Theory of Internal Interference

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जैसा की हमने व्यक्ति के भौतिक विकास के लिए बाहरी हस्तक्षेप की अवधारणा (Theory of Individual Interference) देखी थी। उसमे हमने पाया था की आदमी के भौतिक विकास को अगर संधारणीय बनाना है तो हमे उसके मानसिक विकास (Internal Development ) पर भी ध्यान देना होगा। इसके लिए हमे उसके व्यक्तित्व विकास (Persoanality Development के क्षेत्र में कार्य करना होगा। इसके आधार पर हम उसे ज्यादा मजबूत कर सकते है अपने बलबूते पर ही खुद को खड़ा करने के लिए। व्यक्तित्व का विकास बेहद ही जरूरी हो जाता है। जिसमे शामिल किए जाने वाले बिन्दुओ का हम यहां पर अध्ययन करेंगे।

व्यक्तित्व विकास के लिए व्यक्ति के आंतरिक पटल में हस्तक्षेप करना होगा। हम जानते है यह कार्य परिवार, समाज और विद्यालय के माध्यम से किया जाता है। जो व्यक्ति की समाजीकरण प्रकिया का हिस्सा रहता है। बाद में किताबो,साथियो के माध्यम से भी यह निर्धारित होता है। लेकिन जो लोग इन सभी चीजों के त्रुटिपूर्ण स्वरूपों के सम्पर्क में रहे है, उनके व्यक्तित्व के विकास में भी त्रुटि होगी। वही भोले और सीधे समाज के द्वारा सीधे सादे व्यक्तित्व का विकास होगा। इसके विपरीत जिस समाज में हमेशा बिज़नेस की बाते होती है , वहां के बच्चो में भी यह बिज़नेस भावना व्यक्तित्व का हिस्सा बन जायेगी। इस तरह व्यक्तित्व हमारे मनोवृत्ति को दिशा देता है। जिसके आधार पर हमारे आचरण में अपनी स्थिति सुधारने के लिए किए जाने वाले प्रयासों की तीव्रता शामिल होती है।

व्यक्तित्व विकास में निम्न चीजे शामिल हो सकती है - नैतिक मूल्य आदि। अब इनका हम पृथक-पृथक अध्ययन करते है।

खंड I  नैतिक विकास  

नैतिक विकास आदमी के विकास से सीधा जुड़ा हुआ है। हम देखते है कि गरीब आदमी में नैतिक मूल्यों के प्रति समर्पण ज्यादा होता है। वही जैसे-जैसे यह स्तर बढ़ता जाता है ,नैतिकता का स्तर भी कम होता जाता है। इसके लिए हमे इस नैतिक अंतराल की खाई पर सेतु निर्मित करना होगा। इसके लिए हमे यह देखना होगा कि लोगो के विकास को नैतिक मूल्यों ने किस प्रकार प्रभावित किया है। वे किस प्रकार उसके विकास में बाधा बन रहे है। फिर उन्हें किस तरीके से अपडेट किया जाए। साथ ही इस कर्म में वे कही अनैतिक नहीं बन जाए। इसका भी ध्यान रखना है।

वर्तमान की नैतिकता का मूल्यांकन
वर्तमान में हमारा नैतिकता का दायरा बहुत भोला है। जिसमे छोटी-छोटी खामियों को भी अनैतिक मान लिया जाता है। यह लोगो के एम्पोवेर्मेंट में रुकावट के रूप में उभर कर सामने आती है। लोगो को सक्रिय नागरिक बनने से रोकती है। इसका कारण यह है कि हमारे पूर्वज भी हमारे सामने भोली नैतिकता को मानदंड बनाकर चले गए।

