क्या राजस्थान तेलंगाना-करण से निपटने के लिए तैयार है?

राजस्थान के नक़्शे में विभिन्न केंद्रीय और राज्य स्तर के संस्थानों के वितरण पर गौर किया जाए तो हमे एक उच्च स्तर की विषमता नजर आएगी। राजस्थान के पश्चिमी भाग में अधिकतर संस्थानों का जमावड़ा मिलेगा। ऐसे में अभी कुछ साल पहले ही राज्य बने तेलंगाना की याद आती है। आंध्रप्रदेश की राजधानी सहित तमाम उच्च संस्थान हैदराबाद जैसे शहरो में थे जो कि तेलंगाना में रह गए। हालाँकि दस सालो के लिए हैदराबाद को सयुंक्त राजधानी के तौर पर स्वीकार कर लिया गया। लेकिन   विभाजन के बाद आंध्र प्रदेश को जो हिस्सा प्राप्त हुआ उसमे प्रशासनिक, राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक विकास से जुड़े सभी संस्थानों को फिर से बनाना होगा। एक तरीके से हम कह सकते है कि नए राज्य के रूप में भले ही दुनिया तेलंगाना को देखती हो, लेकिन हकीकत में तो नया राज्य आंध्रप्रदेश ही बना है। जैसे ही तेलंगाना राज्य का निर्माण हुआ तो राजस्थान के पश्चिमी भाग में मरू प्रदेश नाम से अलग राज्य बनाने की मांग शुरू हो गई। ऐसे में यह प्रश्न प्रासंगिक हो जाता है कि क्या राजस्थान भी तेलंगाना-करण की तरफ बढ़ रहा है। 

 ऐसे में यह सवाल अहम् हो गए है कि क्या पश्चिमी राजस्थान इतने सारे संस्थानों को प्राप्त करके बगावत कर देगा। तथा इस बगावत को रोजगार, आर्थिक विकास जैसे पिछड़ेपन के आधार पर उसी तरीके से न्यायोचित ठहराएगा, जिस तरीके से तेलंगाना ने ठहराया था।

कुल मिलकर राजस्थान के तेलंगाना करण का सिद्धांत इस डर पर आधारित है कि अगर किसी भी वजह से राजस्थान का विभाजन हो गया तो अधिकतर संस्थान पश्चिमी भाग में रह जाएंगे। तथा पूर्वी भाग में उनको फिर से निर्मित करने के लिए भारी निवेश करना होगा। जिस वजह से उस काल में राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता उत्पन्न हो जायेगी, जैसा की आंध्रप्रदेश में हुआ है। वहां तेलुगु देशम पार्टी को जब नए राज्य के लिए केंद्र से पर्याप्त सहयोग नहीं मिला तो वे सत्तारूढ़ गठबंधन से बाहर निकल गए। हालांकि केंद्र सरकार राज्य को स्पेशल पैकेज दे रही थी तो टीडीपी नेता स्पेशल राज्य के दर्जे पर अड़ गए, ताकि लोगो की जन भावना को आगामी चुनावो में उत्तेजित कर सके। लेकिन विपक्षी दल ने राजधानी के चक्कर में बाकी जनता की उपेक्षा को मुद्दा बनाते हुए सत्ता हासिल कर ली। इस प्रकार विभाजन ने राजनितिक अस्थिरता को जन्म दिया।

राजस्थान को तेलंगाना-करण की तरफ ले जाने वाले कारक 
राजस्थान के तेलंगाना करण की हमारी आशंका को निम्न कारक बल देते है। इन्हे हम सूचीबद्ध कर रहे है -
  1. राजस्थान के पश्चिमी भाग में संस्थानों के जमावड़े की बात वास्तविकता है, यह कोई दुर्भावना पर आधारित नहीं है। बीकानेर, बाड़मेर , जोधपुर, नागौर जैसे क्षेत्रो में बहुत सारे संस्थान स्थित है। इसलिए यह दोतरफा अलगाववाद को बढ़ावा देता है। जिनके पास संस्थान है वे बाकी राजस्थानियों की तुलना में उनके अधिक प्रत्यक्ष लाभ प्राप्त करेंगे। जबकि जिनके पास नहीं है उनके मन में भी सयुंक्त राजस्थान की भावना कमजोर होगी। 
  2. पश्चिमी भाग में पृथक राज्य बनाने की मांग का वास्तविक रूप से अस्तित्व में होना। मरू प्रदेश के नाम से कई ब्लॉग, लोगो और अन्य सामग्री इंटरनेट पर आपको मिल जायेगी। मरू प्रदेश की मांग करने वाले कई संगठन सक्रिय है। कई संगठनों के बैनर तले भूख हड़ताल हो चुकी है। उच्च नेतृत्व से अपनी पृथक राज्य की भावना के बारे में अवगत करा दिया गया है। इंटरनेट पर इस पृथक राज्य के बारे में कई अन्य सामग्री भी मौजूद है।
  3. पश्चिम राजस्थान के पास मरुस्थलीय भूभाग के कारण कमजोर आर्थिक विकास का बहाना होना। जबकि आर्थिक विकास के स्तर में सभी भागो की निम्न स्थिति होना। तेलंगाना ने भी समुद्री जुड़ाव नहीं होने और आंतरिक भूभाग की समस्याओ तथा कृषिगत समस्याओ को मुद्दा बनाया था। लेकिन राज्य की मांग करते समय ऐसी बाते उठा देना। 
  4. राजस्थान में सत्ता को आधार मानकर प्रयास करने वाले दो क्षेत्रीय दलों के प्रयास विफल हो चुके है। २०१३ के चुनाव में पूर्वी राजस्थान में राजपा और २०१८ के चुनाव में पश्चिमी राजस्थान में रालोसपा के प्रयास को सफलता नहीं मिल पाई थी। ऐसे में कोई भी क्षेत्रीय दल यह सोचकर लोगो की भावना को भड़का सकता है कि हो सकता है अगर राज्य छोटा होता तो हम शायद सत्ता पर पहुंच सकते थे। 
क्या राजस्थान के तेलंगाना कारण की अवधारणा वास्तविकता से परे अतिशयोक्तीपूर्ण कल्पना है ?
हालांकि हमने देखा की राजस्थान की विभाजन के लिए कई आकर्षक कारक रहे है। फिर भी निम्न कारण दर्शाते है कि यह सही नहीं है। 
  1. १. भारत में केवल राजस्थान ही ऐसा राज्य है जो विभिन्न रियासतो के सयोंजन से बना है। अन्य राज्य किसी ने किसी राज्य से पृथक हुए है। इसलिए ऐसा राज्य टूट नहीं सकता। 
  2. २. पश्चिमी भूभाग में अर्थव्यवस्था का इतना सुदृढ़ नहीं होना कि वह पृथक राज्य की बात भी सोच सके।