्णन होता हैं। सप्ताह में 6 दिन प्रात: दस बजे से सांय छ: बजे तक कार्यदिवस होता था। सभी नेशनल होलीडे पर अवकाश होता था। बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम था। टेस्ट सीरीज और करंट अफेयर्स के लिए अलग-अलग टीम थी। मैं करेंट अफेयर्स वाली टीम में था।

टीम लीडर द्वारा रोजाना कार्य आवंटन किया जाता था। इसकी सूचना ईमेल के माध्यम से प्रदान की जाती थी। ऑफिस जाने के बाद इसे पूर्ण करना होता था। 1500 शब्दों का काम रोजाना के हिसाब से आवंटित किया जाता था। अगर किसी के टॉपिक पहले कम्पलीट हो जाते तो उसे उन्हें फिर से देखने को कहा जाता था ताकि किसी प्रकार की कोई त्रुटि न रहे। इस प्रकार वर्क लोड ज्यादा नहीं था। कभीकभार ही काम 1800 शब्दों तक पहुंचता था। कार्य कितना ज्यादा है या कितना कम है, यह मैटर नही करता, टीम और टीम लीडर का व्यवहार बहुत अधिक महत्वपूर्ण हैं। टीम लीडर का व्यवहार बहुत ही सपोर्टिव था, वे आगे पढाई के लिए भी प्रोत्साहित करते थे। मेरे टीम लीडर ने प्रारंभ के 3 महीने इंडस्ट्री स्टैण्डर्ड को सिखाने में बहुत ही ज्यादा मदद की। इसलिए मुझे वर्क कल्चर भी बहुत ही ज्यादा अच्छा लगा।

एक कंटेंट डेवलपर में किस प्रकार की स्किल्स होनी चाहिए?

एक कंटेंट डेवलपर में एकेडमिक और टेक्निकल स्किल्स होनी चाहिए। एकेडमिक स्किल्स में सब्जेक्ट का नॉलेज होना चाहिए ताकि प्रासंगिक चीजो को जोड़ा एवं आवश्यकतानुसार हटाया जा सके। उसी प्रकार टेक्निकल स्किल्स में MS-Word, Google Doc, गूगल इनपुट टूल और गूगल सर्च के बारे में जानकारी होनी चाहिए।

कंटेंट डेवलपर की भूमिका एवं उत्तरदायित्व क्या होती हैं?

एक कंटेंट डेवलपर टीम लीडर द्वारा आवंटित कार्य के संपादन के लिए उत्तरदायी होता हैं। कोचिंग क्षेत्र में किए जाने वाले प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं:

  • स्टडी मटेरियल तैयार करना और समय-समय पर अपडेट करना।
  • डेली न्यूज़, MCQ एवं अन्य अभ्यास पत्रक तैयार करना।
  • टेस्ट सीरीज तैयार करना और उनके मॉडल उत्तर तैयार करना। आदि

कंटेंट डेवलपर के कैरियर का भावी संभावना क्या हैं?

खुद कोचिंग का जीवनकाल बहुत छोटा होता है। इसलिए कोचिंग के बंद होने पर कंटेंट डेवलपर का कैरियर भी जोखिम में आ जाता है। इसलिए लॉन्ग टर्म के लिए इसकी सलाह नहीं दी जा सकती। हालांकि कंटेंट डेवलपर आगे फैकल्टी के रूप में पढाना शुरू कर सकता हैं, तब कैरियर को स्थायी बनाने के लिए अधिक विकल्प प्राप्त हो जाते हैं।

किसी अभ्यर्थी को कब ज्वाइन करना चाहिए?

जब कोई अभ्यर्थी कम मार्क्स से रह जाता है और फिर से कोशिस करना चाहता हैं। अगर उसे वित्तीय दबाव महसूस हो रहा है, तब वह ज्वाइन कर सकता हैं। ऐसी स्थिति में ज्वाइन करने से वह पढाई से जुड़ा रहेगा और वित्तीय सहायता भी प्राप्त होगी। जो अभ्यर्थी कम मार्क्स से रहते हैं, और अगले अटेम्पट में भी काफी टाइम होता हैं, तब रूम पर खाली रहने के बजाय ज्वाइन कर लेना चाहिए। इससे न केवल वित्तीय आवश्यकता पूर्ण होती है, बल्कि जॉब का अनुभव भी हो जाता है।

हालाँकि मैं फ्रेशर को ज्वाइन नहीं करने की सलाह दूंगा, क्योंकि उन्हें अभी अपने अटेम्पट देने चाहिए। एक बार पैसे के लालच में फंस गये तो बाहर निकलना मुश्किल हो जाएगा। जॉब करते वक्त इतना टाइम भी नहीं मिलता की ज्यादा पढाई कर सके।

निष्कर्ष 

कंटेंट डेवलपर पार्ट टाइम जॉब के लिए एक बेहतरीन विकल्प हैं। कुछ अच्छे संस्थानों में यह बेहतरीन करियर विकल्प प्रदान करता हैं। अभ्यर्थियों की डिमांड इस क्षेत्र में जॉब पाने के लिए बढ़ रही हैं, इसका फायदा फ्रीलांसर मोड़ में काम करवाने वाले उठा रहे हैं। इसलिए गैर-संगठित क्षेत्र के ऐसे अभिकर्ताओं को कानून के दायरे में लाने की आवश्यकता हैं। साथ हो कंटेंट डेवलपर को भी संगठित होकर इंडस्ट्री से बात करनी चाहिए।