हमे गांधी की बजाय तिलक की नैतिकता की जरूरत थी। जिसमे अपने हक़ के लिए कोई परीक्षा नही देनी पड़ती थी। जबकि गाँधीजी आग्रह पर आधारित थी। आग्रह को ठुकराना कभी भी अनैतिक नही रहा। आज के प्रशासन ने यह तक कर दिया कि आपको आग्रह करने के लिए भी अनुमति की आवश्यकता होगी। अतः गाँधीजी की नैतिकता युग के हिसाब से सही नही थी। आज के युग मे गाँधीजी अप्रभावी है। मतलब जनता के लिए गाँधीजी का संघर्ष व्यर्थ चला गया। सारे सँघर्ष को नेताओ ने भुना लिया।
Question : गांधीजी आज के समय में अप्रभावी है। वह उस समय भी अप्रासंगिक ही थे। फिर किन कारणों ने गाँधी की सफलता सुनिश्चित की। विश्लेषण करो।  
हम इतना जानते है कि गांधी जी की नैतिकता दीर्घकाल में लाभ देती है। आम आदमी रोटी, कपड़े और मकान को दीर्घकाल के लिए नहीं छोड़ सकता है। यह नैतिकता केवल राज्य या फिर संगठनों के लिए फायदेमंद हो सकती है। लोग आजीविका का भी संचार नही कर पा रहे। इतने ज्यादा भोले भी नही होना चाहिए। अब इन्हें कैसे सजग करे। यह मुद्दा है।

नैतिकता में बदलाव का रोडमैप 
हमारी मौजूदा नैतिकता बहुत ही ज्यादा भोलेपन पर आधारित है। इसमें लोगो को छोटी -छोटी चीजों के  प्रति भी रोक दिया जाता है। इसे हमे अधिकार आधारित तो कम से कम बनाना ही चाहिए।
  1. भारतीय मूल्य व्यवस्था या संस्कृति में कुछ खामिया है, जो कि अपने परिवार, मित्रो और रिश्तेदारों को ज्यादा महत्व देती है। उनके लिए हम योग्यता, प्रतिभा, निष्पक्षता और व्यापक भलाई की हत्या करने को भी तैयार रहते है। यही वजह है कि कुछ उद्धमि आते ही सफलता प्राप्त करने लग जाते है।
  2. हमारी नैतिकता समाज द्वारा निर्धारित होती है। अगर हमने समाज के बंधन तोड़ दिए तो इस नैतिकता से भी मुक्त हो जाएंगे। इसके बाद चतुर लोगो की नैतकता को अंगीकार कर लेंगे। हो सकता है जिसके बाद सामाजिक -आर्थिक स्थिति में सुधार हो जाए। 
यह नैतिकता में बदलाव का प्रयास नहीं है बल्कि नैतिकता के परिष्करण की कोशिश है। जो कि समय के अनुसार बदलती रहती है। इसलिए इसको वर्तमान में भी अद्यतन करना कोई गलत बात नहीं है। 

खंड II  व्यक्तित्व विकास  

नैतिक मूल्यों के दायरे का निर्धारण करने के बाद हमे विभिन्न क्षेत्रो का विश्लेषण करना चाहिए। किस क्षेत्र में कोनसा कार्य उत्पादक साबित हो सकता है।इसके अलावा इसमें यह चीज भी प्रदान करने की आवश्यकता होगी कि किस तरह से वे खुद को इस गला काट स्पर्द्धा  वाली दुनिया में टिकाये रख सकेंगे।

इसके लिए कुछ क्षेत्रो के बारे में संकेत किया जा सकता है -
  1. लोगो में पुलिस से डील करने का आत्मविश्वास नहीं है। जैसे ही सामना होता है तो लोग उससे लड़ने पे उतारू हो जाते है। वे उसे ट्रबल मेकर समझते है। हमे लोगो को कानूनों के बारे में स्कूल स्तर पर बताकर अनुपालन संस्कृति की शुरुआत करनी चाहिए।
  2. लोगो को सरकारी योजनाओ के लाभ लेने में भी दिक्कत का सामना करना पड़ता है। इसलिए उनमे अधिकार आधारित मूल्यों को बिठाया जाना चाहिए। 
  3. सरकार से डील करने में ही नहीं लोगो को निजी क्षेत्र के लोगो, किसी व्यक्तिगत आदमी से डील करने के लिए भी एम्पावरमेंट करने की जरूरत है। इसलिए निजी जिंदगी हेतु भी कौशल इसमें शामिल है।  
इन सभी चीजों को स्कूलों के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। जिनमे अध्ययन के अलावा संबंधित विभाग के अधिकारियो को भेजकर व्यवहारिक प्रयोग दिखाना भी चाहिए। तब जाकर ये चीजे बच्चो के मूल्यों का हिस्सा बनकर उनके आचरण में उजागर होगी। 

खंड III  Theory Analysis  

अब हम वापस से आदमी के विकास में इस सिद्धांत के योगदान के मूल्यांकन पर आ जाते है। 
व्यक्ति का आंतरिक विकास उसके भौतिक विकास को टिकाऊ बनाता है। जिसकी बदौलत वह उसे संधारणीय बनाये रख सकता है। विकास पर ध्यान देते वक्त यह भी बहुत ही अनिवार्य पहलु है।  

लेकिन नकारात्मक पहलू की बात की जाए तो वो यह हो सकता है कि लोगो का एक सीमा से नीचे के कामो के प्रति मोहभंग हो सकता है। या फिर लोगो में कामो के चयन के प्रति विशिष्टता विकसित हो सकती है। तब हमे जरूरी लेकिन निम्न दर्जे के कामो को स्वयं करना होगा ,यह इस चीज का फायदा हो सकता है कि इससे दलित संकल्पना की समाप्ति हो जाए। इसके बाद अन्य निम्न स्तरीय कार्यो में भी लोगो की भागीदारी हेय दृष्टि से नहीं देखी जायेगी और उनके साथ गरिमापूर्ण व्यवहार किया जाएगा। 

इस प्रकार इस सिद्धांत के फायदे और नुकसान की सीमा अधिव्याप्त है। जहां हम नुकसान खोजने जाते है वही पर हमे कुछ फायदा मिल जाता है। 

निष्कर्ष :
व्यक्ति के आंतरिक विकास के लक्ष्यों की प्राप्ति के बाद हम मुख्यधारा का आदमी प्राप्त कर सकते है। हालांकि यह मुख्यधारा की अवधारणा भी परतीय(Layered)है लेकिन कम से कम यहां से उसकी शुरुआत भी होती है तो भी घाटे का सौदा नहीं है। उसके बाद यह वर्ग उपभोगवादी वर्ग में शामिल हो जाएगा। जिससे यह मार्केट के अनुसार खुद को ढलने में सक्षम होगा। अत: ऐसा करके हम लोकतान्त्रिक मूल्यों की स्थापना में आर्थिक न्याय की पहली सीढ़ी को प्राप्त कर लेंगे। बाकी प्रकार के न्याय लगातार हलने वाले प्रक्रम होते है, जिनके प्रति अनुकूलन यही से विकसित होगा। इसके बाद अगर कोई छल-कपट करके भी आगे बढ़ेगा तो अनैतिक नहीं समझा जाएगा, यही माना जाएगा कि उसने समान समझ के लोगो के मध्य उच्च कोटि की चालाकी की प्रदर्शन किया। 

After the Launching of Individuals

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जैसा कि हम सोचते है कि अगर आदमियों को निम्न कक्षा से उच्च कक्षा में एक बार लांच कर दिया तो उसके बाद वह लाचार स्थिति से निकल जाएगा। वह अगली कक्षा में अधिक बेहतर स्थिति का आनंद  उठा सकेगा। उसके बाद वह इस चक्र से निकल जाएगा। लेकिन दूसरी आशंका सामने आ जाती है कि वह अगर अपनी कक्षा में और इजाफा करना चाहे तो क्या उसकी मदद की जानी चाहिए या नहीं। अगर इस तरह मदद करेंगे तो कक्षाओं का स्तरण तो आगे भी समान प्रकार से जारी रहेगा और राज्य कहां तक मदद करेगा। कोई सीमा भी तो होगी। क्या भौतिक चीजों की उपलब्धता बढ़ाकर किया गया कक्षा में इजाफा टिकाऊ होगा या फिर भौतिक चीजों की प्राप्ति ही आदमी का मकसद होता है।  ये सब प्रश्न विचार करने के योग्य है। जिन पर आगे हम विचार करते है।

कक्षा के स्थानांतरण से जुडी Theory of Individual Interference में निम्न बाते उभर कर सामने आती है -

1. कक्षा के स्थानांतरण में बाहरी समर्थन की आवश्यकता के पात्र कोन होंगे ? 
इस प्रश्न का सीधा सा जवाब है कि निम्न वर्ग को ही केवल सरकारी हस्तक्षेप का लाभ मिलना चाहिए। जिसके माध्यम से ये निम्न-मध्यम वर्ग में प्रवेश कर सके। या फिर मध्यम वर्ग में पहुंचने का सामर्थ्य प्राप्त कर सके। लेकिन यहां पर एक प्रश्न खड़ा होता है कि निम्न वर्ग हस्तक्षेप के माध्यम से ऊपरी वर्ग में पहुंचते वक्त निम्न-मध्यम वर्ग को पीछे छोड़ देता है तो उसको कैसे न्योचित ठहराया जाएगा। निम्न वर्ग को निम्न -मध्यम वर्ग में पहुंचाने के लिए क्या मानदंड उसकी योग्यता के निर्धारण में प्रयुक्त किए जाएंगे। दूसरी तरफ यह वर्ग हस्तक्षेप के माध्यम से उस वर्ग के समकक्ष पहुंच जाएगा जो उस समय tax का भुगतान कर रहा होगा। इसके बाद वह इस वर्ग को भी चुनौती देगा, जो क्या इसे स्वीकार्य होगा। इस प्रकार सिद्धांत तो आकर्षक लगता है। लेकिन इसकी डिज़ाइन जटिल होगी और कई तरह की प्रशासनिक जटिलताओं को शामिल करके मौजूदा हस्तक्षेपों के समकक्ष ही पहुंच जायेगी। और आखिर में पूरा सिद्धांत अप्रभावी साबित होगा। 

2. मध्यम वर्ग की भी अपनी मांगो का होना 
वही निम्न वर्ग को प्रगति करते हुए देखने वाला मध्यम वर्ग उस समय क्या चुप थोड़ी रहेगा। वह भी अपने लिए उच्चतर कक्षा में पहुंचने के लिए हस्तक्षेपों की मांग करेगा। इससे आगे उच्च वर्ग भी इसी तरह की मांग समान समय पर करेंगे। वोटबैंक की राजनीती किसी भी वर्ग को नाराज रहने का मौका नहीं देना चाहेगी। वह इन सबको लॉन्चिंग के लिए ड्राइव प्रदान करेगी। जिसकी वजह से संसाधन किसी एक वर्ग के लिए संकीर्ण हो जाएंगे। जिससे उद्देश्य की प्राप्ति समय लेगी। वही ऊपरी वर्गो की भी समान समय पर उच्च स्तर में जाने की मांग असमानता को और अधिक बढ़ा देगी। इससे उद्देश्य प्राप्ति अप्रभावी होना तय है। अगर एक उद्देश्य को प्राप्त करेंगे, उस समय पर जाकर अभावो की दूसरी खाई मौजूद मिलेगी और पुराणी प्रगति इस समय पर आकर अप्रभावी लगना तय है।

3. सरकारी हस्तक्षेप के लिए बुनियादी मापदंड 
यहां से एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि कक्षाओं की उपस्थिति एक कटु सत्य है। हम कभी भी एक देश एक कक्षा के उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर सकते। ऐसे में निम्न कक्षाओं के लिए ऊपर की कक्षा में जाने का सपना हमेशा मन में बना रहेगा। वह अपनी इसी आकांशा के साथ जीवन व्यतीत कर देगा। लेकिन हमने देखा कि जो जिंदगी निम्न वाले के लिए आदर्श है वह मध्यम वाले के लिए नीरस है और वह आगे उच्च की जिंदगी को आदर्श मानेगा। ऐसे में संतुष्टि का प्रश्न सामने आ जाता है कि ऐसी क्या बुनियादी चीजे हो जिनके बाद आदमी के जीवन को सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं रहे। इसके लिए उसके उच्च वर्ग में पहुंचने के लिए आवश्यक कौशल को प्राप्त करने में लगने वाले संसाधनों को आधार बनाया जाना चाहिए। 

4. संसाधनों का जमावड़ा करने की होड़ 
इसके अलावा यहां से यह चीज भी उठती है कि संसाधनों का जमावड़ा करने की होड़ कभी भी समाप्त नहीं हो सकती। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि हम लोगो की प्राथमिकता को अन्य क्षेत्रो की तरफ मोड़े। जैसे कि रचनात्मकता, खेलकूद और अन्य प्रतिभा का क्षेत्र। ताकि जिसके आधार पर आदमी अपने अहम् को संतुष्टि प्रदान करे, बजाय संसाधनों के जमावड़े के आधार पर। लेकिन हम देखते है कि प्रतिभा सम्पन्न लोगो ने भी एक नवीन कुलीन वर्ग को जन्म दिया है। जिससे यह होड़ फिर आगे बढ़ जाती है। ऐसे में हमारे सामने प्रश्न यही है कि इस होड़ को कैसे रोके। इसकी वजह से प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव पड़ता जा रहा है।  पत्थर और रेत जंगलो और पहाड़ो से निककर घरो में आके जमा हो गई। इससे जंगल तबाह हो गए, स्थानीय समुदाय विस्तापित हो गए, ग्रीन हाउस गेसो का उतसर्जन बढ़ गया। इसलिए इसे भी साथ में रोककर आगे बढ़ना होगा। पर्यावरण क्षति की वजह से निम्न लोगो के विकास को तो रोक नहीं सकते ।

5. अल्टीमेट रियलिटी की तलाश 
अगर आदमी निचली कक्षाओं से ऊपर की कक्षाओं में पलायन कर गए। तो निचली कक्षा के कामो को कोन सम्पादित करेगा। लेकिन इसकी गारंटी तकनीकी ले रही है। फिर तो इस पलायन से आपत्ति नहीं होनी चाहिए। लेकिन सच्चाई इन दोनों बातो के बीच में है। मतलब तकनीकी पूरी तरीके से आदमी की जगह नहीं ले सकती। इसलिए आदमी की निम्न कार्यो में भूमिका बची रहेगी। अगर ऐसा नहीं रहेगा, फिर तो मध्यम स्तर पर रोजगारो की मांग करने वालो की भीड़ और बढ़ जायेगी। इसलिए यहां से बुनियादी प्रश्न उठता है कि अल्टीमेट रियलिटी क्या है। आदमी का पैसेकमा कर उच्च वर्ग की जिंदगी जीना ही उद्देश्य नहीं हो सकता। वही निम्न वर्ग में रहकर अपनी सभी आवश्यकताओं और इच्छाओ को दबाना भी उद्देश्य नहीं हो सकता। इसलिए बुनियादी चीजों की प्राप्ति के बाद इस रंगमंच पर अभिनय करने की बात यहां से उभर कर सामने आती है।


खंड II
अब हमारे सामने प्रश्न यह है कि जब इतने सारे बुनियादी प्रश्नो का समर्थन इस सिद्धांत को नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में क्या इसे आगे बढ़ाना चाहिए या नहीं। इसके अलावा यह बात भी उठती है कि फिर किस तरह से इसका क्रियान्वन किया जाए कि ये प्रश्न खड़े नहीं हो।

1. सबसे पहले तो यह बात स्पष्ट हो जाती है की लांच करने का नियम सभी कक्षाओं पर लागू नहीं होता। यह केवल निम्न कक्षाओं के लिए ही उपुक्त है। जिसका मकसद उनके गरीबी के चक्र में रोकने के लिए जिम्मेदार कारको का खात्मा करना है।  जिस प्रकार अगर गरीबी की वजह से पढाई नहीं कर पाता तो उसे पढाई के लिए बेहतरीन सुविधा उपलब्ध करानी है। यह नहीं कि उसे बीस लाख रूपए देकर कार दिलवा दी। और बोल दिया कि जा अब तू हो गया मध्यम वर्ग का आदमी।

2.  दूसरी तरफ समाज को समानता की तरफ धकेलने के प्रयास किए जाएंगे। इसके लिए कई क्षेत्रो में कार्य किया जाएगा। जो करो के माध्यम से प्राप्त हो सकता है। या फिर सरकारी समर्थनों के माध्यम से।
इसके अलावा संसाधनों की संकीर्णता को रोकने के लिए जनसंख्या नीति पर भी विचार किया जाएगा। साथ ही किसी एक ही आदमी को प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक प्रयोग से रोका जाएगा। एक व्यक्ति को साल में उत्पादित संसाधनों का कितनी सीमा तक उपयोग करना चाहिए। इस पर विचार किया जाएगा। देश को निरंकुश पूंजीवाद के जाल से निकाला जाएगा। इस वजह से कई चीजों की मनमर्जी की कीमतों से भी मुक्ति मिलेगी।

3. राजनीती आश्वासन दिलाने का काम कर सकती है कि वह सभी के उत्थान का कार्य कर रही है। लेकिन इस समय की विभाजनकारी राजनीती में अलग अलग समय पर शासन से उम्मीद लगा सकते है। एक वर्ग को आगे बढ़ना है तो दूसरे को पीछे छोड़ना पड़ेगा। इस प्रकार यह सिद्धांत पुन: प्रासंगिक हो जाता है कि एक ही समय पर सभी लोगो को खुश करना सम्भव नहीं है। वही इस तरह के प्रयास किसी सरकार द्वारा किए जाएंगे, ऐसे में जरुरी तो नहीं कि सभी राज्य इसी तरह के कार्यक्रम लागू करे। इसलिए स्थानीय सर्कार पर भरोसा भी रखना होगा और उसकी नीतियों को जनोन्मुखी बनाने के लिए दबाव भी रखना होगा। यह सब विरोध की राजनीती की बजाय थिंकटैंक की राजनीती के माध्यम से करना होगा।

4. अब प्रश्न यह हो जाता है कि यह कोई अद्वितीय सिद्धांत नहीं है। लेकिन इसमें निम्न वर्ग को ऊपर उठाने का पवित्र उद्देश्य शामिल है, जिसे कैसे प्राप्त किया जाए। इसके लिए मौजूदा कौशल विकास, उद्यम स्थापना के कार्यक्रमों के माध्यम से कैसे अधिकतम जरुरतमंदो को सम्बोधित किया जाए। इसके लिए मौजूदा कार्यक्रमों की प्रभाविता बढ़ाने के सरकारी प्रयासों की मदद करनी होगी।

5. इस कार्य के लिए अब हमे दूसरे क्षेत्रो की भी मदद लेनी होगी। तब जाकर यह उद्देश्य पूरा किया जा सकता है। बिज़नेस सेक्टर को ऐसे उत्पाद निर्मित करने चाहिए, जो इस वर्ग के लिए किफायती हो। जिनको उपभोग करने में निम्न वर्ग पर भर नहीं पड़े। वही ऐसे उत्पाद भी हो जो आसान और वहनीय तरिके से घर की बुनियादी चीजे बसाने में मदद करे।

निष्कर्ष :
प्रत्येक व्यक्ति के उत्थान में सक्रिय हस्तक्षेप का रास्ता जटिल है। लेकिन हम उन्हें दुसरो के द्वारा उत्पीड़ित होते नहीं देख सकते। उनके मानवाधिकारों को उच्च वर्ग के मनोरंजन का जरिया नहीं बनने दिया जा सकता। इसलिए बुनियादी चीजे उपलब्ध कराने के अलावा उनके व्यक्तित्व के विकास के लिए भी कार्य करना होगा। बिना व्यक्तित्व के क्या गारंटी है कि वे भेजे गए ऊपरी वर्ग में ठीके रहेंगे या फिर दमित या शोषित नहीं होंगे। इसलिए भौतिक विकास  के साथ-साथ आंतरिक विकास के लिए भी हस्तक्षेप जरूरी हो जाता है।